तमिलनाडु में जारी है भारी बारिश का सिलसिला
डॉ अभय कुमार
पर्यावरण वैज्ञानिक
राजधानी चेन्नै और तमिलनाडु के अन्य हिस्सों में भारी बारिश का सिलसिला जारी है. इस महानगर के हालिया इतिहास में वर्षा का यह स्तर अभूतपूर्व है. आम तौर पर तमिलनाडु में वर्ष के इन महीनों में तेज बारिश होती है. इसका कारण उत्तर-पूर्वी मॉनसून है जिसे वापस लौटता हुआ दक्षिण-पश्चिम मॉनसून भी कहा जाता है. हिमालय से आती ठंडी हवाएं बंगाल की खाड़ी से नमी पाती हैं और दिसंबर से मार्च के बीच प्रायद्वीपीय भारत में बरसात का कारण बनती हैं. इस बार अजीबोगरीब बात यह है कि एक महीने के भीतर ही इस क्षेत्र में उतनी बारिश हो चुकी है, जितनी कि चार महीनों में हुआ करती है.
दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के अत्यधिक स्तर पर बदलने की घटनाएं पिछले कुछ समय से बहुत तेजी से बढ़ी हैं
जलवायु परिवर्तन की समस्या वैश्विक स्तर पर मानव समाज की बड़ी चिंताओं में है. मौसम के रुख में तीव्र बदलाव और तापमान बढ़ने के प्रमाणों के कारण इस मुद्दे पर गंभीरता भी बढ़ी है. इस विषय से संबंधित विज्ञान के अध्ययनों की प्रामाणिकता और उसके आकलनों तथा भविष्यवाणियों की निश्चितता बढ़ने की स्थिति में यह जरूरी है कि लोगों में जागरूकता का व्यापक प्रसार हो ताकि समाज उसके परिणामों का सामना करने के लिए समुचित रूप से तैयार हो सके.
धरती अपने अस्तित्व के दौरान गर्म और ठंढी होती रही है. इस प्रक्रिया का असर इसके जैवमंडल पर होता है.
वर्तमान में हम धरती के गर्म होने की परिघटना के साक्षी हो रहे हैं. यह बड़ी चिंता का कारण इसलिए है कि तापमान में बढ़ोतरी की गति बहुत तेज है और इसकी वजह मानवीय गतिविधियां हैं. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की समिति के अध्ययन के अनुसार, इस बात की 90 फीसदी संभावना है कि विगत 250 वर्षों की मानवीय गतिविधियों के कारण धरती का तापमान बढ़ा है. पेरिस में चल रही जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय बैठक के नतीजों पर सबकी नजर है. इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य तापमान बढ़ने की दर को सीमित करने के उपायों पर सहमति बनानी है.
इस सम्मेलन से निकलनेवाले निष्कर्ष पर दुनिया के भविष्य का स्वरूप निर्भर करेगा, क्योंकि तापमान में वृद्धि न सिर्फ मौसम के मिजाज के मिजाज को बदल रही है, बल्कि गंभीर बीमारियों, विषाणुओं और सामाजिक संघर्षों को भी बढ़ा रही है. प्रदूषण और जल-संकट की समस्या भी विकराल होती जा रही है.
तमिलनाडु की त्रासदी पर चर्चा करते हुए यह बात भी ध्यान में रखी जानी चाहिए कि शहरों के आकार में निर्बाध विस्तार से ताल-तलैया और प्राकृतिक निकास के रास्ते नष्ट हो रहे हैं, जो बारिश का पानी सोख लेते थे. चैन्ने में भी ऐसा हुआ है जिसके दस्तावेज मौजूद हैं और विशेषज्ञ समय-समय पर इन खामियों को इंगित करते रहे हैं. जल-प्रबंधन शहरों की व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण कारक होना चाहिए. तटीय शहर होने के कारण चैन्ने का बड़ा हिस्सा समुद्र तल के बराबर या उससे नीचे है. ऐसे में जल विज्ञान के सिद्धांत बहुत प्रासंगिक हो जाते हैं. ध्यान रहे, 2031 तक भारत की शहरी आबादी 20 करोड़ से बढ़ कर 60 करोड़ हो जायेगी, जो कि कुल आबादी का 40 फीसदी हिस्सा होगा. इस स्थिति में यह त्रासदी हमारे लिए एक चेतावनी है और यह चिंता हमारे नीति-निर्धारण प्रक्रिया का प्रमुख तत्व होना चाहिए.
तमिलनाडु में भारी बारिश और बाढ़ से हुई जान-माल की भयानक क्षति इस बात को रेखांकित करती है कि हम एक देश और समाज के रूप में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मसलों के प्रति अगंभीर रवैया नहीं अपना सकते हैं.
दो साल पहले उत्तराखंड और पिछले साल कश्मीर की बाढ़ की तबाही हम देख चुके हैं. देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी स्थितियां पैदा होती रहती हैं. इस संदर्भ में शहरीकरण की प्रक्रिया और योजनाओं में त्रासदियों को संज्ञान में लेने की आवश्यकता है. इसी तरह से आपदा की स्थिति में की जानेवाली कार्रवाईयों को लेकर पूरी तैयारी की जानी चाहिए.