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है काम आदमी का औरों के काम आना…

कैंसर पीड़ितों के लिए गाने वाला शख्स सौरभ निबंकर अपने दोस्तों के साथ मुबंई की लोकल ट्रेनों में गिटार बजाते थे, जिसे लोग खूब पंसद करते थे. लेकिन कैंसर की वजह से मां की मृत्यु होने के बाद उनकी जिंदगी बदल गयी. वे अब भी गिटार बजाते हैं, लेकिन कैंसर-पीड़ित रोगियों और उनके परिवार के […]

कैंसर पीड़ितों के लिए गाने वाला शख्स
सौरभ निबंकर अपने दोस्तों के साथ मुबंई की लोकल ट्रेनों में गिटार बजाते थे, जिसे लोग खूब पंसद करते थे. लेकिन कैंसर की वजह से मां की मृत्यु होने के बाद उनकी जिंदगी बदल गयी. वे अब भी गिटार बजाते हैं, लेकिन कैंसर-पीड़ित रोगियों और उनके परिवार के लिए. इससे प्राप्त चंदे को वे पीड़ितों व उनके परिवारों की सेवा में लगाते हैं. पढ़िए एक रिपोर्ट.
शुकोह अल बदर
मुंबई की लोकल ट्रेनों में भारी भीड़ और रोजाना के नीरस और उबाऊ कर देने वाली यात्रा के दौरान जब गिटार की आवाज यात्रियों के कानों में गूंजती है, तो कुछ लोग तो अचरज में पड़ जाते हैं, जबकि कुछ के चेहरे पर मुस्कान दौड़ जाती है. बेतहाशा भागती भीड़, बहस और झगड़ों के बीचे गिटार पर बजते मधुर संगीत यात्रियों की थकान को दूर कर देती है. कंधे पर लटके गिटार और डोनेशन बॉक्स के साथ 23 साल का यह लड़का मुंबई की ट्रेनों में रोजाना सफर करने वालों के बीच एक जाना-पहचाना चेहरा बन चुका है. इस युवा का नाम सौरभ निबंकर है.
सौरभ निबंकर मुंबई की लोकल ट्रेनों में लोगों का मनोरंजन कर उनके परिवार के लिए चंदा एकत्र करने का काम करते हैं. सौरभ ने बायोटेक्नोलॉजी में स्नातक आैर बायोएनालाइटिक सांइसेज में मास्टर डिग्री तक की शिक्षा प्राप्त की है. सौरभ की जिंदगी में ऐसा करने का विचार तब आया जब उन्हें यह पता चला कि उनकी मां को ल्यूकेमिया नामक कैंसर है. उन दिनों वह बायोएनालाइटिकल सांइसेज में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त कर रहे थे.
बड़े भाई और चाचा की मदद से मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में चार महीनों तक अपनी मां का इलाज कराया. इलाज के दौरान सौरभ दूसरे कैंसर पीड़ित लोगों के परिवार की तकलीफों से भी रू-ब-रू हुए. इलाज के लिए आये अधिकांश लोग ऐसे थे, जो दूसरे राज्यों से आये हुए थे और काफी गरीब थे. कई लोग अपनी नौकरी छोड़ अपने संगे-सबंधियों के साथ इलाज कराने पहुंचे थे. कैंसर पीड़ित और उनके परिवारों से मिलने के दौरान उन्हें यह भी मालूम हुआ कि कई परिवारों को इलाज के लिए अपनी संपत्ति तक बेचनी पड़ी. कई ऐसे परिवार पैसे बचाने के लिए फुटपाथ पर सोते थे.
उन्होंने देखा कि ऐसे मौके पर अस्पताल के वार्ड में सभी किस तरह एक परिवार की तरह बर्ताव करते हैं. एक कैंसर रोगी के पिता द्वारा महंगी दवाई के जरूरत नहीं होने पर दूसरे को दिये जाने की घटना ने सौरभ को काफी उद्वेलित किया क्योंकि उस पिता को इन दवाइयों की आवश्यकता नहीं थी. इस घटना ने उन्हें काफी प्रभावित किया और दूसरे रोगियों की मदद करने का जज्बा और प्रोत्साहन मिला.
मां के इलाज के दौरान एक दिन वह अपने गिटार के साथ अस्पताल के वार्ड में पहुंचे. तनाव और थकान से भरे वार्ड में जब जब उन्होंने गिटार बजाना शुरू किया, तो पाया कि वार्ड जीवंत हो चुका है.
तब उन्हें यह विचार आया कि क्यों न कैंसर पीड़ित रोगियों की मदद के लिए लोकल ट्रेनों में गिटार बजा कर लोगाें का मनोरंजन कर चंदा जमा किया जाये. यह बात उन्होंने अपनी मां को बतायी तो वह काफी खुश हुईं. लेकिन उन्हें अपने आइडिया को साकार करने में समय लग गया. उनकी मां का भी देहांत हो गया. सौरभ के लिए यह पल बहुत कठिन था, क्योंकि इस बीच उनके सबसे अच्छे दोस्त की ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गयी.
अगले छह माह तक उनके लिए यह समय काफी कठिन रहा. लेकिन उन्होंने स्वंय को संभाला और यह माना कि जीवन निरंतर चलते रहने का ही नाम है. सौरभ ने एक दवा कंपनी में नौकरी कर ली जिससे उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने मदद मिली. उन्होंने अपने पुराने विचार को एक बार फिर साकार करने की ठानी और वे कैंसर पीड़ितों के लिए काम करने वाली एक संस्था से जुड़ गये.
अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी टीवी कार्यक्रम आज की रात जिंदगी में सौरभ को सम्मानित किया और उनकी सराहना की.
सौरभ सप्ताह के चार दिन दो घंटे दादर-अंबरनाथ लोकल ट्रेन में चंदा जमा करने का काम करते हैं. वे सुबह के समय में भीड़ भरी मुंबई के दादर-अंबरनाथ लोकल ट्रेन पर सवार होते हैं.
वे डोंबीवली तक सफर करते हैं. भीड़ भरी ट्रेन में ऐसा करना चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन इस समय रोजाना के सफर में उन्हें मदद करने और चंदा देने वाले काफी लोग मिल जाते हैं. उनका मानना है कि अगर एक अकेला आदमी किसी काम को करने का निर्णय ले ले, तो बहुत कुछ बदलाव ला सकता है. हर व्यक्ति अपने हुनर का इस्तेमाल अच्छे काम के लिए कर सकता है.

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