Loading election data...

नाम सुन कांपती है मनचलों की रूह

यौन उत्पीड़न की शिकार उषा लड़कियों को सिखा रहीं आत्मरक्षा के गुर भय और समय से जिसने लोहा लिया, उसने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में जन्मीं उषा विश्वकर्मा का दोस्त ने ही यौन उत्पीड़न किया. इस दगाबाजी से आहत उषा नेमनचलों को सुधारने की ठानी. इस साहस और जज्बे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 14, 2015 7:03 AM

यौन उत्पीड़न की शिकार उषा लड़कियों को सिखा रहीं आत्मरक्षा के गुर

भय और समय से जिसने लोहा लिया, उसने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में जन्मीं उषा विश्वकर्मा का दोस्त ने ही यौन उत्पीड़न किया. इस दगाबाजी से आहत उषा नेमनचलों को सुधारने की ठानी. इस साहस और जज्बे का ही परिणाम है कि आज लखनऊ व वाराणसी क्षेत्र के मनचलों की रूह ‘रेड बिग्रेड’ का नाम सुन कर कांप जाती है.

सबकी तरह उषा भी एक दोस्त पाकर खुश थी. दुख-सुख का संगी मान खुद से ज्यादा भरोसा करने लगी. जीवन का खालीपन भरने का अहसास हुआ.पर, अचानक सब टूट गया. जिस दोस्त को लेकर वह उत्साहित थी, उसी ने यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया. भरोसा ऐसा खत्म हुआ कि इस हादसे को भूलने में एक साल लग गये. भय के कारण वह घुटती रहती थी. कहते हैं कि जब भय पराकाष्ठा पर पहुंच जाता है, तभी जज्बा और साहस आता है. उषा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उसे लगा कि वह क्यों ऐसे जीये. क्यों न ऐसे लोगों को सीख दे, कि कोई ऐसा करने से पहले वह सोचे.शेष पेज 17 पर

नाम सुन कांपती है…

यही वजह है कि उसने लड़कियों को मनचलों व यौन उत्पीड़न की घटनाओं से बचने का गुर सिखाना शुरू किया.

आज उषा के साहस और जज्बे का ही नतीजा है कि ‘रेड बिग्रेड’ नामक दल के 30-30 सदस्य लखनऊ और वाराणसी में कार्यरत हैं. इस दल के सदस्यों ने अब तक लखनऊ और वाराणसी की करीब 34 हजार लड़कियों को आत्मरक्षा का गुर सिखाया है. स्थिति यह है कि यदि इस संगठन की किसी सदस्य के सामने कोई मनचला आता है, तो उसे सबक सीख कर ही वापस जाना पड़ता है. संगठन ने मनचलों के विरोध को एक मिशन के रूप में स्वीकार किया है.

अब वह पांच से 11 साल के बच्चों को ‘गुड टच’ व ‘बैड टच’ के अंतर को समझा रही हैं. उसकी तमन्ना है 10 लाख लड़कियों को आत्मरक्षा का गुर सिखाना, ताकि ‘वन मिलियन’ मिशन उनका सपना साकार हो सके.

बस्तियों में पढ़ाती थीं ट्यूशन : उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में जन्मी उषा विश्वकर्मा गरीब माता-पिता की संतान हैं. उसके पास उच्च शिक्षा के पैसे नहीं थे. जैसे-तैसे उसने लखनऊ के एक कॉलेज में इंटर की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया. गरीबी इतनी कि उसके पास किताब खरीदने के भी पैसे नहीं थे. पैसों की तंगी के कारण उसने स्लम बस्तियों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया.

इसी दौरान उसे पता चला कि जिन बच्चों को वह पढ़ाती है, उनमें से एक 11 साल की बच्ची को उसके (उषा के) सगे चाचा ने दुष्कर्म किया है.

संबंधी होने के कारण पीड़ित परिवार ने घटना की जानकारी पुलिस को नहीं दी. यह उषा के लिए एक बहुत बड़ा सदमा था. यह बात उसके मन को कचोटने लगी.

दोस्त ने किया यौन उत्पीड़न : उषा अभी अपने चाचा के बर्ताव को भूल भी नहीं पायी थी कि उसके एक दोस्त ने ही विश्वास तोड़ा. लोकलाज के भय से उसने इस घटना का जिक्र किसी से नहीं किया. घटना के बाद वह करीब एक साल तक सदमे में रही. उसकी तबीयत इतनी खराब हो गयी कि एक बार उसके परिजनों ने उसे लखनऊ के नूर मंजिल मनोचिकित्सा केंद्र में भरती कराने के बारे में सोचने लगे. इस दौरान उसकी पढ़ाई भी छूट गयी थी. बावजूद उषा की दोस्तों ने उसका साथ नहीं छोड़ा.

कार्यशाला ने दिखायी नयी राह : हादसे के काफी समय बाद जब उषा सामान्य होने लगी, तो उनके दोस्तों ने सलाह दी कि उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ ऐसा काम भी करना चाहिए, जो यौन उत्पीड़न का शिकार होने के पहले किसी भी लड़की के लिए हथियार का काम करे और मनचलों को सबक भी मिले. मन में यह विचार आते ही अपने दोस्तों के साथ उषा ने महिलाओं के लिए आयोजित एक कार्यशाला में भाग लिया. कार्यशाला में उत्तर प्रदेश के चार-पांच जिलों की करीब 55 लड़कियां शामिल थीं. कार्यशाला के दौरान उन लड़कियों ने बताया कि उनके साथ रिश्तेदारों ने ही दुष्कर्म, मारपीट या छेड़छाड़ की घटना को अंजाम दिया है.

इनबातों को सुन कर उषा और उसके दोस्तों के पैरों तले जमीन खिसक गयी. अब तक तो वह यही समझ रही थी कि वह इकलौती लड़की है, जिसे उसके दोस्त ने उत्पीड़न का शिकार बनाया है. लड़कियों ने फैसला किया कि अब वह महिला हिंसा पर काम करेंगी.

तब की मनचलों की पिटाई : लखनऊ के मड़ियांव की लड़कियां अक्सर मनचलों से परेशान रहती थीं. आये दिन कोई न कोई कभी उनका पल्लू खींचता, तो कोई हाथ पकड़ कर परे चलने को कहता.

इन घटनाओं को देख कर उषा ने 15 लड़कियों को मिला कर एक संगठन बनाया. संगठन की लड़कियां मनचलों के परिजनों को उसकी हरकत से अवगत कराती थीं. कई बार मामला तूल पकड़ने पर संगठन को पुलिस का सहयोग भी लेना पड़ता. एक दिन संगठन की एक लड़की ने एक मनचले की पिटाई कर दी. पिटाई की बात सुन लड़के के परिजन उषा के पास आ गये, लेकिन जब उन्हें सच्चाई का पता चला, तो वे लौट गये. इसके बाद संगठन के सदस्यों में हिम्मत आयी. ठान लिया कि वे अब मनचलों की छेड़खानी सहन नहीं करेंगी. इसके बाद कोई लड़का किसी लड़की को छेड़ता, तो पहले वह उसे समझाने का काम करती, पर जब वह बदतमीजी से बाज नहीं आता, तो उसकी पिटाई की जाती.

ड्रेस कोड ने दिलाया संगठन का नाम : इसके बाद संगठन के सदस्यों ने एक ड्रेस कोड बनाया, जिसका रंग लाल और काला रखा गया. इसका मतलब था संघर्ष के साथ विरोध करना. इसके बाद वे महिला समस्या पर लोगों से बात करने लगीं और नुक्कड़ नाटकों के जरिये महिलाओं और समाज के लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया. उनके इस अभियान के बाद शहर में जहां कहीं भी लोग इस संगठन की लड़कियों को देखता, उन्हें ‘रेड ब्रिगेड’ के नाम से पुकारता. जनता का यह नाम संगठन की सदस्यों को रास आया और उन्होंने इसका नाम रेड बिग्रेड ही रख दिया. उषा विश्वकर्मा बताती हैं कि हमने अपनी रक्षा करने के लिए रेड ब्रिगेड की स्थापना की थी.

रेड ब्रिगेड की पहल : जिस समय रेड ब्रिगेड की स्थापना की गयी, उस वक्त यह निर्णय किया गया था कि वे शहर के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर मनचलों पर नजर रखेंगी. अन्यायी का विरोध करेंगी. उनकी नजर उन क्षेत्रों पर ज्यादा रहने लगी, जहां पर अक्सर तेजाब फेंकने की घटनाएं होती या लड़कियां यौन उत्पीड़न का शिकार होतीं. इनकी इन कोशिशों का ही नतीजा रहा कि स्थानीय प्रशासन ने भी उनका साथ देना शुरू किया. आज लखनऊ में प्रशासन की ओर से जगह-जगह सीसीटीवी लगायी गयी है.

वन मिलियन को बनाया मिशन : लखनऊ और वाराणसी में संस्था को 30-30 सदस्यों के सहारे चलाया जा रहा है. इन दोनों शहरों में सफलता मिलने के बाद उषा ने देश की लड़कियों को यौन उत्पीड़न के खिलाफ प्रशिक्षण देने के लिए ‘वन मिलियन’ मिशन पर काम करना शुरू कर दिया है. इस मिशन के तहत देश भर की 10 लाख लड़कियों को आत्मरक्षा का गुर सिखाया जायेगा. इसके साथ ही, बालिका शिक्षा पर भी संगठन की ओर से जोर दिया जा रहा है.

फिलहाल, संगठन की ओर से पांच से 11 साल के बच्चों को ‘गुड टच’ व ‘बैड टच’ के अंतर को समझाने का काम किया जा रहा है. संगठन का मानना है कि देश में पांच से 11 साल के बच्चे यौन उत्पीड़न की चपेट में आते हैं. सदस्यों का यह भी कहना है कि देश में शौचालयों की भी बड़ी समस्या है. शौचालयों की कमी होने के कारण उनके राज्य में यौन उत्पीड़न की समस्या अधिक है. इसलिए अपने मिशन में उन्होंने शौचालय की समस्या को भी शामिल किया है.

Next Article

Exit mobile version