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आतंकवाद के खिलाफ बने व्यापक नीति : क्या 2016 में विश्व के प्रमुख देश आतंक के प्रति सख्त कदम उठायेंगे

अजय साहनी रक्षा मामलों के जानकार अगर कट्टरपंथी सोच पर सख्ती से रोक नहीं लगायी गयी, तो भविष्य में गंभीर परिणाम हो सकते हैं. पहले ऐसे कट्टरपंथी सोच के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने की भी आवश्यकता है. आतंकवाद के प्रति दोहरे मानदंड अपनाने से बचने की जरूरत है. अलविदा 2015 की कड़ी में आज पढ़ें […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 29, 2015 2:10 AM

अजय साहनी

रक्षा मामलों के जानकार

अगर कट्टरपंथी सोच पर सख्ती से रोक नहीं लगायी गयी, तो भविष्य में गंभीर परिणाम हो सकते हैं. पहले ऐसे कट्टरपंथी सोच के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने की भी आवश्यकता है. आतंकवाद के प्रति दोहरे मानदंड अपनाने से बचने की जरूरत है. अलविदा 2015 की कड़ी में आज पढ़ें आतंकवाद से निबटने के बारे में.

पेरिस में हुए आतंकी हमले में 129 लोगों के मारे जाने के बाद आइएस के वैश्विक खतरे को लेकर बहस और तेज हुई है. इस संगठन ने भारत में भी ऐसे हमले की धमकी दी है. आतंकी हमले का खतरा करीब डेढ़ साल से बढ़ा है, जब इसने इराक के मोसुल शहर पर 2014 में कब्जा किया.

तभी से यह संगठन अपने क्रूर कारनामों को विभिन्न सोशल मीडिया के माध्यमों से प्रचारित कर कट्टरपंथी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है. आइएस के प्रमुख बगदादी द्वारा खुद को खलीफा घोषित कर इराक और सीरिया के हिस्सों पर कब्जा जमाने के बाद दूसरे आतंकी संगठन बर्बरता के मामले में काफी पीछे छूट गये हैं.

मौजूदा समय में इसलामी आतंकवाद का स्वरूप बदल रहा है. अब राज्य प्रायोजित आतंकवाद से आतंकी राज्य का गठन आइएस के तौर पर हुआ है. भले ही आइएस की युद्ध लड़ने की क्षमता सीमित है, लेकिन इसका बढ़ता प्रभाव विश्व के सभी देशों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. इससे लड़ने का वैश्विक नजरिया परेशान करनेवाला है. मौजूदा समय में विभिन्न देशों के लगभग 30 हजार लोग आइएस की ओर से लड़ रहे हैं. इसमें पश्चिमी देशों के नागरिकों की संख्या काफी है.

हैरानी की बात है कि वैसे देश जहां, मुसलिम आबादी कम है, वहां के भी नागरिक आइएस के साथ जुड़ रहे हैं. अगर भारत पर आइएस के खतरे को देखें, तो कुछ युवा इससे प्रभावित हुए हैं. कश्मीर में अक्सर शुक्रवार को आइएस के झंडे लहराते हुए कुछ युवक देखे जा सकते हैं. भारत में इंटरनेट प्रयोग करनेवाले कुछ युवा आइएस के प्रभाव में आते दिख रहे हैं.

भारत में मुसलिमों की आबादी अच्छी-खासी है और अगर कट्टरपंथी सोच पर सख्ती से रोक नहीं लगायी गयी, तो भविष्य में गंभीर परिणाम हो सकते हैं. क्योंकि पहले ही पाकिस्तान भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन अच्छी बात है कि आइएस के प्रभाव को रोकने के लिए कई धार्मिक संगठन के लोग सामने आकर काम कर रहे हैं.

लेकिन, भारत के लिए खतरा यह है कि कुछ संगठन पेरिस हमले की तरह भारत में भी हमला करने की योजना बना सकते हैं. दक्षिण एशिया के आतंकी संगठनों ने आइएस को अपना समर्थन दिया है. पाकिस्तान में तहरीके-तालिबान और अफगानिस्तान के तालिबान बगदादी के साथ खड़े हो गये हैं.

भारत आतंकवाद से काफी समय से प्रभावित रहा है. अब देखना होगा कि क्या 2016 में विश्व के प्रमुख देश आतंकवाद के प्रति एकजुट होकर कोई सख्त कदम उठायेंगे या सिर्फ रणनीतिक फायदे के लिए काम करेंगे.

देखनेवाली बात होगी कि जिन देशों की विदेश नीति में आतंकवाद का प्रमुख स्थान है, क्या वैश्विक देश उसके खिलाफ सख्त कदम उठायेंगे? फ्रांस के राष्ट्रपति ने पेरिस हमले को युद्ध करार दिया. इसके बाद फ्रांस ने आइएस के ठिकानों पर बमबारी शुरू कर दी. रूस पहले ही आइएस पर हवाई हमले कर रहा है. लेकिन रूस की कार्रवाई को लेकर कई पश्चिमी देश नाराज हैं. अमेरिका इसके खिलाफ है.

पश्चिमी देशों को आतंकवाद के खिलाफ अपने हितों को दरकिनार कर सभी देशों के साथ मिल कर एक व्यापक रणनीति बनाने की जरूरत है. भारत को आतंकवाद के प्रति पश्चिमी देशों के मॉडल को नहीं अपनाना चाहिए. वर्ष 2015 में आइएस ने सभी को सोचने पर मजबूर किया है कि कुछ लोगों को मार कर इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है. पहले ऐसे कट्टरपंथी सोच के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने की भी आवश्यकता है. पश्चिमी देशों को आतंकवाद के प्रति दोहरे मानदंड अपनाने से बचने की जरूरत है.

(बातचीत पर आधारित)

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