नया वर्ष नया संकल्प नयी चुनौतियां हमारा अभियान
अनुज कुमार सिन्हा नववर्ष का पहला दिन यानी संकल्प लेने का दिन. संभव हो, पिछले साल भी आपने कुछ संकल्प लिया हो और उसे पूरा न किया हो. इससे विचलित और निराश होने से कुछ नहीं होनेवाला. रोने-गाने या पछताने से और कमियां निकालने, दूसरों पर दोषारोपण करने से कुछ फायदा नहीं होगा, रास्ता नहीं […]
अनुज कुमार सिन्हा
नववर्ष का पहला दिन यानी संकल्प लेने का दिन. संभव हो, पिछले साल भी आपने कुछ संकल्प लिया हो और उसे पूरा न किया हो. इससे विचलित और निराश होने से कुछ नहीं होनेवाला. रोने-गाने या पछताने से और कमियां निकालने, दूसरों पर दोषारोपण करने से कुछ फायदा नहीं होगा, रास्ता नहीं निकलेगा. आगे देखिए. आनेवाली चुनौतियों को देखिए और उससे उबरने का रास्ता खुद बताइए-बनाइए. इसके लिए स्वर्ग से कोई देवता उतर कर आपकी समस्याओं को नहीं सुलझाएंगे. आपको खुद अपने कर्म के जरिये समस्याओं का समाधान खोजना होगा.
नये वर्ष में आप चाहें तो अपनी धरती को ही स्वर्ग बना सकते हैं, लेकिन इसके लिए हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेवारी निभानी होगी. इस बात का मूल्यांकन करना होगा कि अगर अभी हालात खराब हैं, जीवन खतरे में है, तो इसके लिए हम कितने दोषी हैं? अगर संकल्प लेना है, तो प्रकृति से खिलवाड़ नहीं करने का संकल्प लें, पानी नहीं बर्बाद करने का संकल्प लें, नदी-नाले को प्रदूषित नहीं करने और उन पर कब्जा नहीं करने का संकल्प लें, पहाड़ों को नष्ट नहीं करने का संकल्प लें, जंगलों को बचाने का संकल्प लें.
क्या हैं चुनौतियां
सबसे बड़ा संकट होनेवाला है जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) का. इससे पूरी धरती खतरे में पड़नेवाली है. जीवन खतरे में पड़नेवाला है. इसकी झलक मिल चुकी है. संयुक्त राष्ट्र की दो रिपोर्ट को देखें-
1. आज से सिर्फ 15 साल बाद यानी 2030 में पूरी दुनिया में जरूरत के अनुपात में 40 प्रतिशत पानी कम रहेगा. भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा.
2. दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में भारत के 13 शहर. दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर.कुछ और आंकड़े हैं. इनमें एक है नदी के बारे में. दुनिया की 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी में भारत की दो नदियां. गंगा दूसरे और यमुना पांचवें स्थान पर. (इंडोनेशिया की साइटरम नदी सर्वाधिक प्रदूषित). ये आंकड़े बताते हैं कि आनेवाले दिनों में कितनी बड़ी-बड़ी चुनौतियां आनेवाली हैं.
रोजगार की बात तो तब आयेगी, जब जीवन रहेगा. जिस तरीके से प्रदूषण फैल चुका है, पीने का पानी नहीं मिल रहा, उससे सीधे जीवन का संकट आ गया है. इस हालात को समझना होगा. अभी भी समय है चेतने का. पानी बचाइए. पानी नहीं रहेगा, तो आदमी या जीव-जंतु जिंदा नहीं रहेंगे. इसलिए नववर्ष में प्रभात खबर पानी बचाओ अभियान आरंभ करने जा रहा है. सिर्फ अपको सचेत करने के लिए, जागरूक करने के लिए. यह काम सिर्फ सरकार कानहीं है.
हालांकि यह संकट ग्लोबल है, लेकिन हम इस अभियान को पूरे झारखंड में चलाने जा रहे हैं. गांव-गांव तक यह अभियान जायेगा. उद्देश्य होगा पानी बचाना, वर्षा के पानी को समुद्र में जाने से अधिक से अधिक रोकना. लेकिन यह अभियान तभी सफल होगा, जब जन-भागीदारी हो. आप सभी का योगदान हो. इसके लिए पहले पानी के संकट की भयावहता को समझना होगा.
जुलाई 2015 में भारतीय संसद मान चुकी है कि सिर्फ 10 साल बाद से ही भारत में पानी का गंभीर संकट होनेवाला है. लोकसभा में जल संसाधन मंत्री पानी के संकट को बता चुके हैं. मालदीव भारत का पड़ोसी देश है. ठीक एक साल पहले वहां पानी का गंभीर संकट हो गया था. वहां के विदेश मंत्री ने सुषमा स्वराज को रात में फोन कर किसी भी तरह पीने का पानी भेजने का आग्रह किया था. दूसरे दिन भारतीय वायुसेना के विमान से भारत ने मालदीव पानी भेजा था. सोचिए, अगर भारत या अन्य कोई देश मालदीव को उस समय पानी नहीं भेजता, तो वहां क्या होता?
लोग पानी के बगैर मरते. ऐसी घटनाओं से सबक लेनी चाहिए. ऐसी बात नहीं है कि भारत में वर्षा नहीं होती. भारत में औसतन 1083 मिमी वर्षा होती है, जो दुनिया के कई देशों से बहुत ज्यादा है. प्रकृति ने भारत को सब कुछ दिया है. अगर वर्षा के इस पानी का सही प्रबंधन किया जाये, तो भारत में कहीं भी पानी का संकट नहीं रहेगा. दुनिया में ऐसे-ऐसे देश हैं, जहां 100 मिलीमीटर वर्षा नहीं होती.
इनमें मिस्र 51 मिमी, लीबिया 56 मिमी, कतर 74 मिमी, सऊदी अरब 59 मिमी और संयुक्त अरब अमीरात 78 मिली शामिल है. लेकिन यहां का प्रबंधन बेहतर है (या कहिए कि कम वर्षा से वहां जल प्रबंधन को बेहतर करने के लिए जनता-सरकार को मजबूर कर दिया है), इस कारण वहां लोग काम चला लेते हैं. अमेरिका (715 मिमी), जर्मनी (700 मिमी) और कनाडा (537 मिमी) में भी भारत से कम वर्षा होती है. लेकिन वहां जल संकट नहीं है, क्योंकि वहां पानी की बर्बादी नहीं होती. सरकार से लेकर लोग जागरूक हैं.
हमें चेतना होगा
अब समय आ गया है कि हम (जनता) सभी को चेतना होगा, वरना हालात मालदीव जैसे होंगे. जिस झारखंड में पहले 20-25 फीट में पानी निकलता था, आज 800-1000 फीट में भी पानी नहीं निकलता. पानी का लेयर लगातार तेजी से नीचे जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि चारो ओर कंक्रीट के जंगल बन गये हैं.
बड़े-बड़े अपार्टमेंट तो बन गये, लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं बनाये गये. चारो ओर सीमेंट से पक्का कर दिया गया. रोड पक्का, नालियां पक्की और घरों-अपार्टमेंट का पूरा इलाका सीमेंट से पक्का. फिर वर्षा का पानी मिट्टी में कहां से रिसे, अंदर जाये, कोई जगह ही नहीं है. झारखंड की बात करें, तो यहां औसतन 1430 मिमी वर्षा होती है. राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा. 30 फीसदी जंगल.
फिर भी पानी का संकट. साफ है कि हमारा प्रबंधन गड़बड़ है. लोग नियमों को नहीं मान रहे हैं और तेजी से जल का दोहन कर रहे हैं. वर्षा का आधा पानी भी जमीन के भीतर रिस जाये, तो झारखंड में कभी पानी का संकट नहीं होगा.
हम-सरकार क्या करें
ज्यादा संकट शहरी इलाकों में है. एक-एक बूंद पानी को बचाना होगा. घरों और अपार्टमेंट में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू करना होगा. सिर्फ बोलने से नहीं, कड़ाई से लागू करना होगा.
घर-अपार्टमेंट चाहे कितने बड़े नेता-अफसर का क्यों न हो, अगर नियम तोड़ा, तो दंडित करना होगा. शहरों में जो तालाब बचे हैं, उन्हें बचाना होगा, गहरा करना होगा (अगर संभव हो तो मुहल्ले के लोग मिल कर इसकी सुरक्षा की गारंटी लें). जिसने भी तालाब पर अवैध कब्जा कर मकान-दुकान बनाया, उस अतिक्रमण को हटाना होगा. सरकार नीति बनाये कि घर-अपार्टमेंट या दफ्तर-संस्थानों में 15 या 20 फीसदी हिस्सा किसी भी स्थिति में पक्का न किया जाये यानी मिट्टी दिखे ताकि पानी उसके माध्यम से धरती के भीतर जाये.
हमारा अभियान
हम सिर्फ पानी बचाने के लिए ही अभियान नहीं चलायेंगे, बल्कि ट्रैफिक में सुधार लाने के लिए समय-समय पर अभियान चलायेंगे. याद रखिए- क्लाइमेंट चेंज बड़ी चुनौती है, प्रदूषण बड़ी चुनौती है और तेजी से बढ़ती गाड़ियां कार्बन उत्सर्जन का बड़ा कारण है. दिल्ली आज दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है, तो इसका बड़ा कारण वहां वाहनों की संख्या भी है.
वैसा हालात झारखंड में न बने, इसके लिए सचेत करने का प्रभात खबर का अभियान भी चलेगा. पानी का संकट तो प्राथमिकता में सबसे आगे है. यह संकट किसी एक मुहल्ला, शहर, राज्य या देश का नहीं है, यह ग्लोबल संकट है. प्रभात खबर इस अभियान को अखबार में रिपोर्ट-लेख छापने, राह दिखाने के साथ-साथ घर-घर तक ले जायेगा.
गोष्ठी-सेमिनार का आयोजन करेगा. स्कूलों में बच्चों के बीच जा कर जागृति पैदा करने का प्रयास करेगा. इस साल का यही हमारा संकल्प है. लेकिन पानी का संकट सिर्फ इतने से दूर नहीं होनेवाला. इसके लिए लंबी नीतियां बनानी होंगी. पेड़-पौधों और जंगल को बचाना होगा.
नदियों को बचाना होगा. नदियों में छोटे-छोटे चेक डैम (कहीं-कहीं पर लोगों ने अपने प्रयास से बना भी रखा है) बनाने होंगे. नदियों पर से कब्जा हटाना होगा (रांची में यह अभियान चल रहा है). यह सब तभी संभव है, जब लोग सामने आयें, संकट को समझें. अपने लिए नहीं तो अपने बाद की पीढ़ियों के लिए. तो आइए एक-एक बूंद पानी बचाने का लीजिए संकल्प.