नया भारत गढ़ते युवा
‘‘उठो! जागो! स्वयं जाग कर औरों को जगाओ. अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं, जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए.’’ विवेकानंद के इस आह्वान को आज के युवा साकार कर रहे हैं. जब दुनिया भर में मंदी छायी थी. लोगों से रोजगार छिन रहे थे, भारत के युवाओं ने […]
‘‘उठो! जागो! स्वयं जाग कर औरों को जगाओ. अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं, जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए.’’ विवेकानंद के इस आह्वान को आज के युवा साकार कर रहे हैं. जब दुनिया भर में मंदी छायी थी. लोगों से रोजगार छिन रहे थे, भारत के युवाओं ने अलग राह पकड़ी. स्टार्टअप के जरिये उन्होंने नये उद्यम की शुरुआत की.
अपने दम पर अपना भविष्य गढ़ने की शुरुआत की. लाखों बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिया. ऐसे ही उद्यमियों की वजह से ही वैश्विक मंदी के दौर में भी भारत एक उम्मीद की किरण बना रहा. स्वामी विवेकानंद ने ऐसे ही भारत की कल्पना की थी. वह चाहते थे कि भारतीय गुलामी की मानसिकता से उबरे और विश्व के पटल पर नयी इबारत लिखे. स्वामी िववेकानंद की 153वीं जयंती पर ऐसे ही युवाओं को समर्पित हमारा यह विशेष आयोजन.
बेरोजगारी, गरीबी से मुक्ति और प्रकृत शिक्षा
देश की समृद्धि को लेकर स्वामी विवेकानंद का नजरिया
स्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘हमारा सबसे बड़ा राष्ट्रीय पाप है, जन-साधारण की अवहेलना.’ आज जिस गति से देश बढ़ रहा है, धनवान हो रहा है, उतनी ही तेजी से गांव पिछड़ रहा है, निर्धन होता जा रहा है. राजनैतिक रूप से हम स्वतंत्र देश होते हुए भी बेरोजगारी और गरीबी की बेड़ियों में जकड़े असहाय, निरूपाय हैं. आज हमारा देश एक बड़े ही संकट की घड़ी से गुजर रहा है. शहर के युवक नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं, तो गांव से युवा पीढ़ी पलायन कर रही है. उपजाऊ खेत बंजर होते जा रहे हैं. विडंबना है कि जिस तेजी से देश में साक्षरता दर बढ़ रही है, उसी रफ्तार से बेरोजगारी और पलायन की समस्या भी.
मूल कारण स्पष्ट है. दोष कहीं न कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में है.
लाॅर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति ने हमें दासत्व सिखाया. स्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘गूढ़ पुस्तकों के ज्ञान प्रसार के लिए अभी रुको. हमें वह शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र निर्माण हो, बल-वीर्य की वृद्धि हो, बुद्धि का विकास हो और स्वावलंबन मिले. लोगों को तकनीकी शिक्षा दो, जिससे उन्हें काम मिले.
चीथड़ों में लिपटे हुए अबला की तरह वे यत्र-तत्र नौकरी के लिए रोते न फिरे.’ वर्तमान शिक्षा से प्राप्त ये सब डिग्रियां कुछ सामर्थ्यवान ही पा सकते हैं. डिग्रियों के जोर पर कुछ लोगों को नौकरी अवश्य मिलेगी. लेकिन, बाकी जन साधारण के लिए क्या है? जिन्हें डिग्री मिल भी गयी, नौकरी नहीं मिली, तो सृजनात्मक शिक्षा के अभाव में वे स्वरोजगार भी नहीं कर पाते.
ऐसा क्यों हुआ? कैसे हुआ? कब हुआ? जानते हैं? यह देश जहां की 80 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है और कृषि पर निर्भर करती है और इसी कृषि व पशु पालन आदि के माध्यम से हम समृद्धिशाली थे. आज लोग गांव से पलायन कर रहे हैं. हमारे युवक स्वरोजगार के स्वाभिमान की अनदेखी कर नौकर बनने का गर्व करते हैं? अंगरेज भारत आये व्यवसाय करने और कूटनीति से पूरे देश पर राज करने लगे. राज्य टिकाऊ नहीं हो पा रहा था, तो इसका कारण खोजने के लिए लाॅर्ड मैकाले को भेजा गया. चार वर्ष भारत भ्रमण कर उन्होंने बिटिश पार्लियामेंट में अपनी रिपोर्ट दी, ‘मैंने भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा की. परंतु एक भी व्यक्ति चोर नहीं पाया.
इस देश में इतना धन देखा, उच्च मानवीय मूल्य के प्रति सजग और इतने योग्यता प्राप्त व्यक्तियों को देखा कि मुझे नहीं लगता कि हम कभी इस देश पर विजय प्राप्त कर सकेंगे, जब तक कि इस देश का हम राष्ट्रीय मेरुदंड अर्थात इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को न तोड़ दें.
इसलिए मैं प्रस्ताव रखता हूं कि इनकी प्राचीन शिक्षा प्रणाली, संस्कृति को बदलना होगा. जब भारतीय लोग यह सोचने लगेंगे कि जो कुछ विदेशी और अंगरेजी है, वह सभी कुछ हमारे देश (भारत) से अच्छा और महान है, वे अपनी संस्कृति और गौरव को तुच्छ समझने लगेंगे, तब यह देश जैसा कि हम चाहते हैं, वास्तव में गुलाम देश बन जायेगा.’
मैकाले अपनी योजना में सफल हुए. बाबू बनानेवाली शिक्षा आयी. अच्छी (अधिक मानदेयवाली) नौकरी हमारे जीवन का लक्ष्य बना. यह नकारात्मक शिक्षा प्रणाली शहरों में फैल गयी, गांवों की उपेक्षा हुई, ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षरता व शिक्षा का अभाव फैला. बड़े-बड़े कारखानों ने भारत के गांव-गांव में युगों से चले आ रहे स्वतंत्र स्वनिर्भर उद्यम व रोजगारों को छीन साधारण जनता को बेरोजगार बना दिया. मां शारदा देवी ने कहा, ‘अंगरेज कॉटन मिल लाये, चरखे व करघे बंद हो गये. लोग बेरोजगार हो गये.’ भारत के विश्वविद्यालयों के उपाधि प्राप्त युवकों को स्वामी विवेकानंद अमेरिका से लिखते हैं, ‘अब तुम क्या कर रहे हो?
हाथों में पुस्तकें लिये समुद्र किनारे सैर कर रहे हो. कुछ भी आत्मसात किये बिना यूरोपीय मस्तिष्क और आत्मा की कृति को रटे जा रहे हो, 30 रुपये महीने का क्लर्क बनने के लिए या अधिक से अधिक आज के भारत के नवयुवकों की महत्वाकांक्षा वकील बनने के लिए. क्या समुद्र में इतना पानी नहीं है, जो तुम्हें, तुम्हारे चोंगे और विश्वविद्यालय के प्रमाण पत्रों को डुबो दे?’ स्वामीजी कहते हैं, ‘इस उर्वरा देश में, जहां प्रचुर मात्रा में जल है, जहां प्रकृति ने दूसरे देशों की तुलना में हजारों गुना धन और अन्न दिया है, वहां लोगों के पास अन्न नहीं है, बदन ढकने के लिए वस्त्र नहीं है.
जिस देश में प्राकृतिक संपदा का इतना विशाल भंडार हो, जिससे अन्य देश का विकास हुआ है, वहां तुमलोग इतने नीचे गिर गये हो. जब तक करोड़ों भूखे और अशिक्षित रहेंगे, तब तक मैं प्रत्येक उस व्यक्ति को विश्वासघाती समझूंगा, जो उनके खर्च पर शिक्षित हुआ है, परंतु जो उन पर तनिक भी ध्यान नहीं देता! वे लोग जिन्होंने गरीबों को कुचल कर धन पैदा किया है और अब अकड़ कर चलते हैं. यदि वे करोड़ों देशवासियों के लिए कुछ नहीं करते, जो भूखे और असभ्य हैं, तो वे घृणा के पात्र हैं.’स्वामी शशांकानंद, रामकृष्ण मिशन, देहरादून
पिछले जन्म में पुण्य करनेवाले ही बनते हैं संन्यासी : स्वामी सुबीरानंद
स्कूली शिक्षा के दौरान विवेकानंद की पुस्तक पुरस्कार में मिली थी. उन दिनों मैं छठीं कक्षा में था. मैंने पहली बार विवेकानंद की पुस्तक पढ़ी. यह पुस्तक पढ़ते ही मुझे विवेकानंद पर लिखी कुछ आैर पुस्तकें पढ़ने की इच्छा हो गयी. दो- तीन वर्षों के अंतराल में मुझे विवेकानंद पर लिखी कुछ आैर पुस्तकें पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. माध्यमिक परीक्षा देने के पहले ही मैंने मन ही मन उन्हीं के मार्ग पर चलने की ठान ली. स्नातक के बाद एमए की पढ़ाई शुरू कर दी, लेकिन कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. स्वामी जी का एक संदेश हमेशा मुझे याद आ रहा था कि ये जीवन तभी सार्थक होगा, जब आप किसी की मदद करेंगे. मैं अनाथ बच्चों व पिछड़ी जाति के लोगों के लिए कुछ करना चाहता था.
चूंकि, रामकृष्ण मिशन ऐसे काम के लिए प्रसिद्ध है, मैंने भी मिशन से जुड़ने की इच्छा बना ली. एमए की अंतिम परीक्षा खत्म हुई. इम्तिहान खत्म होने के बाद मैं घर नहीं पहुंचा, बल्कि सीधे वहां से रामकृष्ण मिशन आ गये. थोड़ी-सी हलचल जरूर थी कि घर नहीं पहुंचने पर माता-पिता परेशान होंगे. लेकिन, उन्हें मालूम था कि मैं एक ना एक दिन संन्यासी के पथ पर चलूंगा. खोजते-खोजते माता-पिता मुझसे मिलने मिशन पहुंचे.
मैं सहमा हुआ था, लेकिन मेरी हिम्मत उस समय बढ़ गयी, जब मेरे माता-पिता ने मुझे प्रेरित करते हुए कहा कि ये श्रेष्ठ पथ है. हम दोनों का आशीर्वाद तुम्हारे साथ सदैव रहेगा. 23 वर्ष की आयु में ही मिशन से जुड़ गया. शुरुआती चरण में माता-पिता व बाकी परिजनों की याद आती थी, लेकिन विवेकानंद व रामकृष्ण परमहंस से मैं इतना प्रेरित था कि मैं अपने फैसले पर डटा रहा. अब मेरी माता शारदा मां हैं और रामकृष्ण परमहंस मेरे पिता हैं.
स्वामी जी ने कहा है कि बी एंड मेक. इसका अर्थ है कि खुद को प्रतिष्ठित करो व दूसरों को भी आगे बढ़ने में मदद करो. खुद के लिए 100 करोड़ लोग जी रहे हैं. मुझे उनसे अलग करना होगा. ऐसी जिंदगी किस काम की, जो किसी के लिए मददगार नहीं हो. (लेखक बेलूर मठ के एक वरिष्ठ संन्यासी रामकृष्ण मठ व मिशन के सहायक सचिव है)
त्याग करने पर ही जीवन सार्थक : स्वामी शस्त्रज्ञानंद
मेरी स्कूली शिक्षा हावड़ा विवेकानंद इंस्टीट्यूशन में हुई थी. पहली कक्षा से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई मैंने यहीं से पूरी की. यही कारण है कि शुरू से ही विवेकानंद के बारे में जानने का मौका मिला. स्कूल में मिशन से जुड़े कई संन्यासी आते थे. उनसे बातें भी होती थी. यहीं से विवेकानंद के बारे में जानकारी मिलनी शुरू हुई. इसके बाद कुछ पुस्तकें हाथ लगीं.
मैंने बहुत ध्यान से उन पर लिखी पुस्तकें पढ़ीं. माध्यमिक परीक्षा होने के बाद ही मैंने संकल्प कर लिया मैं भी स्वामी विवेकानंद द्वारा बताये गये राह पर जाऊंगा. बारहवीं की परीक्षा दे दी. स्नातक भी हो गया. माता-पिता व भाई-बहनों को अंदेशा था कि मैं कभी ना कभी घर छोड़ सकता हूं. एमए की पढ़ाई पूरी करते ही मैं वर्ष 1994 में बिना बताये देवघर जा पहुंचा व मिशन से जुड़ गया. वर्षों से मानव सेवा करने का जुनून सवार था. स्वामी जी ने कहा है कि ईश्वर पर विश्वास रखो. स्वार्थी होकर नहीं जीओ.
जीवन में त्याग होना चाहिए, नहीं तो जीवन जीने का कोई मकसद नहीं है. स्वामी जी के संदेश से प्रेरित होकर मैं मिशन जा पहुंचा. माता-पिता देवघर गये. घंटों मुझे घर वापस लौटने के लिए समझाया गया, लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ा रहा. आखिरकार, माता-पिता ने मुझे आशीर्वाद दिया और घर लौट आये. मिशन से जुड़े लगभग 20 साल हो गये. इन वर्षों में मानव सेवा करने का बहुत मौका मिला. मानस सेवा के बिना जीवन निर्जीव है.
(लेखक रामकृष्ण मिशन शिक्षण संस्थान में प्रिंसिपल)
आत्मा में ही परमात्मा, प्रकट करने की जरूरत : संजीव महाराज
पांचवीं तक की पढ़ाई मिशन स्कूल में ही पूरी हुई. मिशन स्कूल में अक्सर संन्यासियों का आना-जाना लगा रहता था. पहली बार स्वामी विवेकानंद के बारे में जानकारी संन्यासियों से ही मिली. स्कूली जीवन में ही मैंने सोच लिया कि मैं भी बड़ा होकर संन्यासी बनूंगा व स्वामी जी के आदर्श पर आगे जाउंगा. मैंने उन पर लिखी किताबें पढ़ना शुरू कर दिया. शुरुआत में ही माता-पिता ने यह भांप लिया था कि मैं अन्य लड़कों की तरह नहीं हूं.
उन्हें इस बात का अंदाजा हो चुका था कि मैं स्वामी जी की बातों से बेहद प्रेरित हूं व संन्यासी बनना ही मेरा लक्ष्य है. काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. अंतिम परीक्षा खत्म हुई व मैं सीधा मुर्शिदाबाद सारगाछी आश्रम चला गया.
वर्ष 1995 में मिशन से जुड़ा. चूंकि माता-पिता शुरू से जानते थे कि मैं एक दिन संन्यासी बनूंगा, शायद यही कारण था कि वे लोग मेरी गुमशुदगी को लेकर परेशान नहीं हुए आैर न ही मुझसे मिलने की कोशिश की. मुझे इस बात की तकलीफ भी नहीं रही, बल्कि मेरे लिए यह अच्छा हुआ कि वह पहले ही मानसिक रूप से तैयार हो चुके थे. वर्ष 1995 से एक नयी पारी की शुरुआत हुई आैर मैं रामकृष्ण मिशन के जरिये मानव सेवा से जुड़ गया. स्वामी जी ने कहा है कि ईश्वर पर विश्वास रखो व दूसरे की मदद करने के लिए कभी भी पीछे नहीं हटो.(कुंदन से बातचीत पर आधारित)
मानव दुख का निवारण प्रार्थना से ही संभव : स्वामी वेदातीतानंद
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि आत्मा दिव्य स्वरूप है. वह केवल पंचभूतों के बंधन में बंध गयी है और उन बंधनों के टूटने पर वह अपने पूर्णत्व को प्राप्त कर लेगी. इस अवस्था का नाम मुक्ति है, जिसका अर्थ है स्वाधीनता-अपूर्णता के बंधन से छुटकारा, जन्म-मृत्यु से छुटकारा.
और यह बंधन केवल ईश्वर की दया से ही टूट सकता है और वह दया पवित्र लोगों को ही प्राप्त होती है. अतएव पवित्रता ही उसके अनुग्रह की प्राप्ति का उपाय है. उसकी दया किस प्रकार काम करती है? वह पवित्र हृदय में अपने को प्रकाशित करता है. पवित्र और निर्मल मनुष्य इसी जीवन में ईश्वर दर्शन प्राप्त कर कृतार्थ हो जाता है. ‘तब उसकी समस्त कुटिलता नष्ट हो जाती है.
सारे संदेह दूर हो जाते हैं.’ एेसे ही पवित्र और निर्मल व्यक्ति हैं स्वामी वेदातीतानंद जी महाराज. बेंगलुरु से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका कैरियर चढ़ते सूर्य की तरह था. अगर वह इस जीवन को चुनते, तो आज वह सारी सुख-सुविधाओं से संपन्न होते. इसके बावजूद उन्होंने अध्यात्म का रास्ता चुना और रामकृष्ण मिशन से जुड़ गये. आज वह बेलूरमठ के शिल्प मंदिर में डिप्लोमा पॉलिटेक्निक कॉलेज तथा स्कील डेवलपमेंट सेंटर के प्रधान हैं.
आखिर क्या कारण था, जो उन्होंने अध्यात्म के पथ पर चलते हुए मानव सेवा को ही प्राथमिकता दी. स्वामी जी बताते हैं कि मानव से बढ़ कर कोई सेवा नहीं. इसमें जीवन का सार छिपा है. मैं बचपन से ही विवेकानंद जी को पढ़ता आया था. मैंने पाया कि स्वामी जी ने अपने लिए कुछ नहीं कहा, वह मानव जाति की बात करते हैं, वह हमारी बात करते हैं. मैं इससे प्रभावित हुआ.
मैंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग, बीएमएस काॅलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बेंगलुरु विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी की. इसके बाद कर्नाटक के पोनमपेट में विवेकानंद बालक संघ के संचालक स्वामी पुरुषोत्तम जी के संरक्षण में मैंने रामकृष्णा आश्रम को ज्वाइन किया. पहले मेरे माता-पिता तैयार नहीं हुए. लेकिन, धीरे-धीरे उन्होंने जान लिया कि इस तरह का जीवन जीना पुण्य का कार्य है. बाद में उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया, कहा उनके लिए गर्व की बात है.
द्वितीय विवेकानंद की कल्पना असंभव
उनके जैसा शख्स आपको कहां मिल सकता है? उन्होंने जो लिखा है उसे पढ़े, और उनके दी गयी शिक्षाओं से सीखें, आप ऐसा करते हैं तो आप असीम शक्ति प्राप्त करेंगे. उनके विवेक और बुद्धिमानी के फव्वारे से, उनके जोश से, और उनमें बहने वाले आग से फायदा लें. पंडित जवाहरलाल नेहरू
विवेकानंद ने कहा था कि हर व्यक्ति में भगवान की शक्ति है, जो यह चाहता है कि हम अपनी सेवा गरीबों के माध्यम से करें. यह सिद्धांत इंसानों के अंहकारपूर्ण स्वार्थ से असीमित आजादी का रास्ता दिखाता है. विवेकानंद के सिद्धांत मनुष्य को पूरी तरह से जागृत करते हैं. यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़ें. रविंद्रनाथ टैगोर
मैनें स्वामी विवेकानंद के कामों को अच्छी तरह जाना हूं. और उसे समझने के बाद मेरा जो अपने देश के प्रति प्यार था वह हजारों गुणा अधिक हो गया. उनकी लेखनी किसी परिचय की मोहताज नहीं है. वे स्वयं ही अत्यंक आकर्षिक करते हैं.
महात्मा गांधी
मैं हर्षोन्माद के बिना विवेकानंद के बारे में कुछ भी नहीं लिख सकता हूं.. उनके बलिदान में लापरवाही, उनके कार्यो में निरंतरता, असीम प्यार, उनकी सोच में गहराई, भावनाओं में हरियालीपन, अपने हमलों में निष्ठुरता, लेकिन एक बच्चे की तरह निष्कपट और सहज – वे हमारी दुनिया के दुर्लभ व्यक्तित्व थे. नेताजी सुभाषचंद्र बोस
यह अविवादित तथ्य है कि यह स्वामी विवेकानंद ही थे जिन्होंने पश्चिमी संस्कृति के समक्ष हिंदुत्व का परचम लहराया.. यह स्वामी विवेकानंद ही थे जिन्होंने हिंदुत्व के गौरव को वैश्विक स्तर पर स्थपित करने का बीड़ा उठाया था. और उन्होंने अपनी विद्व्ता, वाकपटुता, उतसाह और अंदरूनी ताकत से उन कामों को ठोस आधार दिया था. बाल गंगाधर तिलक
उनके द्वितीय होने की कल्पना करना असंभव है. वे जहां भी गये, सर्वप्रथम हुए. हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता. वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी.
रोम्यां रोलां
विवेकानंद के उत्साह और सक्रियता का मैं प्रशंसक हूं. उन्होंने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि उन विचारों पर काम भी किया.
सर जॉन वूडरॉफ
उनके विचार किसी परंपरा व किताबों से प्रेरित न होकर अनुभवों की कसौटी पर कसे गये हैं.
विलियम अर्नेस्ट हॉकिंग
स्टार्टअप के जरिये बिजनेस की नयी परिभाषा गढ़ रहे ये उद्यमी
मानवजीत सिंह : फाउंडर- बेस्ट डील फाइनेंस डॉट काॅम
एक ऑनलाइन फाइनेंशियल सुपर मार्ट है, जिनके पास लोन प्रोडक्ट्स की विस्तृत रेंज है. यह व्यक्तिगत लोन से लेकर छोटे और मंझोले व्यवसायियों को जरूरत के मुताबिक हर तरह के लोन देती है. इसके फाउंडर मानवजीत सिंह सबसे बड़ा फाइनेंशियल सुपरमार्ट खड़ा करना चाहते हैं.
सुलक्षण व सीता कांता : को-फाउंडर- माइ स्मार्ट प्राइस
माइ स्मार्ट प्राइस बाजार में उपलब्ध कई तरह के उत्पादों की कीमतों के बीच ऑनलाइन तुलना करके ग्राहकों को अपडेट करता है. वर्ष 2010 में को-फाउंडर व सीइओ सुलक्षण कुमार और सीता कांता ने खुद का व्यवसाय करने की सोची, तो इसका विचार मन में आया. प्राइस कंपरीजन सर्विस का कुल ई-रिटेल बाजार में 25 फीसदी की हिस्सेदारी है. हर महीने डेढ़ करोड़ यूजर कंपनी की वेबसाइट इस्तेमाल करते हैं, जिनमें 10 लाख नये यूजर होते हैं.
एस कोहली व आकाश गुप्ता : फाउंडर- ग्रे ऑरेंज रोबोटिक्स
वर्कर रोबोट्स और ऑटोमेशन सॉल्यूशंस के क्षेत्र में यह भारत का अग्रणी स्टार्टअप है. भारत के वेयरहाउस ऑटोमेशन मार्केट के 90 प्रतिशत बाजार पर इस कंपनी का कब्जा है. ग्रे ऑरेंज अभी करीब 100 प्रॉडक्ट बेच रहा है, जो वेयरहाउसिंग का काम आसान बनाते हैं. इसके फाउंडर समय कोहली और आकाश गुप्ता हैं.
आदित्य गांधी : फाउंडर- पर्पल स्क्वीरल एजुवेंचर्स
युवाओं को इंडस्ट्री के हिसाब से ट्रेंड करने के लिए इस स्टार्टअप की शुरुआत हुई. स्टूडेंट और इंडस्ट्री के बीच की खाई को पाटने की अनोखी सोच के साथ आदित्य गांधी व साहिबा ने इसकी शुरुआत की. आइआइटी बंबई से बीटेक और एमटेक करने के बाद आदित्य ने जब यूरोप में काम किया, तो देखा कि किस तरह कंपनियां स्टूडेंट्स को रिक्रूट करती हैं. यहीं से उन्हें पर्पल स्क्वीरल एजुवेंचर्स की स्थापना का ख्याल आया.
अनु आचार्य : फाउंडर- मेपमाइजीनोम
भारत में जीनोमिक्स के क्षेत्र में पायोनियर स्टार्टअप मेपमाइजीनोम डीएनए टेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध कराता है. इसकी स्थापना वर्ष 2011 में अनु आचार्य ने की थी. मेपमाइजीनोम उन बीमारियों से बचाव का रास्ता सुझाता है, जिनका आधार जीन है और जो भविष्य में आपको अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं. यह महज 20 हजार रुपये में ब्रेस्ट कैंसर से बचाव के लिए बीआरसीए 1/2 जीन सिक्वेंसिग की सुविधा देता है, तो टीबी से बचाव के लिए मॉलीक्यूलर टेस्ट सुविधा भी दे रहा है.
अभिनव सिन्हा : सीओओ- ओयो रूम्स
ओयो रूम्स एक बजट होटल ब्रांड है, जो देश भर में शानदार सुविधाओं के साथ आरामदायक होटल व गेस्ट हाउस उपलब्ध कराता है. यह ऑनलाइन स्टार्टअप इस समय देश के 80 शहरों में 14 हजार रूम्स उपलब्ध कराता है.
विंती दोषी : सीइओ- ऑटोएनकैब
ऑटोएनकैब एक मोबाइल ऐप है, जो ऑन डिमांड ऑटो या कैब की सर्विस देता है. इस कंपनी के छह बड़े शहरों में 1,500 रजिस्टर्ड ड्राइवर और 90,000 ग्राहक हैं. इसकी को-फाउंडर व सीइओ विंती दोषी हैं, जिन्होंने ग्राहकों की सुविधा के लिए यह ट्रांसपोर्ट सिस्टम अपने अनुभवों के आधार पर शुरू किया.
नवनीत सिंह : फाउंडर- पेपरटेप
पेपरटेप एक ऑन डिमांड ग्रॉसरी ऐप है. यह किराना, फल, सब्जियां, डेयरी प्रोडक्ट, स्टेशनरी, नॉनवेज, घरेलू सामान आदि दो घंटे में ग्राहक के घर तक पहुंचाती है. करीब 3,000 कर्मचारियों के साथ देश के 30 बड़े शहरों में कारोबार कर रहा है.
समीर पारवानी : फाउंडर- कूपन दुनिया
कूपन दुनिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेड भारत का सबसे लोकप्रिय कूपन डेस्टिनेशन है. इसके पास ऑफलाइन रेस्टोरेंट और छोटे स्टोर्स के कूपंस हैं. इसका मकसद एफएमसीजी सेक्टर में ऑफलाइन सेल को बढ़ाना है.
अंबरीश गुप्ता : फाउंडर- नॉलेरिटी कम्युनिकेशन
नॉलेरिटी कम्युनिकेशंस एक क्लाउड टेलीफोनी स्टार्टअप है. क्लाउड टेलीफोनी ने वेब आधारित वॉयस कॉल मैनेजमेंट सेवाएं जैसे ऑटोमेटेड पर्सनलाइज्ड ऐंड कस्टमाइज्ड कॉल हैंडलिंग, विभिन्न सदस्यों के बीच वेब आधारित इंटरैक्टिव रिस्पांस (आइवीआर) सुविधाएं देकर, क्लाउड आधारित कॉन्फ्रेंस कॉल सुविधाएं और क्लाउड आधारित कॉल लॉग मुहैया करा कर यूजरों को आकर्षित किया है.
सुमित, निखिल व नितिन : फाउंडर- क्रेडआर
क्रेडआर सेकेंड हैंड कार और बाइक और दूसरे वाहन ऑनलाइन बेचनेवाली कंपनी है. आइआइटी मुंबई की 2012 की बैच के निखिल जैन और नितिन मित्तल के साथ सुमित छाजेड़ ने इस कंपनी की शुरुआत की. अपनी समस्या के आधार पर निखिल ने इसकी शुरुआत की.
मयंक कुमार : फाउंडर- अपग्रेड
अपग्रेड एक ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म है, जिसकी नींव रॉनी स्क्रूवाला, मयंक कुमार, रविजोत चुघ और प्रभव फाल्गुन ने मिल कर रखी. नवंबर, 2015 को शुरू हुए इस वेंचर में फिलहाल 45 कर्मचारी हैं. इसके पहले कोर्स के साथ 500 छात्र रजिस्टर्ड हुए हैं और 20 देशों के 100 शहरों से अब तक 2,000 एप्लिकेशन आ चुकी है.
मनु इंद्रायण : फाउंडर- 612 लीग
612 लीग एक ऑनलाइन स्टाइलिश और डिजाइनर किड्स वियर कलेक्शन में जाना-पहचाना नाम है. वर्ष 2008 में इसकी शुरुआत हुई और इसने पांच साल में देश के 130 शहरों के 360 स्टोर्स पर अपना ब्रांड पहुंचाया. सफलता ने कम्पनी ने प्रोडक्शन को डिजाइन स्टूडियो से बाहर निकालकर लुधियाना की मॉडर्न मेन्युफेक्चरिंग फैसिलिटी में पहुंचा दिया.
अनिरुद्ध शर्मा : फाउंडर : डूकेअर
मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट से स्नातक अनिरुद्ध शर्मा ने वर्ष 2011 में डूकेअर की शुरुआत की. इसने पहला उत्पाद लेचल ब्रांड के साथ बाजार में उतारा. लेचल फुटवेअर की दुनिया में फैशन और लाइफस्टाइल का उभरता नाम है. इसमें एक डिवाइस लगी है, जिसके जरिये मोबाइल में डाउनलोड ऐप आपको अपने फुटवेअर की लोकेशन बताता है.
सौमिल मजमूदार : फाउंडर- एजुस्पोर्ट्स
फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स में प्रशिक्षण की कंपनी एजुस्पोर्ट्स की शुरुआत 2009 में हुई थी. कंपनी का आइडिया था एजुकेशन को स्पोर्ट्स के जरिये स्कूली बच्चों तक पहुंचाना और उन्हें इंगेज करना. आज यह 400 स्कूल और 3.5 लाख बच्चों के साथ 100 शहरों में मौजूद है, जहां 1500 से ज्यादा कक्षाएं रोज लग रही हैं. हाल ही में दूसरे दौर की 65 करोड़ की फंडिंग गाजा कैपिटल ने दी.
दीपक, अर्नव व दिलीप : फाउंडर : इनशॉर्ट्स
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