लौटा रहे हैं गरीबों की आवाज

बेंगलुरु के ऑन्कोलॉजिस्ट ने थ्रॉट कैंसर रोगियों के लिए विकसित किया है यंत्र मेगास्टार अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘शमिताभ’ में एक मूक कलाकार को कृत्रिम आवाज देने की परिकल्पना की गयी थी, लेकिन आज उससे भी सस्ती परिकल्पना सच साबित हो रही है. गले के कैंसर (थ्रॉट कैंसर) से ग्रसित रोगियों के लिए अब यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 13, 2016 7:33 AM
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बेंगलुरु के ऑन्कोलॉजिस्ट ने थ्रॉट कैंसर रोगियों के लिए विकसित किया है यंत्र

मेगास्टार अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘शमिताभ’ में एक मूक कलाकार को कृत्रिम आवाज देने की परिकल्पना की गयी थी, लेकिन आज उससे भी सस्ती परिकल्पना सच साबित हो रही है. गले के कैंसर (थ्रॉट कैंसर) से ग्रसित रोगियों के लिए अब यह कोरी कल्पना नहीं है. बेंगलुरु के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ विशाल राव महज 50 रुपये की लागत पर गरीब रोगियों की आवाज लौटा रहे हैं. जानें कैसे सच हुआ यह सपना.

आवाज बिना जीवन की कल्पना काफी मुश्किल है. कुछ हद तक जीवन नर्क बन जाता है. दिक्कत तो तब और बढ़ जाती है, जब व्यक्ति की आवाज किसी गंभीर बीमारी की वजह से चली जाती है.

अगर ऐसे रोगियों की आवाज वापस आ जाये, तो सोने पे सुहागा. ऐसे ही गले के कैंसर रोगियों की आवाज महज 50 रुपये की लागत पर लौटा रहे हैं बेंगलुरु के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ विशाल राव. डॉ विशाल बेंगलुरु के ऑन्कोलॉजिस्ट हैं. उन्होंने गले के कैंसर के रोगियों की आवाज लौटाने के लिए एक ऐसा यंत्र तैयार किया है, जो एक छोटे से ऑपरेशन के बाद गले में फिट किया जाता है. इस यंत्र को फिट करने के बाद व्यक्ति कृत्रिम आवाज के जरिये अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के साथ ही सुचारू रूप से भोजन करना भी शुरू कर देता है. मजे की बात यह भी है कि इस यंत्र को तैयार करने में महज 50 रुपये की लागत आती है.

करीब दो महीने पहले की बात है कोलकाता का एक व्यक्ति गले के कैंसर से पीड़ित था. वह न तो ठीक से भोजन कर पा रहा था और न ही बोलने में सक्षम था. उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह इस रोग का सही तरीके से इलाज करा सके. गले के कैंसर से ग्रस्त होने के बाद उसे पाइप के जरिये नाक से भोजन कराया जाता था. उसे बोलने में भी दिक्कत होने लगी थी.

एक तरह से उसकी आवाज ही गायब हो गयी थी. उसकी स्थिति देख किसी ने उसे डॉ विशाल राव के बारे में बताया. इस पर वह व्यक्ति पैसों का इंतजाम कर इलाज के लिए बेंगलुरु रवाना हो गया. वहां पहुंचने के बाद जब वे डॉ विशाल के पास गये, तो उपचार के दौरान महज पांच मिनट के अंदर ऑपरेशन करके उस यंत्र को उनके गले में फिट कर दिया गया.

यंत्र के गले में फिट होते ही उनके मुंह से आवाज निकलने लगी और लार के साथ अन्य पदार्थ सटकने में भी उन्हें आराम लगने लगा.

37 वर्षीय डॉ विशाल राव बताते हैं कि जब उनके पास कोलकाता का उक्त रोगी आया, तो वह किसी दूसरे ऑपरेशन के लिए तैयार होने जा रहे थे. वह व्यक्ति उनके पास खड़ा था. उन्होंने उससे बात की, तो उन्हें पता चला कि वह बहुत उम्मीद लेकर उनके पास आया है. इस पर उन्होंने तीन घंटे में उसका ऑपरेशन किया और जब वह सामान्य रूप से बोलने और भोजन करने लगा, तो बड़ा उत्साहित हुआ. अचानक उसके मुंह से निकल गया कि ऐसा मैंने कभी सोचा भी न था.

एचसीजी बेंगलुरु में काम करते हैं डॉ विशाल

मुख्य रूप से डॉ विशाल राव बेंगलुरु स्थित हेल्थ केयर ग्लोबल कैंसर सेंटर (एचसीजीसीसी) में गले के सर्जन के रूप में काम करते हैं. उन्होंने ऑम वॉइस प्रॉस्थेसिस नामक एक यंत्र विकसित किया है, जो वैसे लोगों की आवाज लौटाने में सक्षम है, जिनके गले का वाइस बॉक्स काम करना बंद कर देता है.

इस यंत्र के लगाने के बाद व्यक्ति सही तरीके से बोलने के साथ भोजन करना भी शुरू कर देता है. आम तौर पर यह यंत्र देश के किसी भी स्थान पर 15 से 30 हजार रुपये में उपलब्ध है और प्रत्येक छह महीने में इसे बदला जाता है. वहीं, दूसरी अोर डॉ विशाल राव ने इसे महज 50 रुपये की लागत से विकसित किया है.

सिलकॉन से बना है यंत्र

गले के कैंसर से ग्रस्त लोगों को कृत्रिम आवाज देनेवाला यह यंत्र मूल रूप से सिलिकॉन से बना है.

यह यंत्र वैसे रोगियों को लगाया जाता है, जिनका वाइस बॉक्स पूरी तरह से समाप्त हो जाता है या फिर गले की किसी बीमारी की वजह से आवाज चली जाती है. खास कर ऐसे मामलों में जब व्यक्ति की भोजन नली और वाइस बॉक्स पूरी तरह से काम करना बंद कर देते हैं, तो यह यंत्र सांस और भोजन की नलियों को खोलने के साथ ही वाइस बॉक्स के रूप में काम करना शुरू कर देता है. डॉ विशाल राव बताते हैं कि सही मायने में यह यंत्र फेंफड़े में जानेवाली सांस को स्पंदन कराके वाइस बॉक्स की तरह आवाज पैदा करने का काम करता है. वे बताते हैं कि भोजन की नली के जरिये फिट किया गया यह यंत्र भोजन की नली और गर्भनाल को हिलाता है और इसी के साथ वाइस बॉक्स में कंपन उत्पन्न होती है.

डॉ राव कहते हैं कि यदि आप भोजन नली के जरिये फेफड़ों तक हवा का प्रवेश कराते हैं, तो इससे गले और फेफड़ों में कंपन होती है, जिससे आवाज निकलनी शुरू हो जाती है और आप दिमाग के सहयोग से बेहतरीन तरीके से भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं. इस यंत्र को लगाने के बाद भोज्य पदार्थ अथवा पानी फेफड़ों में प्रवेश नहीं करेगा और यह एक तरीके से आवाज उत्पन्न करनेवाले वॉल्व की तरह काम करता है. वे बताते हैं कि कृत्रिम आवाज लौटानेवाला यह यंत्र 25 ग्राम वजनी और 2.5 सेंटीमीटर लंबा है.

ऐसे विकसित किया उपकरण

करीब दो साल पहले जब कर्नाटक के किसी गांव से गले के कैंसर से ग्रस्त एक रोगी डॉ विशाल के पास आया, तो कृत्रिम आवाज तैयार करनेवाले ऑम वाइस प्रोथेसिस नामक इस यंत्र को विकसित किया गया. डॉ विशाल का कहना है कि जब वह आदमी उनके पास आया, तो वह करीब दो महीने से न तो कुछ खा-पी रहा था और न ही बोलने में सक्षम था. इसका कारण यह था कि कैंसर के ऑपरेशन के दौरान उसके गले की आवाज नली क्षतिग्रस्त हो गयी थी. इससे उसका पूरा जीवन ही तबाह हो गया था. वह जीवन के प्रति निराश हो चुका था.

एक तरह से उसने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी. इसके बाद तो प्राय: हर समय डॉ विशाल राव का पाला इस प्रकार के रोगियों से पड़ने लगा. ऐसे मामले लगातार आने के बाद उन्होंने कुछ फर्मास्यूटिकल कंपनियों से संपर्क साधा. उन्होंने इन कंपनियों से दवाओं में छूट देने, सहायता कोष स्थापित करने और दान एकत्र करने के प्रबंध करने के बारे में कहा. उनकी सोच को साकार करने के लिए धन एकत्र कर लिया गया. उसी समय एक अदभुत घटना हुई. वे बताते हैं कि उसी समय उनके मरीज का एक दोस्त शशांक महेश उनसे मिलने चला आया. उसने उनके सामने कोष उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा.

उसने उनसे पूछा कि कोष के प्रबंध के लिए वे दूसरे पर निर्भर क्यों हैं. क्यों न वे खुद ही कुछ करते हैं? उसके इस सवाल पर डॉ विशाल ने यह अनुभव किया कि इस काम को पूरा करने की तो उनमें क्षमता ही नहीं है. वे तकनीकी तौर पर तो सक्षम हैं, लेकिन इस यंत्र के उत्पादन के लिए उनके पास अनुभव नहीं है. मन में यह विचार आते ही डॉ राव ने तकनीकी तौर पर शशांक को सहयोग करने का मन बनाया. उन्होंने उसे अपनी योजना समझायी और एक उद्यमी की तरह इस यंत्र के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी. उन्होंने अपनी ही जेब से कोष उपलब्ध कराके इस यंत्र को विकसित किया.

गरीबों के लिए विकसित किया यंत्र

डॉ विशाल बताते हैं कि वह किसी गरीब को वस्त्र दान नहीं करना चाहते, क्योंकि वह उससे कहीं अधिक का हकदार है. उन्होंने सोचा कि क्यों न गरीब मरीजों के इलाज के लिए सस्ते यंत्र को विकसित किया जाये. इसलिए इसे विकसित करने का मन बनाया. सबसे पहले इस यंत्र का प्रयोग अपने कार्यस्थल एचसीजीसीसी में ही किया. आज स्थिति यह है कि उन्होंने 30 से अधिक गले के कैंसर से ग्रस्त मरीजों की आवाज लौटायी है.

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