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ऐसी रणनीतियों से खात्मा नहीं, समन्वित प्रयास जरूरी

कहने के लिए आइएसआइएस के खात्मे को लेकर तो प्राय: दुनिया में सभी मुखर दिखायी देते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. तमाम दावे के बाद भी ताकतवर देश क्यों नहीं आइएसआइएस के खात्मे की योजना में सफल हो रहे हैं, पढ़िये खास पेशकश की दूसरी कड़ी……… पेरिस हमले के बाद हालांकि, फ्रांस के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 16, 2016 7:24 AM
कहने के लिए आइएसआइएस के खात्मे को लेकर तो प्राय: दुनिया में सभी मुखर दिखायी देते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. तमाम दावे के बाद भी ताकतवर देश क्यों नहीं आइएसआइएस के खात्मे की योजना में सफल हो रहे हैं, पढ़िये खास पेशकश की दूसरी कड़ी………
पेरिस हमले के बाद हालांकि, फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद ने लोगों को आइएसआइएस के खात्मे का आश्वासन दिया, लेकिन लोगों को यह पता है कि फ्रांस के सैनिक पूर्व सूचना एकत्र करने में विफल रहे.
13 नवंबर को फुटबॉल स्टेडियम के बाहर हमले के बाद शरणार्थियों को लेकर यूरोप की राजनीतिक हवा पूरी तरह से बदल गयी. तुर्की के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रेस के सामने जब दुनिया भर के लोग आइएसआइएस को लेकर कुछ भरोसा चाहते थे, तब ओबामा काफी चिड़चिड़ा गये. फ्रांस के नरसंहार को तो उन्होंने दुनिया का एक करारा झटका करार दिया, लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर वे चुप ही रहे. उन्होंने आतंकवादी विरोधी अभियान को गहनता से चलाने का भरोसा दिया, लेकिन रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया.
यूरोपीय देशों की आतंकवाद रोधी कार्रवाई : पेरिस के हमले में 129 लोगों की जानें चली गयीं. हालांकि, दो आतंकी फ्रांसीसी पुलिस की गिरफ्त में आये, जबकि 20 से भी अधिक एजेंट संदिग्ध आतंकियों की गतिविधियों पर नजर गड़ाये हुए थे.
यूरोपीय आतंकवाद के पनाहगाह बन चुके बेल्जियम ने यूरोपीय यूनियन की राजधानी और अपने पड़ोसी देश ब्रुसेल्स के जरिये किस तरह से आतंकवाद रोधी कार्रवाई करने की तत्परता दिखायी. बेल्जियम के रक्षा और गृह मंत्री जॉन जैंबन ने कहा, ‘इस समय कोई भी चीज हमारे नियंत्रण में नहीं है.’ हालांकि, वहां पर राष्ट्रपति ओबामा द्वारा लगातार बमबारी की जा रही है और हर महीने करीब एक हजार से अधिक आतंकवादी मारे भी जा रहे हैं. बावजूद इसके आइएसआइएस में नये आतंकियों की भरती रुकी नहीं है. सीरिया में आइएसआइएस के खात्मे के लिए करीब 500 मिलियन डॉलर की लागत से अमेरिका द्वारा फाइटर ट्रेन प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है. बावजूद इसके वह भी पल भर में बिल्कुल फ्लॉप हो गया. इसका कारण यह है कि लोग यह समझते हैं, राष्ट्रपति ओबामा के लिए दुनिया के लोगों को यह समझाना आसान है कि उनकी योजना सबसे बेहतर है. हालांकि, ऐसी स्थिति में एक अच्छे नेतृत्व की जरूरत है, इस पर विचार करने से पता चलता है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा अपनी जगह पर पूरी तरह से सही है.
आपसी द्वेष सबसे बड़ी समस्या : दुनिया के लिए आइएसआइएस सबसे बड़ी समस्या है, क्योंकि यह सच्चाई है कि इसलामिक स्टेट अपनी समस्याओं के समाधान के लिए बुतपरस्तों या फिर ये कहें कि प्रकृति पूजकों, जनजातीय लोगों, धार्मिक और भू-राजनैतिक लोगों का भरपूर व अच्छे तरीके से इस्तेमाल करता है. दूसरी तरफ बशर असद सीरिया के एक बड़े हिस्से पर अपनी गतिविधियां जारी रखे हुए है. असद को इरान और पश्चिम विरोधी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का संरक्षण हासिल है.
आइएसआइएस सीरिया में असद को उसकी गतिविधियों को अंजाम देने में हर संभव मदद कर रहा है. इरान दमिश्क और बगदाद के साथ संयुक्त रूप से एक मुसलिम राष्ट्र का नेतृत्व करता है और वह पूरी तरह से जिहादियों के लिए अभेद्य किला के समान है. लेबनान, जो सीरिया की सीमा के साथ लगता है, वह तेहरान के जरिये हिज्बुल्लाह के साथ गंठबंधन करेगा. सऊदी अरब इरान का आर्थिक साझेदार है. यह राज्य सुन्नियों के विरोध में आइएसआइएस का साथ दे सकता है, लेकिन यथासंभव इरान उसका साथ नहीं देगा.
उसके अन्य प्रतिद्वंद्वी कई कारणों से कदम पीछे हटा सकते हैं. वहीं, उत्तरी इराक और सीरिया में एथनिक कुर्दों के बीच आइएसआइएस विरोधी गतिविधियों को बढ़ाया जा रहा है, लेकिन ये कुर्द अंतत: तुर्कियों के दुश्मन हैं. वहीं दूसरी ओर, तुर्की नाटो का सदस्य होने के नाते आतंकवाद रोधी गतिविधियों को आगे बढ़ाते हुए आइएसआइएस के ठिकानों पर बम बरसा सकता है. वेस्टर्न एलायंस और कुर्दिस राष्ट्र के बीच आतंकवाद रोधी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के मामले पर चयन किया जा सकता है, लेकिन इसमें तुर्की अपनी पुरानी घृणा को बढ़ावा देते हुए नफरत का बीज बो सकता है.
कार्रवाई के मामले में एक-दूसरे का करते हैं विरोध: सबसे बड़ी बात यह है कि जो लोग इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं, वे चाहें तो आतंकवाद रोधी कार्रवाई की योजना में एक-दूसरे का साथ दे सकते हैं, लेकिन आखिर पड़ाव पर पहुंचने से पहले ही वे बजाय अमेरिका के एक-दूसरे का विरोध करना शुरू कर देते हैं, जो इस क्षेत्र का सबसे बड़ा खिलाड़ी है.
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दुनिया क्यों नहीं चाहती आइएस का खात्मा
आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करनेवाले देशों के बयानबाजी आपस में मेल नहीं खाते. कथनी और करनी में अंतर के कारण वे अक्सर मात खा जाते हैं.
1. अमेरिका : अगस्त 2014 में वाशिंगटन से आइएसआइएस के खिलाफ इराक और सितंबर में सीरिया पर हवाई हमले किये. मगर अमेरका कोशिश सीरिया के बागियों को मदद देने की रही है, जो असफल रही. आइएसआइएस के खिलाफ जमीनी लड़ाई के लिए सेना भेजने से मना कर दिया.
2. फ्रांस : फ्रांस आइएसआइएस के खिलाफ छेड़े गये युद्ध में प्रमुख यूरोपीय देशों में से एक है. उसने सौ से अधिक हवाई हमले किये, लेकिन इसके पास सैन्य क्षमता काफी सीमित है.
3. सीरिया : सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद सीरियाई दुश्मनों के खात्मे की शर्त पर आइएसआइएस से लाभ उठाने में कामयाब रहे हैं. आइएसआइएस को बढ़ावा देकर उन्होंने अपनी ताकत बढ़ायी है और दुश्मनों से लड़ने के लिए उन्होंने खुद को तैयार भी किया है.
4. इजरायल : इरान, हिज्बुल्लाह और हमास की ओर से धमकी दिये जाने के बाद इजरायल आइएसआइएस के खिलाफ हमलों को रोके हुए है.
5. सऊदी अरब : सऊदी अरब आइएसआइएस की जन्मभूमि है और वह सीरिया में आइएसआइएस के खिलाफ सीमित हवाई हमले भी कर रहा है. सउदी अरब की ज्यादा दिलचस्पी इरान से हड़ने में और यमन के गृह युद्ध में है.
6. इराक : इराक की सेना को आइएसआइएस ने लगभग नष्ट कर दिया था. इरानी मिलिशिया की मदद से आइएसआइएस के खिलाफ एक हद तक लड़ाई लड़ी, मगर उनके पास और लड़ने की और इच्छाशक्ति बच गयी है, इसमें संदेह है.
7. यमन : यह देश पहले से ही दो तरफ से गृह युद्ध की आग में झुलस रहा है. ऊपर से आइएसआइएस ने शिया विरोधी होने के नाम पर हौथी विद्रोहियों के साथ मिल कर यहां की सरकार और पड़ोसी देश सऊदी अरब की शिया मसजिदों को ध्वस्त कर दिया. इस मसजिद से हौथी विद्राेहियों के खिलाफ लड़ाई की जा रही थी.
8. इरान : यह शिया मुसलमान बहुल देश है और आइएसआइएस के खिलाफ लड़ाई में इराक का सहयोग करता रहा है, लेकिन इरान क्षेत्रीय और धार्मिक व सांप्रदायिक संघर्ष के कारण सऊदी अरब के साथ युद्ध करने में ज्यादा विश्वास रखता है.
9. रूस : रूस अभी हाल ही में सीरियों के युद्ध में कूदा है, क्योंकि उसे अपने समर्थक बशर असद में अधिक रुचि है. रूस की ओर से अभी तक जितने भी हमले किये गये हैं, उनमें से ज्यादातर हमले उन समूहों पर किये गये हैं, जो सीरिया या फिर बशर असद के दुश्मन हैं, न कि यह हमले आइएसआइएस पर किये गये. संभव है कि पिछले साल आइएसआइएस द्वारा उसके विमान पर हमला किये जाने के बाद रूस रणनीति में बदलाव भी करे.
10. कुर्द : तुर्की, सीरिया, इराक और इरान के मिश्रित भू-भाग पर रहनेवाले कुर्द आइएसआइएस के साथ जमीनी स्तर पर टक्कर लेने में समर्थ हैं. अभी हाल ही में उन्होंने इराकी शहर सिंजर को अपने कब्जे में ले लिया, लेकिन इनकी रुचि कुर्दिस्तान के निर्माण में ज्यादा है.
11. तुर्की: इसकी दिलचस्पी आइएसआइएस से लड़ने में कम और अपने यहां बसे कुर्दों से निपटने में ज्यादा है. तुर्की सरकार कुर्द उग्रवादी संगठन पीकेके के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है.
जारी……….
(इनपुट- ‘टाइम’ मैगजीन)

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