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सात फरवरी, 1921 : पहली बैठक, 103 मेंबर

बिहार के विधायी इतिहास में सात फरवरी, 1921 एक महत्वपूर्ण तिथि है. इसी तारीख को पटना में लेजिस्लेटिव काउंसिल की पहली बैठक हुई थी. यह बैठक उसी भवन में हुई थी, जिसे आज बिहार विधानसभा के नाम से जाना जाता है. तब पृथक विधानसभा का गठन नहीं हुआ था. तब बिहार व ओड़िशा संयुक्त प्रांत […]

बिहार के विधायी इतिहास में सात फरवरी, 1921 एक महत्वपूर्ण तिथि है. इसी तारीख को पटना में लेजिस्लेटिव काउंसिल की पहली बैठक हुई थी. यह बैठक उसी भवन में हुई थी, जिसे आज बिहार विधानसभा के नाम से जाना जाता है. तब पृथक विधानसभा का गठन नहीं हुआ था. तब बिहार व ओड़िशा संयुक्त प्रांत था और लेजिस्लेटिव काउंसिल का गठन हुआ था. 1937 में बिहार विधानसभा अस्तित्व में आयी. सात व आठ फरवरी को दो दिवसीय स्थापना दिवस समारोह सह प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इस ऐतिहासिक मौके पर विधायी इतिहास की यात्रा पर एक नजर डालना प्रासंगिक होगा, ताकि अतीत की रोशनी से मजबूत संसदीय व्यवस्था की ओर बढ़ा जाये.

स्पेशल सेल, पटना

बिहार विधानसभा आज जिस स्वरूप में मौजूद है, उसके पीछे इसकी लंबी ऐतिहासिक यात्रा है. यह यात्रा कई पड़ावों से होकर गुजरी है. बिहार के पृथक राज्य के गठन से लेकर इसके लिए विधायी व्यवस्था बनाने में भी लंबा वक्त लगा. विधानसभा का जो ऐतिहासिक भवन आज खड़ा है, उसी भवन में पहली बार विधान परिषद की बैठक सात फरवरी, 1921 को हुई थी. सर मुडी ने इसकी अध्यक्षता की थी.

12 दिसम्बर, 1911 को दिल्ली दरबार में ब्रिटिश सम्राट ने भारत सरकार की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने और बंगाल से बिहार एवं ओड़िशा को अलग कर गवर्नर-इन-कौंसिल के शासन वाला प्रांत बनाने की घोषणा की थी. 22 मार्च, 1912 को आधिकारिक तौर पर बंगाल से अलग कर बिहार एवं ओड़िशा नाम से नये राज्य का गठन किया गया, जो एक अप्रैल, 1912 के प्रभाव से लागू हुआ. सर चार्ल्स स्टूवर्ट बेले प्रथम उप राज्यपाल नियुक्त किये गये. संयुक्त बिहार एवं ओडि़शा राज्य में विधायी प्राधिकार की स्थापना सन 1913 में हुई. इसके लिए 43 सदस्यीय विधायी परिषद का गठन किया गया, जिसमें 24 निर्वाचित एवं 19 मनोनीत सदस्य थे. इसकी प्रथम बैठक 20 जनवरी, 1913 को बांकीपुर स्थित काउंसिल चैम्बर में तत्कालीन उप राज्यपाल श्री बेले की अध्यक्षता में संपन्न हुई.

सचि्चदानंद िसन्हा पहले भारतीय थे, जो काउंसिल के चेयरमेन बने. 1937 में रामदयालु िसंह पहले स्पीकर चुने गये थे. गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 की व्यवस्थाओं के अनुरूप 22-29 जनवरी, 1937 की अवधि में बिहार विधान सभा के चुनाव सम्पन्न हुए. 20 जुलाई, 1937 को डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में प्रथम सरकार गठित हुई. 22 जुलाई,1937 को विधान मंडल का अधिवेशन हुआ. स्थापना के बाद से िवधानसभा ने जनहित के कई महत्वपूर्ण फैसले िकये.

प्रांतीय काउंसिल

1920 में भवन हुआ था तैयार

29 दिसंबर, 1920 को बिहार एवं ओड़िशा राज्य को राज्यपाल शासित प्रांत बना दिया गया. श्री सत्येन्द्र प्रसन्नो (बैरॉन) सिन्हा राज्य के प्रथम भारतीय राज्यपाल नियुक्त किये गये. तब लेजिस्लेटिव काउंसिल में सदस्यों की संख्या 103 तय की गयी. उनमें 76 निर्वाचित एवं 27 राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य थे. मार्च, 1920 में लेजिस्लेटिव कौंसिल का भवन बनकर बना. इस भवन में कौंसिल की प्रथम बैठक सात फरवरी, 1921 को सर मुडी की अध्यक्षता में संपन्न हुई. यह भवन आज बिहार विधान सभा के रूप में विद्यमान है. बिहार एवं ओड़िशा राज्य के अंतिम राज्यपाल सर जेम्स डेविड सिफट्रॉन हुए. फिर 1935 में बिहार विधान परिषद भवन का निर्माण हुआ. एक अप्रैल, 1936 को बिहार एवं ओड़िशा अलग हुआ.

पहली बैठक

असहमतियों को दबाइए…

हिज मैजेस्टी द किंग-इंपरर ने जो महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व मुझे सौपा है, उसके लिए मैं अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली समझता हूं. यह मेरा फर्ज है कि मैं इस काउंसिल को शुरू करूं और आप सभी के साथ मिलकर इस प्रोविंस के हर वर्ग, वर्ण और समूदाय की बेहतरी के लिए दिल से प्रार्थना करूं.

आज हमलोग प्रतिनिधित्व आधारित व्यवस्था का साक्षी बनेंगे. एक ऐसी व्यवस्था जो कुछ सौभाग्यशाली देशों में है. इस व्यवस्था को शासन चलाने का सबसे आदर्श व्यवस्था माना जाता है. यहां मैं 17 अगस्त, 1917 के दिन हुई घोषणा और उसके बाद संसद में हुई कार्यवाही को याद करना चाहूंगा. मैं यह दावा नहीं करता हूं कि इससे संविधान में कोई क्रांतिकारी बदलाव आया. लेकिन, मैं दृढ़ता से कहूंगा कि यह इंग्लिश और भारतीय राजनीतिक पंडितों और प्रशासकों की मेहनत का परिणाम है.

मैं यह सोचने से अपने आप को नहीं रोक पा रहा हूं कि मुनरो, मैकाले, एलिफिन्सटन, ब्राइट और रिपोन की आत्मा आज राम मोहन रॉय, नोरोजी, रानाडे, फिरोजशाह मेहता और गोखले से मिलेंगी और अपना आशीर्वाद इस एसेम्बली को देंगी. मैं कह चुका हूं कि संवीधान में यह बदलाव कोई क्रांतिकारी नहीं है. अगर यह क्रांतिकारी होता तब उसकी उम्र ज्यादा नहीं होती. राज्य के विकास की पहली शर्त है निरंतरता. मैं नये सिस्टम के बारे में कहूंगा कि यह प्रगतिशील और निरंतर दोनों है. मैं अपनी बात का अंत हिज रॉयल हाईनेस द ड्यूक ऑफ क्नॉट इन मद्रास के शब्दों से करूंगा – अपनी असहमतियों को दबाइए और उनको बिंदुओं को उभारिए, जिन पर आप एकमत हैं. इस तरह एक होकर अपने नये राजनीति मशीनरी का इस्तेमाल दबे-कुचलों को उठाने में और जाति, वर्ग और दुश्मनी की दीवार गिराने में करें.

(साभार : राधानंदन झा की पुस्तक ओिरजिन एंड डेवलपमेंट ऑफ िबहार लेजिसलेचर)

तब और अब

1937

गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 के अनुसार एक अप्रील, 1937 को प्रान्तीय स्वायतत्ता दी गयी. बिहार में विधान सभा तथा विधान परिषद की स्थापना हुई. विधान सभा की क्षमता 152 सदस्यों की थी. इन सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन क्षेत्रीय तथा विशेष निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं द्वारा होता था.

1952

1951-1952 तथा 1957 में क्रमश: पहले एवं दूसरे आम चुनाव में विधान सभा के 330 सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन हुआ तथा एक सदस्य अलग से मनोनीत किये गये. एक नवंबर, 1956 को बिहार के पुनर्गठन के कारण कुल सदस्यों की संख्या 319 रह गयी. 1977 में कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या 325 हो गयी.

2000 से अब तक…

15 नवंबर, 2000 को बिहार का विभाजन हुआ एवं पृथक झारखंड राज्य का गठन हुआ. फलस्वरूप निर्वाचित कुल 324 सदस्यों में से 81 सदस्य एवं एक मनोनीत सदस्य अर्थात् कुल 82 सदस्य झारखण्ड विधानसभा के सदस्य हो गये. इस प्रकार बिहार विधान सभा में कुल 243 सदस्य ही शेष रह गए.

गठन से अब तक

सर वाल्टर मोडे थे िवधान परिषद के प्रथम चेयरमैन

20 जनवरी 1913 को पटना के बांकीपुर स्थित परिषद् कक्ष में सर वेले के सभापतित्व में संयुक्त विधान परिषद की पांच बैठकें हुईं. उस समय यह परिषद् बिहार और ओडिशा के लेफ्टिनेंट गवर्नर की परिषद् कहलाती थी. सात फरवरी, 1921 को जब बिहार-ओडिशा विधान परिषद अस्तित्व में आयी, तो सर वाल्टर मॉडे प्रथम सभापति मनोनीत हुए. 28 मार्च, 1936 को बिहार के लिए अलग विधान परिषद गठन किये जाने का आदेश हुआ.

बिहार एवं ओड़ीशा विधान परिषद् के सभापति

1. सर वाल्‍टन मोड़े 1921

2. डॉ सच्चिदानन्‍द िसन्हा जुलाई, 1921 -नवंबर, 1922

3. खान बहादुर ख्‍वाजा मु. नूर 1922 – 1929

4. बाबू निरसू नारायण सिंह 1930 – 1932

5. बाबू रजनधारी सिंह 1933 – 1936

विधानसभा अध्यक्ष कार्यकाल

श्री रामदयालु सिंह 23/07/1937 से 11/11/1944

श्री बिन्देश्वरी प्रसाद वर्मा 25/04/1946-14/03/1962

डॉ लक्ष्मी नारायण सुधांशु 15/03/1962-15/03/1967

श्री धनिकलाल मंडल 16/03/1967-10/03/1969

श्री राम नारायण मंडल 11/03/1969-20/03/1972

श्री हरिनाथ मिश्र 21/03/1972-26/06/1977

श्री त्रिपुरारी प्रसाद सिंह 28/06/1977-22/06/1980

श्री राधानन्दन झा 24/06/1980-01/04/1985

श्री शिवचन्द्र झा 04/04/1985-23/01/1989

श्री मोहम्मद हिदायुतल्ला खां 27/03/1989-19/03/1990

श्री गुलाम सरवर 20/03/1990-09/04/1995

श्री देव नारायण यादव 12/04/1995-06/03/2000

श्री सदानंद सिंह 09/03/2000-28/06/2005

श्री उदय नारायण चौधरी 30/11/2005-29/11/2010

02/12/2010-28/11/2015

श्री विजय कुमार चौधरी 02/12/2015 से अब तक

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