विरासत बचाने का ताना-बाना
150 वर्ष पुरानी सुजनी कला बचा रही नूपुर जैन की सूजनी लूम्स भरुच में वर्ष 1860 से चली आ रही सुजनी बनाने की कला अपना अस्तित्व खोने की राह पर थी़ लेकिन वर्ष 2014 में नूपुर जैन ने पीढ़ियों की इस विरासत को बचाने के इरादे से सुजनी लूम्स की शुरुआत की़ इसके जरिये वह […]
150 वर्ष पुरानी सुजनी कला बचा रही नूपुर जैन की सूजनी लूम्स
भरुच में वर्ष 1860 से चली आ रही सुजनी बनाने की कला अपना अस्तित्व खोने की राह पर थी़ लेकिन वर्ष 2014 में नूपुर जैन ने पीढ़ियों की इस विरासत को बचाने के इरादे से सुजनी लूम्स की शुरुआत की़ इसके जरिये वह सुजनी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाकर बुनकरों के लिए उम्मीद की एक नयी किरण दिखा रहीं हैं.
30 वर्षीय नूपुर जैन गुजरात के भरुच में अपने उद्यम सुजनी लूम्स के जरिये सुजनी, यानी लेवा या लेदरा, बनाने की कला को नया जीवन देने में लगीं हैं. कुछ समय पहले जब वह घूमने-फिरने के मकसद से गुजरात गयीं थीं, तब उन्होंने सुजनी के नर्म, हल्की और चौकोर बुनावट से प्रभावित होकर उसे करीब से जाना था़
सूती कपड़े को दो तह करके उसके बीच में सूती कपड़ा या रूई की पतली परत बिछाकर हल्के बिछावन या रजाई बनाने की यह कला, गुजरात के भरुच में पीढ़ी दर पीढ़ी लगभग 150 वर्षों से चली आ रही है़ बहरहाल, नूपुर को यह जानकर दुख हुआ कि बदलते समय के साथ धीरे-धीरे यह कला अपना अस्तित्व खोने लगी है़
इस कला को संजोने और इसे फायदे का सौदा बनाने के मकसद से उन्होंने भरुच के मुट्ठीभर बुनकरों को साथ लेकर वर्ष 2014 में सुजनी लूम्स की शुरुआत एक होम डेकॉर और लाइफस्टाइल ब्रांड के तौर पर की़ फिलहाल, नूपुर अपने व्यवसायी पति के साथ भरुच में ही रहकर सुजनी और उसे बनाने की कला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के लिए प्रयासरत हैं.
नूपुर बताती हैं कि भरुच में तैयार होनेवाली सुजनी, सबसे नर्म और हल्की होने की वजह से प्रसिद्ध है़
इसे बनाने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है, जो करघे के दोनों ओर बैठकर रंग-बिरंगे धागों के ताने-बाने से चौकोर आकृतियां गढ़ते हैं, जो आपस में जुड़कर सुजनी का मुकम्मल रूप ले लेती हैं. वह आगे कहती हैं, भरुच में यह कला वर्ष 1860 में आयी थी़ दरअसल, असम और भरुच के दो बुनकर कालापानी की सजा के दौरान अंडमान में एक-दूसरे से मिले़ इस दौरान असमिया बुनकर ने सुजनी बनाने की कला भरुच के बुनकर को सिखायी़
वहां से छूटकर जब वह अपने गांव लौटा, तो उसने यह कला अपने गांववालों को सिखायी़ नूपुर बताती हैं, आज की तारीख में सुजनी बनाने की यह कलाकारी भरुच के तीन परिवार कर रहे हैं, जो सुजनीवाला, चिश्तिया और मियां मुस्तफा परिवार के नाम से जाने जाते हैं. कुल पांच पुश्तों से चली आ रही इस कला की विरासत को संभालनेवाले अब गिने-चुने लोग ही हैं. इसकी वजह यह है कि इन परिवारों की नयी पीढ़ी इस काम को काफी श्रमसाध्य मानती है़ और तो और बाजार में सुजनी के सस्ते विकल्पों के आ जाने से इन लोगों को अपने उत्पादन के लिए खरीददार कम ही मिल पाते हैं.
बहरहाल, नूपुर ने अपने उद्यम सुजनी लूम्स के जरिये सुजनी बनाने की कला को संजोने के इरादे से इसके बुनकरों को बाजार में उनके काम का सही दाम दिलाने का बीड़ा उठाया है़
वह बताती हैं, हम भरुच की सुजनी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक ले जाते हैं, जिसके फलस्वरूप हमें बड़े पैमाने पर ऑर्डर मिलते हैं. इसके बाद हम अपनी जरूरत इन बुनकरों को बता देते हैं.
इसके लिए हमने इन बुनकरों से गंठजोड़ किया है, जिन्हें काम से पहले अग्रिम राशि और ऑर्डर पूरा होने के बाद पूरी राशि दे दी जाती है़ नूपुर बताती हैं कि हमारे आने से बुनकरों में उत्साह और अपने काम के प्रति समर्पण बढ़ा है़ अब पुरानी पीढ़ी के बुनकरों से सुजनी की कला सीखने के लिए नयी पीढ़ी भी करघे पर उनका साथ देने लगी है़
नूपुर आगे बताती हैं, हम बुनकर समुदाय के जीवनस्तर में सुधार के लिए भी प्रयासरत हैं. इसके लिए हमने ‘सर्व हैपीनेस फाउंडेशन’ के साथ हाथ मिलाया है़ सुजनी लूम्स के जरिये होनेवाली बिक्री का सारा मुनाफा इस फाउंडेशन को जाता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के बुनकरों के लिए मूलभूत सुविधाएं, बच्चों को शिक्षा और युवाओं को रोजगार आदि की व्यवस्था की जाती है़
नूपुर जैन की सुजनी लूम्स धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रही है़ पिछले दिनों इन्हें सुजनी कला पर प्रेजेंटेशन देने के लिए इंडो-सोवियत सोसाइटी की ओर से आमंत्रित किया गया़ यही नहीं, कम समय के भीतर ही देश के अलग-अलग भागों सहित सिंगापुर तक प्रदर्शनियों के जरिये उन्होंने लोगों को इस कला के बारे में जागरूक किया है़ इस साल के लिए सुजनी लूम्स की योजना देशभर में प्रदर्शनियां आयोजित करने और जानी-मानी ई-कॉमर्स साइट्स के जरिये ई-रिटेलिंग के क्षेत्र में उतरने की है़