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बुला रहा कोई दूर अंतरिक्ष से

रहस्य : ‘एलियंस’ महज परिकल्पना या सच्चाई विज्ञान कहता है कि पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश, ध्वनि और गंध व्याप्त है. क्या इस विराट ब्रह्मांड में इन भौतिक द्रव्यों की उपस्थिति केवल पृथ्वी पर रहने वाले हम मनुष्यों के लिए है या किसी दूसरे ग्रह पर रहने वाले जीवों के लिए भी उपयोगी है? समय-समय पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 9, 2016 5:57 AM
रहस्य : ‘एलियंस’ महज परिकल्पना या सच्चाई
विज्ञान कहता है कि पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश, ध्वनि और गंध व्याप्त है. क्या इस विराट ब्रह्मांड में इन भौतिक द्रव्यों की उपस्थिति केवल पृथ्वी पर रहने वाले हम मनुष्यों के लिए है या किसी दूसरे ग्रह पर रहने वाले जीवों के लिए भी उपयोगी है? समय-समय पर अंतरिक्ष से आती आवाजें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि ‘एलियंस’ कल्पना नहीं हैं.
आइए, जानें तफ्सील से़एलियंस के बारे में हमारी जिज्ञासा, वैज्ञानिक खोज और अनुसंधान का एक प्रेरक विषय रही है़ यह जिज्ञासा नयी नहीं है, सदियों से इनके प्रति कल्पना की जाती रही है़ लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ, इस परिकल्पना में नये अध्याय जुड़े और नये आयाम खुलते गये़
आज विज्ञान की आधुनिक खोज यह प्रमाणित करने में जुटी है कि ‘एलियंस’ का अस्तित्व महज परिकल्पना नहीं, बल्कि सच्चाई है़ विज्ञान की इस कोशिश से आशा की कुछ किरणें झलकी हैं और अबूझ रहस्य की हल्की-सी झलक भी मिली है. चूंकि विज्ञान प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है, जाे ‘एलियंस’ की असामान्य हलचलों, रहस्यमयी गतिविधियाें के रूप में समय-समय पर सामने आती रहती हैं.
कभी कहीं कोई उड़नतश्तरी नजर आ जाती है तो कभी किसी जगह पर अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देती हैं, जिनके बारे में वैज्ञानिकों की भी राय है कि वो इस ग्रह की नहीं हैं. कुछ इसी क्रम में अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने गहरे अंतरिक्ष से एक लंबी और लगातार आती हुई आवाज सुनी है़ हालांकि इस बात को लेकर कोई भी आश्वस्त नहीं है कि आखिरकार यह आवाज कहां से आ रही है़
बहरहाल, नया रिसर्च इस बात पर थोड़ी रोशनी डालता है कि आखिर किस वजह से रेडियो तरंगों के रूप में ये संदेश आ रहे हैं. लेकिन इसके स्रोत के बारे में उलझाऊ सवालों की सूची लंबी है़ कार्नेल यूनिवर्सिटी के खगोल विज्ञान के प्रोफेसर जेम्स कार्डिस ने एक बयान में कहा है, हमने देखा कि ये रेडयो तरंगें जिस ऊर्जा स्रोत से आ रही हैं, वह मिनटों में रिचार्ज हो जाता है़ गौरतलब है कि इससे पहले वैज्ञानिकों ने सोचा था कि ये संदेश न्यूट्रॉन सितारों की टक्कर से पैदा हो रहे हैं.
यहां यह जानना जरूरी है कि दूसरे ग्रह के जीवों के बारे में ठोस जानकारी जुटाने के इरादे से रेडियो तरंगों के जरिये उनसे संपर्क साधने की कोशिश की शुरुआत सन 1960 में अमेरिकी रेडियो खगोल वैज्ञानिक फ्रैंक ड्रेक ने की़ इस अभियान से प्रेरित होकर अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन नासा ने भी इसके कुछ समय बाद इसी उद्देश्य से अत्याधुनिक कंप्यूटर नेटवर्किंग कार्यक्रम से जुड़ी एक बड़ी परियोजना शुरू की, जिसका नाम था सेती, यानी सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरीटोरियल इंटेलीजेंस़ वैसे, कुछ और प्रमाणों की बात करें तो कोई पांच साल पहले नासा ने ग्लीयेज 581डी ग्रह के बारे में पता लगाया था, जहां पर जीवन के संकेत मिले हैं, जहां से आवाजें आती हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ग्रह पर एलियंस हो सकते हैं. ग्लीयेज से 2010 में कुछ सिग्नल प्राप्त हुए थे़ खगोलविदों का कहना है कि इससे इससे भविष्य में इनसान के रहने लायक एक और दुनिया की उम्मीद जगी है़
इसके अलावा, नासा ने हाल ही में दुनिया को एक नयी बात से रूबरू कराया कि वर्ष 1969 में जब नील ऑर्मस्‍ट्रांग ने चंद्रमा पर पहला कदम रखा था, तो उससे ठीक दो महीने पहले अपोलो 10 के अंतरिक्षयात्री ने धरती पर खबर भेजी कि अपोलो 10 जब चंद्रमा की कक्षा में घूम रहा था, तो उस दौरान उनका धरती से संपर्क टूट गया था़ इसके बाद अंतरिक्ष यान में बैठे सभी अंतरिक्षयात्रियों के हेडफोन में संगीत की आवाजें आने लगीं.
हालांकि शुरुआत में तो उन्‍हें लगा कि कुछ तकनीकी खराबी के चलते यह हुआ लेकिन बाद में हकीकत पता चलने पर सभी चौंक गये़ यह काफी अलग सी आवाज थी जिसे उन अंतरिक्षयात्रियों ने सुना था़ कुछ ने कहा कि यह चंद्रमा के आसपास बने मैग्‍नेटिक फील्‍ड से उत्‍पन्‍न हुई आवाज रही होगी, वहीं कुछ कहते हैं कि चंद्रमा के इर्द-गिर्द किसी तरह की मैग्‍नेटिक फील्‍ड नहीं है और वहां इस तरह का वातावरण भी नहीं है़
गौरतलब है कि नासा का सेती, ‘एलियंस’ से संपर्क साधने के लिए लगातार रेडियो तरंगें भेजता है.चूंकि धरती से यह दूरी घटती-बढ़ती रहती है, इससे रेडियो तरंगों की आवृत्ति में भी अंतर आता है़ इसे ध्यान में रखकर सेती ने हाइड्रोजन परमाणु की आवृत्ति का चुनाव किया है, क्योंकि ब्रह्मांड में यही तत्व सर्वाधिक मात्रा में विद्यमान है और रेडियो संकेतों के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त है. इस खोज के दौरान अब तक लगभग सैकड़ों अजनबी रेडियो तरंगों को प्राप्त किया जा चुका है, लेकिन इससे ‘एलियंस’ के किसी रहस्य का उद्घाटन नहीं होता है. वजह यह है कि ये सिग्नल दोबारा नहीं मिल सके, जिससे संदेह होता है कि ये संकेत किसके हैं. दूसरी वजह है इन संकेतों की उपस्थिति बहुत कम समय के लिए रही़ इसके बावजूद इस प्रयोग परीक्षण को असफल नहीं कहा जा सकता है़
बहरहाल, आशा-निराशा के कुहासे में 15 अगस्त 1977 को आेहियो में एक अनजान रेडियो संकेत को दर्ज किया गया़ यह संकेत बड़ा अनोखा और अद्भुत था, जो धनु तारामंडल के अज्ञात ग्रहवासियों द्वारा भेजा गया था़ इस सिग्नल ने वैज्ञानिकों को चकित व हतप्रभ कर दिया था़ इसे ‘वाउ सिगनल’ कहा गया़ इसके एक दशक बाद 10 अगस्त 1986 को इसी तारामंडल से एक और सिग्नल मिला़
इस तरह कह सकते हैं कि धरती के अलावा दूसरे ग्रह पर भी जीवन के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि ब्रह्मांड अनंत है और इसमें हमारी पृथ्वी जैसे अनेकों ग्रह हो सकते हैं, जिसमें हमारी धरती के जैसी या इससे उन्नत विकसित सभ्यताएं हो सकती हैं.
इस बारे में सेती इंस्टीट्यूट में इंटरस्टेलर मेसेज कंपोजिशन के निदेशक डगलस वाखोक बताते हैं, लगभग 50 वर्षों से अंतरिक्षविज्ञानी तारों की ओर अपने रेडियो टेलिस्कोप साधे हुए दूसरी सभ्यताओं से आने वाले सिग्नलों की राह देख रहे हैं. उम्मीद है हमारे भेजे शक्तिशाली और सूचनाप्रद संदेशों का दूसरी सभ्यताओं से जवाब आ जाये़

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