अर्थव्यवस्था को गति कैसे दें ?

नये आधार विधेयक का तुरंत नतीजा एक डिजिटल देनदारी आर्किटेक्चर बनाने की योग्यता है नंदन नीलेकणि पूर्व अध्यक्ष, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ‘आधार’ जरूरतमंद लोगों के लिए सिर्फ न्यूनतम उपभोग ही नहीं उपलब्ध करायेगा, बल्कि गलत दिशा और फर्जीवाड़े से बचाये गये संसाधन भी मुहैया करायेगा. इतना ही नहीं, ऋण व्यवस्था में पुनर्सुधार और भारतीय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2016 7:49 AM
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नये आधार विधेयक का तुरंत नतीजा एक डिजिटल देनदारी आर्किटेक्चर बनाने की योग्यता है
नंदन नीलेकणि
पूर्व अध्यक्ष,
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण
‘आधार’ जरूरतमंद लोगों के लिए सिर्फ न्यूनतम उपभोग ही नहीं उपलब्ध करायेगा, बल्कि गलत दिशा और फर्जीवाड़े से बचाये गये संसाधन भी मुहैया करायेगा. इतना ही नहीं, ऋण व्यवस्था में पुनर्सुधार और भारतीय अर्थव्यवस्था को गति के लिए राह भी निकलेगी. पढ़िए, एक टिप्पणी.
जुलाई, 1969 में लोकसभा को बताया गया था कि 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण ‘इसलिए जरूरी है, ताकि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों और विशेषकर, किसानों, लघु उद्यमियों और स्व-रोजगाररत पेशेवर समूहों की आवश्यकताओं का अधिकाधिक ध्यान रखा जा सके’. लेकिन ऐसा हो नहीं सका; भारत के ऋण का रक्तप्रवाह कुछ बड़े कर्जदारों और देनदारों द्वारा पैदा की गयी संकट, जिसे आर्थिक समीक्षा में ‘जुड़वा बैलेंस शीट समस्या’ कहा गया है, से जहरीला हो गया है.पारंपरिक बैंकिंग तंत्र ने ऋण को लोकतांत्रिक बनाने के लिए संघर्ष किया है और घायल बैलेंस शीट निजी निवेश की राह में बड़ी बाधा बना है, और इस तरह से पूर्ण आर्थिक सेहत को ठीक करना कठिन हो गया है.
लेकिन, भारत के पास नया और वैकल्पिक ऋण इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने का एक विशेष अवसर है, जो लाखों व्यापारियों और व्यक्तियों की ऋण तक पहुंच को आसान बना सकता है, और यह अवसर नवोन्मेष, तकनीक तथा डिजिटाइजेशन के साथ हाल में आधार को मिली वैधानिकता से उत्पन्न हुआ है.
लोकसभा द्वारा आधार विधेयक को पारित किया जाना एक सक्षम, प्रभावी और आधुनिक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की नींव रखना है. भारत के सब्सिडी व्यवस्था को रसोई गैस से बढ़ा कर अब केरोसिन, फर्टिलाइजर, भोजन, पानी, बिजली, ब्याज परिदान, दोषपूर्ण न्यूनतम समर्थन मूल्य की जगह किसानों को नगद सहायता और अन्य मामलों में लागू किया जायेगा.
आधार उन जरूरतमंद लोगों के लिए सिर्फ न्यूनतम उपभोग ही नहीं उपलब्ध करायेगा, बल्कि गलत दिशा और फर्जीवाड़े से बचाये गये संसाधन भी मुहैया करायेगा. इतना ही नहीं, आधार के भविष्य को निर्विवाद तौर पर सुनिश्चित कर दिये जाने से एक अन्य बड़ा और त्वरित अवसर मिला है, और वह है ऋण व्यवस्था में पुनर्सुधार और भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देना.
भारत के सामने अभी भुगतान का लंबा संकट है. इस स्थिति के समाधान के लिए सांस्थानिक इंफ्रास्ट्रक्चर या तो अपर्याप्त हैं या अस्तित्व में नहीं हैं. सर्वोच्च न्यायालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और टेलीविजन एंकरों की सामूहिक निगरानी में सार्वजनिक बैंकों के नेतृत्व की हालत तेज रोशनी में अवाक् हिरण की तरह है. कोई भी कर्ज का निपटारा नहीं करेगा, क्योंकि इससे बैंकों को कुछ नुकसान हो सकता है.
चूंकि हम यह समझ बनाने में अक्षम हैं कि निपटारे का निर्णय एक व्यापारिक निर्णय है या कोई अपराध. ऐसे में एक प्रबंधक की बेहतरीन रणनीति कुछ नहीं करना ही होगा.
मुझे आशंका है कि इसके समाधान में कई साल लग जायेंगे. यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि इस हिचक से कॉरपोरेट डेट रिस्ट्रक्चरिंग (सीडीआर), स्ट्रेटेजिक डेट रिस्ट्रक्चरिंग (एसडीआर), ज्वाइंट लेंडर्स फोरम (जेएलएफ) जैसे फोरम और स्वघोषित डिफॉल्टर भी संक्रमित हैं. नया दिवालिया कानून महत्वपूर्ण है और लंबे समय से रुका पड़ा है, लेकिन यह अपने-आप में बैंकिंग क्षेत्र की नॉन परफॉर्मिंग परिसंपत्तियों की समस्या का निवारण नहीं कर सकेगा. पूंजी बाजार में रुखाई, कमजोर घरेलू बॉन्ड बाजार, और अंतरराष्ट्रीय लेनदारी में मुद्रा से संबंधित खतरे जैसे कारकों के कारण अनेक भारतीय व्यापारियों को वृद्धि के लिए पूंजी की कमी बनी रहेगी. इस अव्यवस्था को वित्तीय और मौद्रिक नीति में बदलाव से नहीं सुधारा जा सकता है.
क्या कोई वैकल्पिक योजना हो सकती है? जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है, एक नीतिगत और तकनीकी खिड़की खुलने से लाखों व्यापारों और व्यक्तियों की ऋण तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से नये और वैकल्पिक ऋण आर्किटेक्चर बनाने का एक विशिष्ट अवसर भारत के पास है. जेएएम त्रिमूर्ति (जन धन, आधार एवं मोबाइल) देश के 21 नये बैंकों (बीते 50 सालों में बैंकों के लिए दिये गये लाइसेंसों से यह अधिक संख्या है) के लाइसेंसधारकों के लिए एक भारत स्टैक (दस्तावेजीकरण, भुगतान, सूचना के लिए मंजूरी आदि सभी वित्तीय पहलुओं के लिए डिजिटल अंतर्संबंध) बनाने के लिए सक्षमता उपलब्ध कराती है.
इन तत्वों के साथ अन्य नये ‘ऑन टैप’ बैंकिंग लाइसेंस, पूंजी-समृद्ध एनबीएफसी और स्वस्थ मौजूदा संस्थाएं हैं, जो क्रेडिट की आपूर्ति का ध्यान रख सकती हैं. इन सभी संस्थाओं के पास देनदारी के लिए नयी पूंजी भी आयेगी. इसके अतिरिक्त, मुद्रा कार्यक्रम को भी इस व्यवस्था के साथ डिजिटल तौर पर जोड़ा जा सकता है.
मांग के लिहाज से देखें, तो ऐसे लाखों व्यापार और उपभोक्ता हैं, जिन्हें क्रेडिट की जरूरत है. जैम की सर्वव्यापकता से वितरण व्यवस्था समुचित है, जिसके जरिये लेनदार क्रेडिट तक पहुंच सकते हैं और अपने स्मार्ट फोन पर लेन-देन कर सकते हैं. भारत स्टैक से लेन-देन में कागज, आने-जाने और नगदी की जरूरत नहीं होगी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बड़ी मात्रा में डिजिटल डेटा के ऑनलाइन होने से भुगतान गतिविधि, सोशल मीडिया, कर, बिल भुगतान आदि के भारत स्टैक के इलेक्ट्रॉनिक कंसेंट आर्किटेक्चर के जरिये लेनदार ऋण लेने के लिए अपने डेटा का संग्रह कर अपना ट्रैक रिकॉर्ड दिखाने में सक्षम हो सकेंगे.
इन बातों को ताजातरीन मशीन लर्निंग अल्गॉरिदम के साथ जोड़ने से देनदारी से संबंधित उच्चस्तरीय निर्णय लिये जा सकेंगे, जिनका पूरा लेखा-जोखा देखा जा सकता है. इसे बहुत शीघ्र हासिल किया जा सकता है.
पिछले दशक में हमने देखा है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म को संबंधित लाभों से जोड़ने से तेज वृद्धि हो सकती है; स्मार्टफोन, आधार, व्हाट्स एप्प या यूट्यूब जैसी चीजों के उपयोगकर्ता कुछ ही सालों में एक अरब तक पहुंच गये.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पीछे ऋण के लोकतांत्रिकरण का सिद्धांत था. और, जैसा कि गांधी जी ने 1939 में कहा था, ‘सिद्धांत आखिरकार एक सिद्धांत है और व्यवहार में इसे उतारने की हमारी अक्षमता के कारण किसी भी स्थिति में इसका परित्याग नहीं किया जा सकता है. हमें इसे हासिल करने की कोशिश करते रहना चाहिए, और यह कोशिश सचेत, सोच-समझ तथा मेहनत के साथ की जानी चाहिए.’
नये आधार विधेयक का तुरंत नतीजा एक डिजिटल देनदारी आर्किटेक्चर बनाने की योग्यता है, जो पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली के रणनीतिक विकल्प के रूप में काम करेगी, देश को संभावित लंबी गतिहीनता के खतरे से मुक्त कराने की योग्यता है, और ऋण को लोकतांत्रिक बनाने की योग्यता है. अगर थोड़ी आकांक्षा हो, और कुछ मेहनत किया जाये, तो भारतीय वित्त पहले जैसा नहीं रह पायेगा.
(साभार: टाइम्स ऑफ इंडिया)
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