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होली विशेष : बुरा न मानो आजादी है

होली यानी रंगों का त्योहार. रंग-राग, आनंद-उमंग और प्रेम-भाईचारा का सामाजिक उत्सव. पुराने गिले-शिकवे भूल कर एक-दूसरे को गले लगाने का दिन. यह संदेश देता है कि रंग है, तभी तो जीवन सरस है. होली में एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगा कर हम भी अपने जीवन को सरस बनाते हैं. प्रभात खबर ने भी होली के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2016 8:25 AM
होली यानी रंगों का त्योहार. रंग-राग, आनंद-उमंग और प्रेम-भाईचारा का सामाजिक उत्सव. पुराने गिले-शिकवे भूल कर एक-दूसरे को गले लगाने का दिन. यह संदेश देता है कि रंग है, तभी तो जीवन सरस है. होली में एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगा कर हम भी अपने जीवन को सरस बनाते हैं.
प्रभात खबर ने भी होली के मौके पर आपके जीवन में हंसी-खुशी और राग-रंग के कुछ पल संजोने की कोशिश की है. होली विशेष में इस बार पढ़िए, प्रसिद्ध व्यंगकार आलोक पुराणिक की देश के वर्तमान हालात पर चुटीली रचना, इस शर्त्त के साथ कि कोई इसका बुरा न माने. साथ में वरिष्ठ पत्रकार निराला की रचना, जिसमें मां के नाम लिखी चिट्ठी के बहाने उन्होंने होली के सामाजिक सरोकार को रेखांकित किया है. अलग-अलग पीढ़ियों के कवियों की होली पर कविताएं भी. चूंकि हिंदी के नये युग की मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा का जन्म दिन भी होली के दिन है, तो उन्हें पुण्यस्मरण करते हुए उनके बारे में जानकारी और उनकी एक कविता.
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
अबीर-गुलाल से आम आदमी की जिंदगी में भले ही रंग आता हो, नेताओं की जिंदगी में नहीं. कुरसी से बड़ी रंगत कुछ नहीं है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत को देख लीजिए. चेहरे का रंग उड़ा हुआ है, भले ही चीफ मिनिस्टर बंगले के बाहर कितने ही रंग उड़ रहे हों. चीफ मिनिस्टर की कुरसी बचेगी या नहीं, यह सवाल आफत किये हुए है. आम आदमी इस मुल्क में खुश होने के बहाने एक गुझिया में ढूंढ़ लेता है. गुझिया तो दूर की बात है. टमाटर दस रुपये किलो सस्ते मिल जायें, तो ही मौज आ जाती है, होली हो या होली ना हो.
वैसे मुल्क बहुत गजब है यह. होली के आसपास ऐसी खबरें आने लगती हैं कि कनफ्यूजन होने लगता है कि ये खबर होलियाना है या सीरियसाना है. महाराष्ट्र से खबर आ रही है कि एक जमाने में सब्जी बेचनेवाले छगन भुजबल 800 करोड़ रुपये के घोटाले में धरे गये हैं. अब इसे सब्जी-कृषि अर्थव्यवस्था का विकास माना जाये या नेतागिरी का पतन, यह होलियाना नहीं सीरियसाना सवाल है.
वक्त विकट है. भारतीय परेशान हैं-अरहर के भावों से, पाकिस्तानी परेशान हैं यह सोचकर भारत से कितने लोग पाकिस्तान भेजे जायेंगे. उसे पाकिस्तान चले जाना चाहिए, इसे पाकिस्तान चले जाना चाहिए-टाइप बयानों को देखकर पाकिस्तानी सिर्फ परेशान नहीं हैं, उम्मीदवान भी हैं कि कई लोग सीरियसली यह भी कह दें कि विराट कोहली को भी पाकिस्तान चले जाना चाहिए. पाकिस्तान टीम को अब शाहिद अफरीदी से नहीं, विराट कोहली से उम्मीदें हैं.
उम्मीदें भारत माता को भी बहुत हैं. सिर्फ जय से काम नहीं चलता, अरहर की दाल चाहिए होती है. भारत माता की जय की भरपूर सप्लाई हो, पर अरहर की दाल की सही रेट पर पर्याप्त सप्लाई भी होनी चाहिए. घर की माता की भी सिर्फ जय बोलकर काम नहीं चलता. माता कहती है, बेटा राशन-पानी का जुगाड़ कर ले. दाल-रोटी की सैटिंग जरुरी है. गृह मंत्रालय में राज्यमंत्री रिजीजू कह रहे हैं कि नास्त्रेदामस बता गये थे कि मोदी इतने सन से उस सन तक पीएम रहेंगे. नास्त्रेदामस साहब सब बता गये हैं, तो यह भी बता गये होंगे कि अरहर के भाव कब-कब बढ़ जायेंगे. नास्त्रेदामस साहब ऐसी जनोपयोगी जानकारियां दे गये हों, तो प्लीज पब्लिक को बतायी जाये. रिजीजू समेत तमाम नास्त्रेदामस-एक्सपर्ट लोग नोट करें. नास्त्रेदामस ने सिर्फ मोदी के बारे नहीं बताया होगा, अरहर और प्याज के बारे में बताया होगा.
मुल्क कमाल का है. वैसे, अभिव्यक्ति की भरपूर स्वतंत्रता है. कोई भी खड़ा होकर कुछ भी बोल सकता है. किसी हिस्से को किसी भी देश का हिस्सा घोषित कर सकता है. कुछ विद्वान कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा घोषित करते हैं. मेरे एक जानकार हैं, जो अपने इलाके- धतूरा गांव को अमेरिका का हिस्सा घोषित करना चाहते हैं. उनका बेटा मार मचाये हुए है कि अमेरिका जाना है.
अब वह अपने बेटे को समझा रहे हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, हम धतूरा गांव को अमेरिका का हिस्सा घोषित कर सकते हैं. अमेरिका चाहे इनकार कर दे कि नहीं, हमें धतूरागांव नहीं चाहिए. पर ना, बेट्टे, अमेरिका तुझे लेना पड़ेगा. हमारी स्वतंत्रता भी कुछ चीज है ना. लेना पड़ेगा. मेरे एक और जानकार अपने गांव के ग्रामीण बैंक को स्विस बैंक घोषित करना चाहते हैं, कुछ नहीं तो स्टेटस ही बढ़ेगा.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कई आयाम हैं. वस्त्र-मुक्ति अभियान की वरिष्ठ कार्यकर्ता सन्नी लियोनीजी ने मांग की है कि देह-भाषा की अभिव्यक्ति की फुल आजादी होनी चाहिए. नंगूपना भी अभिव्यक्ति की आजादी ही है, सिर्फ सन्नीजी के लिए नहीं, कई नेताओँ के लिए भी.
मैडम तुसाद मोम-मूर्ति म्यूजियम में नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के जाने की तैयारी हो गयी है. मोदी-केजरीवाल जैसे परमानेंट स्पीकर मोड के बंदों को साइलेंट मोड में डालने का काम मैडम तुसाद का म्यूजियम ही कर सके. पर, मैडम तुसाद मोम-मूर्ति म्यूजियम में बहुत बरस पहले ही क्लेम मनमोहन सिंह का इस आधार पर बनता था कि मोदी और केजरीवाल तो मोम म्यूजियम के अंदर और बाहर अलग-अलग टाइप के लगेंगे, पर मनमोहन सिंह बतौर मोम-मूर्ति और नॉर्मल पर्सन एक ही मोड में रहे और रहते हैं-साइलेंट.
होली सबसे ज्यादा कायदे से मनायी है विजय माल्या ने. तमाम बैंकों की रकम फूंक-तापकर निकल लिये हैं, यह ना भी कहा-बुरा ना मानो होली है. यह कहने की जरुरत भी नहीं है. बुरा मान कर हो क्या रहा है. मुंबई की एक लेडी ने ट्रेन का दस रुपये का टिकट नहीं लिया. टिकटविहीन यात्रा करने के बाद भी माल्याजोरी उसने यह की कि टिकट चेकरों को हड़काया कि मुझसे टिकटविहीन ट्रेवल का फाइन मांग रहे हो, और माल्या को जाने दिया. माल्या कईयों के लिए आदर्श बनकर उभरे हैं. दिल्ली की बसों में कई टिकटविहीन खुद को स्टाफ बताकर यात्रा करते हैं. अब माल्या बताकर भी यात्रा कर पायेंगे.
माल्या खुद को सर्वहारा घोषित कर सकते हैं कि उनके पास अब उनकी आईपीएल टीम के विराट कोहली के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे वह बाजार में बेच पायें. हां, हर बंदे के पास नाइजीरिया से आनेवाली वह इ-मेल भी होगी, जिसमें अरबों रुपये देने की बात कही जाती है.
वैसे जिन बेवकूफ बैंकरों ने माल्या को लोन दिया है, वो नाइजीरिया की इ-मेल को गिरवी रखकर भी 8000-10000 करोड़ रुपये दे सकते हैं. मुल्क में सिर्फ अभिव्यक्ति की ही आजादी नहीं है, माल्या को लोन देने और उसके बाद भी लगातार दिये ही जाने की भी भरपूर आजादी है. बुरा ना मानो होली है नहीं, अब बुरा ना मानो आजादी है-बोलिए.
आधुनिक हिंदी युग की मीरा महादेवी वर्मा
पुण्यस्मरण
प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को होली के दिन यूपी के फर्रूखाबाद जिले मे हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई. इन्होने स्नातक की शिक्षा जबलपुर से पूरी की. इनकी शादी 1914 में डॉ स्वरुप नरेन वर्मा के साथ नौ साल की उम्र मे हुईमहादेवी जी इस मायने में भी नजीर हैं कि उन्होंने शादी के बाद पढ़ाई जारी रखा और फिर प्रसिद्ध लेखिका बनीं. महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद वह समाज-सेवा में जुट गयीं. सत्याग्रह आंदोलन के दौरान वह अक्सर कवि सम्मेलनों में जाकर कविताएं सुनाती थीं. 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए करने के पश्चात आपने नारी शिक्षा प्रसार के मंतव्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की व उसकी प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत रहीं. मासिक पत्रिका चांद का अवैतनिक संपादन किया. इन्हें आधुनिक युग की मीरा पुकारा जाता है. उनकी रचनाओं में वेदना और करुणा की प्रचुरता है.
महादेवी जी ने हिंदी गद्य को भी कविता जैसे मधुरता प्रधान की. ‘यामा और दीपशिखा’ पर उन्हें हिंदी साहित्य का बड़ा सम्मान भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. भारत सरकार ने 1956 में उन्हें ‘पदमभूषण’ से समान्नित किया. इनकी रचनाओं की खासियत यह है कि उसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों की प्रचुरता है. महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद मे हुआ.
जो तुम आ जाते एक बार » महादेवी वर्मा
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार.
प्रमुख रचनाएं
संस्मरण : अतीत के चलचित्र, मेरा परिवार, मेरे बचपन के दिन.
काव्य संग्रह : नीहार (1933), रश्मि (1932), नीरजा (1933), सहगीत (1935), दीपशिखा (1942), यामा
सम्मान
1979 : साहित्य अकादेमी फेलोशिप
1982 : ज्ञानपीठ पुरस्कार
1956 : पद्मभूषण
1988 : पद्म विभूषण

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