अबू बकर अल-बगदादी, सबसे खूंखार आतंकवादी
दुनिया में आतंकवाद का अस्तित्व लंबे समय से रहा है और शायद ही कोई ऐसा देश है, जिसने आतंक के दंश को न झेला हो, पर अबू बकर अल-बगदादी के नेतृत्व में इसलामिक स्टेट ने आतंक को जो बर्बर और नृशंस स्वरूप दिया है, उसकी कोई अन्य मिसाल इतिहास में नहीं है. इराक और सीरिया […]
दुनिया में आतंकवाद का अस्तित्व लंबे समय से रहा है और शायद ही कोई ऐसा देश है, जिसने आतंक के दंश को न झेला हो, पर अबू बकर अल-बगदादी के नेतृत्व में इसलामिक स्टेट ने आतंक को जो बर्बर और नृशंस स्वरूप दिया है, उसकी कोई अन्य मिसाल इतिहास में नहीं है.
इराक और सीरिया से शुरू हुआ तबाही का यह सफर अब यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कई देशों में पहुंच चुका है. इस विशेष आयोजन में जानते हैं इसलामिक स्टेट के मुखिया अल-बगदादी और उसके प्रमुख दहशतगर्दों के बारे में…
आतंकवाद के इतिहास में इसलामिक स्टेट का नाम सबसे भयावह, बर्बर और हिंसक संगठन के रूप में स्थापित हो चुका है. पिछले दो वर्षों की अवधि में इस जेहादी समूह ने बड़ी तेजी के साथ इराक और सीरिया के बड़े भूभाग पर कब्जा कर अपना शासन स्थापित किया है तथा यूरोप, अफ्रीका और एशिया के विभिन्न इलाकों में आतंकी हमलों को अंजाम दिया है.
अमेरीकी नेतृत्व में नाटो, रूस, इराक और सीरिया की सेनाओं के हमलों के बावजूद इसलामिक स्टेट की ताकत बहुत कमजोर होती दिखाई नहीं देती. हालांकि, पिछले दिनों इस आतंकी संगठन को कई इलाकों में पीछे हटना पड़ा है, पर उसने कुछ नये क्षेत्रों को भी अपने कब्जे में लिया है. उसकी जेहादी विचारधारा के प्रभाव में कई अन्य जेहादी गिरोहों ने उसकी अधीनता स्वीकार की है तथा यूरोप और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में हुई अनेक आतंकी घटनाएं यह संकेत करती हैं कि इसलामिक स्टेट बहुत लंबे समय तक एक बड़ी समस्या के रूप में हमारे सामने मौजूद रह सकता है.
इसलामिक स्टेट के विस्तार के पीछे उसके मुखिया और स्वयंभू खलीफा अबू बकर अल-बगदादी का प्रभावी नेतृत्व है. उसे कुशल मध्यस्थ, कठोर नेता, और धार्मिक विद्वान के रूप में देखा जाता है. उसकी आभिजात्य पारवारिक पृष्ठभूमि भी उसके असर का बड़ा कारण है. ऐसा नेतृत्व शायद ही किसी अन्य वैश्विक आतंकी संगठन के पास कभी रहा है.
प्रारंभिक जीवन
बगदादी का जन्म वर्ष 1971 में इराक के समार्रा शहर में एक निम्न मध्यवर्गीय सुन्नी परिवार में हुआ था. धार्मिक आचार-व्यवहार के कारण समाज में उसके परिवार की बड़ी प्रतिष्ठा थी तथा उसके वंश का यह भी दावा था कि पैगंबर मोहम्मद उनके पूर्वज थे.
बचपन और किशोरावस्था में ही बगदादी का रुझान कुरान और धार्मिक कानूनों की तरफ था. उसने इसलामिक अध्ययन को ही अपनी शिक्षा के विषय के रूप में चुना. बगदादी को कई नामों से जाना जाता है, जैसे- अबू दुआ, अबू बकर अल-बगदादी अल-हुसैनी अल-कुरैशी, अमीर अल-मोमिमीन, खलीफा इब्राहिम, शेख बगदादी आदि. उसका असली नाम इब्राहिम अवाद इब्राहिम अल-बदरी है.
उसने 1996 में बगदाद विश्वविद्यालय से इसलामिक अध्ययन में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की तथा सद्दाम विश्वविद्यालय से 1999 में कुरान के अध्ययन में परास्नातक तथा 2007 में पीएचडी की उपाधि हासिल की.
कई रिपोर्टों के अनुसार उसकी शिक्षा बगदाद के इसलामिक विश्वविद्यालय या बगदादविश्वविद्यालय में हुई. पढ़ाई के दौरान वह 2004 तक बगदाद के पश्चिमी छोर पर स्थित तोबची मोहल्ले में रहा जहां उसके साथ उसकी दो पत्नियां और छह बच्चे भी रहते थे. बगदादी स्थानीय मस्जिद में बच्चों को कुरान पढ़ना सिखाता था. स्थानीय स्तर पर वह फुटबॉल का भी लोकप्रिय खिलाड़ी था.
िहंसक जेहाद से जुड़ाव
स्नातक की पढ़ाई के दौरान बगदादी के एक रिश्तेदार ने उसे मुसलिम ब्रदरहुड नामक संस्था से जोड़ा जहां उसकी घनिष्ठता कुछ उग्र कट्टरपंथियों से हुई. उनके प्रभाव में बगदादी ने 2000 में सालाफी जेहादी विचारधारा को अपना लिया. वर्ष 2003 में इराक पर अमेरिकी नेतृत्व में हुए हमले के कुछ महीनों के भीतर ही एक उग्रवादी संगठन जैश-ए-अहल अल-सुन्ना व अल-जामा बनाने में सहयोगी बना.
फरवरी, 2004 में अमेरिकी सेना ने फलुजा में बगदादी को पकड़ लिया और वह कैंप बक्का में 10 महीनों तक हिरासत में रखा गया. इस दौरान वह पूरी तरह से धार्मिक मामलों, नमाज पढ़ने, शुक्रवार को भाषण देने और कैदियों को पढ़ाने के काम में लगा रहा.
अमेरिकी कैदखाने में जेहादियों के साथ उनके विरोधी सद्दाम हुसैन के समर्थक भी बंद थे. बगदादी ने अपने संवाद कौशल से उनमें से अनेक लोगों के साथ अच्छा संबंध कायम किया. दिसंबर, 2004 में रिहा होने के बाद उन लोगों से उसका संपर्क बना रहा. जेल से बाहर आने पर बगदादी ने इराक में सक्रिय अल-कायदा के एक प्रवक्ता से मिला. तब इस संगठन का प्रमुख जॉर्डन का नागरिक अबू मुसाब अल-जरकावी था.
इस संगठन ने बगदादी को प्रचार के लिए सीरिया की राजधानी दमिश्क भेजा. अगले साल यानी 2006 के जून महीने में एक अमेरिकी हवाई हमले में जरकावी की मौत हो गयी. इराकी अल कायदा के नये नेता मिस्री नागरिक अबू अयूब अल-मस्री ने संगठन का नाम बदल कर इसलामिक स्टेट इन इराक कर दिया, पर उसकी निष्ठा अल-कायदा के साथ बनी रही. इस संगठन को पहले मुजाहिद्दीन शुरा काउंसिल के नाम से जाना जाता था.
अपनी धार्मिक समझ और इसलामिक स्टेट बनानेवालों विदेशियों और इराकियों के बीच दूरी को पाटने के कौशल के कारण संगठन में बगदादी का कद उत्तरोत्तर ऊंचा होता गया. कुछ समय बाद उसे शरिया कमिटी का सुपरवाइजर तथा 11-सदस्यीय शुरा काउंसिल का सदस्य बनाया गया जिसकी जिम्मेवारी इसलामिक स्टेट के नये अमीर अबू उमर अल-बगदादी को सलाह देना था.
कुछ समय बाद उसे को-ऑर्डिनेशन कमिटी में भी शामिल कर लिया गया. इस कमिटी का काम इराक में सक्रिय कमांडरों के साथ संपर्क रखना था. वर्ष 2010 के अप्रैल महीने में इसलामिक स्टेट के संस्थापक और अमीर की मौतों के बाद शुरा काउंसिल ने अबू बकर अल-बगदादी को नया अमीर चुन लिया. बगदादी के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य संगठन को फिर से खड़ा करना था जो अमेरिकी सेना के हमलों से तबाह हो चुका था.
इसलािमक स्टेट का जन्म
सीरिया में 2011 में शुरू हुई अस्थिरता का फायदा उठाने के मकसद से बगदादी ने अपने एक सीरियाई सहयोगी को इसलामिक स्टेट की भूमिगत शाखा स्थापित करने का आदेश दिया जिसे बाद में अल-नुसरा फ्रंट के नाम से जाना गया. वर्ष 2011 के चार अक्तूबर को अमेरिकी विदेश विभाग ने बगदादी को वैश्विक आतंकी घोषित करते हुए उसके मारे जाने या गिरफ्तारी पर 10 मिलियन डॉलर का ईनाम रखा. इससे अधिक ईनाम सिर्फ अल-कायदा के प्रमुख अल-जवाहिरी के सर पर है. अल-जवाहिरी पर 25 मिलियन डॉलर का ईनाम है.
सीरिया में सक्रिय अल-नुसरा फ्रंट का नेता अबू मोहम्मद अल-जुलानी था. उसकी राय थी कि राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ लड़ रहे सुन्नी विद्रोहियों का साथ दिया जाये. बगदादी इससे सहमत नहीं था और वह इसलामिक स्टेट की स्वतंत्र भूमिका के पक्ष में था. वर्ष 2013 के शुरू में बगदादी ने घोषणा की कि अल-नुसरा इसलामिक स्टेट इन इराक का हिस्सा था और उसे इसलामिक स्टेट का नाम बदल कर इसलामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवांत कर दिया.
अल-कायदा से अलगाव
अल-कायदा के प्रमुख एमन अल-जवाहिरी ने बगदादी को आदेश दिया कि वह अल-नुसरा को स्वायत्तता दे, पर बगदादी ने इसे मानने से मना कर दिया. फरवरी, 2014 में अल-जवाहिरी ने इसलामिक स्टेट को अल-कायदा से बाहर कर दिया. बगदादी समर्थक लड़ाकों ने अल-नुसरा के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी और पूर्वी सीरिया में अपना दबदबा स्थापित कर कठोर धार्मिक कानून लागू कर दिया. इसके बाद इसलामिक स्टेट के लड़ाके पश्चिमी इराक में अपनी स्थिति मजबूत करने में लग गये.
इराक में अपनी बढ़त को कायम रखते हुए इसलामिक स्टेट ने जून, 2014 में इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल पर कब्जा कर लिया. इस संगठन के एक प्रवक्ता ने 29 जून को खिलाफत की स्थापना की घोषणा कर दी और संगठन को इसलामिक स्टेट का औपचारिक नाम दे दिया गया. कुछ दिनों के बाद बगदादी ने स्थानीय मसजिद में भाषण दिया तथा खुद के खलीफा होने का ऐलान कर दिया. मीडिया में कई बार बगदादी के मारे जाने और घायल होने की खबरें आती रही हैं जो बिल्कुल बेबुनियाद है. बगदादी अभी भी इसलामिक स्टेट का मुखिया है और उसके आदेश पर उसके लड़ाके कहर ढा रहे हैं.
पारिवारिक जीवन
बगदादी के निजी या पारिवारिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार उसकी तीन पत्नियां हैं, जिनमें दो इराकी और एक सीरियाई है. इराकी गृह मंत्रालय का कहना है कि उसकी दो पत्नियां- आस्मा फौजी मोहम्मद अल-दुलैमी और इस्रा रजब महल अल-कैसी- हैं और दोनों इराकी नागरिक हैं. अन्य रिपोर्टों में सजा अल-दुलैमी को भी उसकी पत्नी कहा गया है और उसे बहुत प्रभावशाली माना जाता है.
इसलामिक स्टेट के हथियार
इसलामिक स्टेट 100 से अधिक प्रकार के हथियार और गोला-बारूदों का इस्तेमाल करता है जिन्हें कम-से-कम 25 अलग-अलग देशों से लाया गया है.
संगठन के पास ज्यादातर हथियार इराकी सेना के ठिकानों पर कब्जे से हासिल हुए हैं. इसके अलावा इसलामिक स्टेट को लड़ाई के मैदान में, अवैध व्यापार तथा इराक और सीरिया में अन्य गुटों के लोगों के जुड़ने से भी हथियार मिले हैं.
जून, 2014 में इराक के दूसरे बड़े शहर मोसूल पर कब्जे से इसलामिक स्टेट को अत्याधुनिक अंतरराष्ट्रीय हथियारों का भारी जखीरा मिला था. इनमें अमेरिकी साजो-सामान और सैन्य वाहन भी हैं. इसलामिक स्टेट ने इनका खुला प्रदर्शन सोशल मीडिया पर किया था.
पिछले एक दशक से अधिक समय में 30 से अधिक देशों ने इराक को हथियारों की आपूर्ति की है और इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्य शामिल हैं. इनमें से अधिकांश इसलामिक स्टेट और अन्य उग्रवादी गुटों के हाथ लग गये.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 15 अगस्त, 2014 को एक प्रस्ताव पारित कर इसलामिक स्टेट और अल-नुसरा फ्रंट पर हथियारों के लेन-देन पर लगी रोक को फिर से रेखांकित किया था.
इसलामिक स्टेट के मुख्य नेता
अम्र अल-अब्सी : सीरिया के होम्स में 2011 से सक्रिय अल-अब्सी इसलामिक स्टेट के सर्वोच्च सलाहकार समिति शूरा काउंसिल का सदस्य और संगठन के मीडिया विंग का मुखिया था. इस महीने के शुरू में सीरिया एक अलेप्पो इलाके में रूसी और सीरियाई सेनाओं के संयुक्त हमले में अल-अब्सी के मारे जाने की खबर आयी थी. वर्ष 2011 में सीरिया में राष्ट्रपति बश अल-असद के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत के समय अल-अब्सी जेल में था. विद्रोह को शांत कराने की कोशिश में उसे अन्य कई अल-कायदा से जुड़े कट्टरपंथियों और जेहादियों को रिहा किया गया था. लेकिन हिरासत से बाहर निकलते ही अल-अब्सी ने अपने बड़े भाई फिरास अल-अब्सी के नेतृत्व में अल-कायदा की टुकड़ी के साथ लड़ने लगा.
दोनों भाईयों ने 2012 में मजलिस शूरा दौलत अल-इस्लाम नामक संगठन बनाया जो अल-कायदा समर्थित जबात अल-नुसरा के प्रति समर्पित था. अल-नुसरा इसलामिक स्टेट इन इराक का गुप्त सीरियाई इकाई था. लेकिन अल-अब्सी के संगठन का अल-नुसरा से मतभेद बढ़ने लगा. यह वही समय था जब अल-कायदा और इसलामिक स्टेट के संबंध भी खराब होने लगे थे. उसी वर्ष फिरास के मारे जाने के बाद अम्र अल-अब्सी ने गिरोह की कमान संभाली और बगदादी के इसलामिक स्टेट के साथ पूरी तरह जुड़ गया.
अम्र अल-अब्सी ने विरोधियों को बर्बरता से मारने और प्रचार-तंत्र को वैश्विक रूप देने के साथ विदेशियों के अपहरण की वारदातों के कारण सीरिया के इसलामिक स्टेट के कब्जेवाले इलाके में अपना वर्चस्व बनाया और उसे बगदादी ने अमीर का खिताब दिया.
माना जाता है कि उसके मारे जाने से सीरिया में इसलामिक स्टेट को भारी नुकसान हुआ है, क्योंकि सीरिया में संगठन के प्रसार में अल-अब्सी की सबसे प्रमुख भूमिका रही थी.
अबू मोहम्मद अल-अदनानी : ताहा सुभी फालहा उर्फ अल-अदनानी इसलामिक स्टेट का आधिकारिक प्रवक्ता और सीरिया में संगठन का एक प्रमुख नेता है. माना जाता है कि अदनानी पहली खेप के विदेशी लड़ाकों में शामिल था जिन्होंने इराक में अमेरिकी और नाटो सेनाओं को चुनौती दी थी.
मई, 2005 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया और पांच साल हिरासत में रहने के बाद 2010 में रिहा किया गया था. एक इराकी खुफिया अधिकारी ने 2012 के दिसंबर में बताया था कि अल-अदनानी के तहा अल-बंशी, अबू बकर अल-खताब, अबू सादेक अल-रावी आदि कई अन्य नाम हैं. वर्ष 2014 के 15 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने इसे अल-कायदा के आतंकियों की सूची में और 18 अगस्त को अमेरिकी विदेश विभाग ने वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध किया था. उसी वर्ष 22 सितंबर को अदनानी ने इसलामिक स्टेट के समर्थकों को पहली बार गैर-इस्लामी यूरोपीयों को मारने का निर्देश दिया था.
अबू मुसलिम अल-तुर्कमानी- फादेल अहमद अब्दुल्लाह अल-हियाली उर्फ अल-तुर्कमानी इसलामिक स्टेट के इराकी इलाकों का गवर्नर था. मोसूल में 18 अगस्त, 2015 को एक अमेरिकी हमले में मारे जाने तक यह संगठन के सैन्य परिषद् का मुखिया और अल-बगदादी का नायब था.
इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में सेवारत अल-तुर्कनामी खुफिया इकाई में काम करता था. अमेरिकी हमले के बाद उसे सेना से निकाल दिया गया और वह अमेरीकी और नाटो सेनाओं के विरुद्ध लड़ रहे सुन्नी विद्रोहियों से जा मिला. इसलामिक स्टेट के अन्य वरिष्ठ लड़ाकों की तरह इसने भी कुछ समय अमेरिकी हिरासत में बिताया था. इराक में इसलामिक स्टेट के विस्तार के लिए रणनीति बनाने के साथ अल-तुर्कमानी विजित और अविजित क्षेत्रों में संगठन के प्रशासन का ढांचा भी तैयार करता था.
अबू अली अल-अनबारी : अल-तुर्कमानी के साथ अल-अनबारी भी अल-बगदादी का नायब है और यह सीरिया में इसलामिक स्टेट के इलाकों का गवर्नर है. अल-अनबारी संगठन के अत्यंत महत्वपूर्ण इकाई सुरक्षा परिषद् का प्रमुख भी है. जानकारों के अनुसार अल-बगदादी बिना अल-अनबारी के सलाह के कोई भी निर्णय नहीं लेता है.
वर्ष 2003 में सद्दाम हुसैन की सत्ता के पतन के समय तक वह सेना में बड़ा अधिकारी औरसत्तारुढ़ बाथ पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता था. इसके बाद वह कुछ समय के लिए सुन्नी उग्रवादी संगठन अंसार अल-इसलाम के साथ रहा और फिर जरकावी के नेतृत्ववाले अल-कायदा में शामिल हो गया. बाद में उसके जरकावी से भी मतभेद पैदा हो गये. कई सालों तक अल-अनबारी की गतिविधियों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
वर्ष 2014 में इसलामिक स्टेट के इराकी सैन्य प्रमुख अब्दुलरहमान अल-बिलावी के घर पर छापे में मिले दस्तावेजों से इसके सीरिया में सक्रिय होने का पता चला था. पिछले साल नवंबर और दिसंबर में इसके मारे जाने की गलत खबरें छपी थीं, पर अल-अनबारी अभी भी जीवित है और संभवतः मोसूल में उसका इलाज चल रहा है.
उमर अल-शिशानी : इस वर्ष मार्च में सीरिया के राक्का में एक अमेरीकी हमले में कथित तौर पर मारा गया अल-शिशानी इसलामिक स्टेट के सबसे चर्चित चेहरों में था. मूल रूप से चेचन्या का जेहादी यह आतंकी इसलामिक स्टेट के कई प्रचार वीडियो में देखा जा सकता है. वह विदेशी मीडिया को साक्षात्कार भी देता था. मई, 2013 में इसे संगठन के उत्तरी कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया था और इसके जिम्मे सीरिया की लड़ाईयों के लिए रणनीति बनाने का काम था.
अल-शिशानी उन गिने-चुने इसलामिक स्टेट के लड़ाकों में था, जिनकी सीधी पहुंच बगदादी और उसके नायबों से थी. अनुभवी लड़ाका होने तथा लोकप्रियता के कारण इसे बहुत प्रभावी माना जाता था. इसलामिक स्टेट ने इसके मरने की अभी ताक औपचारिक पुष्टि नहीं की है.