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मैन ऑन द मिशन, इसलिए ‘विराट’ हैं कोहली

हर परिस्थिति में बल्ले से निरंतर उगलते रन, विकेटों के बीच धावक की रफ्तार से दौड़ और फील्डिंग में गजब की चुस्ती-फुर्ती के साथ विराट कोहली टी-20 में दुनिया के नंबर एक, वन-डे में नंबर दो बल्लेबाज हैं. विश्व कप सरीखे किसी टूर्नामेंट में शायद ही कभी किसी अकेले खिलाड़ी ने दबाव से अविचलित रहते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 3, 2016 1:52 AM
हर परिस्थिति में बल्ले से निरंतर उगलते रन, विकेटों के बीच धावक की रफ्तार से दौड़ और फील्डिंग में गजब की चुस्ती-फुर्ती के साथ विराट कोहली टी-20 में दुनिया के नंबर एक, वन-डे में नंबर दो बल्लेबाज हैं. विश्व कप सरीखे किसी टूर्नामेंट में शायद ही कभी किसी अकेले खिलाड़ी ने दबाव से अविचलित रहते हुए इस तरह से पूरी टीम का बोझ अपने कंधे पर उठा कर उसे कप से सिर्फ दो कदम की दूरी तक पहुंचाया होगा. मैदान में मैच को बना कर उसे फिनिश करने का कोहली का अंदाज तो निराला है ही, मैदान से बाहर की दुनिया का विराट भी सबसे अलग है.
बिंदास लाइफस्टाइल, सोशल नेटवर्किंग साइट पर निरंतर सक्रियता और हर परिस्थिति के प्रति संजीदा टिप्पणी विराट को शख्सीयतों की भीड़ से अलग खड़े करती है. मैदान के भीतर विराट कोहली के लिए मौजूद संभावनाओं और चुनौतियों के साथ-साथ मैदान सेे बाहर की उनकी निराली दुनिया पर नजर डाल रहा है आज का संडे स्पेशल.
गावस्कर और सचिन के बाद अब विराट युग
विराट कोहली आज के भारत की पहचान हैं. कोहली ‘क्रिकेटिंग शॉट’ से अपनी पारी को संवारते हैं- यह गावस्कर के दौर की विरासत है. कोहली विरोधी खेमे को उसके पाले में आगे बढ़ कर चुनौती देते हैं- यह सचिन के दौर की देन है.
इसके बावजूद कोहली तब के भारत और आज के भारत के बीच के फर्क की तरह ही गावस्कर और तेंडुलकर से जुदा हैं. कोहली पूरी तरह से बिंदास और बेखौफ हैं, जो मैच बनाना भी जानते हैं और मैच जिताना भी… कोहली को चुनौतियां पसंद हैं और अगर वह आनेवाले वर्षों में चुनौतियों का बखूबी सामना कर सके, तो विश्व क्रिकेट के आसमान का एक ऐसा ध्रुवतारा साबित होंगे, जो अंतराष्ट्रीय मानचित्र पर भारतीय संभावनाओं को नये सिरे से रोशन करेगा.
अभिषेक दुबे
वरिष्ठ खेल पत्रकार
सुनील गावस्कर 1970-1980 में भारत का प्रतिबिंब थे. 1980 के दशक का भारत कई मुश्किल चुनौतियों के बीच अंतराष्ट्रीय मानचित्र पर अपनी पहचान बनाने को बेताब था. गावस्कर के सीधे बल्ले ने वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के आतिशी तेज गेंदबाजों का डट कर सामना किया और भारतीय क्रिकेट को नयी पहचान दिलायी. चुनौतीपूर्ण विकेट पर बिना हेलमेट पहने पारी की शुरुआत कर उन्होंने भारतीय क्रिकेट को नया हौसला दिया.
लेकिन, तब भारत के सामने आक्रमण से पहले, बचाव की चुनौती थी. गावस्कर ने पिच पर पैर जमा कर भारत के लिए ना जाने कितने मैच बचाये. हालांकि जीत गिनती भर में मिली.
सचिन तेंडुलकर 1990-2000 के भारत की सोच के परिचायक थे. वह भारत, जो लाइसेंस-कोटा-परमिट राज की बेड़ियों से मुक्त होकर भरोसा पा रहा था और बिंदास हो रहा था. सचिन मैदान पर आगे बढ़ कर दुनिया के चोटी के गेंदबाजों की बॉल सीमा रेखा के बाहर उछाल देते. उनका आक्रमण अहसास दिलाता था कि भारत को अपनी ‘डिफेन्स’ पर भरोसा हो चुका है. सचिन हर मैच को जीतने की मंशा से मैदान पर जाते, लेकिन बेहतरीन आगाज को अंजाम तक ले जाने वाले फॉर्मूले का इंतजार भारतीय क्रिकेट को फिर भी था.
विराट कोहली आज के भारत की पहचान हैं. कोहली ‘क्रिकेटिंग शॉट’ से अपनी पारी को संवारते हैं- यह गावस्कर के दौर की विरासत है. कोहली विरोधी खेमे को उसके पाले में आगे बढ़ कर चुनौती देते हैं- यह सचिन के दौर की देन है. इसके बावजूद कोहली तब के भारत और आज के भारत के बीच के फर्क की तरह ही गावस्कर और तेंडुलकर से जुदा हैं. कोहली पूरी तरह से बिंदास और बेखौफ हैं, जो मैच बनाना भी जानते हैं और मैच जिताना भी.
खुद महानायक बनने की राह पर
खेल के मैदान पर अपनी पहचान बनाने को आतुर हर युवा अपने महानायक को तलाशते हुए आता है. विराट कोहली भारतीय ड्रेसिंग रूम में सचिन तेंडुलकर को तलाशते हुए आये थे. जब 2011 का विश्व कप जीतने के बाद टीम इंडिया के खिलाड़ी मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में विजय मार्च में मशगूल थे, तभी कोहली ने अपने महानायक सचिन को कंधे पर बिठा लिया था और मैदान के चक्कर लगाने लगे थे. जब एक पत्रकार ने बाद में उनसे इस बारे में पूछा, तब कोहली का जवाब था- ‘जिस क्रिकेटर ने कई साल तक भारतीय क्रिकेट की जिम्मेवारी को अपने कंधे पर उठाया, क्या मैं उस महान शख्स को कुछ पल के लिए अपने कंधे पर नहीं बिठा सकता!’
लेकिन, 2011 के विश्व कप के कोहली अब खुद महानायक बनने की राह पर अग्रसर हैं. 2016 के टी-20 वर्ल्ड कप के बाद तो बीते दौर के महानायक भी कोहली में अतीत के महानायक को तेजी से तलाश रहे हैं. कपिलदेव कहते हैं- ‘मैं कोहली फेनोमेनन का आदर करता हूं. मैं विराट को जब देखता हूं, क्रिकेट के अबतक के दिग्गज- विवियन रिचर्ड्स, सचिन तेंडुलकर, ब्रायन लारा और रिकी पोंटिंग- से उन्हें एक कदम आगे पाता हूं.
मैं बहस के लिए तैयार हूं, लेकिन मौजूदा दौर मैं विराट क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी हैं. जिस तरह से उनमें बिना किसी चील-चिल्लाहट के अपने खेल को बदलने की क्षमता है, उससे वे सर्वकालीन महानतम खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर हैं.’
भारतीय क्रिकेट के भगवान कहलानेवाले गावस्कर की मानें तो, ‘अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए आपको टैलेंट चाहिए, लेकिन महान खिलाड़ी बनने के लिए आपको कोहली जैसा टेम्परामेंट चाहिए.’
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासीर हुसैन ने जहां उन्हें एबी डीविलियर्स के साथ मौजूदा दौर का सबसे बेहतरीन बल्लेबाज बताया है, वहीं सौरव गांगुली की नजरों में विराट मौजूदा दौर में तीनों ही फॉर्मेट में नंबर एक हैं.
लेकिन, इन सबमें मुझे सबसे अहम बयान संजय मांजरेकर का लगता है- ‘विराट की कामयाबी से मुझे कोई हैरानी नहीं होती, लेकिन उनकी एक नाकामी मुझे हैरान कर देता है!’ विराट कितनी लंबी रेस का घोड़ा हैं, इसे समझने के लिए इस बयान से आगे जाने की जरूरत नहीं, लेकिन विराट कोहली किसी के ‘क्लोन’ न होकर, सबसे अलग विराट कोहली हैं, इसे समझे जाने की जरूरत है.
कोहली का अनोखा फॉर्मूला
विराट कोहली की बल्लेबाजी में सचिन तेंडुलकर की तरह का नैसर्गिक जीनियस नहीं है, राहुल द्रविड़ की तरह जबरदस्त कॉपीबुक तकनीक नहीं है, धौनी की तरह विस्फोटक शॉट के गोले नहीं हैं और न ही वेरी-वेरी स्पेशल लक्ष्मण की तरह कलात्मकता है, लेकिन एक खास मायने में विराट इन सबसे आगे हैं, और इनके पूरक भी हैं. विराट कोहली सचिन का हल्ला बोल फॉर्मूले को तो अपनाते हैं, लेकिन धैर्य के साथ मैच को न सिर्फ बनाने, बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने का भी माद्दा रखते हैं.
विराट, राहुल द्रविड़ की तरह पारी को संवारना जानते हैं, लेकिन उनसे आगे बढ़ कर जरूरत पड़ने पर चौथे और पांचवें गियर पर बल्लेबाजी करना भी जानते हैं. विराट , वीवीएस लक्ष्मण की तरह मुश्किल चुनौतियों के सामने स्वाभाविक और सहज लगते हैं, तो कप्तान महेंद्र सिह धौनी की तरह कूल भी लगते हैं. लक्ष्मण टेस्ट में और धौनी वनडे तथा टी-20 के लाजवाब फिनिशर हैं, लेकिन कोहली मैच को खुद बना कर उसे फिनिश करने का अनोखा फॉर्मूला तेजी से इजाद कर रहे हैं.
संभावनाओं का संसार, तो चुनौतियों का पहाड़ भीअहम यह भी है कि सचिन-द्रविड़-लक्ष्मण-धौनी जैसे दिग्गजों की तरह ‘कंप्लीटेड प्रोजेक्ट’ की तरह नहीं, बल्कि अब भी ‘वर्क इन प्रोग्रेस’ यानी ‘काम चालू है’ के स्तर पर हैं. क्रिकेटर कोहली के पास इससमय संभावनाओं का अंतहीन संसार है, तो चुनौतियों का बड़ा पहाड़ भी.
संभावनाओं का संसार इस मायने में कि अगर वह इसी गति से आगे बढ़ते रहे, तो न जाने कहां जाकर रुकेंगे. चुनौतियों का पहाड़ इस मायने में कि टेस्ट क्रिकेट में उन्हें अभी लंबी दूरी तय करनी है- ब्रायन लारा की तरह मैराथन पारियों, राहुल द्रविड़ की तरह मैच जितानेवाली ऐतिहासिक पारियों से लेकर सचिन तेंडुलकर की तरह साल-दर-साल असाधारण निरंतरता और वीवीएस लक्ष्मण जैसा टेस्ट क्रिकेट में लक्ष्य का पीछा करने का हुनर सीखना है.
हालांकि कोहली को चुनौतियां पसंद हैं और अगर वह आनेवाले वर्षों में इन चुनौतियों का बखूबी सामना कर सके, तो विश्व क्रिकेट के आसमान का एक ऐसा ध्रुवतारा साबित होंगे, जो अंतराष्ट्रीय मानचित्र पर भारतीय संभावनाओं को नये सिरे से रोशन करेगा. 1970-80 में सुनील गावस्कर ने जिस रीले रेस की शुरुआत की, 1990-2000 में सचिन तेंडुलकर ने जिसे मजबूती से आगे बढ़ाया, उसमें बेटान को फिनिशिंग लाइन तक ले जाने की जिम्मेवारी अब कोहली के विराट कंधों पर है.
बातें कही-अनकही साथियों का चिकू
विराट कोहली को ड्रेसिंग रूम में साथी खिलाड़ी ‘चिकू’ के नाम से बुलाते हैं. दरअसल, बचपन में विराट अपने गुलगुले गाल और छोटे बाल के लिए मशहूर थे. उनके बचपन के एक कोच इस वजह से उनकी तुलना ‘चंपक’ के एक किरदार चिकू से करने लगे और जल्द ही विराट को सभी इसी नाम से बुलाने लगे.
ब्रांड कोहली
फॉर्मूला वन के लुईस हैमिल्टन के बाद विराट कोहली को इस दौर का सबसे अधिक ‘मार्केटेबल एथलीट’ चुना गया. कोहली ने पहले ही टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र धौनी को एन्डॉर्समेंट के मामले में पीछे छोड़ दिया है. स्पोर्ट्स बाजार को करीब से समझनेवालों की मानें, तो टी-20 वर्ल्ड कप के बाद ब्रांड कोहली का भाव और मजबूत हो जायेगा.
विवियन का आईना
वेस्ट इंडीज के महानतम क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स ने एक बार कहा था कि विराट कोहली में उन्हें खुद की झलक दिखती है. अहम यह भी है कि सचिन तेंडुलकर के बारे में डॉन ब्रेडमैन ने ऐसे ही शब्द कहे थे.
पसंदीदा व्यंजन
चिकन बिरयानी, शी फूड और मां के हाथों की बनी खीर कोहली के पसंदीदा व्यंजन हैं.
मैदान से बाहर भी अंदाज सबसे जुदा
‘विराट कोहली बल्लेबाजी तो ठीक करता है, लेकिन दिल्ली के इस नौजवान को सचिन-राहुल जैसे खिलाड़ियों से सीखना चाहिए. विराट जल्दी आपा खो देते हैं.’ भारतीय क्रिकेट में जब कोहली युगदस्तक दे रहा था, तब क्रिकेट के जानकारों और पत्रकारों की जुबान से प्रेस बॉक्स में अक्सर ये बातें सुनने को मिलती थी.
कोहली का बिंदास अंदाज कई लोगों को डराता और आलोचना करने की एक वजह देता. आखिर, बीती पीढ़ियों ने ‘बल्ले से जवाब दो, जुबान से नहीं’ को तहेदिल से क्रिकेट का अभिन्न उसूल जो माना. सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण और धौनी इस उसूल के परिचायक थे. हां, स्टीव वॉ को टॉस के लिए इंतजार कराने से लेकर, लॉर्ड्स की बालकनी में सरेआम टी-शर्ट खोल कर उसे फहरानेवाले सौरव गांगुली, थोड़ा लीक से हट कर थे,
लेकिन कोहली इससे कई कदम आगे, एक नयी पहचान लेकर आये.कोहली विरोधी खिलाड़ी को उसी की भाषा में जवाब देते, कीर्तिमान या लक्ष्य तक पहुंचने पर अपने चिर-परिचित अंदाज में जश्न मनाते, पत्रकार और प्रशंसकों से बिना लाग लपेट की बातें करते और मैदान से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में जुबानी वार होने पर करारा जवाब देने से नहीं चूकते. कोहली अपनी प्रेमिका अनुष्का शर्मा के साथ खुल्लम-खुल्ला प्यार करते और प्यार का इजहार भी. भारतीय टीम में कोहली के एक साथी खिलाड़ी ने ऐसी ही एक घटना का जिक्र करते हुए कहा- ‘विदेशों में एक टेस्ट सीरीज में हम एक बार बुरी तरह से पिट गये थे और प्रेस में इस वजह से अनुष्का शर्मा का नाम खूब उछला. कोई दूसरा युवा खिलाड़ी होता, तो देश में वापसी पर प्रेमिका के साथ आने से डरता, लेकिन विराट न सिर्फ अनुष्का के साथ आये, बल्कि कैमरा सामने आते ही दिलेरी से उसका हाथ पकड़ते हुए कार में बैठ गये. शायद इसलिए कि वह हम सबसे अलग हैं. विराट कोहली का हाव-भाव और रहन-सहन का तरीका भी कई लोगों को खटकता था.
हर शौक को जीनेवाला शख्स, लेकिन लक्ष्य के लिए है तपस्वी
विराट कोहली की बाहें और बाकी शरीर ‘टैटू’ से भरे हुए हैं, जिसमें गोल्डन ड्रैगन और समुराई तो आज उनके सिग्नेचर मार्क बन गये हैं. इंस्टाग्राम पर उनके 25 लाख से अधिक फॉलोअर हैं और हर एक प्रशंसक उनके पोस्ट और फोटोग्रॉफ का बेसब्री से इंतजार करता है.
फेसबुक और ट्विटर पर वह अपने बे-धड़क और बिंदास पोस्ट से अपनी बात को फैंस के सामने रखते हैं. ऐसे में कई लोग विरोधाभास देखते हैं- क्रिकेट के मैदान के बाहर मौजूदा दौर का एक ऐसा नौजवान, जो अपने हर शौक को पूरा कर जीता है, तो दूसरी ओर, अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए एकाग्रता से जुटा एक तपस्वी की तरह है. क्रिकेट के मैदान में लक्ष्य का पीछा करने में माहिर ठंडे दिमागवाला रन मशीन, जिससे मुकाम तक पहुंचते ही भावनाओं का गुब्बार निकल पड़ता है. इस विरोधाभास को समझने के लिए कोहली के अतीत में झांकने की जरूरत है.
कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने 2011 विश्वकप जीतने के बाद कहा था- ‘कप्तान के तौर पर खिलाड़ियों से अलग-अलग तरीके से पेश आना होता है. कई खिलाड़ियों में ऊर्जा भरनी पड़ती है, तो विराट कोहली जैसे खिलाड़ी में जबरदस्त ऊर्जा को सही दिशा देने की चुनौती होती है.’
मौजूदा टी-20 वर्ल्ड कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोहली की यादगार पारी के बाद धौनी ने कहा-‘कोहली ने अपने खेल में आश्चर्यजनक निखार लाया है. चुनौतियों के सामने उनका रवैया अन्य खिलाड़ियों से उन्हें अलग कर देता है.’
हर चुनौती को मौके में बदलनेवाला खिलाड़ी
साफ तौर पर, कप्तान ने अपने इस बेमिसाल खिलाड़ी को बीते पांच साल में एक लंबा फासला तय करते हुए देखा है और संभावनाओं की कतार से आगे बढ़ कर एक अलग लीक पर पहुंचते हुए देखा है. कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने कोहली को इस विरोधाभास को एक सकारात्मक दिशा में ले जाते हुए भी देखा और समझा है. कोहली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर में मैदान पर कदम रखते ही विराट छलांग लगायी.
अंडर-19 टीम के कप्तान, टीम इंडिया के स्टार बल्लेबाज और विजय माल्या की बंगलौर रॉयल चैलेंजर्स टीम के कोहिनूर, सोशल मीडिया पर जबरदस्त हिट से लेकर विश्व के 100 सबसे बेहतरीन ड्रेस्ड पुरुषों की सूची में शुमार- जल्द ही इस नौजवान के सामने पूरी दुनिया थी. यहां से वह या तो शिखर पर जा सकते थे या फिर सिफर पर. लेकिन, वह शिखर की ओर अग्रसर है, क्योंकि वह ‘मैन ऑन मिशन’ है. विराट कोहली के कैरेक्टर का यही पहलू उनकी सबसे बड़ी ताकत है और उसे समझने के लिए उनके अतीत में जाकर झांकने की जरूरत है.
मानो पिता के सपने को पूरा करने में जुट गया हो
दिसंबर, 2006 की एक रात. दिल्ली और कर्नाटक के बीच रणजी ट्रॉफी का एक अहम मैच. दिल्ली को फॉलो-ऑन से बचाने का पूरा दारोमदार विराट कोहली और उनके साथी पुनीत बिष्ट पर है. कोहली 40 नाबाद रन बनाने के बाद सोने गये और तभी रात के तीन बजे उन्हें सूचना मिलती है कि कुछ महीने से बीमार चल रहे उनके पिता नहीं रहे. 18 साल का ये नौजवान, अगले दिन 90 रनों की पारी खेल कर टीम को फॉलो-ऑन से बचाता है और फिर पिता के अंतिम संस्कार के लिए जाता है.
उस लम्हें को याद कर कोहली की मां कहती हैं-‘विराट उस दिन के बाद से पूरी तरह से बदल गया. रातो-रात वह एक परिपक्व इंसान बन गया. वह हर मैच को गंभीरता से लेने लगा, जैसे की हर मैच मे उसकी सांस अटकी हो. ऐसा लगने लगा जैसे वो अपने पिता के सपने को पूरा करने में जुट गया हो, जो अब उसका सपना भी हो गया था.’
सोशल मीडिया पर सकारात्मक सोच
विराट की शख्सियत का यह पहलू समय-समय पर सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट से जाहिर होता है. विराट कोहली अपने एक पोस्ट में अमेरिकी बॉस्केटबाल के मशहूर कोच वेल्वानो के शब्दों का हवाला देते हुए कहते हैं- ‘मेरे पिता ने मुझे वह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया, जो कोई किसी दूसरे को दे सकता है, उन्होंने मुझ पर भरोसा किया.’
एक और पोस्ट लिखते हैं- ‘मुझे चांद-तारों में अपना नाम नहीं चाहिए, मैं अपने पिता की आंखों में मशहूर हूं… आप जो ताकत आसमान से मुझे देते हो, यहां पर नकारात्मक सोच रखनेवाले लोग नहीं समझेंगे. जिंदगी कभी आसान नहीं थी और न रहेगी. इससे सबसे अधिक निकाल लेना हमारे हाथों में है. और मुझे पूरा भरोसा है कि मैं जो कर रहा हूं, आपको गर्व होगा.’
इन तमाम संकेतों को साफ करने के लिए एक और पोस्ट काफी है. इंस्टाग्राम पर विराट अपने पिता के साथ बचपन की एक तसवीर डालते हैं और लिखते हैं- ‘9 साल, हर साल, हर दिन और हर मिनट मेरी एक ही ख्वाहिश कि आप हमें छोड़ कर नहीं जा सकते.’
जिंदगी के थपेड़ों ने मजबूत किये कदम
कोहली अपने पिता और अपने सपने को जी रहे हैं. यह सपना उन्हें सोने नहीं देता, नेट्स पर घंटों पसीना बहाने को मजबूर करता है और अपनी फिटनेस को बनाये रखने के लिए जबरदस्त अनुशासन का पालन करने को उत्साहित करता है.
वह अपनी मंजिल को लेकर इतने एकाग्र हैं कि तमाम सुख-सुविधाएं उन्हें भटकने नहीं देती. बचपन से मिले थपेड़ों ने उन्हें इतना मजबूत बना दिया है कि अब वो हर चुनौती को एक मौके की तरह देखते हैं. यही वह कड़ी है, जो विराट कोहली को उनके हीरो सचिन से जोड़ती है. वर्ल्ड कप-1996 के बीच में सचिन के पिता का निधन हो गया.
सचिन भारत आये, लेकिन अपने कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए वापस लौट गये. सचिन ने केन्या के खिलाफ सेंचुरी लगा कर पिता को श्रद्धांजलि दी. तेंडुलकर और कोहली के बीच का ये तार वानखेड़े स्टेडियम में सचिन तेंदुलकर के आखिरी टेस्ट मैच में दिखा. मैच के बाद कोहली ने अपने हीरो को अपने पिता द्वारा दिया गया धागा दिया, जिन्हें वो अपना ‘लकी चार्म’ मानते थे- दोनों की ही आखों मे आंसू थे.
सेमीफाइनल में हार के बाद विराट ने साथी खिलाड़ियों और प्रशंसकों के लिए इंस्टाग्राम पर लिखा- ‘हम कभी जीतते हैं, कभी हारते हैं, लेकिन कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिन्हें हम अपने साथ संजो कर रखते हैं. हम अपनी गलतियों से सीख कर रोज बेहतर करने की कोशिश करते हैं. इस टूर्नामेंट को यादगार बनाने के लिए सभी का धन्यवाद…’

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