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क्यों नहीं रुकेगी डायबिटीज की यह सुनामी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की थीम – बीट डायबिटीज आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है. ‘बीट डायबिटीज’ का थीम 2016 के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चुना है. युवा तेजी से इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि पहले जहां गांवों की अपेक्षा शहरों में इस बीमारी का प्रवाह ज्यादा था, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 7, 2016 8:15 AM
विश्व स्वास्थ्य संगठन की थीम – बीट डायबिटीज
आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है. ‘बीट डायबिटीज’ का थीम 2016 के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चुना है. युवा तेजी से इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि पहले जहां गांवों की अपेक्षा शहरों में इस बीमारी का प्रवाह ज्यादा था, वहीं अब यह फासला तेजी से सिमटा है. सवाल है कि आखिर एेसा क्यों. पढ़ें यह रिपोर्ट.
क्यों नहीं थम रहा है ‘डायबिटीज’ का भयानक प्रवाह? ‘बीट डायबिटीज’ का थीम 2016 के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चुना है. चिंता जायज है, क्योंकि भारत में इस समय करीब छह करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. सबसे ज्यादा हैरानी की बात है कि 20 से 35 साल के युवा बड़ी तेजी से ग्रसित हो रहे हैं. एक दशक पहले डायबिटीज टाइप ‘टू’ के नये मरीज 40 से 50 साल में ज्यादा मिलते थे, मगर अब युवा पीढ़ी की यह बीमारी रीढ़ तोड़ रही है. गांवों अब शहरों में डायबिटीज होने की दर एक दशक पहले कुछ और थी.
शहरों में 12 प्रतिशत और गांवों में दो से पांच प्रतिशत की दर से बीमारी का प्रवाह था. मगर यह फासला अब तेजी से सिमट रहा है. डायबिटीज होने की दर गांवों में कम होने का फंडा यह था कि ग्रामीण लोग कम कैलोरीयुक्त भोजन करते हैं और खूब शारीरिक मेहनत करते हैं. ठीक उल्टे शहरों में फास्ट फूड कल्चर और स्कूटर कल्चर के कारण मोटापा बढ़ता है और यह इंसुलिन की नाकामी द्वारा डायबिटीज ले आता है. मगर, आज यह फंडा भी फेल होता जा रहा है.
शहरों में 25 से 30 प्रतिशत लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं, तो ग्रामीण क्षेत्रों में 12 से 18 प्रतिशत तक. ग्रामीण क्षेत्रों से जब 20 से 30 साल के युवा( 300 से 500 मिलीग्राम ब्लड सुगर) मेरे पास आते हैं और अपने गरीबी के कारण हाई कैलोरी भोजन से दूर होते हैं और शारीरिक क्रम का भी अभाव वर्तमान थ्योरी का थोथापान मुझे परेशान करता है.
बीमारी का यह प्रवाह केवल शारीरिक श्रम की कमी और हाई कैलोरी डायट के द्वारा नहीं हो रहा है. कहीं न कहीं कोई कोई अौर बात है, जो हम पकड़ नहीं पा रहे हैं. मेरे इस संदेह को नयी दिशा तब मिली, जब यूरोपीयन सोसाइटी के डायबिटीज सम्मेलन में डॉ जिरोम रूजीन को ‘वियेना’ में मैंने इस प्रश्न को उठाते सुना. उनका यह स्पष्ट मानना है कि डायबिटीज की यह सुनामी केवल हाई कैलोरी डायट और शारीरिक श्रम की कमी से नहीं होरही है.
उनका रिसर्च साफ दिखा रहा है कि ‘परसिसटेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटैंट्स’ जो निरंतर हम खाद्य-पदार्थ के द्वारा बचपन से खा रहे हैं. वे ‘इंडोक्राइन डिसरप्टर’ होते हैं. वे हमारी पैंक्रियाज ग्रंथि को फॉल्स सिगनल भेजते हैं और इंसुलिन को स्रावित नहीं होने देते. खाद्य पदार्थों के उत्पादन में जो रसायन, कीटनाशक जैसे डीडीटी, हेप्टाक्लोर, डायएलड्रीन, मीरेक्स डायोक्सिन आदि प्रयुक्त हो रहे हैं. वे ‘डायबिटीज’ पैदा कर रहे हैं. हर जगह कूड़ा-कर्कट को हम जला देते हैं. यह हमारी आम समस्या है,मगर इससे भारी मात्रा में ‘ऑर्गेनिक पॉल्यूटैंट्स’ वातावारण में समाहित होता है.
एक बार बन जाने पर ये सदियों तक जल और खाद्य पदार्थों में घुला रहता है. फूड़ सेफ्टी स्टैंडर्ड ऑथरिटी ऑफ इंडिया के हाल में जो शोध आये हैं वे चिंताजनक हैं. अगर एक रसायन ‘हेप्टाक्लोर’ की बात करें, तो यह बैगन में सेफ लिमिट से 840 गुना ज्यादा, गोभी में 95 गुना ज्यादा, चावल में 1324 गुना ज्यादा, केला में 54 गुना ज्यादा, सेव में 140 गुना ज्यादा अौर भिंडी में 55 गुना ज्यादा पाया गया है.
मांस, दूध, अंडा, डेयरी के पदार्थ सब के सब इन ‘ऑर्गेनिक पॉल्यूटैंट्स’ से ओत-प्रोत हैं. यह मात्रा क्या गांव, क्या कस्बा और क्या शहर सर्वत्र व्याप्त है. हमारी पैंक्रियाज ग्रंथि इन खतरनाक रसायनों से रोज लोथ-पोथ हो रही है. कोई आश्चर्य नहीं कि बीमारी का यह खतरनाक प्रवाह नहीं रुकनेवाला है!!
क्या मेडिकल साइंस के पास प्रमाण है?
वर्ष 2006 के बाद से अब तक सैकड़ों रिसर्च मेडिकल जर्नलों में छपे हैं. एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया के वार्षिक सम्मेलन में, जो जनवरी 16 में हैदराबाद में हुआ, मैंने इस समस्या पर गेस्ट-लेक्चर दिया था. एपिडोमियोलॉजिक, क्रास-सेक्शनल एवं अतिमहत्वपूर्ण लांगिच्यूडिनल सैकड़ों शोधों में यह बात साफ उभर कर आ गयी है कि केमिकलों के शरीर में लगातार जमा होने से डायबिटीज उत्पन्न होने लगता है. डॉ जिरोम रूजीन ने जर्मनी में एक आंख खोलने वाली ‘एनिमल स्टडी’ की है. उन्होंने समुद्री मछली सॉलमन का तेल निकाल अौर उसके पोषक तत्वों को रखते हुए दो ग्रुप के खरगोशों पर एक शोध किया. एक ग्रुप के खरगोशों में मछली का शुद्ध किया हुआ तेल (जिसमें ‘ऑर्गेनिक पॉल्यूटैंट्स’ हटा दिये गये थे) एक महीने तक बिना शुद्ध किया हुआ मछली का तेल दिया गया.
एक महीने बाद जब खरगोशों की जांच की गयी तो अशुद्ध तेल वाले ग्रुप में डायबिटीज की अवस्था पैदा हो गयी, जबकि शुद्ध किये गये तेल खाने वाले ग्रुप के खरगोशों में न तो इंसुलिन की नाकामी हुई, न मोटापा हुआ और न ही सूजन की अवस्था. इस शोध ने मेडिकल साइंस को एक नया आयाम दिया है और यह हमारे कम-उम्र के लोगों में होने वाले डायबिटीज को एक्सप्लेन करता है. कनाडा में भी एक महत्वपूर्ण शोध हुआ है और यह बताता है कि केवल मोटापा से डायबिटीज नहीं होता. जब शरीर में इन ‘ऑर्गेनिक पॉल्यूटैंट्स’ ज्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं तभी इस बैकग्राउंड पर डायबिटीज होने की संभावना बढ़ती है.
रोज एक घंटा घूमने और सही भोजन लेने वाले डायबिटीज से बच सकते हैं. मगर यह हमेशा सच नहीं होता, खास कर आज के दूषित माहौल में. समय आ गया है कि केवल सुगर और लेजीनेस की थ्योरी से आगे हम इन ‘परसिसटेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटैंट्स से बचाव के तरीकों पर सोचें. अाज के माहौल में ये दूषित खाद्य पदार्थ एक ‘भारी’ और नया ‘रिस्क फैक्टर’ हैं.
अब ढेकी की कूटी हुई चावल, शुद्ध घानी का तेल और अनपॉलिश्ड दाल कहां मिलेगी. बिना उर्वरक और कीटनाशक के इस्तेमाल से पैदा की गयी सब्जी और फल कहां मिलेंगे. यदि नहीं, तो फिर इस महामारी और विकृत चेहरे को देखने के लिए तैयार रहिए. आलसी रहने का मौसम है, पिज्जा-बर्गर की मेहरबानी है और नयी आपदा में ये प्लास्टिक और ऑर्गेनिक पॉल्यूटैंट्स हैं.
बड़ा काम होगा, यदि इस साल हम इस नये रिस्क फैक्टर से निपटने की ओर कुछ सोचें. कुछ नहीं तो जो सब्जी और फल घर लाते हैं उसे रनिंग वाटर में तीन मिनट तक धोयें. फलों और सब्जियों के छिलके पूर्णत: हटा दें. वैसे फलों की टोह में निकलिये जिसमें रसायनों के प्रयोग की संभावना कम है. जैसे – अमरुद, पपीता, आदि. ऑर्गेनिक पदार्थों की उपलब्धता शायद एक सपना ही है. अभी तो यह बात धीरे-धीरे साफ हुई है कि इन रसायनों से बचने की जरूरत उतनी ही है, जितनी रोज एक घंटा घूमने और सही भोजन लेने की है. अगर इस नये ‘रिस्क फैक्टर’ पर ध्यान नहीं दिया गया, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन का ‘बीट डायबिटीज’ का सपना अधूरा ही रहेगा.
(लेखक एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया के झारखंड चैप्टर के चेयरमैन हैं.)

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