एक करोड़ पेड़ लगानेवाले धरतीपुत्र
तेलंगाना की हजारों मील भूमि को हरा-भरा बना चुके हैं दरिपल्ली रमैया यह कहानी है सच्चे पर्यावरणप्रेमी, 68 वर्षीय दरिपल्ली रमैया की, जो पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जेब में बीज और साइकिल पर पौधे रख कर तेलंगाना के खम्मम जिले में रोज मीलों लंबा सफर तय करते हैं. इन्होंने अपना पूरा जीवन एक […]
तेलंगाना की हजारों मील भूमि को हरा-भरा बना चुके हैं दरिपल्ली रमैया
यह कहानी है सच्चे पर्यावरणप्रेमी, 68 वर्षीय दरिपल्ली रमैया की, जो पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जेब में बीज और साइकिल पर पौधे रख कर तेलंगाना के खम्मम जिले में रोज मीलों लंबा सफर तय करते हैं.
इन्होंने अपना पूरा जीवन एक ही लक्ष्य के पीछे लगा दिया, यह लक्ष्य था – ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना और उन्हें संरक्षित करना. खम्मम के स्थानीय लोगों के अनुसार, रमैया ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रकृति प्रेम की बदौलत एक करोड़ से भी ज्यादा पेड़ लगा कर एक नयी कहानी लिख डाली है और अपने गांव व आस-पास के हजारों मील की वीरान भूमि को हरियाली की चादर से ढंक दिया है. सच में, यह उनकी इच्छाशक्ति ही है कि जहां आज के समय में पेड़ काटना पेड़ लगाने से ज्यादा जरूरी समझा जाने लगा हो, वहां एक व्यक्ति पेड़ों को बचाने के लिए जेब में बीज और साइकिल पर पौधे रख कर रोज मीलों सफर करता है़
दरअसल, हम ऐसे सभी कामों को बड़ी लगन के साथ करते हैं, जिनसे हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पैसा मिलनेवाला होता है, लेकिन रमैया उन विरले महान व्यक्तियों में हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन ऐसा काम करते हुए बिताया है, जिससे दूसरों और आने वाली पीढ़ियों की जिंदगी सुरक्षित हो सके.
यूं हुई शुरुआत : दरिपल्ली रमैया, तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले के एक छोटे से गांव के रहनेवाले हैं. पर्यावरण में आ रहे बदलाव, बढ़ते प्रदूषण और पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई से दरिपल्ली का मन हमेशा बेचैन रहता था. वह इस समस्या के समाधान के लिए कुछ करना चाहते थे.
तभी उनके मन में बड़े पैमाने पर पौधे लगाने का विचार आया. फिर क्या! वह रोज इसी सोच के साथ जेब में बीज और साइकिल पर पौधे रख कर जिले का लंबा सफर तय करते और जहां कहीं भी खाली भूमि दिखती, वहीं पौधे लगा देते. शुरुआत में उन्होंने ऐसा करके अपने गांव के पूर्व और पश्चिम दिशा में चार किलोमीटर के क्षेत्र को पेड़-पौधों से हरा-भरा कर दिया़ इसमें खास कर बेल, पीपल, कदंब और नीम के पेड़ हैं. इन पेड़ों की संख्या आज बढ़ कर तीन हजार से भी ज्यादा हो गयी है.
पौधों की देख-रेख भी : अपने लगाये पौधों को फलता-फूलता और बढ़ता देख कर दरिपल्ली रमैया के मन में यह काम बड़े पैमाने पर करने का विचार आया़ धीरे-धीरे वह अपना लक्ष्य आगे बढ़ाते हुए काम करते गये़ रमैया ने अपनी जिम्मेदारी सिर्फ पौधे लगाने तक ही सीमित नहीं रखी है, बल्कि वे खुद पेड़-पौधों की देख-रेख भी करते हैं. इस बारे में उनका कहना है, मेरा उद्देश्य पौधों को लगा देने भर से ही समाप्त नहीं होता, मेरा काम तो इनको एक छोटे पौधे से पेड़ बनाने के बाद ही पूरा होता है. रमैया की इस लगन का नतीजा यह हुआ कि आज की तारीख में इस जिले के हजारों हेक्टेयर भूमि में विस्तृत वन क्षेत्र विकसित हो चुका है, जिसे राज्य की सरकार ने संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया है़
पेड़-पौधों की गहरी जानकारी : दरिपल्ली रमैया पेड़-पौधे लगानेवाले एक जुनूनी व्यक्ति ही नहीं हैं, इसके अलावा वह वृक्षों का चलता-फिरता विश्वकोष हैं. वह पौधों के विभिन्न प्रजातियों, उनके इस्तेमाल और उससे होनेवाले लाभ आदि के बारे में गहरी जानकारी रखते हैं. इसके अलावा वे पेड़-पौधों से जुड़ी पुरानी किताबें खरीद कर उनका अध्ययन भी करते हैं. उनके पास तेलंगाना में पाये जाने वाले छह सौ से ज्यादा वृक्षों के बीजों का अनूठा संग्रह भी है.
हरियाली बचाने की अपील : वह पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कबाड़ के टिन प्लेटों पर वृक्ष बचाओ के नारे लिख कर पूरे खम्मम जिले में घूमते हैं. वह बड़े गर्व से किसी राजमुकुट की तरह टिन की एक टोपी भी पहनते हैं, जिससे वह लोगों को हरियाली बचाने की अपील करते हैं. अपने इस काम से उन्होंने राज्य भर में काफी लोकप्रियता और इज्जत कमायी है़ आज स्थिति यह है कि खम्मम जिले में आयोजित होनेवाला कोई भी सामाजिक कार्यक्रम दरिपल्ली रमैया की उपस्थिति के बगैर पूरा नहीं होता़ निस्वार्थ भाव से पेड़ लगाने के इस काम के लिए रमैया काे कई राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि इन पुरस्कारों से उन्हें जो भी राशि मिलती है, उसे वह पेड़-पौधे लगाने के काम में ही लगा देते हैं.
कहते हैं रमैया : इनसान उन सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ है, जो इस धरती को अपना घर मानता है. वह सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि वह विचार कर सकता है, चिंतन कर सकता है. किसी काम के सही और गलत होने में भेद कर सकता है. वह अपनी चट्टान जैसी इच्छाशक्ति से अपनी सोच को साकार कर सकता है. प्रकृति ने हमें पेड़-पौधों के रूप में बहुमूल्य उपहार दिया है इसलिए मानव जाति की समृद्धि के लिए यह हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम इन उपहारों को संजो कर रखें.