पनामा दस्तावेज: काले धन को लाल सलाम

विश्लेषण : 120 प्रमुख राजनेताओं, मंत्रियों, अफसरों के सामने आये नाम रविदत्त बाजपेयी ‘पनामा लीक्स’ की सूची में सबसे चौंकाने वाले नाम रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के हैं. साम्यवादी व्यवस्था की धरोहर के इन दोनों उत्तराधिकारियों का पूंजीवाद के विकृत रूप से इतना घनिष्ठ और कुटिल संबंध देखना अचंभित करता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 14, 2016 7:17 AM
an image

विश्लेषण : 120 प्रमुख राजनेताओं, मंत्रियों, अफसरों के सामने आये नाम

रविदत्त बाजपेयी

‘पनामा लीक्स’ की सूची में सबसे चौंकाने वाले नाम रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के हैं. साम्यवादी व्यवस्था की धरोहर के इन दोनों उत्तराधिकारियों का पूंजीवाद के विकृत रूप से इतना घनिष्ठ और कुटिल संबंध देखना अचंभित करता है. पनामा दस्तावेजों के खुलासे के बाद लगता है कि पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच सैद्धांतिक मतभेद महज दिखावे भर के लिए ही हैं. पढ़िए, एक टिप्पणी.

विश्व में पनामा नहर के लिए विख्यात इस देश से आजकल विदेशी बैंक खातों की सूचना की सुनामी आयी हुई है. पनामा की एक कानूनी सलाहकार कंपनी मॉसक फोंसेका के गोपनीय दस्तावेजों में दुनिया भर की मीडिया की सेंध लगाने के बाद दुनिया भर के कुछ 120 प्रमुख राजनेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों के अपने या उनके नजदीकी रिश्तेदारों के नाम सामने आये हैं. काले धन की इस सूची में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, मलयेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक, आइसलैंड के प्रधान मंत्री डेविड गुंलागसन , यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंक, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति मारिशियो मर्सी, दक्षिण अफ्रीका के जैकब जुमा जैसे नाम शामिल है.

जाहिर है इनमें से ऐसा कोई भी नाम नहीं है, जिसके बारे में जानकर लोगों को अचरज होगा, लेकिन जब इसके दायरे में ब्रितानी प्रधान मंत्री डेविड कैमरून, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नाम भी आये तो यह मानना होगा कि यह मामला बेहद गहरा और गंभीर है. पनामा दस्तावेजों के संदर्भ में यह कहना भी प्रासंगिक है कि अनेक देशों में विदेशी बैंक खाते रखना गैर कानूनी नहीं है, लेकिन जिस गोपनीय तरीके से अपनी आय बचाने के लिए इन खातों का उपयोग किया गया है, वह लगभग सभी देशों में अनुचित और अवैध है.

इस सूची में सबसे चौंकाने वाले नाम रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के हैं, साम्यवादी व्यवस्था की धरोहर के इन दोनों उत्तराधिकारियों का पूंजीवाद के विकृत रूप से इतना घनिष्ठ और कुटिल संबंध देखना अचंभित करता है. मॉसक फोंसेका के माध्यम से विदेशी बैंक खातों में निवेश करने वाले धनाढ्यों के 29 फीसदी खाताधारक तो सिर्फ चीन और हांगकांग स्थित कंपनियों के हैं. चीन के सर्वोच्च राजनीतिक समिति के तीन वर्तमान और पांच पूर्व सदस्यों के नजदीकी लोगों के नाम इस पनामा दस्तावेजों में सामने आये हैं.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक परंपरा के अनेक प्रमुख नाम और पीढ़ियां इन गुप्त खातों के माध्यम से अकूत धन छुपाने में शामिल दिखाई दे रही हैं. वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बहनोई देंग जियगोई ने वर्ष 2004 और 2009 में मॉसक फोंसेका के द्वारा तीन कंपनियां बनाकर गुप्त खातों में निवेश किया था. महत्वपूर्ण बात यह है कि, वर्ष 2012 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद देंग जियगोई की ये कंपनियां बंद कर दी गयी थीं.

चीन की वर्तमान, सात सदस्यीय शीर्ष नेतृत्व या पोलित ब्यूरो के अन्य दो सदस्य, उप प्रधान मंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचार प्रमुख के निकट संबंधी भी गुप्त विदेशी खातों से संबंधित हैं. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पुराने राजनेताओं में, 1987-1998 के दौरान चीन के प्रधानमंत्री रहे

ली पेंग की पुत्री और दामाद भी इन दस्तावेजों में उल्लिखित हैं. ली पेंग को 1989 में शियानमेन चौक पर आंदोलनरत छात्रों पर सैन्य कार्रवाई का सूत्रधार भी माना जाता है. इन सबसे बढ़कर साम्यवादी चीन के संस्थापक और वैश्विक साम्यवाद के प्रतीक चिह्न माओ त्से तुंग की पौत्री भी इन पनामा दस्तावेजों से संबंधित हैं. माओ त्से तुंग की पौत्री के पति चेन डोंगशेंग, वर्ष 2011 से ही ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में स्थापित एक विदेशी कंपनी के एकमात्र निदेशक और निवेशक हैं.

पनामा दस्तावेजों के खुलासे के बाद लगता है कि पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच सैद्धांतिक मतभेद महज दिखावे भर के लिए ही हैं. इस रहस्योद्घाटन के बाद जहां आइसलैंड के प्रधानमंत्री को अपना पद त्यागना पड़ा है, ब्रिटिश प्रधानमंत्री अपने इन खातों के बारे में सफाई देने को बाध्य हुए हुए हैं.

वहीं चीन और रूस के शासक इस खुलासे को अपने देश के विरुद्ध पश्चिमी देशों का षड़यंत्र बता रहे हैं. जहां एक ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चुनिंदा नवधनाढ्य लोगों, वस्तुतः अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के भ्रष्टाचार पर त्वरित कार्रवाई करते दिखाई पड़ते हैं, तो दूसरी ओर राष्ट्रपति पुतिन के एक अत्यंत नजदीकी मित्र के पास दो बिलियन डॉलर या लगभग 14,000 करोड़ भारतीय रुपये होने के समाचार मिलते हैं.

जहां एक ओर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने देश में भ्रष्टाचार उन्मूलन के आक्रामक और व्यापक अभियान के अगुआ बने हुए हैं तो दूसरी ओर उनके परिवार के लोग ही धन-शोधन या काला धन छुपाने में शामिल हैं. सोवियत रूस के विघटन के बाद से, साम्यवादी विचारधारा के समर्थक विद्वान नवउदारवाद और आवारा पूंजी को वैश्विक अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार बताते रहे हैं. गोपनीय विदेशी बैंक खातों में धन जमा करने के बाद ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति जिनपिंग स्वयं ही नवउदारवाद और आवारा पूंजी के बड़े भारी समर्थक हैं.

(लेखक चर्चित स्तंभकार हैं)

Exit mobile version