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एक जहरीला प्रश्न
रामयतन यादव राेज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ताें काे सुबह का नाश्ता करा रहे थे. कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथाें से बिस्कुट खा रहे थे. सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्ताें का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथ से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था. […]
रामयतन यादव
राेज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ताें काे सुबह का नाश्ता करा रहे थे. कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथाें से बिस्कुट खा रहे थे.
सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्ताें का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथ से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था.
उसी समय उनकी नाैकरानी का आठ वर्षीय बेटा भी वहां आकर खड़ा हाे गया और ललचाई दृष्टि से बिस्कुट खाते कुत्ताें काे देखने लगा.
सेठ ने उसे वहां से टरकाने के ख्याल से कुछ टुकड़े उसकी तरफ भी उछाल दिये. वह बिस्कुट के टुकड़ाें पर कुत्ताें की तरह ही झपटा और उन्हें मुंह में डाल कर पलक झपकते ही निगल गया.
वहां से कुछ दूर खड़ी उसकी मां सेठ की उदारता और अपने बेटे के साैभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी. कुछ देर बाद सेठ से आंख बचा कर उसने अपने बेटे काे पास बुलाया और स्नेह जताते हुए बाेली- ‘बेटा सेठ जी ने आज तुम्हें बिस्कुट खिलाया.’
‘हां मां…’ फिर कुछ साेचते हुए वह बाेला- ‘सेठ जी अपने कुत्ताें काे बहुत दुलारते हैं न मां?
‘हां बेटे बहुत दुलारते हैं…. जान से भी ज्यादा.’
‘ताे…. ताे मुझे भी उनका कुत्ता बना दाे ना मां.’
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