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धर्मनिरपेक्ष ब्लागर्स की हत्याएं, बांग्लादेश में कसता कट्टरपंथी शिकंजा

हमारा पड़ोसी बांग्लादेश संवैधानिक रूप से भले ही एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन पिछले एक-डेढ़ साल से कट्टरपंथी जिस तरह से धर्मनिरपेक्ष लेखकों, ब्लॉगरों और अल्पसंख्यकों को सुनियोजित तरीके से मौत के घाट उतार रहे हैं, उसे अब सिर्फ किसी देश के कानून-व्यवस्था का सामान्य आंतरिक मामला नहीं माना जा सकता. ऐसी कई हत्याओं की […]

हमारा पड़ोसी बांग्लादेश संवैधानिक रूप से भले ही एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन पिछले एक-डेढ़ साल से कट्टरपंथी जिस तरह से धर्मनिरपेक्ष लेखकों, ब्लॉगरों और अल्पसंख्यकों को सुनियोजित तरीके से मौत के घाट उतार रहे हैं, उसे अब सिर्फ किसी देश के कानून-व्यवस्था का सामान्य आंतरिक मामला नहीं माना जा सकता.

ऐसी कई हत्याओं की जिम्मेवारी ‘इसलामिक स्टेट’ और अन्य चरमपंथी संगठनों ने ली है. जाहिर है, इसके तार बांग्लादेश से बाहर तक फैले हैं. और अब खबर यह भी आ रही है कि आइएसआइएस अब बांग्लादेश के जरिये भारत में घुसपैठ की रणनीति पर काम कर रहा है. बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों की उभार के निहितार्थ और खतरों पर नजर डाल रहा है आज का इन दिनों.

डॉ रहीस सिंह

विदेश मामलों के जानकार

‘बांग्लादेश में सिर्फ पांच साल के लिए शरिया कानून लागू कर दिया जाये और मदीना कानून के तहत शासन किया जाये, तो मैं दावे के साथ कहता हूं कि पांच साल बाद कोई भी मुसलमान इसलामिक कानून की बात नहीं करेगा’- यह टिप्पणी उस बांग्लादेशी युवक नजीमुद्दीन समद की है, जिसकी जिंदगी इसी माह के पहले हफ्ते में कट्टरता की भेंट चढ़ गयी. बांग्लादेश ‘मुक्ति’ की लड़ाई लड़ कर वजूद में आया था, लेकिन आज उसके सामने यह सवाल शायद फिर से उठ रहा है कि ‘मुक्ति पाथे कौन?’ कट्टरपंथ जिस तरह से धर्मनिरपेक्ष लेखकों, ब्लॉगरों और अल्पसंख्यकों को मौत के घाट उतार रहा है, उससे यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि अब भी वहां समाज के प्रगतिशील लोग ‘मुक्त’ नहीं हैं.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इसे बांग्लादेश में कानून और व्यवस्था तक सीमित करके देखा जाये या फिर यह मान लिया जाये कि इसका फलक बहुत विस्तृत है? सही अर्थों में तो यह केवल कानून–व्यवस्था का सामान्य मामला नहीं है, बल्कि यह कट्टरपंथ का उभार है, जिसका असर दूर तक होना है. तो फिर, ये तथ्य कहीं इस बात की ओर इशारा तो नहीं कर रहे हैं कि एक राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश को परिभाषित करने का संघर्ष आज भी जारी है?

पिछले लगभग एक वर्ष में बांग्लादेश में सुनियोजित तरीके से अल्पसंख्यकों, धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगरों और विदेशियों को कट्टरपंथी हमलों के जरिये निशाना बनाया जा रहा है. इनमें नजीमुद्दीन समद, अविजीत रॉय, अनंत बिजॉय दास, वशीकुर रहमान, निलॉय चक्रवर्ती, अरेफिरन दीपान, राजीव हैदर, आसिफ मोहीउद्दीन जैसे प्रमुख नाम हैं.

इनमें में से कुछ की हत्या की जिम्मेवारी ‘इसलामिक स्टेट’ ने ली है और कुछ की अंसारुल्लाह बांग्ला टीम या अन्य चरमपंथी संगठन ने ली है. उल्लेखनीय है कि अंसारुल्लाह के तार अलकायदा और जमात–ए–इसलामी से जुड़े हैं. इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश में जो हत्याएं हो रही हैं, उनका निहितार्थ स्थानीय कारकों में नहीं, बल्कि बांग्लादेश से बाहर है.

हालांकि,बांग्लादेश संवैधानिक रूप से एक धर्मनिरेपक्ष राष्ट्र है, लेकिन कट्टरपंथी इसे इसलामिक देश बनाना चाहते हैं. सेक्युलर बुद्धिजीवी, लेखक–पत्रकार और समाजसेवी उनके कट्टरपंथ की आलोचना करते हैं या फिर वह इसलाम की कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ मुखर हैं, इसलिए कट्टरपंथियों द्वारा उनको निशाना बनाया जा रहा है. गौर करने की बात यह है कि 1971 के युद्ध अपराधों पर सुनवाई के लिए न्यायाधिकरण के गठन के बाद उदारवादियों और लोकतंत्रवादियों पर कट्टरपंथियों के हमले और तेज हो गये, क्योंकि जमात–ए–इसलामी के कई प्रमुख लोगों के खिलाफ न्यायाधिकरण ने सजा सुनायी.

सामान्यतया, बांग्लादेश की अवामी लीग सरकार धर्मनिरपेक्षता की तरफदार है, लेकिन कट्टरपंथी गुटों से निपटने में वह काफी शिथिल नजर आ रही है. मजे की बात यह है कि सरकार ने कट्टरपंथी इसलामवादियों के साथ–साथ कुछ सेक्युलर ब्लॉगरों और बुद्धिजीवियों को भी जेल में इसलिए बंद कर दिया ताकि वह ‘संतुलन’ बनाये रख सके और इसलामवादियों के गुस्से का शिकार न होना पड़े. हालांकि बांग्लादेश में इन हत्याओं, विशेषकर अविजित रॉय की हत्या के बाद जिस तरह से विरोध–प्रदर्शन हुए थे, उससे सरकार को एक बड़ा संदेश गया था, लेकिन मजहबी-सियासती नफा–नुकसान शायद इस पर ज्यादा भारी पड़ा. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 2013 में अंसारुल्लाह बांग्ला टीम नाम के कट्टरपंथी संगठन ने 84 सेक्युलर ब्लॉगरों की एक सूची जारी की थी, जिसमें उन सभी लोगों के नाम शामिल थे, जो कलम के जरिये धार्मिक समानता, महिला अधिकारों और अल्पसंख्यकों का मुद्दा उठाते रहते थे, और अब मारे जा चुके हैं. इसके बावजूद सरकार ने कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की.

आजादी के कुछ समय बाद से ही बांग्लादेश अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र से भटकने लगा था, क्योंकि उसके तत्कालीन सैन्य शासकों ने सत्ता पर पकड़ मजबूत बनाने के लिए इसलाम को राष्ट्रीय धर्म की हैसियत प्रदान कर दी थी. इसका एक अन्य कारण बांग्लादेशी जनरलों का पाकिस्तान की ओर झुकाव भी था, जहां इस दशक में जनरल जियाउल हक हुदा और ईश निंदा कानून लागू कर रहे थे. परिणाम यह हुआ कि बांग्लादेश में मदरसों की शृंखला और कट्टरपंथियों की फौज स्थापित हो गयी.

वर्ष 2001 के बाद से वहां पाकिस्तान की ओर से तालिबान और अलकायदा के लड़ाके भी पहुुंचने लगे, जिन्होंने रिफ्यूजी कैंपों से रोहिंग्याओं (बर्मी मुसलिम) को, अफगानिस्तान, कश्मीर और चेचेन्या से जिहादियों को भरती कर कट्टरपंथियों और तथाकथित जिहादियों की एक फौज खड़ी कर ली. तमाम आतंकी संगठन पनपे, जिन्होंने बांग्लादेश या भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम हिस्सों में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया.

जैसे–हरकत–उल–जिहाद–अल–इसलामी (हूजी), इसलामी ओकैया जोटे, जागृत मुसलिम जनता बांग्लादेश (जेएमजेबी), जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) आदि. यहीं से बांग्लादेश में कट्टरपंथी जमातें ताकतवर हुईं और धर्मनिरपेक्ष धीरे–धीरे कमजोर होकर हाशिये की तरफ जाने के लिए विवश हुए. चूंकि, सरकारें कट्टरपंथी सहयोग पर टिकी थीं, इसलिए वे उनके खिलाफ कोई कदम उठाने में समर्थ नहीं हुईं.

हालांकि, अब बाहरी दबाव के चलते बांग्लादेश की सरकार और न्यायपालिका इस दिशा में कुछ करना चाहती है, लेकिन अब यह कार्य आसान नहीं रह गया. कुछ समय पहले ही बांग्लादेश के एक हाइकोर्ट ने धर्मनिरपेक्ष संगठनों की ओर से इस विषय पर पर दायर एक याचिका पर सुनवाई के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी है, लेकिन जमात–ए–इसलामी जैसे कट्टरपंथी संगठन इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं,

क्योंकि उनकी दृष्टि में सेक्युलरों का तात्पर्य धर्मविरोधियों से है जो इसलाम से राष्ट्रीय धर्म की हैसियत छीनने का षड्यंत्र कर रहे हैं. इसका मतलब यह हुआ कि अभिव्यक्ति और अधिकारों पर चलनेवाली कट्टरपंथी ताकतें फिलहाल अभी रुकनेवाली नहीं हैं. आधुनिक कही जानेवाली दुनिया का शायद यह सबसे दुखद पक्ष है, जिसे राज्य की सत्ता, कानून की सरकार होने के बावजूद आम लोग भोगने के लिए विवश हैं.

सिलसिला, जो बदस्तूर जारी है…

से क्युलर लेखकों और ब्लॉगरों पर हमले की शुरुआत 14 जनवरी, 2013 को ढाका में आसिफ मोहिउद्दीन पर हुए हमले के साथ हुई थी. तब से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है.

नजीमुद्दीन समद

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर इसलाम विरोधी टिप्पणी लिखनेवाले इस 28 वर्षीय युवा के सिर पर चरमपंथियों ने चाकू से हमला किया और बाद में गोली मारकर हत्या कर दी. हत्या के बाद हमलावर अल्लाहू अकबर के नारे लगाते हुए चले गये. नजीमुद्दीन समद जगन्नाथ यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट में ग्रेजुएशन का छात्र था और बंगबंधु जातीय युवा परिषद की सिलहट जिला इकाई का सदस्य भी था.

आशुरा त्योहार पर शियाओं की हत्या

2015 में ढाका के पुराने इलाके में शियाओं के त्योहार अशुरा के दिन तीन धमाके किये गये थे, जिनमें एक किशोर की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इससे पहले ढाका में इटली के एक सहायताकर्मी की हत्या हुई थी और उत्तरी बांग्लादेश के रंगपुर में एक जापानी नागरिक की हत्या. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस्लामिक स्टेट ने धमाकों और विदेशी नागरिकों की हत्या की जिम्मेदारी ली थी और कहा था कि ‘काफिर गंठबंधन के नागरिक’ मुसलमानों की धरती पर सुरक्षित नहीं हैं.

अब्दुर्रज्जाक

मार्च महीने में शिया इमाम और होम्योपैथिक डॉक्टर की दक्षिण पश्चिमी बांग्लादेश में हत्या की जिम्मेवारी इसलामिक स्टेट ने ली थी. इसी सिलसिले में उदारवादी सूफी संत खिजिर खान, प्रोग्रेसिव प्रकाशक फैसल अरेफिन और सूफी श्राइन कर्मचारियों की हत्या और हिंदू पुजारी के सिर के कलम करने को शामिल किया जा सकता है, जिसकी जिम्मेवारी इसलामिक स्टेट ने ली थी.

अनंत बिजॉय दास और अविजीत रॉय

बिजॉय दास नियमित रूप से बांग्लादेशी ब्लॉग ‘मुक्तो मन’ के लिए लिखते थे, जिसकी शुरुआत अविजीत रॉय ने की थी. उल्लेखनीय है कि अविजीत रॉय की हत्या पिछले वर्ष फरवरी में ढाका में हत्या कर दी गयी थी. अल कायदा इन द इंडियन सब कॉन्टिनेंट (एक्यूआइएस) ने रॉय पर हमले की जिम्मेवारी ली थी.

वशीकुर रहमान

पिछले वर्ष मई में उत्तरी–पूर्वी बांग्लादेश के सिलहट शहर में ही धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ लिखनेवाले ब्लॉगर वशीकुर रहमान की धारदार हथियारों से हत्या कर दी गयी थी.

आइएसआइएस की बढ़ती पैठ

थोड़े अंतराल के बाद ऐसी खबरें आ ही जाती हैं कि इसलामिक स्टेट (आइएस) भारत में अपनी गतिविधियों को अंजाम देने की रणनीति पर काम कर रहा है. कुछ सूचनाओं के अनुसार आइएस भारत पर गुरिल्ला हमले करने की रणनीति बना रहा है. इसलामिक स्टेट का दावा है कि बांग्लादेश में उसका नेटवर्क सक्रिय है और बांग्लादेश को गढ़ बना कर भारत और म्यांमार को निशाना बनाने की तैयारी है. इसलामिक स्टेट की प्रोपेगंडा मैगजीन ‘दबिक’ ने बांग्लादेश के आतंकियों की तसवीरें भी जारी की हैं, जो बांग्लादेश से लेकर भारत तक इसलामिक स्टेट के लिए काम करने को तैयार हैं. अबू इब्राहिम ने बांग्लादेश को वैश्विक जिहाद के लिए बहुत अहम जगह बताया है. उसके अनुसार बंगाल यानी बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति बड़ी अहम है, यहां जिहाद का मजबूत केंद्र होने से भारत में अंदर और बाहर से गुरिल्ला हमले करना आसान होगा. अमेरिकी खुफिया एजेंसी भी बांग्लादेश में आइएस की मौजूदगी की चेतावनी दे चुकी है. हालांकि, बांग्लादेश सरकार अब तक इस बात से इनकार करती रही है. बांग्लादेश में बढ़ते कट्टरपंथी हमलों को देखते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि वहां इसलामिक स्टेट किसी न किसी रूप से दाखिल हो चुका है.

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ भी बांग्लादेश के जिहादियों और कट्टरपंथियों के जरिये भारत विरोधी अभियान चला रही है. आइएसआइ भारत में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को अपना हथियार बनाकर ‘ऑपरेशन पिन कोड’ को सार्थक परिणाम तक यानी पूर्वोत्तर के सीमावर्ती जिलों का तालिबानीकरण (पैन-इसलामाइजेशन) तक ले जाना चाहती है. ऐसी स्थिति में जब इसलामिक स्टेट, बांग्लादेश आधारित चरमपंथी और आतंकी संगठन तथा पाकिस्तान के चरमपंथी/ आतंकी संगठन समूहीकृत हो रहे हों और आइएसआइ का मस्तिष्क उनके साथ मिल जाये, तो भारत के लिए खतरा बढ़ जाता है.

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