हलीमा कैसे आयी आइएसआइएस के झांसे में?
शामिल होने सीरिया जाने को तैयार थी 11वीं की छात्रा पिछले साल दिसंबर में राजस्थान एटीएस की टीम ने जयपुर से जिस सिराजुद्दीन को आइएसआइएस के लिए काम करने के आरोप में पकड़ा था, उसका काम इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिये संपर्क साधना और फिर उनका ब्रेनवाश कर आइएसआइएस से जोड़ना था़ पुणे की […]
शामिल होने सीरिया जाने को तैयार थी 11वीं की छात्रा
पिछले साल दिसंबर में राजस्थान एटीएस की टीम ने जयपुर से जिस सिराजुद्दीन को आइएसआइएस के लिए काम करने के आरोप में पकड़ा था, उसका काम इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिये संपर्क साधना और फिर उनका ब्रेनवाश कर आइएसआइएस से जोड़ना था़ पुणे की छात्रा हलीमा को भी इसी ने शीशे में उतारा था़ कैसे फंसी वह इस जाल में, पढ़ें दूसरी और अंतिम कड़ी में.
आइएसआइएस के साथ रिश्ते रखने के आरोप में पिछले साल दिसंबर में राजस्थान एटीएस के हत्थे चढ़ा मोहम्मद सिराजुद्दीन, जयपुर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन का मार्केटिंग मैनेजर था़ बताया जाता है कि गिरफ्तार किये जाने से पहले सिराजुद्दीन हैदराबाद और महाराष्ट्र की चार लड़कियों समेत कुल छह लोगों को जेहाद की ट्रेनिंग दिलाने के लिए सीरिया ले जाने की योजना पर काम कर रहा था़ महाराष्ट्र एटीएस का कहना है कि पुणे में पकड़ी गयी 17 साल की हलीमा अल सादिया भी उन चार लड़कियों में से एक है.
वैसे, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच पुणे शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की होनहार स्टूडेंट के रूप में जानी जानेवाली हलीमा अल सादिया के आइएसआइएस के जाल में फंसने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है़ अंगरेजी पत्रिका ‘द वीक’ में उस पर छपी एक कवर स्टोरी के मुताबिक, महाराष्ट्र एटीएस को दिये अपने बयान में उसने कहा है कि पिछले साल यानी 2015 के मार्च-अप्रैल महीने में जब उसकी 10वीं बोर्ड की परीक्षाएं खत्म हो गयीं, तो उसके पास दिनभर काफी खाली समय रहता था़ यह समय वह इंटरनेट पर बिताने लगी़ इस दौरान वह तरह-तरह के विषयों को इंटरनेट पर सर्च करती़ इसी बीच उसकी दिलचस्पी इसलाम और उससे जुड़ी रिवायतों पर जगी़ फिर क्या था!
धीरे-धीरे वह इसलाम से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जानकारी जुटाने के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया को खंगालने लगी़ इस दौरान उसका संपर्क कोलंबो के अबु जमाल और उमर मोहम्मद से हुआ़
शुरू में तो ऑनलाइन चैटरूम पर आतंकवाद पर कोई चर्चा नहीं हुई, लेकिन बाद में हलीमा की दिलचस्पी को देखते हुए इन लोगों ने उसे इसलाम और जिहाद के बारे में तफसील से बताना शुरू किया़ समय-समय पर हलीमा इन लोगों से इन विषयों पर लंबी चर्चा भी किया करती़
जब इन्हें यह एहसास हुआ कि हलीमा गहराई में उतर आयी है, तो उन्होंने उसके करियर और महत्वाकांक्षा के बारे में टोह ली़ 10वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर चुकी हलीमा, तब पुणे के एक नामी कॉलेज में अपना नामांकन करा चुकी थी़
उसने आइएसआइएस के उन नुमाइंदों को बताया कि वह आगे चल कर डॉक्टर बनना चाहती है़ तब उसे यह कह कर सीरिया बुलाया गया कि तुम अगर हमारे साथ काम करोगी, तो हम डॉक्टर बनने में तुम्हारी मदद करेंगे और पढ़ाई-लिखाई का पूरा खर्च उठायेंगे़ बाद में तुम हमारे उन लोगों की मदद कर सकती हो, जो धर्म के लिए लड़ते हैं और घायल होते हैं. अब तक हलीमा उनके झांसे में आ चुकी थी़ इसके बाद उसे जयपुर के मोहम्मद सिराजुद्दीन से संपर्क करने को कहा गया़
जल्द ही सिराजुद्दीन ने हलीमा के साथ दोस्ती गांठ कर उसे जेहाद और इसलाम की अवधारणाओं के नाम बरगला लिया़ हलीमा से उसने कहा कि तुम सीरिया जाकर आइएसआइएस के जरिये इसलाम की अच्छी खिदमत कर सकती हो़ दिसंबर आते-आते हलीमा इस कदर उनके वश में आ चुकी थी कि वह पुणे में अपना घर-परिवार छोड़ कर सीरिया जाने की तैयारी में थी़
आइएसआइएस नुमाइंदों के साथ लगभग छह महीनों के इस राबते के बाद हलीमा के तौर-तरीकों में व्यापक बदलाव आ गया था़
वह जींस छोड़ कर बुर्का पहनने लगी थी़ उसके घरवालों और दोस्तों का कहना है कि अचानक से वह इसलाम और जिहाद की गहरी बातें करने लगी थीं. वह आइएसआइएस और अल-कायदा के आतंकियाें को इसलाम का सिपाही बताती थी़ अक्सर टीवी से दूर रहनेवाली हलीमा, अल-जजीरा न्यूज जैनल पर आइएसआइएस की खबरें दिलचस्पी के साथ देखने लगी थी़ समय-समय पर वह यू-ट्यूब पर इसलाम से जुड़े कंटेंट सर्च कर उन्हें देखा करती थी़ पुणे के एटीएस अफसर भानुप्रताप बारगे के अनुसार, हलीमा आइएसआइएस में शामिल होने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थी़ टीवी पर एक डॉक्युमेंट्री देखने के बाद आइएसआइएस से प्रभावित हुई़ यही नहीं, बताया जा रहा है कि वह अलग-अलग देशों के करीब 200 लोगों से फेसबुक, ट्विटर, टेलीग्राम और इ-मेल के जरिये संपर्क में थी़
फिलहाल, मौलाना और बुद्धिजीवियों की मदद से हलीमा और उसके परिवार का डी-रैडिकलाइजेशन चल रहा है़ परिवार और धर्मगुरुओं की काउंसलिंग के बाद इस नाबालिग के सिर पर सवार आइएसआइएस का भूत उतर चुका है और वह दोबारा अपनी पढ़ाई-लिखाई और करियर पर ध्यान देने लगी है़
हलीमा को मुख्यधारा में लाने की कोशिशों में लगे जमियत-उलेमा-ए-हिंद के कारी इदरिस कहते हैं, हमने उसे (हलीमा को) बताया है कि इसलाम का सबसे महत्वपूर्ण काम नैतिक और आध्यात्मिक जीवनशैली को बढ़ावा देना है, न कि आइएसआइएस और अल-कायदा जैसे संगठनों की तरह जिहाद के नाम पर लोगों को बरगला कर खून-खराबा करना. इसलामी मतानुसार, हलीमा पैगंबर मोहम्मद की प्यारी दाई-मां थीं. यानी यह नाम खुद के भीतर असीम शांति, सौम्यता और उदारता समेटे हुए है़ पुणे की 17 वर्षीय हलीमा के परिवारवालों की अब कुछ ऐसी ही चाहत है कि वह अपने नाम को सार्थक करे.