बेशकीमती है हुजूर : माल्या, मोदी, कोहिनूर

विश्लेषण : भारतीय लोग इतिहास से पाठ पढ़ें और ब्रिटिश लोग इतिहास से गांठ भरें रवि दत्त बाजपेयी कोहिनूर, यूरोपीय आधुनिकता से पहले के भारत का प्रतीक है; जबकि विजय माल्या और ललित मोदी, यूरोपीय आधुनिकता के नव उदारवादी संस्करण से कहीं आगे निकल चुके भारत के प्रतीक हैं. विजय माल्या, ललित मोदी और कोहिनूर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 3, 2016 6:24 AM
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विश्लेषण : भारतीय लोग इतिहास से पाठ पढ़ें और ब्रिटिश लोग इतिहास से गांठ भरें
रवि दत्त बाजपेयी
कोहिनूर, यूरोपीय आधुनिकता से पहले के भारत का प्रतीक है; जबकि विजय माल्या और ललित मोदी, यूरोपीय आधुनिकता के नव उदारवादी संस्करण से कहीं आगे निकल चुके भारत के प्रतीक हैं. विजय माल्या, ललित मोदी और कोहिनूर हीरे को इंगलैंड से भारत लाने का स्वांग रचा जा रहा है, जबकि इन तीनों में से एक भी भारत लौटने वाला नहीं है, और इसके लिए ब्रितानी सरकार दोषी नहीं है. पढ़िए एक विश्लेषण.
तेलंगाना प्रदेश की गोलकुंडा खदान से निकले एक पत्थर ने अपनी तकदीर कुछ ऐसी तराशी कि वह रोशनी का पर्वत या कोह-ए-नूर बन गया. वारंगल के काकातीय राजवंश, दिल्ली सल्तनत, मुगल बादशाहत, नादिर शाह, अहमद शाह दुर्रानी, महाराजा रंजीत सिंह जी के बाद यह नगीना, ब्रिटिश साम्राज्ञी की संपत्ति बन गया. पंजाब पर फतह के बाद लार्ड डलहौजी ने, वर्ष 1851 में महाराजा रंजीत सिंह जी के 13 वर्षीय पुत्र दलीप सिंह जी द्वारा लंदन के हाइड पार्क में रानी विक्टोरिया को कोहिनूर भेंट करने का एक आयोजन किया.
अनेक इतिहासकारों और विद्वानों का यह मानना है कि जब कोहिनूर को भारत ने अपनी सहमति से ब्रिटिश साम्राज्ञी को अर्पित किया था तो अब इसे लौटाने की मांग करना निरर्थक है. ब्रिटिश साम्राज्य इन उत्साही समर्थकों के अनुसार युद्ध में पराजित पक्ष ने अपनी स्वेच्छा, उत्साह और अंतः प्रेरणा से विजयी पक्ष को यह बेशकीमती हीरा, उपहार स्वरूप प्रस्तुत किया था. ब्रिटिश राज संपत्ति बनने के बाद, कोहिनूर की खूबसूरती को निखारने के लिए उसका आकार घटाया गया और उसे ब्रिटिश साम्राज्ञी के गहने में जड़ दिया गया. भारतीयों को उनका इतिहास पढ़ाने और जयपुर में भारतीयों को उनका साहित्य सिखाने को व्याकुल, ब्रिटिश लेखक विलियम डेलरिंपल का मानना है कि, यदि कोहिनूर वापस भारत लौट भी आये तो बड़ा विवाद हो सकता है, चूंकि इस हीरे के उसके अनेक दावेदार है.
डेलरिंपल ने नामित दावेदारों में ईरान, अफगानिस्तान, महाराजा रंजीत सिंह जी की राजधानी लाहौर होने के कारण पाकिस्तान का जिक्र किया है, गनीमत है, कि इसमें बाबर की जन्मभूमि उजबेकिस्तान का नाम नहीं है. डेलरिंपल ने भारतीयों को सलाह दी कि कोहिनूर अभी जहां है, वहीं बेहतर है; अर्थात भारतीय लोग इतिहास से पाठ पढ़ें और ब्रिटिश लोग इतिहास से गांठ भरें.
भारत के एक प्रसिद्ध व्यापारिक खानदान में जन्मे ललित मोदी की विलक्षण प्रतिभा की झलक उनके विद्यार्थी जीवन से ही मिलती है. नैनीताल में अपने स्कूल से निष्कासन, अमेरिका में शिक्षा के दौरान कोकीन का सेवन और अपहरण के मामले में सजा पाने के बाद ललित मोदी भारत लौटकर अपने खानदानी व्यापार से जुड़ गये.
अनेक व्यवसायों में लगातार असफल रहने के बाद ललित मोदी जयपुर पहुंचे और अचानक ही, राजस्थान में मुख्य ्रमंत्री वसुंधरा राजे के बाद दूसरे सबसे ताकतवर व्यक्ति बन बैठे. राजस्थान क्रिकेट प्रशासन में ललित मोदी को स्थापित करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने
राज्य में एक नया खेलकूद कानून लागू किया. यहां से ललित मोदी भारतीय क्रिकेट बोर्ड पहुंचे, जहां बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष शरद पवार ने ललित मोदी को भारतीय क्रिकेट की मार्केटिंग का प्रमुख नियुक्त किया.भारतीय क्रिकेट को आइपीएल के सांचे में ढालकर, ललित मोदी एक प्रकार से क्रिकेट के वैश्विक बाजार के सर्वोच्च नियंता बन गये. ललित मोदी ने वर्ष 2010 में आइपीएल की एक टीम में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के शामिल होने का रहस्योद्घाटन किया, जिसके बाद कभी क्रिकेट प्रशासकों की आंखों का तारा रहे ललित मोदी अचानक उनके आंखों की किरकिरी बन गये.
भारतीय क्रिकेट और भारतीय राजनीति ने अपने निरंकुश भ्रष्टाचारी गंठजोड़ को छुपाने के लिए ललित मोदी की बहुतेरी अवैध कारगुजारियों का भंडाफोड़ कर दिया. आइपीएल की टीम की नीलामी में घपले, विदेशों में गैरकानूनी धन-शोधन, भ्रष्टाचार के अनेक आरोपों के बाद, ललित मोदी भारतीय क्रिकेट बोर्ड से निष्कासित हुए. भारतीय कानून और उससे कहीं अधिक भारतीय राजनेताओं से भयभीत ललित मोदी स्व घोषित निर्वासन में इंग्लैंड चले गये. संभवतः ललित मोदी की ऐतिहासिक प्रतीकों में भी रुचि है, उन पर आरोप है कि राजस्थान की धौलपुर रियासत के एक प्राचीन महल जो कि भारत सरकार संपत्ति है, को ललित मोदी अपनी निजी होटल की तरह चला रहे हैं.
विजय माल्या को विरासत में अच्छा-खासा व्यापार मिला, पिता के निधन के बाद वर्ष 1983 में उन्हें शराब की कारोबारी यूनाइटेड ब्रुअरीज कंपनी का अध्यक्ष बनाया गया. विजय माल्या को एक सफल उद्योगपति के बजाय हसीन लमहों का शहंशाह के रूप में अपनी पहचान बनाने का फितूर रहा है.
भरसक इसी कारण से विजय माल्या को सिर्फ शराब, पेंट जैसी चीजें बनाने से सुकून नहीं मिला, उन्होंने वर्ष 2005 में भारत की सबसे शानदार और उत्कृष्ट सेवा देने वाली किंगफिशर विमान सेवा का आरंभ किया. अपने हर उत्पाद या सेवाओं के विज्ञापन के लिए विजय माल्या अपनी चर्चित, भड़कीली, आडंबरपूर्ण जीवन-शैली को ही सबसे उपयुक्त ब्रांड प्रचारक मानते आये हैं. विजय माल्या भारतीय क्रिकेट, भारतीय राजनीति और भारतीय व्यापारिक घरानों की तिकड़मी तिकड़ी के सबसे उपयुक्त उदाहरण हैं, आइपीएल टीम के मालिक, राज्यसभा के सदस्य और बड़े उद्योगों के स्वामी.
विजय माल्या जिस किंगफिशर एयरलाइंस को अपनी तड़क-भड़क और वैभवशाली जीवन के प्रतिबिंब में ढालना चाहते थे, वह उनके लिए घाटे का सौदा सिद्ध हुई. इस एयरलाइंस को चालू रखने के लिए विजय माल्या ने बैंकों से भारी कर्ज लिया, लेकिन अंततः वर्ष 2012 में उन्हें इस एयरलाइंस को बंद करना पड़ा. इस घाटे का विजय माल्या के अन्य कारोबार पर बेहद खराब असर पड़ा.
लगभग 9000 करोड़ रुपयों के कर्जों को उगाहने के लिए बैंकों के आक्रामक तेवरों से भयभीत विजय माल्या स्वघोषित निर्वासन में इंग्लैंड चले गये. विजय माल्या की ऐतिहासिक प्रतीकों में गहरी रुचि है; वर्ष 2005 में माल्या लंदन की नीलामी में टीपू सुल्तान की एक तलवार खरीद कर वापस भारत ले आये. इसी तरह वर्ष 2009 में विजय माल्या, महात्मा गांधी की निजी व दैनिक उपयोग की वस्तुओं को नीलामी में खरीद कर वापस भारत लाये.
इतिहास के प्रतीकों में गहरी रुचि के बावजूद भी यह अकल्पनीय है कि आइपीएल के भारी मुनाफे और भारतीय बैंकों के सारे कर्जों को जोड़ कर भी माल्या-मोदी की जोड़ी, कोहिनूर को वापस भारत लाने में समर्थ होगी. एक प्रकार से विजय माल्या, ललित मोदी और कोहिनूर तीनों ही भारत के प्रतीक चिह्न है.
कोहिनूर, यूरोपीय आधुनिकता से पहले के भारत का प्रतीक है; जबकि विजय माल्या और ललित मोदी, यूरोपीय आधुनिकता के नवउदारवादी संस्करण से कहीं आगे निकल चुके भारत के प्रतीक हैं. विजय माल्या, ललित मोदी और कोहिनूर हीरे को इंग्लैंड से भारत लाने का स्वांग रचा जा रहा है, जबकि इन तीनों में से एक भी भारत लौटने वाला नहीं है, और इसके लिए ब्रितानी सरकार दोषी नहीं है.
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