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लोकतंत्र बचाओ : लोक-लाज गंवाओ

विश्लेषण : कांग्रेस में सत्ता, नेतृत्व और उपाधि केवल उत्तराधिकार से मिलती है रवि दत्त बाजपेयी कांग्रेस के लोकतंत्र बचाओ अभियान में पोस्टरों पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी के साथ राबर्ट वाॅड्रा की तसवीर किस लोकतंत्र की तसवीर पेश करती है? ऑगस्टा-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद में इतालवी न्यायालय के फैसले के बाद से कांग्रेस का शीर्ष […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 10, 2016 6:37 AM

विश्लेषण : कांग्रेस में सत्ता, नेतृत्व और उपाधि केवल उत्तराधिकार से मिलती है

रवि दत्त बाजपेयी
कांग्रेस के लोकतंत्र बचाओ अभियान में पोस्टरों पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी के साथ राबर्ट वाॅड्रा की तसवीर किस लोकतंत्र की तसवीर पेश करती है? ऑगस्टा-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद में इतालवी न्यायालय के फैसले के बाद से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गया है और अब समूची पार्टी लोकतंत्र बचाओ के नाम पर परिवार बचाओ अभियान में जुट गयी है. पढ़िए एक विश्लेषण.
कांग्रेस की लोकतंत्र बचाओ पदयात्रा, एक मर्यादित राजनीतिक या सार्वजनिक अभियान नहीं, बल्कि अपने सामंतों को बचाने का एक व्यक्तिवादी अभियान है. लोक से सर्वथा उदासीनता, तंत्र/व्यवस्था/सिस्टम से सर्वदा उद्दंडता और लोकाचार से सदैव उच्छृंखलता में माहिर कांग्रेस, भ्रष्टाचार के आरोपों से अपने विरासती नेतृत्व को बचाने के लिए लोकतंत्र बचाने का ढकोसला कर रही है.
लोकतंत्र बचाने के इस अभियान में पोस्टरों पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी के साथ राबर्ट वाॅड्रा की तसवीर किस लोकतंत्र की तसवीर पेश करती है? ऑगस्टा-वेस्टलैंड हेलीकाप्टर खरीद में इतालवी न्यायालय के फैसले के बाद से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गया है और अब समूची पार्टी लोकतंत्र बचाओ के नाम पर परिवार बचाओ अभियान में जुट गयी है.
भारत में सेना के अधिकतर हथियार, उपकरण, साज-सामान और यहां तक कि विशेष किस्म के कपड़े, जूते आदि भी विदेशों से खरीदे जाते रहे हैं, भारत का भौगोलिक विस्तार, भारतीय सेना का आकार, और भारत की वृहत सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए विदेशों से खरीदे गये रक्षा उत्पादों का आकार और बजट भी बेहद विशाल है. भारतीय रक्षा सौदों में सौदेबाजी और भ्रष्टाचार का इतिहास लगभग स्वतंत्र भारत के इतिहास के साथ ही शुरू होता है.
वर्ष 1948 में भारतीय सेना के लिए जीप खरीदने के एक सौदे को ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त वीके कृष्ण मेनन ने बिना समुचित प्रक्रिया के स्वीकृत किया और 80 लाख रुपये का अग्रिम भुगतान भी दे दिया. इस सौदे से भारत को नयी 200 जीप के स्थान दोयम दर्जे की केवल 155 जीप प्राप्त हुईं. भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद इस सौदे की जांच शुरू हुई, लेकिन वर्ष 1955 में अचानक जांच बंद हो गयी. संयोगवश, वर्ष 1956 में जवाहर लाल नेहरू मंत्रिमंडल में कृष्ण मेनन को मंत्री बनाया गया, वर्ष 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान यही कृष्ण मेनन भारत के रक्षा मंत्री भी थे.
वर्ष 1981 में तत्कालीन प्रधान मंत्री व रक्षा मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने एचडीडब्ल्यू जर्मनी से 420 करोड़ में दो पनडुब्बी खरीद का सौदा किया, बाद में बान स्थित भारतीय दूतावास ने बताया कि इस सौदे में किसी भारतीय बिचौलिये को रिश्वत में 28 करोड़ रुपये मिले थे.
वर्ष 1986 में भारत सरकार ने स्वीडिश कंपनी एबी बोफोर्स से तोप खरीदने का 1500 करोड़ रुपये का सौदा किया. वर्ष 1987 में यह खुलासा हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी, एक इतालवी नागरिक ओट्टावियो क्वात्रोची को इस सौदे के लिए 64 करोड़ की रिश्वत मिली थी.
इस घोटाले के सार्वजनिक होने के बाद मिस्टर क्लीन के नाम से विख्यात राजीव गांधी संदेह के घेरे में आ गये. भारत में सबसे गंभीर माने गये इस घोटाले की दशकों तक जांच से भी कोई निश्चित परिणाम नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस पार्टी कभी भी इस लांछन से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पायी. कांग्रेस के अलावा भी अन्य राजनीतिक दल भी सैन्य सौदों में कमीशन के तलबगार रहे हैं, जैसे वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के बाद ताबूत घोटाला, वर्ष 1999 में तहलका पत्रिका के ‘ऑपरेशन वेस्ट एंड’ में भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण रिश्वत लेते दिखाये गये थे.
वर्ष 2005 में नौसेना युद्ध संचालन कक्ष (वॉर रूम) की गोपनीय जानकारियों में सेंध लगाने वाले हथियार कारोबारी अभिषेक वर्मा ने रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रतिबंधित स्विस कंपनी को इस काली सूची से हटाने के लिए रिश्वत देने का प्रयास किया था. 23000 करोड़ के स्कोर्पियन पनडुब्बी सौदे को सफल बनाने के लिए अभिषेक वर्मा ने पूर्व एवं सेवारत रक्षा अधिकारियों के साथ मिल कर भारतीय सेना के भविष्य में हथियार खरीद के प्रस्ताव जैसे अति गोपनीय दस्तावेज विदेशी कंपनियों को भेजे थे.
संयोगवश वर्ष 1997 में ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका के अंगरेजी संस्करण में अभिषेक वर्मा की जीवन-शैली को उदारवादी भारत के अनुकरणीय प्रतीकों में से एक बताया था. एक और संयोग कि इस पनडुब्बी सौदे पर मुहर लगने के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी ही आगे चल कर भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचे.
वर्ष 2012 में टाट्रा ट्रक की खरीद का घोटाला सुर्खियों में रहा, जब पूर्व रक्षा प्रमुख वीके सिंह ने उन्हें रिश्वत देने की पेशकश का रहस्योद्घाटन किया था. मुंबई का आदर्श हाउसिंग सोसाइटी में करगिल सैनिकों के स्थान पर निजी लोगों को फ्लैट बेचने के घोटाले की आंच अब महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े नेताओं तक पहुंच रही है. वर्ष 2013 में ऑगस्टा-वेस्टलैंड से 12 हेलीकाॅप्टर की खरीद में भारतीय बिचौलियों को रिश्वत में 360 करोड़ रुपये मिलने का आरोप है, कांग्रेस नेता व पूर्व रक्षा मंत्री एके अंटोनी भी भारत में रिश्वत मिलने की बात मान चुके हैं.
इटली के एक न्यायालय निकले फैसले से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और उनके निकटस्थ सहयोगी भी भ्रष्टाचार के आरोपों की हद में आ गये हैं. लोकतंत्र बचाने का ढिंढोरा पीटने वाली कांग्रेस और भारत के तथाकथित उज्जवलतम राज संरक्षक मनमोहन सिंह का शासनकाल, भ्रष्टाचार के लिहाज से निकृष्टतम रहा है.
कांग्रेस में सत्ता, नेतृत्व और उपाधि केवल उत्तराधिकार से मिलती है, कांग्रेस की लोकतंत्र बचाओ की सिर्फ 500 मीटर की पदयात्रा के बाद लोक सभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी नेता श्रीमती सोनिया गांधी को शेरनी की उपाधि प्रदान की है. श्रीमती गांधी और शेरनी की उपाधि का एक ऐतिहासिक संदर्भ भी है.
आपातकाल के बाद, वर्ष 1977 लोकसभा चुनावों में श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव हार गयी, दोबारा संसद पहुंचने के लिए वर्ष 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर उपचुनाव में श्रीमती गांधी उम्मीदवार बनी. ऐसा माना जाता है कि, कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और प्रख्यात साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ने श्रीमती गांधी के चुनाव संचालन कक्ष में जोश भरने के लिए एक नारा गढ़ा, ‘एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर’. नारा जबरदस्त था, लेकिन विडंबना यह है कि, नौसेना युद्ध संचालन कक्ष (वॉर रूम) में गोपनीय जानकारियों की सौदेबाजी से अपनी जेब भरने वाले अभिषेक वर्मा, उन्हीं श्रीकांत वर्मा के पुत्र हैं.
कांग्रेस में सत्ता, नेतृत्व और उपाधि के उत्तराधिकार पर भले ही सर्वोच्च परिवार का एकाधिकार हो, सत्ता के सामीप्य से उपलब्ध आनुषंगिक लाभ उठाने में पूर्ण लोकतंत्र है और कांग्रेस जन इसी लोकतंत्र को बचाने में प्रयासरत है.
(लेखक चर्चित टिप्पणीकार हैं.)

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