ट्रैफिक संभालनेवाले डॉक्टर साहब
मिसाल : नोएडा के डॉ कृष्ण कुमार यादव करते हैं ट्रैफिक का इलाज यह बात है 29 अक्तूबर, 2011 की़ हर रोज की तरह डॉ कृष्ण कुमार यादव सुबह के समय अपने घर से क्लिनिक के लिए निकले थे. घर से निकलते ही आगे जाकर एक चौराहे पर लगे ट्रैफिक जाम में वह फंस गये. […]
मिसाल : नोएडा के डॉ कृष्ण कुमार यादव
करते हैं ट्रैफिक का इलाज
यह बात है 29 अक्तूबर, 2011 की़ हर रोज की तरह डॉ कृष्ण कुमार यादव सुबह के समय अपने घर से क्लिनिक के लिए निकले थे. घर से निकलते ही आगे जाकर एक चौराहे पर लगे ट्रैफिक जाम में वह फंस गये. उनके ठीक सामने एक एंबुलेंस भी जाम में फंसी थी, जिसके अंदर एक मरीज बुरी तरह से तड़प रहा था. एंबुलेंस के अंदर के मेडिकल स्टाफ उसके उपचार में लगे थे और मरीज के परिजन जाम हटाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. घंटे भर बाद कछुए की गति से सरकते हुए ट्रैफिक के साथ डॉ कृष्ण जब चौराहे तक पहुंचे, तो पता चला कि चौराहे का ट्रैफिक सिगनल खराब था और शायद इसलिए ट्रैफिक चारों ओर से आकर आपस में उलझ गया था और यह स्थिति जाम में बदल गयी थी़
अगले दिन उन्होंने अखबार में खबर पढ़ी कि ट्रैफिक जाम में फंसने से एंबुलेंस में एक मरीज की मौत हो गयी. यह वही मरीज था, जिसे डॉ यादव ने एक दिन पहले एंबुलेंस के अंदर तड़पते हुए अपनी आंखों से देखा था़ इस खबर ने डॉ कृष्ण को अंदर तक झकझोर दिया था. वह सोचते रहे कि अगर वह मरीज समय पर अस्पताल पहुंच जाता, तो शायद उसकी जान बच जाती.
डॉ कृष्ण के मुताबिक, मुझे एक अपराध बोध ने घेर रखा था कि मैं एक डॉक्टर होते हुए भी उस मरीज के लिए कुछ नहीं कर पाया. अगले दिन सुबह मेरे कदम खुद-ब-खुद उस चौराहे की ओर बढ़ चले, जहां उस भीषण जाम में फंस कर मरीज की मौत हुई थी. संयोग से उस दिन वहां एक ट्रैफिक कर्मी भी खड़ा था. शायद प्रशासन ने एंबुलेंस में मरीज की मौत की खबर के बाद उसे यहां यातायात नियंत्रण के लिए तैनात किया था. मैं उस ट्रैफिक कर्मी के साथ हो लिया और उसके काम में मदद करने लगा. इस तरह यह सिलसिला शुरू हो गया. बाद में डॉ कृष्ण ने व्हिसिल और लाउडस्पीकरभी खरीद लिया, ताकि यह काम और अच्छे से किया जा सके और फिर किसी मरीज की मौत ट्रैफिक में फंसने के कारण न हो जाये.
कई बीमारियों के विशेषज्ञ : मूलरूप से उत्तरप्रदेश के मऊ जिले के रहनेवाले डॉ कृष्ण कुमार यादव की उम्र 48 वर्ष है. वह रोजगार के सिलसिले में वर्ष 2005 में मऊ से नोएडा चले गये़ तब से वह अपने माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों के साथ नोएडा के सेक्टर 55 में रहते हैं.
यहीं पर उनका क्लिनिक भी है. बीएएमएस डॉ कृष्ण आयुर्वेदिक पद्धति से मरीजों का इलाज करते हैं और कई बीमारियों के विशेषज्ञ भी माने जाते हैं. दो शिफ्टों में खुलने वाले उनके क्लिनिक पर मरीजों की काफी भीड़ लगी रहती है. इलाज को वह अपना धर्म मानते हैं. डॉक्टरी के अलावा वह कई सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते हैं. वह चाहते हैं कि इनसान को जिंदगी के आखिरी लम्हे तक इनसान बने रहना चाहिए, क्योंकि अच्छे इनसान ही अच्छा समाज और अच्छा देश बनाते हैं.
लोग कहते हैं ट्रैफिक मैन : डॉ कृष्ण कुमार यादव को नोएडा के लोग उनके डॉक्टरी पेशे के अलावा ट्रैफिक मैन कह कर भी बुलाते हैं.
वह पिछले पांच वर्षों से नोएडा में भीड़-भाड़ वाले ट्रैफिक पुलिस रहित चौराहों पर ट्रैफिक संभालने का काम करते हैं. वह रोज़ाना सुबह दो घंटे, आठ से 10 बजे तक ट्रैफिक नियंत्रित करते हैं. उनके घर से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित है सेक्टर 12-22 और सेक्टर 55-56 चौराहा, जहां उन्हें सड़क सुरक्षा का संदेश लिखे एप्रन पहने, गले में छोटा लाउडस्पीकर और होठों के बीच व्हिसिल दबाये ट्रैफिक कंट्रोल करते हुए हर रोज देखा जा सकता है.
बताते हैं यातायात नियमों के बारे में : डॉ कृष्ण न सिर्फ अपने घर के पास का ट्रैफिक संभालते हैं, बल्कि यह काम अब उनकी आदत में शामिल हो गया है. वह कहीं भी जाते हैं, उनकी कार में लाउडस्पीकर और पॉकेट में व्हिसिल हमेशा उनके साथ होता है. जाम देखते ही वह सक्रिय हो जाते हैं. ट्रैफिक में फंसने के बाद वह इसे दूर करने की कोशिश में लग जाते हैं. डॉ कृष्ण लोगों के बीच ट्रैफिक नियमों से संबंधित संदेश लिखे परचे भी बांटते हैं.
वह कहते हैं, देश में हर साल हजारों लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में होती है. अगर लोग यातायात नियमों का ठीक से पालन करें तो इन मौतों को कम किया जा सकता है और इसके साथ ही ट्रैफिक जाम की समस्या से भी बहुत हद तक बचा जा सकता है. वह आगे कहते हैं, लोगों में ट्रैफिक सेंस डेवलप करना बहुत जरूरी है. इसके बिना ट्रैफिक नियंत्रण के हर तरह के सरकारी प्रयास विफल साबित होंगे. मेरी योजना भविष्य में स्कूलों और कॉलेजों में जाकर छात्रों को यातायात नियमों की जानकारी देने की है.
इस काम से मिलता है संतोष : डॉ कृष्ण के इस काम को सड़क यातायात विभाग भी सलाम करता है. शहर के तमाम यातायात पुलिसकर्मी उनके इस कार्य की सराहना करते हैं. आम लोग भी उनके काम की प्रशंसा करते हैं.
इस कार्य के लिए नोएडा के कई सामाजिक संगठनों ने उनका सम्मान किया है. शुरुआती दौर में उनके घरवाले इस काम का विरोध करते थे, लेकिन अब उनकी पत्नी और बच्चे भी उनका सहयोग करते हैं. इस बारे में डॉ कृष्ण कहते हैं, इनसान को जिस काम से संतोष मिलता हो, उसे करने में किसी की आलोचना आड़े नहीं आती है.