सरकार के दो साल देश का हाल : बड़ी योजनाएं बड़े लक्ष्य
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान लोगों ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश में बड़े बदलाव की उम्मीदें बांधी थीं. सबका साथ-सबका विकास के अपने वादों के जरिये नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता तक पहुंचे और बीते दो वर्षों में मोदी ने लोगों की उम्मीदों के अनुरूप ही कई […]
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान लोगों ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश में बड़े बदलाव की उम्मीदें बांधी थीं. सबका साथ-सबका विकास के अपने वादों के जरिये नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता तक पहुंचे और बीते दो वर्षों में मोदी ने लोगों की उम्मीदों के अनुरूप ही कई ऐसी महत्वाकांक्षी पहलें की हैं, जिन्हें देश के भविष्य के लिहाज से बड़े बदलाव का वाहक माना जा रहा है. मोदी शासन के दो साल पूरे होने के मौके पर कुछ ऐसी ही महत्वाकांक्षी योजनाओं पर नजर डाल रहा है यह विशेष पेज.
मेक इन इंडिया की पहल
नेशनल और मल्टी-नेशनल कंपनियों और उनकी उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने मेक इन इंडिया को एक पहल के तौर पर 25 सितंबर, 2014 को लाॅन्च किया था. नतीजन, वर्ष 2015 में देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भारत सबसे आगे रहा.
वर्ष 2015 में भारत को 63 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल हुआ. ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ यानी कारोबार करने में आसानी के लिहाज से भारत का 130वां रैंक है. विश्व बैंक की ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस, 2016’ की रिपोर्ट में 189 देशों को शामिल किया गया है. वर्ष 2015 में भारत इस इंडेक्स में 134वें स्थान पर था. ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था के इन प्रमुख सेक्टर्स को फोकस किया गया है, जो इस प्रकार हैं :
– ऑटोमोबाइल्स
– ऑटोमोबाइल कम्पोनेंट्स
– एविएशन
– बायोटेक्नोलॉजी
– केमिकल्स
– कन्सट्रक्शन
– रक्षा निर्माण
– इलेक्ट्रिकल मशीनरी
– इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स
– फूड प्रोसेसिंग
– आइटी एंड बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट
– चमड़ा – मीडिया एंड इंटरटेनमेंट – माइनिंग
– ऑयल एंड गैस
– फार्मास्यूटिकल्स
– पोर्ट्स एंड हाइवेज
– स्पेस एंड एस्ट्रोनॉमी
– टेक्सटाइल्स एंड गारमेंट्स
– थर्मल पावर
– टूरिज्म एंड हॉस्पीटेलिटी
– वेलनेस.
नोट : अंतरिक्ष, रक्षा और न्यूज मीडिया को छोड़ कर अन्य सेक्टर्स में 100 फीसदी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी दी गयी है.
पहल और भी
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना
18 से 50 वर्ष के बैंक खाताधारकों को 330 रुपये प्रति वर्ष पर दो लाख रुपये का जीवन बीमा दिया जायेगा.
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना
18 से 70 वर्ष आयु वर्ग के लिए 12 रुपये प्रतिवर्ष पर दो लाख रुपये का दुर्घटना बीमा की सुविधा.
अटल पेंशन योजना
प्रतिमाह 1000 से लेकर 5000 रुपये प्रतिमाह के भुगतान पर वृद्धावस्था पेंशन का लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
मुद्रा योजना
पिछले वर्ष मुद्रा योजना (प्रधानमंत्री माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी) की शुरुआत सरकार ने देश के 5.75 करोड़ छोटे उद्यमियों को सहयोग देने और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की थी. फिलहाल, केवल सवा करोड़ लोगों के लिए बड़े उद्योगों में रोजगार उपलब्ध है, जबकि 12 करोड़ रोजगार के लिए छोटे उद्योगों पर निर्भर हैं. इस अभियान के तहत सरकार छोटे उद्यमियों को लोन देकर स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कर रही है.
डिजिटल इंडिया
देश को तकनीक के क्षेत्र में उन्नतिशील बनाने के मकसद से एक जुलाई, 2015 को डिजिटल इंडिया की शुरुआत की गयी. इस स्कीम के तहत देश के सभी गांवों को हाइ-स्पीड इंटरनेट से जोड़ने और सभी को इंटरनेट मुहैया कराने की दिशा में काम शुरू किया गया. डिजिटल इंडिया के विजन के तहत मुख्य रूप से तीन चीजों को शामिल किया गया, जो इस प्रकार हैं :
नागरिकों के लिए बुनियादी ढांचा
– सभी ग्राम पंचायतों में हाइ स्पीड इंटरनेट मुहैया कराना.
– आजीवन, ऑनलाइन और प्रमाणन योग्य डिजिटल पहचान की व्यवस्था करना.
– मोबाइल फोन और बैंक एकाउंट द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर डिजिटल रूप में भागीदारी में समर्थ बनाने पर जोर.
– स्थानीय स्तर पर सामान्य सेवा केंद्र तक
आसान पहुंच.
– पब्लिक क्लाउड में साझा करने योग्य निजी स्थान.
– सुरक्षित साइबर स्पेस का निर्माण.
गवर्नेंस और मांग आधारित सेवाएं
– सभी को सिंगल विंडो तक पहुंच मुहैया कराना.
– विभागों या अधिकार क्षेत्रों तक निर्बाध पहुंच
तय करना.
– ऑनलाइन और मोबाइल प्लेटफाॅर्म से रीयल टाइम
में सरकारी सेवाएं मुहैया कराना.
– इलेक्ट्रॉनिक और कैशलेस वित्तीय लेनदेन.
डिजिटल सशक्त नागरिक
– सबको डिजिटल साक्षर बनाना.
– डिजिटल संसाधनों की पहुंच को आसान बनाना.
– सभी सरकारी दस्तावेज/ प्रमाणपत्र क्लाउड पर मुहैया कराने की तैयारी.
– भारतीय भाषाओं में डिजिटल सेवाएं मुहैया कराना.
1,18,000 करोड़ रुपये मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के संबंध में 175 प्रस्ताव आये हैं.
10 करोड़ मोबाइल फोन बनाये गये हैं वर्ष 2015 के दौरान, जबकि वर्ष 2014 में महज एक करोड़ मोबाइलों का ही निर्माण किया गया था.
10,000 करोड़ रुपये का इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट फंड बनाया गया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर में भारतीय स्टार्टअप को प्रोमोट करने के लिए.
100 अरब रुपये से ज्यादा का निर्यात किया गया इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी और उससे संबंधित सेवाओं का वर्ष 2015 में.
6.87 करोड़ ब्रॉडबैंड इस्तेमालकर्ता थे मार्च, 2014 में देशभर में.
12.08 करोड़ ब्रॉडबैंड इस्तेमालकर्ताओं की संख्या पहुंच चुकी थी सितंबर, 2015 तक देशभर में.
25.15 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता थे मार्च, 2014 में देशभर में.
32.49 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या पहुंच चुकी थी देशभर में सितंबर, 2015 तक.
(स्रोत : माइ गोव डॉट इन)
स्मार्ट सिटीज िमशन
स्मार्ट सिटीज मिशन एक शहरी विकास कार्यक्रम है, जिसके तहत चरणबद्ध रूप से देश के 100 शहरों को बेहद आधुनिक तरीके से विकसित करने की कवायद चल रही है. हालांकि, अब तक इन 100 शहरों के नाम पूरी तरह से चयनित नहीं हो पाये हैं, लेकिन बिहार के भागलपुर समेत देश के 33 शहरों का चयन कर लिया गया है. पिछले वर्ष लाॅन्च किये गये इस मिशन को एक तय समयसीमा के भीतर अमलीजामा पहनाने के लिए कैबिनेट ने 980 अरब रुपये की मंजूरी प्रदान की थी. पहले चरण में देशभर से 20 शहरों और दूसरे चरण में हाल ही में 13 शहरों का चयन किया गया है.
स्मार्ट शहरों की खासियत
– इ-गवर्नेंस और सिटीजन सेवाएं
1. पब्लिक इंफोर्मेशन और ग्रिवांस रिड्रेसल सिस्टम.
2. इलेक्ट्रॉनिक सर्विस डिलिवरी
3. सिटीजेन इनगेजमेंट
4. वीडियो क्राइम मॉनीटरिंग
– वेस्ट मैनेजमेंट
5. कूड़े-कचरे से ऊर्जा और ईंधन हासिल करना
6. कूड़े-कचरे से कम्पोस्ट बनाना
7. उपयोग में लाये जा चुके पानी काे दोबारा इस्तेमाल में लायक बनाना़
– वाटर मैनेजमेंट
8. स्मार्ट मीटर्स और मैनेजमेंट
9. लीकेज की पहचान और उसे रोकने के उपाय
10. वाटर क्वालिटी मॉनीटरिंग
– एनर्जी मैनेजमेंट
11. स्मार्ट मीटर्स एंड मैनेजमेंट
12. अक्षय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल
13. ऊर्जा सक्षम और ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण
– शहरी यातायात
14. स्मार्ट पार्किंग
15. इंटेलिजेंट ट्राफिक मैनेजमेंट
16. इंटेग्रेटेड मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट
– अन्य :
17. टेली-मेडिसिन और टेली एजुकेशन
18. इन्क्यूबेशन / ट्रेड फेसिलिटेशन सेंटर्स
19. स्किल डेवलपमेंट सेंटर्स
स्वच्छ भारत अभियान
2 अक्तूबर, 2014 को गांधी जयंती के मौके पर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2019 में राष्ट्रपिता की 150वीं जयंती पर यह हमारी सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी. इस अभियान को व्यापक स्तर पर पूरे देेश में लागू किया गया. देश भर में ज्यादातर घरों में शौचालय की उचित व्यवस्था न होने से उत्पन्न होनेवाली स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए इस अभियान से जोड़ा जा रहा है. खासकर ग्रामीण भारत में सरकार के इस महत्वाकांक्षी अभियान को गति देने के मकसद से इस बार बजट में 9000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था. सरकार ने इस अभियान के तहत देश भर के 4,041 शहरों व कस्बों को स्वच्छता अभियान में शामिल किया था.
2.07 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक.
12000 रुपये किया गया, व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण के लिए दी जाने वाली राशि को.
14 जिले, 190 ब्लॉक, 23790 ग्राम पंचायतें और 56,206 गांव खुले में शौच जाने की समस्या से मुक्त हो चुके हैं अब तक.
15.10 लाख परिवारों के लिए शौचालय का निर्माण हुआ है शहरी क्षेत्रों में अब तक.
76,813 सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया गया देश भर में.
400 शहर खुले में शौच जाने से मुक्त हो जायेंगे, दिसंबर, 2016 तक देश में.
प्रधानमंत्री जन-धन योजना
यह दुनिया का सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना है. योजना के तहत देश में बैंकिंग सेवाओं से लोगों की बड़ी संख्या जोड़ा गया, जिससे नागरिकों को बैंक खाता, बीमा और पेंशन जैसी तमाम सेवाएं मुहैया हो सकीं. प्रत्येक खाताधारक को जीरो बैलेंस पर अकाउंट के साथ एक लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर और रुपे डेबिट कार्ड दिये जाने का प्रावधान है. खाताधारकों को इस योजना के तहत कई अन्य महत्वपूर्ण सुविधाएं दी गयी हैं.
सरकार और संगठन
सरकार नहीं, पार्टी पर बढ़ रहा संघ का प्रभाव
दो साल पहले केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दखल की बात अक्सर विरोधी दोहराते रहते हैं. हालांकि, आरएसएस खुद को सांस्कृतिक संगठन कहता है. प्रधानमंत्री मोदी और कई केंद्रीय मंत्री राजनीति में आने से पहले संघ के प्रचारक रह चुके हैं. पिछले साल प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं संघ से हूं, विकास और अंत्योदय की महत्ता को समझता हूं. संघ में कहावत है कि जो एक बार स्वयंसेवक बन गया, वह जीवनभर स्वयंसेवक रहता है.
इस बीच ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार के दो साल के कामकाज से आरएसएस खुश नहीं है, क्योंकि संघ के एजेंडे को सरकार सख्ती से आगे नहीं बढ़ा रही है. हालांकि संघ या उसके संगठन फिलहाल खुल कर सरकार का विरोध नहीं करेंगे.
लेकिन, संघ के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है. पिछले साल दशहरा के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के भाषण का प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया. मोदी सरकार बनने के बाद देशभर में संघ शाखाओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. बाजपेयी सरकार के दौरान संघ और सरकार के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे, लेकिन मोदी सरकार में ऐसा नहीं है. शिक्षा से लेकर सांस्कृतिक संगठनों के अहम पदों पर संघ से जुड़े लोगों की नियुक्ति की गयी है.
हालांकि, संघ से जुड़े भारतीय मजूदर संघ और भारतीय किसान संघ सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं, लेकिन अब वे उतने मुखर नहीं हैं. पिछले साल सरकार इन संगठनों की मांगों पर विचार करने को तैयार नहीं थी, लेकिन अब बातचीत की जा रही है. आरएसएस का भले ही सरकार में सीधा दखल न हो, लेकिन भाजपा में उसकी सीधी दखल है.
केरल और पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले प्रचारक रहे राजशेखरन और दिलीप घोष को राज्य का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. भाजपा की चुनावी रणनीति बनाने और जमीन पर उसे उतारने के काम में संघ के स्वयंसेवकों की बड़ी भूमिका होती है. पहले से भाजपा में अहम पदों पर संघ के नेताओं की नियुक्ति होती रही है. राज्य और केंद्रीय स्तर पर संगठन मंत्री की कमान संघ से जुड़े लोगों के हाथ में ही रही है. पार्टी और संघ के बीच समन्वय के लिए भी संघ से जुड़े लोगों को ही जिम्मेवारी सौंपी जाती है. संघ भले ही सरकार के कामकाज में सीधा दखल न देता हो, लेकिन अहम फैसलों में उसकी राय को तवज्जो दी जाती है. केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही संघ से जुड़े संगठनों की सक्रियता काफी तेज हो जाती है.
एक वरिष्ठ संघ नेता का कहना है कि मौजूदा समय में आरएसएस संगठन के विस्तार में लगा हुआ है और हमारा फोकस अपने कार्यकलापों को आगे बढ़ाना है. आरएसएस किसी पार्टी से नहीं जुड़ी हुई है और भाजपा और सरकार अपने तरीके से काम कर रही है. लेकिन पार्टी से लेकर सरकार में आरएसएस के दखल से इनकार नहीं किया जा सकता है. जिन्ना पर आडवाणी के दिये बयान के बाद संघ के दबाव में उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था.
सरकार की नीितयों पर संघ का दखल नहीं
डॉक्टर त्रिभुवन सिंह
संघ विचारक
भा जपा और संघ के बीच के रिश्ते में सिर्फ वैचारिक तौर पर समानता रही है. संघ के कुछ स्वयंसेवक भाजपा में नियुक्त किये जाते रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी संघ के इशारे पर काम करती है. भाजपा एक राजनीतिक पार्टी है और संघ सांस्कृतिक संगठन. दोनों के कार्यक्षेत्र अलग-अलग हैं. ऐसे में यह कहना है कि केंद्र सरकार के कामकाज में संघ का दखल होता है, सही नहीं है. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब संघ के विभिन्न संगठनों से उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी संघ उनके कामकाज में किसी प्रकार का दखल नहीं देता है. सिर्फ विपक्षी दल ऐसी बातों का प्रचार-प्रसार करते हैं.
सरकार के नीति-निर्माण में संघ किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता है. ये आरोप इसलिए लगाये जा रहे हैं, क्योंकि सरकार जनता के दबाव में पाठयक्रमों में बदलाव कर रही है. इसकी वजहें हैं. जवाहरलाल नेहरू ने स्टालिन से समझौता किया कि सुभाषचंद्र बोस को भारत नहीं आने देना है. नेहरू ने उनके शासन को चुनौती देनेवाले नेताओं को हाशिये पर डाल दिया और वामपंथी सोचवाले लोगों को अहम पदों पर बिठा दिया. वामपंथी हमेशा से भारत का विरोध करते रहे हैं. ऐसे में अगर सरकार पूर्व की गलतियों को सुधारने का काम कर रही है, तो इसे एक विचारधारा को आगे बढ़ाने के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है.
संघ की विचारधारा से अगर देश मजबूत हो रहा है और उसे सरकार आगे बढ़ा रही है, तो इसे कामकाज में हस्तक्षेप करार देना गलत है. संघ एक सामाजिक संस्था है और अगर उसके अच्छे सुझावों पर सरकार अमल करती है, तो इसे गलत नहीं माना जा सकता है. ऐसे आरोप वही लोग लगाते हैं, जिन्हें संघ की कार्यप्रणाली की जानकारी नहीं है.
भाजपा का वैचारिक मार्गदर्शक है संघ
अद्वैता काला
लेखिका
रा ष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बारे में लोग बिना समझे अपनी सोच बना लेते हैं. आरएसएस के काम करने के तरीकों पर गौर करने से साफ पता चलता है कि यह भाजपा और सरकार के कामकाज में कभी दखल नहीं देता है. भाजपा वैचारिक तौर पर संघ के करीब है, लेकिन पार्टी अपने तरीके से काम करती है. पार्टी में ऐसे कई लोग हैं, जो कभी संघ के सदस्य नहीं रहे हैं.
आरएसएस का सामाजिक क्षेत्र में व्यापक काम है. शिशु मंदिर, वनवासी कल्याण केंद्र जैसी कई संस्थाएं सामाजिक क्षेत्र में बदलाव लाने की दिशा में वर्षों से काम कर रही हैं. संघ राजनीति के क्षेत्र में काम नहीं करता है. बिना संघ को समझे कुछ लोग इसके बारे में अफवाह फैलाते हैं. संघ उस समय से है, जब भाजपा नहीं थी. आज यह संगठन 90 साल पुराना हो गया है और इसका विस्तार तेजी से हो रहा है. कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी की स्थिति सबके सामने है. कोई तो वजह है कि संघ का विस्तार हो रहा है. संघ के कुछ लोग भाजपा और सरकार में शामिल हैं, लेकिन संघ दोनों के कामकाज में किसी तरह का दखल नहीं देता है. राजनीतिक कार्यों के लिए संघ के पास समय नहीं है. विरोधी दल सिर्फ आरोप लगाने के लिए ऐसे बयान देते हैं. संघ भाजपा का वैचारिक मार्गदर्शक है.
संघ के विचारों को आगे बढ़ा रही है सरकार
प्रो विवेक कुमार
समाजशास्त्री, जेएनयू
प्र धानमंत्री से लेकर कई केंद्रीय मंत्री आरएसएस से जुड़े रहे हैं. प्रधानमंत्री स्वयं कह चुके हैं कि वे स्वयंसेवक हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जब सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों की विचारधारा आरएसएस की विचारधारा जैसी है, तो सरकार इस विचारधारा से कैसे अलग हो सकती है.
सरकार और पार्टी की विचारधारा अलग नहीं हो सकती है. यह इस बात से समझा जा सकता है कि भाजपा और संघ के कुछ लोग यदा-कदा विवादित बयान देते हैं, लेकिन न तो सरकार के मुखिया और न ही आरएसएस इस पर कुछ बोलते हैं और न ही ऐसे लोगों पर लगाम लगाने की कोशिश की गयी. इससे साफ जाहिर होता है कि इन नेताओं को ऐसा बोलने की मौन स्वीकृति मिली हुई है और अघोषित तौर पर सरकार और संघ में समानता है. सरकार के कई मंत्री नागपुर जाकर संघ प्रमुख से मुलाकात करते हैं. निश्चित तौर पर इन मुलाकातों में सरकार के कामकाज पर चर्चा होती होगी.
आज विचारधारा के आधार पर नियुक्तियां हो रही हैं और इतिहास की किताबों को बदलने पर जोर दिया जा रहा है. इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार आरएसएस के इशारे पर काम कर रही है. अब वैदिक पाठ्यक्रम लागू करने की बात हो रही है. इसके लिए कोई आयोग नहीं बनाया गया, अचानक इसकी घोषणा कर दी गयी. एक खास विचारधारा का राजनीतिकरण अच्छा नहीं है.
देश के विभिन्न यूनिवर्सिटी में एक खास विचारधारा को थोपने की कोशिश की जा रही है और इससे संस्थानों की स्वायत्तता प्रभावित हो रही है. शक्षिा से लेकर सांस्कृतिक और अन्य संस्थाओं में िसर्फ खास विचारधारा से ताल्लुक रखनेवाले लोगों की नियुक्ति से साफ जाहिर होता है कि सरकार किसके इशारे पर काम कर रही है.