पहल : मेंटर टीचर्स के जरिये सरकारी स्कूलों की छवि बदलेगी दिल्ली राज्य सरकार
आमतौर पर सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से कमतर माना जाता है़ इन दिनों जारी हो रहे परीक्षा परिणामों से तो कम-से-कम यही जाहिर हो रहा है़ लेकिन सीबीएसइ की 12वीं कक्षा के नतीजों में दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने निजी स्कूलों को पीछे छोड़ कर इससे उलट छवि पेश की है़ दिल्ली में सरकारी स्कूलों की संरचना से लेकर शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने की कोशिशें वहां की राज्य सरकार कर रही है़ इन्हीं कोशिशों में से एक है मेंटर टीचर्स स्कीम, जिसके तहत चुने गये 200 मेंटर टीचर्स, शिक्षकों को ‘लेक्चर मोड’ से बाहर निकल कर पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करेंगे़ आइए जानें तफसील से.
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में इस साल शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने पर खास जोर दिया गया है. अब रटाने के बजाय बच्चों को सिखाने के नये-नये तरीकों पर काम किया जा रहा है. स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कई अहम कदम उठाये गये हैं. हर बच्चा सीख सकता है और हर बच्चे को सिखाना है, इस उद्देश्य से सरकार शिक्षकों के साथ-साथ प्रधानाचार्यों के लिए खास तरह के कार्यक्रम चला रही है.
शिक्षकों के लिए विशेष कार्यक्रमों के तहत 200 मेंटर टीचर्स का चयन किया गया है, जो दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 50 हजार शिक्षकों को विशेष तौर-तरीकों से मदद करेंगे, ताकि वे अपनी कक्षाओं में पढ़नेवाले 16 लाख बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सकें और विषय को रुचिकर ढंग से पढ़ा सकें. इनके कंधों पर सरकारी स्कूलों के सभी शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी होगी. यही नहीं, सभी मेंटर टीचर्स को देश-विदेश में खास ट्रेनिंग भी दी जानी है.
इसके अलावा, शिक्षकों के लिए ऑनलाइन ट्रेनिंग का एक मंच भी तैयार किया जा रहा है, जहां वे अपने विषय से संबंधित विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे़
इस बारे में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि हमारे लिए विकास का मतलब है शिक्षा. अगर समाज शिक्षित हो गया, तो समझो विकसित हो गया. और शिक्षित होने का मतलब है कि आदमी समझदारी से और योग्यता के साथ जीना शुरू कर दे. वह कहते हैं, पहले साल हमने स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस किया था और इस साल हम क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस कर रहे हैं. मनीष आगे कहते हैं, शिक्षा क्यों देनी है, यह सवाल शिक्षा देने वाले के दिमाग में बिलकुल स्पष्ट होना चाहिए, वरना वह बच्चों के दिमाग में डाटा ट्रांसफर तो कर देगा, लेकिन उन्हें कुछ सिखा नहीं सकता, पढ़ा नहीं सकता. दूसरा सवाल है कि शिक्षा कैसे देनी है. तीसरा सवाल है कि शिक्षा में क्या देना है, मतलब कंटेट में क्या होना चाहिए.
बीते अप्रैल महीने में इस कार्यक्रम की शुरुआत के दौरान मनीष सिसोदिया ने शिक्षकों से बातचीत में कहा था, मैं कई स्कूलों में जाता रहता हूं. मुझे अच्छे और बुरे, दोनों तरह के अनुभव हुए.
सरकारी स्कूलों में प्रतिभा की कमी नहीं है. सरकारी स्कूल की कक्षाएं कई बार स्टोर रूम जैसी लगती हैं. शिक्षकों को जेनरेशन गैप को भी समझते हुए विषय को रोचक बनाते हुए पढ़ाना होेगा. इसके अलावा छात्रों के लिए टूर प्रोग्राम आयोजित किये जायें, ताकि उनमें इतिहास की समझ बढ़े. ट्रेनिंग के लिए और सीखने के लिए आपको जर्मनी, फिनलैंड और ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी सहित एजुकेशन ट्रेनिंग में विश्व में खास महत्व रखने वाले सिंगापुर स्थित नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन जैसी जगहों पर भेजा जायेगा. वहां से जो आप सीख कर आयेंगे, उसके आधार पर आप अपनी सोच और इनोवेटिव तरीकों से पांच-छह स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षित करेंगे. यह काम आपको दो साल तक करना होगा. बच्चों को पढ़ाना और सिखाना अलग बात है, हम चाहते हैं कि आप बच्चों को सिखाने के स्तर तक ले जाएं.
गौरतलब है कि दिल्ली के शिक्षा मंत्री ने सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत से पहले शिक्षकों के नाम एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी कि शिक्षक स्वैच्छिक रूप से मेंटर टीचर प्रोग्राम का हिस्सा बनें. इसके लिए सरकार को एक हजार से ज्यादा आवेदन मिले, जिनमें दो सौ शिक्षक चयनित हुए़ इसमें स्थायी, अनुबंध और अतिथि, सभी तरह के शिक्षकों को शामिल किया गया है. इस कार्यक्रम के तहत मेंटर टीचर्स को तीन चरणों में प्रशिक्षण से गुजरना है़ पहले चरण में मेंटर टीचर्स को अप्रैल से मई के दूसरे सप्ताह तक तक दो दिन का ओरिएंटेशन प्रोग्राम और 15 दिन की ट्रेनिंग दी जा चुकी है़ इसमें स्कूलों में बेहतर पठन-पाठन के लिए अभ्यास सत्र चलाये गये.
दूसरे चरण में मई के तीसरे सप्ताह से जून तक जीवन विद्या शिविर के तहत शिक्षकों को एक प्रशिक्षण पूरा करना है़ बात करें तीसरे फेज की, तो गरमी की छुट्टियों के बाद जुलाई में जब स्कूल खुलेंगे तो एक-एक मेंटर टीचर को पांच-छह स्कूलों की जिम्मेवारी सौंपी जायेगी, जहां गुणवत्तापूर्ण पठन-पाठन को लेकर ये मेंटर स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षित करेंगे. फिलहाल, अप्रैल से मई के दूसरे हफ्ते तक पहले बैच के शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण सत्र का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हो चुका है और दूसरे चरण के अंतर्गत जीवन विद्या शिविर का प्रशिक्षण चल रहा है.
इस प्रशिक्षण में भाग ले रहे मेंटर टीचर बिपिन बिहारी, प्रकृति विज्ञान के शिक्षक हैं. वह यहां जीवन विद्या शिविर में रंगीन पतंगों के जरिये बच्चों को हवा और वायु के बारे में सिखाने की कोशिश कर रहे हैं. इसी शिविर में भाग ले रहीं मेंटर टीचर प्रियंका सिंह, हिंदी की शिक्षिका हैं. वह अलग-अलग वीडियोज के जरिये बच्चों को बारिश, मेला, जलेबी आदि शब्दों से सीधे तौर पर रूबरू करा रही हैं. मेंटर टीचर किरण टोकस कहती हैं, आमतौर पर हम साधारण और बेकार के सामानों की मदद से अपने-अपने सब्जेक्ट के लिए एक्टिविटीज क्रिएट करते हैं.
ये आसान हैं इसलिए इनकी मदद से बच्चों को क्लासरूम में ही चीजें सीखने को मिल जाती हैं और इसके लिए हमें बार-बार लेबोरेटरी का रुख नहीं करना पड़ता़ दूसरी ओर एक अन्य टीचर नीरू बहल का कहना है कि यह कार्यक्रम ऐसे शिक्षकों और छात्रों के लिए तब ज्यादा फायदेमंद साबित होता, जब उनकी कक्षाओं में शिक्षक-छात्र का अनुपात 1:30 या अधिकतम 1:60 हो, लेकिन हमारे स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात कई बार 1:100 को भी पार कर जाता है़ हालांकि दिल्ली सरकार की यह कोशिश अच्छी है और हमें उम्मीद है कि स्थिति सुधरेगी़