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हकीकत में नहीं, कागजों में बढ़ रहे हैं जंगल

जंगलों के मामले में पूरे देश में झारखंड का 10वां स्थान आता है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआइ) के आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में जंगल बढ़ रहा है. सेटलाइट सर्वे के माध्यम से किये गये सर्वेक्षण में इसे बढ़ा हुआ बताया जा रहा है, जबकि हकीकत कुछ और बयां करते हैं. वन विभाग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2016 12:13 AM
जंगलों के मामले में पूरे देश में झारखंड का 10वां स्थान आता है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआइ) के आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में जंगल बढ़ रहा है. सेटलाइट सर्वे के माध्यम से किये गये सर्वेक्षण में इसे बढ़ा हुआ बताया जा रहा है, जबकि हकीकत कुछ और बयां करते हैं. वन विभाग के अधिकारियों का इस बारे में अलग-अलग मत है. कई अधिकारियों ने सर्वे के तरीके पर ही सवाल उठाया है. वहीं, पुराने लोग भी जंगल के घटने की बात कहते हैं. उनके अनुसार, पिछले सालों में राज्य के कई बड़े जंगल समाप्त हो गये हैं.
रांची : वन विभाग के आंकड़े भी बताते हैं कि झारखंड में घने जंगल घटे हैं. वर्ष 2001 से 2003 के बीच इसमें करीब 106 वर्ग किलोमीटर की कमी आयी है. वर्ष 2003 से 2005 से बीच कोई अंतर नहीं दिखाया गया. इसी तरह वर्ष 2005 से 2007 के बीच करीब पांच वर्ग किलोमीटर की कमी आयी. वर्ष 2001 से 2011 के बीच करीब 111 किलोमीटर घने जंगल घटे हैं. खुले जंगल और सामान्य जंगल का घनत्व बढ़ा है. इस अवधि के दौरान राज्य में करीब 194 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को गैर वन भूमि के रूप में अधिसूचित किया गया है.
जंगलों में आग बड़ी समस्या
झारखंड के जंगलों में आग की समस्या भी है. झारखंड आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा 2011 में कराये गये सर्वे में जिक्र किया गया है कि 2011 और 2012 में ही करीब 500 घटना आग लगने की घटी. इस दौरान करीब दो हेक्टेयर जंगल में आग लगी थी.
संताल : संकट में जंगल
संताल परगना में जंगलों पर संकट है. पहाड़ों की अंधाधुंध खुदाई के कारण जंगल खत्म होते जा रहे हैं. विभागीय जानकारी के अनुसार संताल परगना में 1942.8 वर्ग किमी जंगल है, जो झारखंड के जंगल का 10.4 प्रतिशत है. इनमें से रिजर्व फॉरेस्ट 34.64 प्रतिशत, प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट 48.67 और डेजर्ट या अन क्लासीफाइड फॉरेस्ट 16.77 फीसदी है. विभाग पौधरोपण का दावा करती है, लेकिन जिस अनुपात में पेड़ों की कटाई हो रही है, उस अनुपात में पौधरोपण नहीं हो रहा.
जामताड़ा में घट रही सघनता
जामताड़ा में 80 वर्ग किलोमीटर वन भूमि है. जिला वन पदाधिकारी आर के साह का कहना है कि वन भूमि अब भी वही है. उसमें कमी नहीं आयी है. 20 वर्ष पहले वन काफी सघन था.
वर्तमान में वन की सघनता में कमी है. इसका बड़ा कारण हाल के वर्षों में वन कटाव में आयी तेजी है. वन विभाग फिर से वन की सघनता बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहा है. इसके लिए संयुक्त वन प्रबंधन नीति बनायी गयी है. योजना के तहत ग्राम स्तर पर वन प्रबंधन समिति बनायी जायेगी. जामताड़ा में 139 वन समिति बनायी गयी है. योजना के तहत वन आच्छादित भूमि में सघन वन लगाना है. इसके लिए पौधरोपण व प्राकृतिक पौधरोपण करने की योजना बनायी गयी है. इससे वन की सघनता बढ़ाने में 90 प्रतिशत लाभ मिलेगा. पौधरोपण से होनेवाले लाभ में 30 प्रतिशत लाभुक को दिया जायेगा.
अन्य 30 प्रतिशत लाभ गांव की प्रबंधन समिति और 30 प्रतिशत राशि जंगल के विकास में खर्च की जायेगी. वन पदाधिकारी आरके साह का कहना है कि प्रबंधन नीति के तहत 20 वर्ष के बाद जामताड़ा हरा-भरा दिखेगा. 20 वर्ष पहले जो वन की स्थिति थी, उससे भी बेहतर स्थिति में वन आच्छादित क्षेत्र लोगों को देखने के लिए मिलेंगे. इससे पर्यावरण के साथ वर्षा जल संरक्षण का लाभ मिलेगा.
मिनी कश्मीर कहा जाता था गुमला को
गुमला के घने जंगलों के कारण मौसम में शीतलता इतनी कि कभी इसे मिनी कश्मीर कहा जाता था. लेकिन अब यहां से भी जंगल कम होते जा रहे हैं. हालांकि वन विभाग का दावा है कि गुमला जिले के सारू, बरिसा व तिर्रा सहित कई गांव में जंगल का दायरा बढ़ा है, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करते हैं.
जिस प्रकार अभी जंगल काटे जा रहे हैं. चैनपुर का श्रीनगर, कुरुमगढ़, पालकोट, गुमला के तिर्रा, रायडीह के कोंडरा, बिशुनपुर के पठारी इलाके में बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो अगर यही स्थिति रही तो गुमला के मिनी कश्मीर की पहचान ही खत्म हो जायेगी.
लोहरदगा में अब कंकरीट के जंगल
लोहरदगा जिला को 20 वर्ष पहले लोग जंगली क्षेत्र के रूप में भी जानते थे. यहां घने जंगल थे. लेकिन, वक्त के साथ स्थिति भी बदल गयी है. हर-भरे जंगलों के स्थान पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गये हैं. लोहरदगा जिला के कुल वनाच्छादित 44373.54 हेक्टेयर है. वनों के कटने से अब जंगली जानवर बाघ, भालू, हिरण ग्रामीण व शहरी-इलाके में आनेलगे हैं.
रामगढ़ व कोडरमा में वनों के घनत्व में कमी
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, रामगढ़ जिला में प्रदेश के अन्य जिलों की अपेक्षा वनों की स्थिति अच्छी है. रामगढ़ जिला में 35 प्रतिशत वन भूमि है. हालांकि पिछले 20 वर्षों में वनों के घनत्व में कमी आयी है. यह कमी वनों की अवैध कटाई, विकास कार्य और अतिक्रमण आदि से हुई है. वनों की कमी से जलवायु में भी परिवर्तन हुआ है तथा गरमी बढ़ी है
लेकिन वर्तमान में वनों को बढ़ाने के लिए कई योजनायें लायी गयी हैं. रामगढ़ जिला में 295 वन समितियां कार्यरत हैं, जिनके माध्यम से कई योजनाओं को पूरा किया जाना है. दूसरी ओर, कोडरमा जिले के कोडरमा फॉरेस्ट डिविजन में 64796.90 हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं.
इसमें 309 वन गांव हैं. इसके अलावा रिजर्व वन क्षेत्र की बात करें तो वन क्षेत्र 15062.77 हेक्टेयर है और 35 वन गांव हैं. पिछले 20 वर्षों में वन का घनत्व (फॉरेस्ट डेनसिटी) घटता जा रहा है. वन विभाग के डीएफओ एमके सिंह की मानें तो इसे बढ़ाने की कोशिश हो रही है. वन विभाग गांव-गांव में वन सुरक्षा समितियां बनाकर यह काम कर रही है. फिर भी लोगों को जंगल बचाने के लिए जागरूक होने के साथ ही एकजुट होना होगा.
झारखंड में जंगलों की िस्थति
वर्ष जंगल
1997 21692
1999 21644
2001 23605
2003 23605
2005 23333
वर्ष जंगल
2007 22591
2009 22894
2011 22971
2013 23473
(वर्ग किलोमीटर में)
घने जंगलों वाले हजारीबाग की मिट रही पहचान
घने जंगल हजारीबाग की पहचान रही है. इसे बागों का शहर कहा गया है. झारखंड-बिहार की सीमा पर धनुआ-बनुआ जंगल, चौपारण, हजारीबाग-चतरा रोड में शाहपुर, ढौठवा, आराभुसाय, कंडसार, बेंदी, कुसुंभा जंगल, बड़कागांव की तरह मौहुदी, बथनिया, अंबाटोला, फतहा, पुंदरी, लोकरा का जंगल, विष्ष्णुगढ़ नेरही, खरकी, बन्हे, गाल्होबार, अलकोपी, बगोदर, चुरचू प्रखंड में बासाडीह, कजरी, बरही प्रखंड में देवचंदा, बेलादोहर, बुंडू, चतरो जंगल, केरेडारी में पचरा, सिझुआ, घुटू जंगल, नेशनल पार्क, सालपर्णी समेत पूरा इलाका जंगल, पहाड़ों व झरनों से घिरा हुआ था. कई जंगल ऐसे थे, जहां सूर्य की किरण जमीन पर नहीं पहुंचती थी.
हर तरह के पेड़-पौधे यहां मौजूद थे. अब जंगलों में बदलाव आया है. धनुआ-बनुआ जैसे जंगल लगभग उजड़ गये हैं. हजारीबाग चतरा रोड व कटकमसांडी रोड में पड़नेवाले दो दर्जन से अधिक गांव के जंगल लगभग खत्म हो गये हैं. नेशनल पार्क व सालपर्णी जैसे जंगल में 50 प्रतिशत पेड़ कट गये हैं. पदमा जंगल में अब सिर्फ झाड़ियां नजर आती हैं.
हजारीबाग, बड़कागांव, केरेडारी टंडवा रोड के दोनों ओर दस दस किमी के जंगल में बचे पेड़ अब गिने जा सकते हैं. कमोबेश यही स्थिति सभी जंगलों की हो गयी है. यही हाल रहा, तो बागों का शहर हजारीबाग से बाग शब्द समाप्त हो जायेगा. शहर के चारों ओर घने जंगलों में खनन कार्य, रिहाइशी इलाके दिखायी देंगे. बड़े-बड़े पहाड़ों में पेड़-पौधों की हरियाली नजर नहीं आयेगी. जंगली जानवर तो अभी ही समाप्त हो गये हैं.
2050 तक दो से तीन डिग्री तक बढ़ जायेगा तापमान
रांची : यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट फंड (यूएनडीपी) ने पूरे भारत में पर्यावरण में हो रहे बदलाव पर एक अध्ययन कराया है. झारखंड में किये गये अध्ययन के आधार पर यहां के विभागों को पर्यावरण में हो रहे बदलाव की जानकारी दी गयी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि मौसम में जिस तरह बदलाव हो रहा है, उससे 2050 तक झारखंड में औसत तापमान करीब दो से तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ जायेगा.
वहीं, ठंड में चार से पांच डिग्री तक की कमी आ सकती है. आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2000 के बाद गरमी में तेजी से वृद्धि हुई है. 2008 से 2012 तक जून में करीब 100 दिन गर्म हवा चली. यानी हर साल करीब 20 दिन गरम हवा चली. इसी अवधि के दौरान झारखंड में जून 2010 में अधिकतम तापमान 46.5 भी रिकॉर्ड किया गया. न्यूनतम तापमान 3.2 डिग्री सेल्सियस तक रिकॉर्ड किया गया. जून 2008 में 338 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गयी. ये आंकड़ा बताते हैं कि छोटी-छोटी अवधि में कैसे तापमान बदल रहा है.
कोडरमा
46-470 सेसि तक पहुंच रहा पारा
बदलते समय के साथ कोडरमा के मौसम में खासा बदलाव आया है. लोग बताते हैं कि पहले गरमी का मौसम कब आता था और चला जाता था, पता ही नहीं चलता. अब न तो ठंड के आने का पता चलता है और न ही जाने का. गरमी में पारा जिले में 46-47 डिग्री सेल्सियस तक पार कर जाता है. वहीं पहले से बारिश भी कम होती है. पहले जिले के सतगावां, डोमचांच व चंदवारा में बारिश के बाद नदियां उफान पर होती थीं तो पास के इलाके में बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती थी.
चतरा
चार-चार माह का अनाज रखते थे
20 वर्ष पूर्व रिकॉर्ड तोड़ बरसात व ठंड पड़ती थी. बरसात आते ही लोग अपने घरों में चार माह का जलावन व अनाज की व्यवस्था कर लेते थे. गरमी कम पड़ती थी. अब मौसम में बदलाव से बारिश में कमी आई है और ठंड भी नहीं पड़ती. अगर यही स्थिति रही, तो आनेवाले 20 वर्षों में बरसात व ठंड जैसे मौसम में काफी बदलाव आयेगा.
हजारीबाग
घरों में लगने लगे हैं एसी
जंगलों के उजड़ने, नदियों व तालाबों के सूखने, पहाड़ों का उत्खनन होने, बड़े पैमाने पर कोयला, अबरक के खनन के कारण हजारीबाग की आबोहवा पूरी तरह से बदल गयी है. गरमी में तापमान 40 डिग्री तक पहुंचने लगा है. असमय वर्षा व मौसम का मिजाज खुशनुमा नहीं रहा. यही हाल रहा, तो हजारीबाग का मौसम आम शहरों की तरह होगा. तापमान 45 डिग्री तक पहुंचेगा. पहले हजारीबाग के घरों में एसी नहीं लगे होते थे. आज स्थिति बदल गयी है, घरों में एसी लगने लगी है.
सूबे के 50% से अधिक तालाब विलुप्त
झारखंड के करीब 30 फीसदी तालाब गायब होने के कगार पर हैं
धनबाद, रामगढ़ क्रिटिकल जोन तो रांची, टाटा व बोकारो सेमी क्रिटिकल जोन में
रांची : राज्य की नदियां ही सूख रही हैं, ऐसा नहीं है. मौसम की मार का असर तालाबों पर भी पड़ा है. राजधानी रांची समेत कई जिले में मौजूद तालाब अब सूखने लगे हैं. पूरे राज्य में 50 फीसदी से अधिक तालाब विलुप्त हो चुके हैं. करीब 30 फीसदी तालाब गायब होने के कगार पर हैं. तालाबों के विलुप्त होने से जलस्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. शहरों और कस्बों का हाल बुरा हो गया है.
कुएं और सप्लाई वाटर की व्यवस्था चौपट हो गयी है. डीप बोरिंग ही एक सहारा रह गया है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि शहरों में भूमिगत जल को रिचार्ज करने का काम नहीं हो रहा है. सेंट्रल वाटर ग्राउंड बोर्ड ने धनबाद और रामगढ़ को क्रिटिकल जोन के रूप में चिह्नित किया है. वहीं रांची, बोकारो, चास, जमशेदपुर, झरिया, गोड्डा के शहरी इलाके को सेमी क्रिटिकल जोन में रखा है.
रांची के 81 में से 78 तालाबों की स्थिति दयनीय : आरआरडीए द्वारा किये गये सर्वे के मुताबिक रांची और आसपास के 40 गांवों में स्थित 81 में से 78 तालाबों की स्थिति दयनीय है. शहरी क्षेत्र में लगभग डेढ़ दर्जन तालाब तो गायब हो गये हैं. इन तालाबों को जमीन दलालों ने भर कर बेच दिया है. जहां तालाब होते थे, वहां अब इमारतें बना दी गयी हैं.
केवल चार तालाबों की स्थिति अच्छी : राजधानी रांची के आसपास स्थित तालाबों में से केवल चार की हालत अच्छी है. आरआरडीए की सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि रांची के हटनिया तालाब, टाटीसिलवे के टाटी गांव स्थित तालाब, एयरपोर्ट के पीछे स्थित हुंडरू गांव व सपारोम गांव में स्थित तालाबों की स्थिति ही ठीक कही जा सकती है.
शहरों व कस्बों में सिवरेज बन गये हैं तालाब : राज्य के सभी शहरों और कस्बों में ज्यादातर तालाबों में सिवरेज का पानी डाला जा रहा है. तालाबों के आस-पास की जगह शौचालय में तब्दील हो गयी है. लगातार गंदगी और कूड़ा डाले जाने के कारण शहर के कई तालाब सूखने लगे हैं. वहीं, कई तालाबों का पानी ऐसा हो गया है कि उसमें स्नान करने का मतलब बीमारियों को न्योता देना है. वहीं, तालाबों के किनारे अतिक्रमण भी इसकी सूरत बिगाड़ने का काम कर रहे हैं.
राजधानी के इन तालाबों में जाता है नाले का पानी : रांची लेक (बड़ा तालाब), छोटा टैंक, मधुकम बस्ती टैंक, लाइन टैंक, कमला टैंक, हटिया टैंक चुटिया, मिसिरगोंदा बस्ती टैंक, हातमा बस्ती टैंक, सुकुरहुटू टैंक, दिव्यायन के नजदीक स्थित मोरहाबादी टैंक, करमटोली टैंक, एफसीआइ कडरू स्थित तालाब, पुंदाग स्थित टैंक, अरगोड़ा बस्ती स्थित तालाब, ललगुटवा बस्ती टैंक, जेपी मार्केट धुर्वा स्थित टैंक, बटम तालाब, डोरंडा माजार स्थित तालाब, चुटिया पावर हाउस के समीप स्थित तालाब में नाले का पानी डाला जाता है.
क्या था पहले का हाल : 20 साल पहले तक राज्यभर के तालाब में सालों भर लबालब पानी भरा रहता था. यहां तक कि जेठ और बैसाख के महीने में भी तालाब पानी से भरे रहते थे. लेकिन बढती आबादी, शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में सीधा असर तालाबों पर दिख रहा है. तालाबों के इर्द-गिर्द रिहाइशी इलाके बढे हैं. तालाबों का जलस्तर लगातार घट रहा है.
राज्य में तालाबों की संख्या
जिले सरकारी तालाब निजी तालाब
रांची 471 4493
खूंटी 86 4317
गुमला 374 —
सिमडेगा 57 1278
लोहरदगा 174 —
पलामू 128 868
लातेहार 141 4230
गढ़वा 88 2400
जमशेदपुर 548 9798
चाइबासा 501 4060
सरायकेला 508 4925
साहेबगंज 708 4226
पाकुड़ 718 2000
दुमका 659 12847
जामताड़ा 437 4596
गोड्डा 726 4261
देवघर 1270 6427
हजारीबाग 1274 2716
रामगढ़ 157 1350
कोडरमा 450 725
चतरा 437 685
बोकारो 1629 5065
धनबाद 1258 3658
गिरिडीह 563 2340
कुल 12798 87273

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