वेतन : 450 आइआइटियन लेते हैं क्लास
कोटा से अजय कुमार
कोचिंग संस्थानों में फैकल्टी का खास मतलब है. फैकल्टी अच्छी, तो पढ़ाई अच्छी. पढ़ाई बेहतर, तो रिजल्ट बेहतर. रिजल्ट बढ़िया, तो नाम ऊंचा. और नाम जमने का मतलब है छात्रों की आमद. कोटा में 450 आइआइटियन कोचिंग लेते हैं. 20 से 30 फैकल्टी तो ऐसे हैं, जिनका पैकेज सालाना दो करोड़ रुपये है.
सालाना 20 लाख से 40 लाख वाले फैकल्टी तो बड़ी संख्या में हैं. मेडिकल की तैयारी के लिए देश के नामी-गिरामी प्राध्यापकों को बुलाया जाता है. उनका पैकेज भी बड़ा है. करीब 100 डॉक्टर कोचिंग क्लास लेते हैं.
कोचिंग के कारोबार में रिजल्ट का दबाव बढ़ा, तो अच्छे फैकल्टी को अपने साथ रखना बड़ा हथियार बन गया. हर कोचिंग वाले अपने फैकल्टी के सबसे उम्दा होने का दावा करते हैं. एक संस्थान के डायरेक्टर शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि कोचिंग संस्थानों के लिए अच्छा फैकल्टी रखना बाध्यकारी हो गया है. इसलिए संस्थान एक-दूसरे की फैकल्टी तोड़ कर अपने पाले में करते हैं. यहां इतना पैसा मिलने लगा कि कई आइआइटियन ने अपनी नौकरी छोड़ दी और यहां आकर पढ़ाने लगे. उन्हें अगर बड़ा पैकेज मिलता है, तो वे अपनी सेवाएं भी देते हैं. हर समय उन्हें बच्चों के लिए उपलब्ध रहना पड़ता है. रात हो या दिन, कभी भी छात्र फैकल्टी से संपर्क कर सकता है. अब तो संस्थानों ने फैकल्टी से फोन पर सवाल करने सुविधा भी दे दी है.
पंजाब के पठानकोट से आये विशाल कहते हैं, एडमिशन लेने के पहले हमने यहां की फैकल्टी के बारे में पता लगाया था. लगभग सभी संस्थान डाउट क्लास लगाते हैं. इस दौरान वे कभी भी अपने संबंधित विषय के टीचर से संपर्क कर सकते हैं. छात्रों को पढ़ाई के बाद कैंपस में रहकर पढ़ने की छूट मिली हुई है. इन संस्थानों में सुबह छह से रात नौ बजे तक पढ़ाई, नामांकन वगैरह की गतिविधियां चल रही होती हैं. एलेन, रेजोनेन्स, बंसल, कॅरियर प्वाइंट, वाइब्रेंट, मोशन में ऐसे नजारे आम हैं.
40 लाख वाले को मिला सवा करोड़
बंसल इंस्टीट्यूट के मीडिया प्रभारी एके तिवारी दूसरे संस्थानों पर फैकल्टी तोड़ कर ले जाने की व्यथा (एक तरह से आरोप भी) सुनाते हैं. उन्होंने बताया कि जब मार्केट में दूसरे संस्थान आने लगे, तो उन्होंने फैकल्टी तोड़ने शुरू कर दिये. उन्हें लगता है कि इससे दूसरे संस्थान कमजोर होंगे. तिवारी के मुताबिक इसी मंशा से हमारे 40 लाख वाले टीचर को सवा करोड़ के पैकेज पर दूसरे उठा ले गये. अब आप ही बताइए, पैसा किसे नहीं चाहिए.
और जब बात करोड़ से ऊपर की हो, तो किसका मन नहीं डोल जायेगा? वह साल 2011 को याद करते हुए बताते हैं कि उस साल तो हमारे 21 टीचरों को एक साथ तोड़ लिया गया था. वे पढ़ाते दूसरे संस्थानों में हैं, पर अपने नाम के साथ पुराने संस्थान का नाम जोड़ना नहीं भूलते. टीचरों के तोड़फोड़ की बातें सभी कोचिंग वालों के पास है.
ब्रांड इमेज और रिजल्ट
रिजल्ट से ब्रांड वैल्यू बढ़ेगा. सो, सभी अपने-अपने संस्थानों के रिजल्ट सबसे बढ़िया होने का दावा करते हैं. पर एक स्थानीय जानकार का कहना है कि उनके दावे पूरी तरह सच नहीं होते. कुछ साल पहले ही आइआइटी टॉपर चित्रांग मुड़िया के किस्से सुनने को मिल जायेंगे. उनके टॉपर होते ही एक दूसरे संस्थान ने उन्हें अपना स्टूडेंट बता दिया.
1300 फैकल्टी का दावा
यहां के एलेन इंस्टीट्यूट में बताया गया कि उनके पास 1300 फैकल्टी हैं. इसकी वजह बतायी गयी कि हमारे यहां एक सब्जेक्ट के एक-एक चैप्टर को डील करने वाले टीचर हैं. मसलन, बायो में ‘सेल’ पढ़ाना है, तो हमारे पास सिर्फ वही पढ़ाने वाले टीचर हैं. उन्हें बायो के दूसरे चैप्टर से बहुत कुछ लेना-देना नहीं होता है.
श्रद्धा व राजेंद्र के निजी अनुभव
श्रद्धा बिहार के बिहारशरीफ से हैं और राजेंद्र मध्यप्रदेश के. दोनों के अनुभव एक जैसे हैं. श्रद्धा के रिश्ते के दो भाई कोटा में रह कर पढ़े. दोनों ने आइआइटी निकाल लिया. उनमें से एक अभी रूड़की में पढ़ रहे हैं. दूसरे एक कॉरपोरेट हाउस में काम कर रहे हैं. मध्यप्रदेश के राजेंद्र का अनुभव यह है कि उनके भतीजे का सेलेक्शन एम्स में हो गया. उनके भतीजे की पढ़ाई यहीं से हुई थी.
अब वह अपने बेटे को लेकर आये हैं. दोनों फैकल्टी के बारे में कहते हैं: हमें तो अच्छी पढ़ाई चाहिए. कौन टीचर कहां से आते हैं और कौन उन्हें कितना पैसा देता है, इससे हमें क्या लेना-देना. हम यहां पढ़ने आये हैं.
पहला दिन, नया क्लासरूम, नयी उमंग, नया जोश
विद्यालय के कई साथी वहां मिल गये थे. इन सबके बीच अब एक भागमभाग वाली दिनचर्या मेरा इंतजार कर रही थी. शाम का बैच था, एलेन ‘सत्यार्थ’, जहां मेरी क्लास लगनी थी, भी हॉस्टल के पास ही था. कोचिंग की तरफ से किताबें, बस्ता और धूप से बचाव के लिए एक छतरी भी मिली थी.
डेढ़ बजे जब कोचिंग पहुंची, तो देखा एक शानदार इमारत, जिसमें घुसने वाले बच्चों की पंक्तियों का कोई अंत ही न था. इतनी भीड़ के बावजूद अनुशासन बनाये रखना वाकई इस कोचिंग की बड़ी सफलता है.
क्लासरूम में घुसते ही ‘प्रार्थना’ की अनाउंसमेंट हुई. ढाई सौ बच्चों का एक बैच एक विशाल कक्षा में एक स्वर में ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ गाते हुए देख कर बड़ा ही रोमांचक लग रहा था. लड़के और लड़कियों का बैच अलग-अलग. यहां तक कि आने-जाने के रास्ते तक अलग-अलग. 250 लड़कियों के बीच जब एक शिक्षक का आगमन हुआ, तो लगा अब मंच से नजर ही नहीं हटेगी. हर शिक्षक अपने पाठ का विशेष जानकार.
हर कॉन्सेप्ट को समझाने का तरीका बेहतरीन. यहां किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि हर एक बिंदु को अपने आसपास के उदाहरणों से समझाने की कोशिश की जाती है, ताकि अपने आसपास की दुनिया देख कर विद्यार्थियों की समझ बेहतर हो. शिक्षक और विद्यार्थियों का इंटरेक्शन सिर्फ कक्षा तक ही सीमित नहीं रहता, अगर किसी विद्यार्थी को कक्षा के भीतर कोई बात समझ में न आयी, तो वह ‘डाउट काउंटर’ पर भी अपनी समस्या रख सकता है.
तकनीक के इस दौर में शिक्षक से ‘व्हाटसएप’ पर भी सवाल पूछे जा सकते हैं. पढ़ाई को लेकर जो जुनून मैंने यहां के शिक्षकों में देखा, वह शायद ही कभी पहले महसूस किया. आप एक ही सवाल कितनी बार भी पूछ लें, शिक्षक कभी अपना धैर्य नहीं खोते. चेहरे पर एक मुस्कुराहट लिये अंतिम क्षण तक समझाने का प्रयास जारी रहता है.
सबसे खास बात यहां के शिक्षकों की यह कि कभी भी कमजोर और मेधावी छात्रों में अंतर नहीं किया जाता. कोचिंग के इस माहौल में डांट भी यदा-कदा ही पड़ती है, वो भी तब, जब विद्यार्थी कोई अनुचित कार्य में व्यस्त हो. अन्यथा कोचिंग का माहौल खुशनुमा बना रहता है. लगातार कोचिंग के इस मोनोटोनस दिनचर्या से मन उब जाता है, पर इसका भी इलाज है. कोचिंग में ही अब एक कॉमन रूम है, जहां छोटे-मोटे खेल से मन बहलाया जा सकता है.
‘ओपन सेशन’ जहां विद्यार्थियों को नियमित तौर पर सही दिशा देने की कोशिश रहती है. यहां सिर्फ प्रतिस्पर्धा ही नहीं, कई जीवन-मूल्यों को कक्षा के बीच ही हल्के-फुल्के माहौल में शिक्षक समझाने की कोशिश करते हैं. पढ़ाई का यह वातावरण रास आ रहा था मुझे. पर, चुनौतियां आगे इंतजार कर रहीं थीं.