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भारतीयों की आक्रामक असहनशीलता

सहिष्णु भारतीय : असहिष्णु भारत – 4 रवि दत्त बाजपेयी शृंखला की चौथी कड़ी में आज जानें कि कैसे भारत में 1990 में अपनायी गयी नवउदारवादी आर्थिक व्यवस्था ने एक नितांत अनुदारवादी सामाजिक व्यवस्था को जन्म दिया है. इसके बाद से समय की कमी, दूसरों से आगे निकलने की जल्दी, और अधिकतम सुविधाएं बटोरने की […]

सहिष्णु भारतीय : असहिष्णु भारत – 4
रवि दत्त बाजपेयी
शृंखला की चौथी कड़ी में आज जानें कि कैसे भारत में 1990 में अपनायी गयी नवउदारवादी आर्थिक व्यवस्था ने एक नितांत अनुदारवादी सामाजिक व्यवस्था को जन्म दिया है. इसके बाद से समय की कमी, दूसरों से आगे निकलने की जल्दी, और अधिकतम सुविधाएं बटोरने की जिद ने भारतीय समाज में प्रचलित मान्यताओं और परंपराओं को ध्वस्त कर दिया है.
कतिपय लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों की अचल धारणा के विपरीत यह कहना प्रासंगिक है कि भारत में असहिष्णुता का आविर्भाव मई, 2014 से कहीं बहुत पहले हो चुका था. वैसे भी अधिकतर भारतीयों को बेहद भावुक, अतिशय अधीर और अत्यंत आवेशी माना जाता है, अर्थात भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से की सहनशीलता का दायरा बहुत सीमित है.
यह निश्चित बता पाना कठिन है कि भारतीय इतिहास में सहिष्णुता का स्वर्ण युग आखिर कब था, लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि वर्तमान भारत में लोक व्यवहार में सामान्य शिष्टाचार का विलोप हो चुका है. एक तरह से भारत में 1990 में अपनायी गयी नवउदारवादी आर्थिक व्यवस्था ने एक नितांत अनुदारवादी सामाजिक व्यवस्था को जन्म दिया है.
इसके बाद से समय की कमी, दूसरों से आगे निकलने की जल्दी, और अधिकतम सुविधाएं बटोरने की जिद ने भारतीय समाज में प्रचलित मान्यताओं और परंपराओं को ध्वस्त कर दिया है. इस नयी सामाजिक व्यवस्था ने लोक आचार के अनेक परंपरागत संयमी, समीचीन और संवेदी पहलुओं के प्रति भारतीयों को सर्वथा असहनशील बना दिया है.
आश्चर्यजनक रूप से भारतीय सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों के पुनरुत्थान को समर्पित धर्मध्वजा समूह इस संयमी, संस्कारी अनुशासन की धृष्ट अवहेलना में सबसे आगे है.
भारत में भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक स्थलों, सड़कों, वाहनों, कार्यालयों आदि में निःशक्त और वृद्ध लोगों के प्रति आम भारतीयों की असहनशीलता खुल कर सामने आती है. आधुनिक भारत एक ऐसा देश बन गया है जिसमें निःशक्त, वृद्ध या असहाय लोगों के लिए कोई ठौर नहीं है.
जहां एक और सार्वजनिक स्थलों जैसे सरकारी कार्यालयों में वृद्ध लोगों के बैठने के लिए कोई स्थान नहीं है, तो दूसरी ओर अपेक्षाकृत जवान और बलिष्ठ लोग, वृद्धों को खड़े रहने का स्थान देने को भी तैयार नहीं है. यह वृद्धों के प्रति असहनशीलता का सार्वजनिक पक्ष है, इस असहनशीलता का पारिवारिक-निजी पक्ष तो सीधे अपराधिक श्रेणी में आता है.
अपने बुजुर्गों के सम्मान की परंपरा की दुहाई देनेवाले भारत में वृद्ध लोगों को अपनी संतानों या नातेदारों से जैसा आक्रामक-निर्दयी-हिंसक व्यवहार सहना पड़ता है, उसके स्थान पर इनके लिए वृद्धाश्रम में अकेले रहना न सिर्फ सम्मानजनक बल्कि अनेक अवसरों में जीवनरक्षक भी है.
भारत में महिलाओं के प्रति प्राणघाती असहनशीलता तो उनके जन्म के पहले ही शुरू हो जाती है. इसके बाद भी यदि कोई दुःसाहसी लड़की भारत में जन्म ले ही ले, तो उसे हर कदम पर पक्षपात, बंदिशें, मौखिक, शारीरिक व मानसिक हिंसा के साथ ही भारतीय समाज की स्वाभाविक संस्थागत हिंसा का सामना करना होता है. इन सब बाधाओं को लांघ कर यदि कोई लड़की घरेलू या बाहरी परिवेश में अपने व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, स्वाभिमान, विद्या-बुद्धि-गुणों में अन्य पुरुष समकक्षों से बेहतर हो, तो भारतीय पुरुषों की असहनशीलता चरम पर पहुंच जाती है.
इसके अलावा सड़क पर आवागमन में किसी अन्य व्यक्ति, वाहन, एम्बुलेंस को अपने से आगे जाने देने, किसी वृद्ध, निःशक्त, महिला या बच्चों को जगह देने के मामले में भारतीय बहुत असहनशील है.
सभी भारतीय गंदगी, कूड़े, कचरे के प्रति स्वाभाविक तौर से एकदम असहनशील है और इसीलिए अपने घर, कार्यालय कक्ष, चलते हुए वाहन से पहले मौके पर कूड़ा-कचरा उठा कर बाहर फेंक देते है. भारत भर में कहीं भी स्वच्छ जल, वायु, मिट्टी, हरियाली, वृक्ष, पशु, पक्षी की उपस्थिति के प्रति भारतीय न सिर्फ बेहद असहिष्णु हैं, बल्कि इन प्राकृतिक संसाधनों के समूल विनाश के लिए बेहद अधीर भी हैं. अपनी सार्वजनिक घोषणाओं में हर भारतीय, देश में भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के लिए कटिबद्ध है, लेकिन शासन प्रणाली (गवर्नेंस) की हर ईमानदार, व्यवस्थित, सम्यक प्रक्रिया के प्रति भारतीय बेहद असहनशील है.
भारतीयों की असहनशीलता का यह हिंसक स्वरूप बहुत जल्द ही आक्रामक, विध्वंसक, तांडवी रूप भी ले सकता है. अपने स्वजातीय बंधुओं के प्रत्याशित नुकसान या उनके वास्तविक-कल्पित अपमान की आशंका मात्र से भारत में जैसे दावानल भड़क जाता है. भारतीयों में विश्व बंधुत्व के सैद्धांतिक पक्ष और स्वजाति बंधुत्व के व्यवहारिक पक्ष में सामंजस्य बैठाने की अद्वितीय योग्यता है, लेकिन स्वजाति हितों पर तिनका-सा अतिक्रमण भी उनके लिए असहनीय है.
भारतीय, वर्ष के लगभग हर दिन सर्वधर्म सद्भाव और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतिमान होते हैं, लेकिन शक्ति प्रदर्शन के किसी धार्मिक उत्सव के दिन वे अपने ध्वज, पताका, जुलूस के मार्ग और शौर्य प्रदर्शन पर किसी भी अनुशासन के प्रति बेहद असहनशील हैं. अनेक अवसरों पर धार्मिक उन्माद के इन सार्वजनिक प्रदर्शनों के दौरान भारतीयों की असहनशीलता की परिणिति व्यापक हिंसा के रूप में हुई है. इन सारी बातों के अलावा, भारतीयों की सबसे अधिक असहनशीलता, असहिष्णु या असहनशील पुकारे जाने पर है.
(जारी)

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