मिर्जा के अभिमान पर भारी पड़ी साहिबा की नादानी

मिर्जा-साहिबा की कहानी मोहब्बत की ऐसी कसौटी है, जो पुरुष के अभिमान और स्त्री के आत्मसम्मान की सरहदों को छूती, गुस्से और जिद के बचकानेपन से गुजरती, खून के दरिया को लांघती, पश्चाताप के आंसुओं में डूब अंततः मृत्यु की गोद में पनाह पाती है. साहिबा ने अपने भाइयों के साथ मिर्जा का टकराव टालने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 19, 2016 5:41 AM
an image
मिर्जा-साहिबा की कहानी मोहब्बत की ऐसी कसौटी है, जो पुरुष के अभिमान और स्त्री के आत्मसम्मान की सरहदों को छूती, गुस्से और जिद के बचकानेपन से गुजरती, खून के दरिया को लांघती, पश्चाताप के आंसुओं में डूब अंततः मृत्यु की गोद में पनाह पाती है. साहिबा ने अपने भाइयों के साथ मिर्जा का टकराव टालने की भरसक कोशिश की, लेकिन मिर्जा अपने तीन सौ तीरों के अभिमान में चूर था. साहिबा ने भाइयों को बचाने के लिए उसके सारे तीर नष्ट कर दिये, जो मिर्जा के मारे जाने की वजह बनी़
मिर्जा का जन्म पंजाब के गांव दानाबाद में और साहिबा का जन्म खेवा गांव में हुआ था. जैसे ही मिर्जा आठ साल का हुआ तब उसके माता-पिता ने उसे उसके मामा के यहां पढ़ने भेज दिया.
तब मिर्जा के मामा ने उसे वहां की मसजिद में पढ़ने के लिए मौलवी साहब के यहां भेजना शुरू कर दिया. उन्हीं मौलवी साहब के पास ही साहिबा भी पढ़ती थी़ धीरे-धीरे दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गयी. उम्र बढ़ते-बढ़ते उनकी यह दोस्ती कब प्यार में बदल गयी, उन्हें पता ही नहीं चला़ अब उनकी नजदीकियां भी बढ़ने लगी थीं. जब मौलवी साहब को यह पता चला, तो उनको यह बात रास नहीं आयी़ पर उन दोनों को अब किसी की भी परवाह नहीं थी.
धीरे-धीरे मिर्जा और साहिबा की मोहब्बत चर्चा-ए-आम हो गयी और बदनामी के डर से मिर्जा ने वह गांव ही छोड़ दिया और वापस अपने घर चला गया़ लेकिन साहिबा तो कहीं जा भी नहीं सकती थी.
दुनिया के तानों और मिर्जा के वियोग का संताप सहती वो वहीं अपने दिन गुजारती़ माता-पिता के सामने तो कुछ न बोलती, पर भीतर ही भीतर तड़पती रहती. माता-पिता ने बदनामी से तंग आकर साहिबा का विवाह तय कर दिया़ कोई रास्ता न देख कर साहिबा ने मिर्जा को संदेश भेजा कि उसे आकर ले जाये. साहिबा की पुकार सुन कर मिर्जा तड़प उठा और घर-परिवार की परवाह किये बिना उसे लेने निकाल पड़ा.
कहते हैं जब वह घर से चला, तो हर तरफ बुरे शगुन होने लगे. पर मिर्जा तो ठान ही चुका था. अब रुकने का तो सवाल ही नहीं था. उधर साहिबा की बारात उसके गांव पहुंच चुकी थी.
लेकिन साहिबा मिर्जा के आने की खबर सुन कर अपनी सहेली की सहायता से रात के समय उससे मिली. बारात मुंह ताकती रह गयी और साहिबा रात में ही मिर्जा के साथ भाग निकली. रास्ते में मिर्जा के एक पुराने दुश्मन फिरोज डोगर ने उनका रास्ता रोक लिया और काफी देर तक उन्हें उलझाये रखा.
आखिर तंग आ कर मिर्जा ने अपनी तलवार निकाली और एक ही वार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. मिर्जा के इस रूप को देख कर उसकी साहिबा थोड़ी डर गयी और अपने भाइयों के बारे में सोचने लगी. इस खूनी कांड से घबरा कर उसने मिर्जा से जल्द से जल्द उस स्थान से दूर चलने की सलाह दी. पर मिर्जा इस अनचाहे युद्ध से जितना थका नहीं था, उससे भी ज्यादा चिढ़ गया था़ बहरहाल, थोड़ी दूर जाकर वह दोनों थक गये और एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे.मिर्जा एक तेज-तर्रार और निडर योद्धा था़ उस समय उसके तरकश में तीन सौ तीर और एक तलवार थे
Exit mobile version