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कॉरपोरेट जासूसी का महाजाल

पिछले साल पेट्रोलियम मंत्रालय से गोपनीय दस्तावेजों की चोरी के मामले में देश की सभी निजी पेट्रोलियम कंपनियों के शामिल होने की बात खुलने के बाद कॉरपोरेट जासूसी की गंभीरता पर चर्चा फिर से शुरू हुई थी, जो राडिया टेप के खुलासे पर हुए हंगामे के बाद थम-सी गयी थी. हालांकि, यह मामला भी जल्दी […]

पिछले साल पेट्रोलियम मंत्रालय से गोपनीय दस्तावेजों की चोरी के मामले में देश की सभी निजी पेट्रोलियम कंपनियों के शामिल होने की बात खुलने के बाद कॉरपोरेट जासूसी की गंभीरता पर चर्चा फिर से शुरू हुई थी, जो राडिया टेप के खुलासे पर हुए हंगामे के बाद थम-सी गयी थी. हालांकि, यह मामला भी जल्दी ही सुर्खियों से ओझल हो गया. लेकिन, अब एस्सार ग्रुप द्वारा मंत्रियों, नेताओं और नौकरशाहों के फोन टेप करने का मामला सामने आने से यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है.

फोन टैपिंग का कारोबार!

टैपिंग का अंतहीन सिलसिला

राडिया टेप के पहले और बाद में भी कॉरपोरेट जासूसी के छोटे-बड़े मसले आते रहे हैं, लेकिन राजनीति, उद्योग जगत और पत्रकारिता के जटिल तथा विवादास्पद अंतर्संबंधों के कारण इस समस्या को कभी जरूरी गंभीरता से नहीं लिया गया. कॉरपोरेट जासूसी के जाल के व्यापक फैलाव का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य जगत की प्रमुख संस्था एसोचैम ने 2012 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय 35 फीसदी से अधिक कंपनियां अपने व्यापारिक प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकलने की जुगत में किसी-न-किसी तरह की जासूसी करती हैं. फिर 2013 में शोध और सर्वेक्षण की प्रतिष्ठित संस्था प्राइस वाटरहाउस कूपर ने औद्योगिक जासूसी को ‘भारत का नया उभरता हुआ क्षेत्र’ कहा था.

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कंपनियों के करीब 80 फीसदी शीर्ष अधिकारी व्यावसायिक विरोधियों को मात देने की कोशिश करने के साथ-साथ अपने पूर्व और मौजूदा कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए जासूसी और निगरानी एजेंसियों की मदद लेते हैं. संस्था ने यह भी रेखांकित किया था कि इससे भारतीय बाजार को बहुत नुकसान हो रहा है. प्राइस वाटरहाउस कूपर ने इस वर्ष मई में जारी फिजिकल सिक्योरिटी एन्वायरमेंट सर्वे में भी कॉरपोरेट जासूसी को एक बड़ी चुनौती के रूप में चिह्नित किया है.

उद्योग जगत की एक अन्य प्रतिनिधि संस्था फिक्की ने 2014 के अपने वार्षिक रिस्क सर्वे में व्यापारिक जासूसी को भारतीय कंपनियों के लिए नौवां सबसे बड़ा खतरा माना था. फिक्की ने यह चिंता भी जतायी थी कि क्लोज्ड सर्किट टीवी और ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर के बहुत इस्तेमाल के बावजूद कॉरपोरेट जासूसी के मात्र 15-20 फीसदी मामले ही पकड़ में आ पाते हैं.

हालांकि इन रिपोर्टों में मुख्य रूप से व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ जासूसी पर फोकस किया गया है, लेकिन इनमें यह भी इंगित किया गया है कि कंपनियां अपने फायदे के लिए अवैध तरीकों का इस्तेमाल करती हैं जिसका निशाना सरकार होती है. भारतीय नौकशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के जरिये वे मंत्रालयों को प्रभावित करने और जरूरी सूचनाओं को पाने का जुगाड़ करती हैं.

क्या है टैपिंग का नया खुलासा

प्रधानमंत्री कार्यालय में की गयी एक शिकायत के हवाले से अंगरेजी दैनिक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और पाक्षिक ‘आउटलुक’ ने खबर दी है कि देश की बड़ी औद्योगिक कंपनी एस्सार ने 2001 से 2006 के बीच मंत्रियों, राजनेताओं, राजनीतिक पहुंच रखनेवाले अन्य लोगों और वरिष्ठ अधिकारियों के फोन टेप किये थे. सुप्रीम कोर्ट के वकील सुरेन उप्पल ने अपनी शिकायत में कहा है कि एस्सार के तत्कालीन सुरक्षा और विजिलेंस प्रमुख अल बासित खान की निगरानी में इस काम को अंजाम दिया गया. हालांकि कंपनी और बासित ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है, लेकिन उप्पल की मांग है कि सरकार इस मामले की जांच कराये.

रिपोर्टों में कहा गया है कि एस्सार ने उद्योगपतियों- मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी, अभिनेता अमिताभ बच्चन, समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह और अमर सिंह, कारोबारी सुब्रत राय समेत भाजपा नेताओं- प्रमोद महाजन, जसवंत सिंह, पीयूष गोयल, सुरेश प्रभु तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रफुल्ल पटेल समेत कई लोगों के फोन रिकॉर्ड किये. इनमें मौजूदा गृह सचिव राजीव महर्षि, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पूर्व सलाहकार ब्रजेश मिश्र और विशेष अधिकारी रंजन भट्टाचार्य के नाम भी शामिल हैं.

कॉरपोरेट जासूसी के कुछ कुख्यात मामले

पेट्रोलियम मंत्रालय में सेंध (2015)

पिछले साल के शुरू में पेट्रोलियम मंत्रालय से संवेदनशील दस्तावेजों की चोरी और इस सिलसिले में सभी निजी पेट्रोलियम कंपनियों के अधिकारियों की गिरफ्तारी ने देश को अचंभित कर दिया था. ये अधिकारी प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी की रिलायंस ग्रुप की कंपनियों के अलावा एस्सार, कैरंस इंडिया और जुबिलैंट एनर्जी से संबद्ध थे.

इस मामले में संबंधित मंत्रालय के अनेक और रक्षा मंत्रालय के एक कर्मचारी के साथ एक पूर्व पत्रकार और एक एनर्जी कंसल्टेंट को भी पकड़ा गया था. केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा दाखिल दो मामलों में कुल 16 लोग हिरासत में लिये गये थे. फिलहाल यह मामला अदालत के विचाराधीन है.

बालासुब्रमण्यम मामला (1998)

वाजपेयी सरकार के सत्ता संभालने के कुछ ही समय बाद दिल्ली पुलिस ने तेल मंत्रालय से दस्तावेज उड़ाने के रैकेट का भंडाफोड़ किया था. इस मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज के बड़े अधिकारी वी बालासुब्रमण्यम और कॉरपोरेट जगत से जुड़े दो अन्य लोगों- एएन सेतुरमण और शेखर अडावाल- को गिरफ्तार किया गया था.

अप्रैल, 2002 में सीबीआइ की शिकायत का अदालत द्वारा संज्ञान लेने तथा 2011 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुकदमा चलाने के आदेश के बावजूद यह मामला अब भी अधर में लटका है. अभियुक्तों के पास से बरामद दस्तावेज में भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों के असर पर कैबिनेट सचिवालय के दस्तावेज, विनिवेश पर सचिवों की कोर ग्रुप की बैठक के विवरण तथा तेल व तेल उत्पादों पर कर के प्रस्ताव जैसे कागजात थे. इस मामले में बालासुब्रमण्यम का नाम तब उजागर हुआ था, जब दाऊद इब्राहिम के नजदीकी रोमेश शर्मा को हेलीकॉप्टर चोरी के आरोप में पकड़ा गया था. उसने पुलिस को बताया था कि हेलीकॉप्टर के कागज बालासुब्रमण्यम के पास हैं. इसके बाद पुलिस ने उसके घर छापा मारा, जिसमें संवेदनशील दस्तावेज की बरामदगी हुई.

कुमर नारायण केस (1985)

वर्ष 1985 में प्रधानमंत्री कार्यालय से गोपनीय दस्तावेज चुराने के मामले में कुमर नारायण को हिरासत में लिया गया था. इस मामले के उजागर होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रमुख सचिव पीसी एलेक्जेंडर को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. कई अन्य अधिकारियों को समय से पहले ही सेवामुक्त होना पड़ा था. कुमर नारायण के संपर्क सूत्र हर महत्वपूर्ण मंत्रालय में थे और उनके जरिये प्राप्त दस्तावेज को वह स्थानीय व्यापारियों तथा विभिन्न दूतावासों को बेचता था. उसने जांचकर्ताओं को बताया था कि वह इस काम में बीते 25 सालों से लगा हुआ है.

नीरा राडिया टेप (2008-09)

आयकर विभाग ने 2008 से 2009 के बीच कॉरपोरेट लॉबिंग के बड़े नाम नीरा राडिया के साथ कुछ वरिष्ठ पत्रकारों, राजनेताओं तथा कॉरपोरेट घरानों के अधिकारियों की बातचीत को रिकॉर्ड किया था. नीरा राडिया एक पब्लिक रिलेशन कंपनी चलाती थीं, जिसके ग्राहकों में टाटा टेलीसर्विसेज तथा मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां शामिल थीं. गृह मंत्रालय से मंजूरी के बाद आयकर विभाग द्वारा अवैध रूप से धन बाहर भेजने, करों की चोरी और गलत वित्तीय हरकतों के बाबत जांच के दौरान राडिया के फोन 300 दिनों तक रिकॉर्ड किये गये. वर्ष 2010 में दो अंगरेजी पत्रिकाओं- ‘ओपेन’ और ‘आउटलुक’- ने इन रिकॉर्डिंग के बड़े हिस्से को प्रकाशित कर दिया. टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ ने बताया था कि उसके पास राडिया की बातचीत की 5,851 घंटों की रिकॉर्डिंग है. अनेक मीडिया प्रकाशनों और चैनलों द्वारा बातचीत के ब्यौरे और उसके बारे में चर्चा नहीं करने के बावजूद सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से लोगों ने इन्हें सुना और पढ़ा था.

टेप में वर्णित कुछ लोगों ने पत्रिकाओं पर मुकदमा भी किया और विवरणों का खंडन किया. बहरहाल, कुछ समय तक सनसनीखेज चर्चा में रहने के बाद ये टेप भी स्मृति से लुप्त हो गये. राडिया को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया, पर पूरे मामले में क्या प्रगति हुई, आम लोगों को पता नहीं.

कुछ हािलया कांड

वित्त मंत्री के कार्यालय में बगिंग (2010)

सितंबर, 2010 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजे पत्र में जासूसी का शक जताया था. उन्होंने इस पत्र में वित्त मंत्रालय में 16 जगहों पर चिपकानेवाला पदार्थ मिलने की शिकायत की थी.

मनमोहन सरकार द्वारा कथित टैपिंग (2010)

अप्रैल, 2010 में आउटलुक पत्रिका ने तत्कालीन मनमोहन सरकार पर देश के कुछ शीर्ष नेताओं के फोन टैप करने के आरोप लगाये थे, जिनमें तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार, वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात शामिल थे. इस मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग को सरकार ने खारिज कर दिया था.

जेटली का फोन रिकॉर्ड करने का मामला (2013)

फरवरी, 2013 में राज्यसभा में विपक्ष के तत्कालीन नेता अरुण जेटली के फोन टैपिंग मामले में अनेक लोगों को पकड़ा गया था. इस मामले में दिल्ली पुलिस ने सहायक उपनिरीक्षक गोपाल, हेड कांस्टेबल हरीश, जासूस आलोक गुप्ता, सैफी और पुनीत के अलावा एक अन्य कांस्टेबल को गिरफ्तार किया था.

इन मामलों के अलावा ऐसे भी कई जासूसी कांड हुए हैं, जिनमें संवेदनशील रक्षा दस्तावेजों को बेचा गया है. हालांकि ये मामले सीधे कॉरपोरेट जासूसी के नहीं हैं, लेकिन ऐसी सूचनाएं कई दफा व्यापारिक हितों और टेंडर प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस पर छापा (1987)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक एवं पत्रकार एस गुरुमूर्ति को 1987 में चेन्नई में पकड़ कर दिल्ली लाया गया था. इंडियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका के गेस्ट हाउस पर गुरुमूर्ति के साथ पुलिस ने छापा मारा था. गुरुमूर्ति के पास से सरकार की कपड़ा नीति से संबंधित दस्तावेज बरामद हुए थे.

फोन टैपिंग के संबंध में क्या कहता है कानून

भारत में इलेक्ट्रॉनिक डेटा और कम्युनिकेशन से जुड़े मामलों को इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के तहत रखा जाता है. वर्ष 2008 में एक संशोधित कानून पारित कर इसमें डेटा सुरक्षा, निजता, साइबर आतंकवाद आदि से जुड़े कुछ नये प्रावधान जोड़े गये. डेटा चोरी, पहचान की चोरी, साइबर अपराधों आदि गड़बड़ियों की रोकथाम के लिए यह संशोधन उचित पहल है. इस लिहाज से इसमें कॉरपोरेट जासूसी के अपराध का भी संज्ञान लिया जा सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि किसी कंपनी की लापरवाही से किसी व्यक्ति की सूचनाओं की चोरी होती है या उसे नुकसान होता है, तो उस कंपनी को प्रभावित व्यक्ति को मुआवजा देना पड़ेगा. इस प्रकार यह कानून कॉरपोरेट इकाइयों को भी जवाबदेह बनाता है.

गुप्त जानकारियां बाहर आकर षड्यंत्रों को दावत देती हैं

हमारा सरकारी समाज एक बंद समाज है, जहां बहुत सी गुप्त सूचनाएं सुरक्षा की दृष्टि से अहम होती हैं. नीतियों का निर्धारण करनेवाले इस बंद समाज में कौन क्या कर रहा है, इसकी सूचना पा लेने के बाद लोग इसे भुनाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि ऐसी सूचना एक को फायदा पहुंचा सकती है, तो दूसरे को नुकसान भी पहुंचा सकती है. इसी फायदे-नुकसान के खेल में कुछ लोग लगे रहते हैं. अभी सामने आया एस्सार फोन टैपिंग का मामला भी कुछ ऐसा ही है.

मोहन गुरुस्वामी

अर्थशास्त्री

यह सूचना का दौर है और सूचना ही आज के दौर की ताकत है. वह था कोई दौर जब ज्ञान हमारी ताकत हुआ करता था, लेकिन आज सूचना हमारी ताकत बन गयी है. मुक्त समाजों में ज्ञान हमारी ताकत हुआ करता था, लेकिन बंद समाज में सूचना ही ताकत बन चुकी है, क्योंकि बंद कमरे में कुछ अधिकारियों के सामने बननेवाली नीतियों की कई गुप्त जानकारियां सूचना के रूप में बाहर आकर षड्यंत्रों को दावत देती हैं. सूचना की इस ताकत का जब गलत इस्तेमाल किया जाता है, तो वह जासूसी की शक्ल में हमारे सामने आती है. इस तरह की जासूसी के जरिये कुछ लोग सरकार को मरोड़ने और ऊपर-नीचे करने में लगे रहते हैं. जाहिर है, इससे कुछ लोगों को कुछ फायदा तो मिल ही जाता है. राजा-महाराजाओं के जमाने में जब दो सेनाएं आपस में लड़ती थीं, उस दौरान दोनों तरफ के गुप्तचर एक-दूसरी सेना की गुप्त सूचनाएं और रणनीतियाें की जानकारियाें को अपने राजाओं तक पहुंचाते थे, ताकि वे लड़ाई के मैदान में एक-दूसरे की काट तैयार कर सकें. आज के आधुनिक दौर में गुप्तचर का यही काम जासूसी कहलाता है.

हमारा सरकारी समाज एक बंद समाज है, जहां बहुत सी गुप्त सूचनाएं सुरक्षा की दृष्टि से अहम होती हैं. नीतियों का निर्धारण करनेवाले इस बंद समाज में कौन क्या कर रहा है, इसकी सूचना पा लेने के बाद लोग इसे भुनाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि ऐसी सूचना एक को फायदा पहुंचा सकती है, तो दूसरे को नुकसान भी पहुंचा सकती है. इसी फायदे-नुकसान के खेल में कुछ लोग लगे रहते हैं. अभी सामने आया एस्सार फोन टैपिंग का मामला भी कुछ ऐसा ही है.

फोन टैपिंग के जरिये गुप्त सूचनाएं हासिल कर कोई अच्छा काम तो कर नहीं रहा है. ऐसा करना कानूनन भी अपराध है. और सबसे बड़ी बात यह है कि इस फोन टैपिंग में सरकार में शामिल लोग भी जुड़े हुए हैं, जिसके चलते इस मामले को लेकर प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनने के बाद भी चिट्ठी लिखनी पड़ी थी. इसके पहले अंबानी का फोन टेप करने का मामला सामने आया था. बहुत से बड़े सरकारी अधिकारी अपने रिटायरमेंट के बाद तो इसी काम में लग जाते हैं, क्योंकि उनको सरकारी कार्यालयों की सारी गतिविधियां पता होती हैं. हमारी राजनीति भी ऐसे लोगों को पालती-पोसती है, ताकि वह अपने राजनीतिक षड्यंत्रों को धार दे सके. (बातचीत पर आधारित)

नीतियों को प्रभावित करने की जुगत

परंजॉय गुहा ठकुरता

संपादक, इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (इपीडब्ल्यू)

कॉरपोरेट जासूसी का नेक्सस हमारे देश में भ्रष्ट पूंजीपति, भ्रष्ट राजनेता और भ्रष्ट सरकारी अधिकारी यानी नौकरशाह, इन तीनों के बीच गंठबंधन से जुड़ा है, जो बड़े स्तर पर हमारी राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है. हालांकि, कॉरपोरेट जासूसी सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, दुनिया के तमाम प्रमुख देशों में देखने को मिलती है. कॉरपोरेट जासूसी की शुरुआत चुनाव के समय से ही हो जाती है. हमारे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में नेताओं-पार्टी प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने में खर्च होनेवाले पैसे में एक बहुत बड़ा हिस्सा कालाधन होता है.

यह पैसा कॉरपोरेट घरानों के मालिकों, पूंजीपतियों आदि से आता है. एक तरह से यह कॉरपोरेट घरानों का अघोषित निवेश है. कोई निवेश तभी करता है, जब बाद में उससे उसको फायदा होने की उम्मीद हो.

जब नेता चुनाव जीत कर सांसद, विधायक या मंत्री बन जाते हैं, तब कॉरपोरेट घराने उन पर इस बात का दबाव बनाते हैं कि सरकार किस तरह से चलेगी, बड़े-बड़े ठेके और टेंडर किस तरह से बनेंगे-मिलेंगे और किस तरह से सरकार की नीतियां कॉरपोरेट घरानों के अनुकूल होंगी. यहां तक कि मंत्रालयों की नीतियां क्या होनी चाहिए, इस पर भी असर पड़ता है. क्योंकि, एक तरह से सरकार की नीतियों को सरकार में बैठे भ्रष्ट नेता और भ्रष्ट सरकारी अधिकारी जाहिर कर देते हैं.

उधर, अपने-अपने फायदे के लिए कॉरपोरेट घरानों के बीच एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा रहती ही है. इस तरह से सरकार की नीतियों को अपने अनुकूल करने के लिए और उन्हें अपने फायदे में बदलने के लिए कंपनियां सत्ताधारी नेताओं, उद्योगपतियों, प्रसिद्ध हस्तियों और नौकरशाहों की जासूसी कराती हैं. भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट पूंजीपति और भ्रष्ट नौकरशाह आपस में एक-दूसरे की मदद करते हैं. राजनेता पूंजीपति की मदद करता है और पूंजीपति राजनेता की. इन सबको रास्ता दिखाने का काम करते हैं नौकरशाह, जो सरकार को बताते हैं कि किस तरह की नीति बननी चाहिए.

एस्सार द्वारा फोन टैपिंग की हालिया खबर यह साफ दिखाती है कि हमारी सरकारी व्यवस्था में, हमारे मंत्रालयों में, हमारे सरकारी विभागों में क्या-कुछ हो रहा है. सरकार में जो कोई नेता या किसी विभाग में कोई नौकरशाह अगर सही तरह से काम करना चाहता है, भ्रष्टाचार के रास्ते को नहीं अपनाना चाहता है, तो उसे हटा दिया जाता है, क्योंकि जासूसी के जरिये कंपनियां पता लगा लेती हैं कि अगर कोई ईमानदार होगा, तो उसका काम रुक जायेगा, उसकी फाइल आगे नहीं बढ़ेगी.

पिछले कुछ वर्षों से देश के कुछ मंत्रालय, जैसे पेट्रोलियम या वित्त मंत्रालय, में सरकारी अफसर जो कुछ भी करते हैं, मंत्रियों के सचिव जो कुछ तय करते हैं, उसकी खबर कंपनियों तक पहुंच जाती है. इससे पता चल जाता है कि किस अधिकारी पर दबाव देना है या घूस देना है और किस मंत्री का मंत्रालय बदलवाना है. यह खेल बहुत ही बड़े स्तर पर होता है. इसी खेल का नाम कॉरपाेरेट जासूसी है.

कॉरपोरेट जासूसी का बहुत बड़ा नुकसान ईमानदारी के कत्ल और भ्रष्टाचार के पनपने-बढ़ने के रूप में होता है. दरअसल, भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट पूंजीपति और नौकरशाह, इन तीनों के गंठबंधन में ईमानदार नेता या ईमानदार नौकरशाह की कोई भूमिका नहीं होती, जासूसी से यह बात पता चल जाती है.

अब इसके बाद उनके पास दो ही रास्ते हैं- या तो वे ईमानदार नेता या नौकरशाह भी भ्रष्ट हो जायें या वे अपना पद गंवायें. इन दोनों ही स्थितियों में सीधा लाभ कॉरपोरेट को होता है, क्योंकि ईमानदार नेता या नौकरशाह अगर भ्रष्ट हो जायें, तो उनके काम आयेंगे, और अगर पद से हटा दिये गये, तो उनके बीच में ही नहीं आ पायेंगे. इस तरह सरकार की नीतियां और योजनाएं कॉरपोरेट घरानों के अनुकूल हो जाती हैं और भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है. कुल मिला कर कहा जाये, तो सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए होती है कॉरपोरेट जासूसी.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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