अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष : योग का उद्देश्य व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन लाना

यम-नियम-योगविद्या के आधार स्वामी निरंजनानंद सरस्वती अपने जीवन में एक सच्ची यौगिक संस्कृति को स्थापित करने के लिए अब हमें योग के वास्तविक उद्देश्यों को ग्रहण करना है. चार-पांच आसन और एक-दो प्राणायाम करके, आधा घंटा सोकर अगर हम ढिंढोरा पीटें कि हम योगी बन गये हैं, तो वह अपनी ही फजीहत करने के बराबर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 21, 2016 5:52 AM
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यम-नियम-योगविद्या के आधार
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
अपने जीवन में एक सच्ची यौगिक संस्कृति को स्थापित करने के लिए अब हमें योग के वास्तविक उद्देश्यों को ग्रहण करना है. चार-पांच आसन और एक-दो प्राणायाम करके, आधा घंटा सोकर अगर हम ढिंढोरा पीटें कि हम योगी बन गये हैं, तो वह अपनी ही फजीहत करने के बराबर है. पढ़िए यह आलेख.
योग के वास्तविक स्वरूप और महत्व को आज तक शायद ही कोई समझा है. प्राय: सभी लोगों ने योग को केवल आसन-प्राणायाम तक ही सीमित किया है. आप जो योगाभ्यास करते हो, उसमें ज्यादा-से-ज्यादा क्या करते हो? आप कहीं जाकर योग सीखते हो, तो क्या सीखते हो? कुण्डलिनी योग, क्रियायोग, नादयोग, मंत्रयोग या लययोग तो नहीं सीखते न? हठयोग भी क्या पूरा सीखते हो? नहीं, आठ-दस आसन और दो-तीन प्राणायाम. राजयोग क्या पूरा सीखते हो? नहीं, अगर योगनिद्रा भी करते हो, तो सोने के लिए करते हो.
कोई यह प्रयास नहीं करता कि मैं योग निद्रा करते समय जगा रहूं. सब सोना चाहते हैं, जो उस अभ्यास के निर्देश के विपरीत है. इसलिए आपका वह अभ्यास भी अधूरा है. ध्यान में क्या करते हो? एक-आध मंत्र कर लिया, अपने मंदिर में धूप-दीप दिखा दिया, फिर छुट्टी. इसके बावजूद आप कहो कि हम एक योगमय जीवन बिताते हैं, तो यह वही बात हुई कि चावल के चार दाने खाकर कहना मैंने भरपेट भोजन कर लिया है. आसन प्राणायाम, योगनिद्रा और ध्यान तो केवल चार दाने हुए, पर उसे ही आप योग कहते हो!
योग एक विद्या है, एक विज्ञान है, जिसका उद्देश्य है व्यक्तित्व में एक सकारात्मक परिवर्तन लाना, स्वयं को सदविचार, सद्व्यवहार एवं सत्कर्म से युक्त करना. उसी से जीवन में सुख, शांति और तृप्ति आती है. अगर आप कहते हो कि योग का उद्देश्य चित्तवृत्ति-निरोध है, तो क्या आप दस आसनों से, दो प्राणायामों से ऐसी योग निद्रा से, जिसमें सोते रहते हो और झपकते हुए ध्यान के अभ्यास से चित्तवृत्तियों का निरोध कर पाओगे? क्या यह संभव है?
चित्तवृत्तियों का निरोध तभी संभव होगा, जब हम अपनी ऊर्जाओं को संतुलित कर पायेंगे, अपनी इच्छाओं एवं महत्वाकांक्षाओं को व्यवस्थित कर पायेंगे, अपने ऊपर थोड़ा संयम का अंकुश रख पायेंगे.
इसीलिए योग की सभी शाखाओं में यम और नियम की चर्चा होती है. लोग व्याख्यान तो बहुत देते हैं कि योग का मतलब होता है, चित्तवृत्ति-निरोध, लेकिन जब अभ्यास की बारी आती है, तो गठिया के लिए केवल तीन-चार आसन कर लिये, दमा के लिए एक प्राणायाम का अभ्यास कर लिया, अनिद्रा की शिकायत के लिए योगनिद्रा का अभ्यास कर लिया और मन को संतुष्ट करने के लिए पांच मिनट अजपा-जप या अंतरमौन का अभ्यास कर लिया. राजयोग में महर्षि पतंजलि ने पांच यम और पांच नियम बताये हैं, लेकिन उनका अभ्यास कोई नहीं करता. स्वात्माराम जी ने हठयोग-प्रदीपिका में दस यमों और दस नियमों की चर्चा की है, लेकिन उनके बारे में कोई बात नहीं करता. मतलब हर व्यक्ति पहली और दूसरी कक्षा को छोड़ कर सीधे तीसरी कक्षा में प्रवेश करना चाहता है. इसी वजह से योग हमलोगों के जीवन में सिद्ध नहीं हो पाया.
हर योग में यम और नियम आवश्यक हैं. वे उस योग के पूरक होते हैं. राजयोग को सिद्ध करने के लिए महर्षि पंतजलि ने पांच यमों और पांच नियमों की चर्चा की है, जो उस योग के लिए पर्याप्त हैं. हठयोग को सिद्ध करने के लिए स्वात्माराम जी ने दस यम और दस नियम बताये हैं, जो राजयोग से एकदम अलग हैं. इसी प्रकार अन्य योग संहिताओं में हर योग के लिए अलग-अलग यम और नियम निश्चित किये गये हैं. उनका प्रयोजन होता है. अच्छे संस्कारों का निर्माण करना और जीवन से संघर्ष करने की, जीवन को समझने की क्षमता प्रदान करना.
योग शास्त्र में, मैं अब किसी शाखा विशेष की बात नहीं कर रहा हूं, न राजयोग, न हठयोग, न कर्मयोग, न भक्ति योग, बल्कि योग शास्त्र में जो पहला यम और जो पहला नियम बताया गया है, वह है मन: प्रसाद और जप. मन: प्रसाद का अर्थ होता है प्रसन्नता.
आप जरा समय निकाल कर देखो कि आपके दिन में प्रसन्नता के कितने मिनट होते हैं और चिंता के कितने. आपको तुरंत अनुमान हो जायेगा कि आपके जीवन में कितनी प्रसन्नता है और कितनी चिंता. अगर पूरे दिन में आप एक दो घंटा प्रसन्न रहे होंगे, तो आठ-नौ घंटा चिंता और परेशानी में. मेरी बात पर यकीन न हो तो एक बार गणित लगा कर आजमा लीजिए. तुरंत आपको आभास हो जायेगा कि आपकी मनोदशा किस तरह की है.
अब आपके सामने चुनौती यह है कि प्रसन्नता के इन क्षणों को बढ़ाइए. दस मिनट को पंद्रह मिनट, पंद्रह मिनट को बीस मिनट, बीस मिनट को तीस मिनट करते हुए बढ़ाते जाइए. एक-दो साल में आप अपने-आपको इस प्रकार का प्रशिक्षण दे सकते हैं कि आप अपनी जागृत अवस्था में हमेशा प्रसन्न रह पायेंगे.
प्रसन्नता का मतलब कर्तव्य या परस्थिति कीउपेक्षा करना नहीं, बल्कि प्रसन्नचित्त होकर अपने सभी दायित्वों का निर्वाह करना. अगर आप दिन भर प्रसन्न रहेंगे, तो आपको चिंता, परेशानी और दु:ख के बाण कम लगेंगेे. प्रसन्नता जीवन में ऐसा कवच है, जो आपको हर दु:ख से सुरक्षित रखता है, जहां पर प्रसन्नता है, वहां पर दु:ख नहीं और जहां पर प्रसन्नता नहीं, वहां पर दु:ख है. इसलिए प्रसन्नता को पहला यम माना गया है.
उसके बाद पहला नियम है जप. दिन भर हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से संसार के विषयों के साथ जुड़े रहते हैं. क्या पांच मिनट भी हम अपने आपको संसार के इन अनुभवों से अलग कर पाते हैं? नहीं, सोते भी हैं तो स्वप्न में हमें संसार के ही दृश्य दिखाई देते हैं.
अगर मन में कोई चिंता या परेशानी थी, तो सपने में भी वही चीज दिखाई देती है. निद्रा अवस्था में भी हम संसार से मुक्त नहीं होते. यह बतलाता है कि मन का संबंध संसार के साथ सतत रहता है. अब इस संबंध को क्या हम कुछ देर के लिए तोड़ सकते हैं? पांच मिनट, दस मिनट, बीस मिनट क्या हम स्विच को ऑफ कर सकते हैं? जब हम संसार से अपने स्विच को ऑफ कर पाते हैं, तब फिर अपने में रम जाते हैं. उस समय फिर देश, काल, द्वैत अनुभव, सब समाप्त हो जाते हैं. गहन शांति और आनंद का अनुभव होता है.
उसे कहते हैं-आत्मिक अनुभव. इस अनुभव को पाने के लिए पांच मिनट ही सही, पर संसार से अलग होने का एक निर्णय ले लो. आंखें बंद कर लो, हाथ में माला ले लो, पांच मिनट अपने आराध्य का मंत्र जप करो. माला में 108 दाने होते हैं, क्या 108 बार नाम ले सकते हो बिना मन के भागे? दस दानों में ही मन भाग जायेगा, आप अपने मन को मंत्र पर एकाग्र नहीं रख पाओगे. यह चंचलता दर्शाती है कि मन को संसार से अलग करना कितना कठिन होता है. आदमी अपने मन की मार से इतना परेशान, विवश और लाचार है कि एक माला जपने के लिए भी वह अपने मन को शांत नहीं रख सकता और चाहता है-समाधि, मोक्ष और देव-दर्शन!
जप के नियम का निर्देश इसलिए दिया गया है ताकि आप धीरे-धीरे अपने आपको संसार के संबंधों से कुछ क्षणों के लिए अलग कर सको. एक बार जप में तन्मयता आ जाये तब फिर आदमी बाहर की दुनिया भूल जाता है. वाल्मीकि की कहानी मालूम है न? राम नाम का जप करने लगे तो सब भूल गये.
जप में इतने तन्मय हो गये कि उनके शरीर पर दीमक का घर बन गया, पर उन्हें आभास तक नहीं हुआ. खैर, उनकी बात दूसरी है, हमलोगों को तो दस मिनट के बाद फिर संसार में लगना है. इन दस मिनटों में हम अपने-आपको जप के माध्यम से संसार के विषयों से पूरी तरह अलग कर लें. उसके बाद बेशक संसार में अपना रोना-धोना करें, लेकिन उन दस मिनटों के लिए अपने रोने धोने से मुक्त हो जायें, अपने रोने-धोने से मुक्त हो जायें, अपने आत्मिक स्वरूप से संबंध जोड़ पायें- चिदानंदरूप: शिवोऽहं शिवोऽहम्, यही प्रयोजन है.
पचास साल तक हमलोगों ने योग प्रचार का कार्य देश-विदेश में सब जगह जम कर किया. लेकिन, एक बात याद रहे कि बिहार योग विद्यालय योग प्रशिक्षण केंद्र नहीं है. योग प्रशिक्षण के सैकड़ों अन्य केंद्र हैं, लेकिन बिहार योग विद्यालय योग संवर्धन केंद्र है, जहां पर हमलोग योग के नये-नये आयामों पर शोध करके उन्हें समाज में लाते हैं. इस साल से हमलोगों का एक पूर्णत: नया कार्यक्रम आरंभ हुआ है, जिसका उद्देश्य योगविद्या को आत्मसात करना है.
इस कार्यक्रम के अंतर्गत योग के अनेक अल्प-चर्चित, किंतु अति-व्यावहारिक पक्षों को प्रस्तुत किया जायेगा. अपने जीवन में एक सच्ची यौगिक संस्कृति को स्थापित करने के लिए अब हमें योग के वास्तविक उद्देश्यों को ग्रहण करना है. चार-पांच आसन और एक-दो प्राणायाम करके, आधा घंटा सोकर अगर हम ढिंढोरा पीटें कि हम योगी बन गये हैं, तो वह अपनी ही फजीहत करने के बराबर है. इसीलिए इस साल से हमलोग योगविद्या के मूल चिंतनों को सिखलाने और अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास कर रहे हैं.
(-28 फरवरी, 2016, गंगा दर्शन. यह लेख योगविद्या, मई 2016 से साभार लिया गया है. यह मूल लेख का संपादित रूप है.)
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