खाद्य संकट
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गलत नीतियों से गहरे संकट में फंसा एक देश
खाद्य संकट वेनेजुएला में लूटे जा रहे दुकान और मॉल डॉ रहीस सिंह तेल उत्पादक देश वेनेजुएला ऐसे आर्थिक व खाद्य संकट में फंसा है, जिससे निकलने की राह नहीं सूझ रही है. दुकानों में सामान लूटे जा रहे हैं. बिजली और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सीमित हो गयी है. आखिर इस संकट की वजह […]
वेनेजुएला में लूटे जा रहे दुकान और मॉल
डॉ रहीस सिंह
तेल उत्पादक देश वेनेजुएला ऐसे आर्थिक व खाद्य संकट में फंसा है, जिससे निकलने की राह नहीं सूझ रही है. दुकानों में सामान लूटे जा रहे हैं. बिजली और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सीमित हो गयी है. आखिर इस संकट की वजह क्या है- राष्ट्रपति मादुरो की गलत नीतियां या फिर अमेरिका का बढ़ता हस्तक्षेप. आइए जानें.
वेनेजुएला इस समय गंभीर आर्थिक और खाद्य संकट से गुजर रहा है, जिसे कुछ अर्थशास्त्रियों ने ‘इकोनॉमिक वार’ के रूप में भी देखने की कोशिश की है. देश में बिजली और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सीमित हो गयी है और प्रतिदिन लूट की औसतन दस घटनाएं हो रही हैं. वेनजुएला की स्थिति को देखते हुए सवाल यह उठ रहा है कि क्या पेट्रो समाजवाद की विदाई का वक्त आ गया है? क्या यह संकट निकोलस मादुरो के अक्षम नेतृत्व से उपजा है अथवा यह संसद में बैठे बहुमत वाले विपक्ष की देन है, जो अमेरिकी प्रशासन के सहयोग से आर्थिक युद्ध छेड़े हुए है? वेनेजुएला के वर्तमान खाद्य अथवा आर्थिक संकट के कई कारण मालूम पड़ते हैं.
इसका एक
सिरा वेनेजुएला संसद में हुए परिवर्तन में निहित है, जिसके चलते मादुरो अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पा रहे हैं. पिछले 16 सालों तक देश में शासन करनेवाली ह्यूगो भावेज की युनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी ऑफ वेनेजुएला (पीएसयूवी) दिसंबर, 2015 में हुए चुनाव में 167 सीटों वाली संसद में विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक यूनिटी राउंडटेबल (एमयूडी) द्वारा प्राप्त की गयी 112 सीटों के मुकाबले महज 55 सीटों पर ही सिमट गयी.
परिणाम यह हुआ कि वेनजुएला के एक सदन वाली संसद में राष्ट्रपति का दल अल्पमत में है और वह संसद द्वारा पारित बिल पर अपनी सहमति के लिए बाध्य. तात्पर्य यह हुआ कि देश आगे बढ़ने की बजाय राजनीतिक संघर्ष के दलदल में धंसता गया और उसी में समाजवादी नीतियां तथा उपाय तिरोहित होते चले गये.
राष्ट्रपति मादुरो ने इससे बचने के लिए 15 जनवरी, 2016 को देश में आर्थिक आपात की घोषणा कर दी. महत्वपूर्ण बात यह रही कि देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रपति के इस फैसले को हरी झंडी तक दिखा दी. लेकिन, एमयूडी इसके विरोध में उठ खड़ा हुआ.
ध्यान रहे कि वेनेजुएला सरकार ने 60 दिनों के लिए आपातकाल की घोषणा की थी. सरकार के आधिकारिक गजट में प्रकाशित समाचार में कहा गया है, देश में 60 दिनों के लिए आर्थिक आपातकाल की घोषणा की जाती है.
उस समय वित्त मंत्री लूईस सलास ने कहा कि यह कदम लोगों को भविष्य में आर्थिक संकट से बचाने के लिए उठाया गया है. यह आदेश सरकार को वस्तुओं एवं सेवाओं तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए असाधारण शक्तियां प्रदान करता है. यह आदेश जारी होने के बाद राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को इस साल के बजट से सीधे तौर पर विशेष संसाधन जुटाने का अधिकार प्राप्त हो गया था, ताकि सामाजिक निवेश सुनिश्चित किया जा सके और लोकहित के कार्यों के लिए संसाधन आवंटित किये जा सकें. वेनेजुएला सरकार के वित्त मंत्री के अनुसार, आर्थिक आपातकाल के दौरान सरकार वैसे कदम उठायेगी, जिससे लोगों को आर्थिक युद्ध और तेल की गिरती कीमतों के दुष्परिणाम से बचाया जा सके. लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया.
वेनेजुएला की आर्थिक दुर्दशा राष्ट्रपति मादुरो की गलत नीतियों का परिणाम भी है और उनकी बदकिस्मती की भी.अर्थशास्त्रयों का मानना है कि लैटिन अमेरिकी देशों में तेल की कीमत गिरने का सबसे ज्यादा नुकसान वेनेजुएला को उठाना पड़ा है. इसका प्रमुख कारण यह है कि वेनेजुएला की 95 प्रतिशत आय तेल और गैस से होती है. 2013 और 2014 में देश ने जहां लगभग प्रति बैरल 100 डॉलर या उससे पहले भाावेज के समय 140 डॉलर प्रति बैरल तेल बेचा था, वहीं मादुरो के समय ये कीमतें 25 डॉलर प्रति बैरल रह गयीं. वेनेजुएला दो साल पहले 75 बिलियन डॉलर का तेल निर्यात किया करता था. 2016 में यह महज 27 बिलियन डॉलर रह गया है.
मादुरो ने इससे उपजे संकट से निकलने के जो उपाय किये, वे और भी घातक सिद्ध हुए. उल्लेखनीय है कि फरवरी में निकोलस को विशेष आर्थिक अधिकार दिया गया था, जिसका उपयोग करते हुए निकोलस ने वेनेजुएला की मुद्रा बोलिवार का अवमूल्यन कर दिया और तेल की कीमतें बढ़ा दीं. तेल की कीमतों में 6000 प्रतिशत की वृद्धि करने के सरकार के फैसले के खिलाफ लोगों की नाराजगी बढ़ गयी. मादुरो इसके जरिये अर्थव्यवस्था में बचत का उपाय खोज रहे थे, लेकिन इसने अन्य वस्तुओं की कीमतों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया.
तेल की कीमतों के गिरने से आय में हुई कमी को सरकार ने करेंसी नोट छाप कर भरपाई करने की कोशिश की, जो एक परंपरागत गलती है, जिसे अधिकांश सरकारें दोहराती चली आयी हैं. करेंसी नोट छापने से जनता में इफेक्टिव डिमांड तथा उनकी पर्चेजिंग पावर काफी बढ़ गयी. चूंकि मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो पायी, इसलिए एक तरफ लंबी–लंबी कतारें लगनी शुरू हो गयीं और दूसरी तरफ करेंसी की कीमतें गिरनी अथवा वस्तुओं की कीमतें उठनी शुरू हो गयीं. देखते-देखते 300 से 350 प्रतिशत के ईद–गिर्द मुद्रास्फीति की दर पहुंच गयी. कुछ समय पहले तक वहां एक अमेरिकी डॉलर 200 बोलिवर के बराबर था, जबकि अब वह लगभग 1000 बोलिवर है.
वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था में धन की कमी ने आयातों में कमी के लिए विवश किया, जिससे आयात घट गये और लगभग सभी सुपर मार्केट खाली हो गये. वस्तुओं की ब्लैक मार्केटिंग होने लगी. लेकिन, वेनेजुएला की सरकार ब्लैक मार्केटिंग एवं अवैध व्यापार को रोकने में असफल रही. अति मुद्रास्फीति और अवमूल्यन ने वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया, जिससे निकलने की अभी कोई राह दिखती नजर नहीं आ रही है.
बहरहाल, विपक्ष अब तब 1.85 मिलियन वोट रजिस्टर करा चुका है और उसका प्रयास है कि वह अपेक्षित वोट रजिस्टर करा कर पूर्ण जनमत द्वारा मादुरो को सत्ता से बेदखल कर दे. दूसरी तरफ, मादुरो सरकार अमेरिका पर आरोप मढ़ रही है कि वह विपक्ष को ताकत दे रही है, ताकि समाजवाद का एक और स्तंभ ढह जाये.
वैसे इसमें संशय नहीं है कि अमेरिका लंबे समय से वेनेजुएला को अपने नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन, भावेज के रहते वह ऐसा करने में सफल नहीं हो पाया. अब मादुरो में वह सूझबूझ नहीं है, इसलिए अब बहुत कुछ संभव है. एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां विपक्ष पूरी तरह से अमेरिका नियंत्रित है, जिससे ब्लैक मार्केटिंग बेहद रणनीतिक ढंग से होती है. इसका मतलब यह हुआ कि मादुरो की अदूरदर्शिता और विपक्ष की अमेरिकापरस्ती वेनेजुएला के वर्तमान संकट की असल वजह है.
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