जब संयोगिता से पृथ्वीराज का प्रेम बना बड़ी गलती
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी राजस्थान के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है. 12वीं सदी के उत्तरार्ध में पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के प्रबल शासक हुए़ वहीं, संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी़ दोनों के बीच अटूट प्यार था़ लेकिन जयचंद पृथ्वीराज के गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था, इसलिए […]
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी राजस्थान के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है. 12वीं सदी के उत्तरार्ध में पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के प्रबल शासक हुए़ वहीं, संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी़ दोनों के बीच अटूट प्यार था़ लेकिन जयचंद पृथ्वीराज के गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था, इसलिए अपनी बेटी की शादी उनसे करने का पक्षधर नहीं था़ प्रेम में दीवाने पृथ्वीराज संयोगिता को भरे स्वयंवर से भगा ले गये़ लेकिन उनका प्रेम उनके लिए सबसे बड़ी गलती बन गया.
दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने बचपन में ही अपने हाथों से शेर का जबड़ा फाड़ दिया था. इतना ही नहीं, शब्दभेदी बाण चलाने के लिए भी वह इतिहास में मशहूर हैं.
पृथ्वीराज एक महान योद्धा होने के साथ-साथ एक प्रेमी भी थे. बात उन दिनों की है जब अपने नाना की गद्दी संभालने के लिए पृथ्वीराज ने दिल्ली का शासन संभाला था. दरअसल दिल्ली के पूर्व शासक अनंगपाल का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने दामाद और अजमेर के महाराज सोमेश्वर चौहान से यह अनुरोध किया कि वह अपने पुत्र पृथ्वीराज को दिल्ली की सत्ता संभालने दें. सोमेश्वर चौहान ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के शासक बन गये.
इसी दौरान कन्नौज में चित्रकार पन्नाराय, बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं से चित्र लेकर आया. पृथ्वीराज चौहान का चित्र देख कर सभी स्त्रियां उनके आकर्षण की वशीभूत हो गयीं. जब संयोगिता ने पृथ्वीराज का यह चित्र देखा, तब उसने मन ही मन यह वचन ले लिया कि वह पृथ्वीराज को ही अपना वर चुनेंगी. वह चित्रकार जब दिल्ली गया तब वह संयोगिता का चित्र भी अपने साथ ले गया था. संयोगिता की खूबसूरती ने पृथ्वीराज चौहान को भी मोहित कर दिया. दोनों ने ही एक-दूसरे से विवाह करने की ठान ली.
इस बीच कन्नौज के राजा जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घोषणा कर दी. इधर राजकुमारी के मन में पृथ्वीराज के प्रति प्रेम हिलोरे ले रहा था, वहीं दूसरी तरफ पिता जयचंद पृथ्वीराज की सफलता से अत्यंत भयभीत था और उनके गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था, इसलिए उसने इस स्वयंवर में पृथ्वीराज को निमंत्रण नहीं भेजा. लेकिन इसके बावजूद, सिर्फ संयोगिता की खातिर पृथ्वीराज ने उस स्वयंवर में शामिल होने का निश्चय कर लिया. इस बात से बेखबर जयचंद ने पृथ्वीराज का अपमान करने के उद्देश्य से जयचंद ने स्वयंवर कक्ष के बाहर मुख्य द्वार पर उनकी मूर्ति को ऐसे लगवा दी, जैसे कोई द्वारपाल खड़ा हो.
स्वयंवर के दिन जब महल में देश के कोने-कोने से राजकुमार उपस्थित हुए, तब संयोगिता को कहीं भी पृथ्वीराज नजर नहीं आये. इसलिए वह द्वारपाल की भांति खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति को ही वरमाला पहनाने आगे बढ़ी.
जैसे ही संयोगिता ने अपनी वरमाला पृथ्वीराज की मूर्ति को पहनानी चाही, वैसे ही अचानक मूर्ति की जगह पर स्वयं पृथ्वीराज चौहान आ खड़े हुए और माला उनके गले में चली गयी. अपनी पुत्री की इस हरकत से क्षुब्ध जयचंद, संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन इससे पहले कि जयचंद कुछ कर पाता, पृथ्वीराज संयोगिता को लेकर भाग गये. लेकिन उनका प्रेम उनके लिए सबसे बड़ी गलती बन गया.
इधर, संयोगिता और पृथ्वीराज खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे, वहीं जयचंद मोहम्मद गोरी के साथ मिल कर पृथ्वीराज को मारने की योजना बनाने लगा. पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 16 बार धूल चटायी थी, लेकिन हर बार उसे जीवित छोड़ दिया. गोरी ने अपनी हार का और जयचंद ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला लिया. जयचंद ने अपना सैन्य बल मोहम्मद गोरी को सौंप दिया, जिसके फलस्वरूप युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को बंधक बना लिया गया.
बंधक बनाते ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को गर्म सलाखों से जला दिया और कई अमानवीय यातनाएं भी दी गयीं. अंतत: मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को मारने का फैसला कर लिया. इससे पहले कि मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज को मार डालता, पृथ्वीराज के करीबी दोस्त और राजकवि चंदबरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज की एक खूबी बतायी. दरअसल पृथ्वीराज चौहान, शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर थे. वह आवाज सुन कर तीर चला सकते थे. यह बात सुन मोहम्मद गोरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया. इसके साथ ही भरी महफिल में चंदबरदाई ने एक दोहे द्वारा पृथ्वीराज को मोहम्मद गोरी के बैठने के स्थान का संकेत दिया जो इस प्रकार है-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुको चौहान.”
पृथ्वीराज चंदबरदाई के इशारे को समझ गये और उसके आधार पर अचूक शब्दभेदी बाण से गोरी को मार गिराया. साथ ही दुश्मनों के हाथों अपनी दुर्गति होने से बचने के लिए चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे की जान ले ली़ जब संयोगिता को इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने पृथ्वीराज के वियोग में सती होकर अपनी जान दे डाली. और इस तरह पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी इतिहास में अमर हो गयी गयी.
…और आखिर में
इतिहासकारों की मानें, तो पृथ्वीराज चौहान की विशाल सेना में तीन लाख सिपाही और तीन सौ गजराज थे. पृथ्वीराज ने कई युद्ध जीत कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था. उन्होंने चंदेलों, बुंदेलखंड, महोबा समेत कई छोटे-छोटे राज्य अर्जित किये थे. पृथ्वीराज चौहान के जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का वर्णन चंदबरदाई द्वारा लिखित ग्रंथ “पृथ्वीराज रासो” में है. पृथ्वीराज चौहान और उनकी प्रेमिका संयोगिता की प्रेमकथा आज भी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों के जरिये प्रदर्शित की जाती है.