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खतरे को अब गंभीरता से लेने की जरूरत
विश्लेषण : सरकार असंतुष्ट युवकों को उग्र और प्रतिक्रियावादी होने से रोकने के लिए कारगर रणनीति बनाये एएसएम अली अशरफ बांग्लादेश में चरमपंथियों के अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से संबंधों का अतीत है. 1990 में लौटे पहले अफगानी युद्ध (1979-1989) के तकरीबन दो हजार बांग्लादेशी लड़ाकों ने हरकत उल जिहाद अल-इसलाम (हुजी) और जमात उल मुजाहिदीन […]
विश्लेषण : सरकार असंतुष्ट युवकों को उग्र और प्रतिक्रियावादी होने से रोकने के लिए कारगर रणनीति बनाये
एएसएम अली अशरफ
बांग्लादेश में चरमपंथियों के अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से संबंधों का अतीत है. 1990 में लौटे पहले अफगानी युद्ध (1979-1989) के तकरीबन दो हजार बांग्लादेशी लड़ाकों ने हरकत उल जिहाद अल-इसलाम (हुजी) और जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) की स्थापना में बड़ा रोल अदा किया. हुजी और जेएमबी ने 1995 से 2005 के दौरान कई आतंकी हमले किये. आज पढ़िए दूसरी कड़ी.
ढाका के राजनयिक इलाके गुलशन में पिछले साल सितंबर में इतालवी नागरिक सीजेरी तेवल्ला को गोली मार दी गयी थी. इसके कुछ ही दिन बाद जापानी नागरिक क्योनियो होशी की भी ऐसी ही एक घटना में उत्तरी-पश्चिमी रंगपुर जिले में हत्या कर दी गयी थी. इसलामिक स्टेट (आइएसआइएस) ने इन दोनों हत्याओं को अंजाम देने का दावा किया था. इस आतंकी संगठन ने इससे पहले चेताया था कि मुसलिम मुल्कों में उसके खिलाफ संघर्ष के लिए बने जेहादी गंठजोड़ से जुड़े लोग महफूज नहीं हैं.
इसके बावजूद बांग्लादेश की सरकार ने अपने यहां आइएस की मौजूदगी से इनकार किया है. सरकार पश्चिमी खुफिया एजेंसियों के इस आकलन को भी खारिज करती रही है कि आइएस वहां और भयावह हमलों की तैयारी में है. ऐसे में सरकारी तफ्तीश में तेवल्ला व होशी की हत्या और आइएस के बीच किसी संभावित संबंध का न मिलना हैरान नहीं करता है.
बीती एक जुलाई को स्वघोषित तौर पर खुद को आइएस आतंकी बतानेवाले शख्स द्वारा गुलशन बेकरी हमले को अंजाम देने की घटना ने बांग्लादेश में आइएस के खतरों को लेकर सरकारी मूल्यांकन पर तो सवाल उठा ही दिया है, साथ ही इसने इस दरकार को भी सतह पर ला दिया है कि देश में आइएस के खतरे को ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत है. आइएस के खतरे को नये सिरे से समझने की जरूरत के पीछे दो दमदार वजहें हैं. पहली यह कि देश में 1990 के दशक से पनपे घरेलू इसलामी समूहों ने अंतरराष्ट्रीय आतंकियों से अपने संबंधों को जाहिर किया है. दूसरी यह कि एक जुलाई को जिस तरह बंधक बना कर लोगों की हत्या की गयी, वह आइएस के कई दूसरे हमलों से मेल खाते हैं.
बांग्लादेशी चरमपंथियों के अंतरराष्ट्रीय संबंध :बांग्लादेश में आइएस के खतरे को गंभीरता से लेने की वजह समझने के लिए वहां के चरमपंथियों के अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से संबंधों के अतीत को याद कर लेना चाहिए. सोवियत सेना के साथ पहले अफगानी युद्ध (1979-1989) की समाप्ति के बाद इस युद्ध में शरीक तकरीबन दो हजार बांग्लादेशी लड़ाके 1990 के आसपास स्वदेश लौटे. इन लड़ाकों ने हरकत उल जिहाद अल-इसलाम (हुजी) और जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) की स्थापना में बड़ा रोल अदा किया. हुजी और जेएमबी ने 1995 से 2005 के दौरान कई आतंकी हमले किये. इनके निशाने पर खासतौर पर सेक्युलर कार्यकर्ता, सिनेमा हॉल, धार्मिक स्थल और मुख्यधारा के सियासी दल थे. बांग्लादेशी मूल के ब्रिटिश हाइ-कमिश्नर अनवर चौधरी इनका शिकार बननेवाले बड़े नामों में शामिल थे. जेएमबी की आक्रामक गतिविधियों में तब जाकर खासी कमी आयी, जब उसके खिलाफ आतंक विरोधी अभियान चले और उसके कई बड़े नेताओं को फांसी हुई. इसके बावजूद जेएमबी ने भारत और बांग्लादेश में अपने को नये सिरे से खड़ा किया. आइएस के मुखपत्र ‘दाबिक’ के नवंबर 2015 के अंक में उसकी सराहना भी की गयी है. धार्मिक अल्पसंख्यकों से शत्रुता के मामले में इन दोनों आतंकी समूहों में बड़ी समानताएं हैं.
मसलन, बांग्लादेश में जेएमबी के कथित निशाने पर शिया मसजिद, पादरी और बहाई समुदाय हैं, तो आइएस ईराक में यजीदियों, ईसाइयों, तुर्कमानों और शिया अल्पसंख्यकों तथा लीबिया में मिस्री ईसाइयों के खिलाफ है. अगर जेएमबी-आइएस के रिश्तों में मजबूती के सबूत मिलते हैं, तो इसका मतलब होगा कि आइएस को एक बड़ा सहयोगी मिल गया है, जिससे उसे बांग्लादेश में पनप रहे आतंकियों को अपने साथ लेने में मदद मिल रही है.
वैश्विक आतंकी घटनाओं से समानताएं
आइएस के खतरे को ज्यादा गंभीरता से लेने की दूसरी बड़ी वजह ढाका में बंधक बना कर किये गये हमले और दुनियाभर में आइएस द्वारा अंजाम दी जा रही घटनाओं में समानताएं हैं. नवंबर, 2015 में पेरिस, इसी साल मार्च में बेल्जियम और जून में इस्तांबुल हमलों की जिम्मेवारी आइएस ने ली है, हमलावरों के चित्र और वीडियो जारी किये हैं और मरनेवालों के चित्र पोस्ट किये हैं.
गुलशन हमले में भी ऐसी ही मीडिया रणनीति दिखी. रेस्तरां पर हमले के महज छह घंटे बाद आइएस इसमें मारे गये 20 लोगों की जिम्मेवारी लेने के लिए सामने आ गया. यहां तक कि एसआइटी इंटेलिजेंस ग्रुप द्वारा जारी की गयी बंधकों की पांच में से चार तसवीरें बांग्लादेश पुलिस द्वारा जारी तसवीरों से मेल खाती हैं.
वैश्विक आतंकी घटनाओं से असमानताएं
अलबत्ता मीडिया प्रचार में समानताओं के बावजूद गुलशन हमले और आइएस द्वारा दुनियाभर में अंजाम दिये गये दूसरे हमलों में कुछ फर्क भी है. जहां अल-कायदा आतंकी गोलीबारी के जरिये घटना को अंजाम देता है, जैसा कि 2015 में माली में होटल रेडिसन ब्लू पर हमले के दौरान भी दिखा था, वहीं आइएस आत्मघाती बमों के जरिये घटनाओं को अंजाम देता है. आइएस का यह तरीका ब्रूसेल्स, इस्तांबुल और पेरिस में हम देख चुके हैं. दिलचस्प है कि गुलशन हमले में लोगों को बंधक बनानेवालों में से किसी ने भी आत्मघाती तैयारी नहीं कर रखी थी.
वे तो वहां सरकारी फौज के साथ बजाप्ता संघर्ष के इरादे से दाखिल हुए. मतलब यह कि या तो आइएस अब हमले के अपने तरीके को अनुकूलता के हिसाब से तय करता है या फिर यह कि इस हमले के लिए उसने बांग्लादेश में पनपे अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) अथवा जेबीएम के अपने तरीकों को तस्दीक दी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ढाका में लोगों को बंधक बनानेवाले अपनी तरुणाई के दिनों में बांग्लादेशी नागरिक रह चुके हैं. इनमें से कुछ ने नामी निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की है. यह सब एबीटी द्वारा लोगों की बहाली के लिए अपनायी जानेवाली रणनीति से मेल खाते हैं. ढाका की घटना से ब्रुसेल्स, इस्तांबुल और पेरिस हमले इस लिहाज से बिल्कुल अलग हैं कि वहां आतंकी दूसरी पीढ़ी के अप्रवासी थे या रूस और मध्य एशियाई मुल्कों के नागरिक थे.
खतरा अब अनुमानों से कहीं ज्यादा
इन तथ्यात्मक असमानताओं को बांग्लादेश में आइएस के खतरों के मूल्यांकन में किस रूप में देखा जाये? इसे लेकर हम दो तरह का अंदाजा लगा सकते हैं. पहला तो यही कि एबीटी ने अपनी बदली रणनीति के साथ आइएस के साथ अपने संबंध को जाहिर किया हो.
इस अनुमान की वजह यह है कि बंधक बनानेवालों के पास न सिर्फ पिस्टल, एके-22 राइफल, तीव्र विस्फोटक थे, बल्कि चोखे तलवार भी थे. बीते दो वर्षों में एबीटी के हमलावरों ने चोखे छुरे और तलवारों के इस्तेमाल नास्तिकों, ब्लॉगरों और समलैंगिक कार्यकर्ताओं पर हमले के लिए किये हैं. अनुमान का दूसरा आधार यह कि जेएमबी से जुड़े नये लोगों को आइएस की वैश्विक रणनीति आकर्षित करती हो. लिहाजा गुलशन हमले को उन्होंने आइएस के नाम पर अंजाम दिया. बावजूद इसके कि एबीटी या जेएमबी का हालिया हमले में हाथ हो, इस बात को कबूलना होगा कि आइएस का खतरा अब ज्यादा वास्तविक और अनुमानों से कहीं ज्यादा है.
इसी साल जून में बांग्लादेश की सरकार ने कहा था कि वह आइएस के हमलों से मक्का और मदीना के पवित्र मसजिदों को महफूज रखने के लिए अपनी सैन्य टुकड़ियां भेजेगा. आनेवाले दिनों में यह साफ हो जायेगा कि आइएस के खिलाफ वैश्विक गंठजोड़ में बांग्लादेशी फौज की किसी भूमिका का कोई मतलब है या यह सिर्फ कोरी बयानबाजी है. बहरहाल, बांग्लादेश के लिए यह जरूरी है कि वह अपने खुफिया स्रोतों और आतंक विरोधी रणनीति को नये सिरे से मजबूत करे.
सरकार को हालिया घटना के बाद अपने सुरक्षा सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए खर्चे बढ़ाने पड़ सकते हैं. दरकार इस बात की भी है कि सरकार असंतुष्ट युवकों को उग्र और प्रतिक्रियावादी होने से रोकने के लिए कारगर रणनीति बनाये.
(लेखक ढाका यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज, लंदन के सदस्य हैं)
(द डेेलीस्टार डॉट नेट से साभार) (अनुवाद : प्रेम प्रकाश)
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