आर्थिक विकास के लिए नीतियां जरूरी

वैश्विक होती अर्थव्यवस्था के दौर में समान विकास की अवधारणा मजबूत हो रही है. नीति-निर्माता से लेकर आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि विकास दर जरूरी है, लेकिन बिना आर्थिक असमानता को दूर किये विकास अधूरा है. इस व्यापक सोच के साथ रांची में ‘इंटरनेशनल कॉन्फ्रेस ऑन इन्क्लूसिव एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट इन झारखंड: […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 30, 2016 4:33 AM
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वैश्विक होती अर्थव्यवस्था के दौर में समान विकास की अवधारणा मजबूत हो रही है. नीति-निर्माता से लेकर आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि विकास दर जरूरी है, लेकिन बिना आर्थिक असमानता को दूर किये विकास अधूरा है. इस व्यापक सोच के साथ रांची में ‘इंटरनेशनल कॉन्फ्रेस ऑन इन्क्लूसिव एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट इन झारखंड: चैलेंज एंड अपॉर्चुनिटी’ विषय पर तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है. पूर्वी भारत के राज्य बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और खासकर झारखंड का विकास कैसे हो, इस विषय पर ही इस सेमिनार में मंथन किया जायेगा. खनिज संपदा के मामले में देश में 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखनेवाले झारखंड में औद्योगीकरण के साथ सामाजिक विकास कैसे हो, इस विषय पर इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के डायरेक्टर प्रोफेसर अलख नारायण शर्मा से हुई अंजनी कुमार सिंह की बातचीत के प्रमुख अंश…

आइएचडी दिल्ली में अवस्थित है, लेकिन झारखंड में पूर्वी भारत का ऑफिस है. झारखंड में इतनी दिलचस्पी का कारण क्या है?

पूर्वी भारत में बिहार, बंगाल, ओड़िशा और झारखंड राज्य आते हैं, जो विकास की दौड़ में देश के अन्य राज्यों से पिछड़ गये हैं. एक समय बंगाल कुछ आगे था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह भी पिछड़ गया है. मेरा मानना है कि अगर पूर्वी भारत आगे बढ़ता है, तो देश का विकास और तेज होगा. जितनी संभावनाएं विकास की इस क्षेत्र में हैं, शायद ही देश के अन्य हिस्सों में हैं.

झारखंड पूर्वी भारत के करीब मध्य में है और विकास की दृष्टि से देश का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण राज्य है. सिर्फ इसलिए नहीं कि देश की करीब 40 फीसदी खनिज संपदा यहां उपलब्ध है, बल्कि इसलिए भी कि विकास के लिए यह सबसे चुनौतीपूर्ण राज्य है. यहां की 85 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अति पिछड़ी जातियों की है, जिसमें बहुसंख्यक लोग गरीब हैं. अपार प्राकृतिक संपदा के बावजूद छत्तीसगढ़ के बाद झारखंड में सबसे ज्यादा गरीबी है. गरीबी के वर्तमान मापदंड के अनुसार, 40 फीसदी से अधिक लोग गांवों में गरीब हैं. असमानता गांवों और शहरों के बीच अत्यंत ही ज्यादा है.

झारखंड में प्रति व्यक्ति आय बिहार से 50 फीसदी ज्यादा है, लेकिन ग्रामीण गरीबी झारखंड में अधिक है. यह मुख्यत: शहरों और गांवों के बीच असमानता के कारण है. अगर झारखंड इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर समाधान निकालता है, तो यह देश के लिए एक मॉडल हो जायेगा. इन्हीं कारणों से आइएचडी ने रांची में पूर्वी भारत का क्षेत्रीय कार्यक्रम होना है. झारखंड और बिहार पर आइएचडी का विशेष फोकस है.

झारखंड में विकास की मुख्य चुनौतियां क्या है?

झारखंड की सबसे गंभीर समस्या गरीबी है. अगर वास्तविक गरीबी रेखा- जो कि दो डॉलर (पीपीटी) के बराबर है- को देखें, तो झारखंड की 75 फीसदी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे होगी. मानव विकास के जितने मापदंड हैं, उनमें करीब-करीब झारखंड अन्य राज्‍यों से पीछे है. न सिर्फ साक्षरता दर में पीछे है, बल्कि ड्रॉप आउट दर भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. उदाहरण के लिए 11वीं-12वीं श्रेणी के सकल नामांकन दर 2011-12 में झारखंड में 15.8 फीसदी थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 45.9 फीसदी है.

उच्च शिक्षा में भी झारखंड अन्य राज्यों की तुलना में निचले पायदान पर है. उच्च शिक्षा में झारखंड में जीइआर करीब 13.4 फीसदी है, जबकि राष्ट्रीय औसत 23.6 फीसदी है. यही हाल स्वास्थ्य और न्यूट्रीशन में भी है. शिशु और मातृ मृत्यु दर झारखंड में काफी अधिक है. बुनियादी सुविधाएं, जैसे संतुलित डोज, जल और शौचालय तक पहुंच के लिए भी झारखंड ज्यादातर राज्यों से पीछे है. फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में भी झारखंड काफी पीछे है.

झारखंड के अंदर की असमानता ज्यादातर राज्यों से ज्यादा है. इस असमानता का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू है गांवों और शहरों के बीच का अंतर. ऐसा नहीं है कि देश के दूसरे राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं है, लेकिन झारखंड में यह ज्यादा विषम है. अत: गरीबी और मूलभूत आवश्यकताओं के अलावा झारखंड को इस असमानता पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

अगर झारखंड के पास खनिज संपदा की बहुतायत है, तो क्या यह राज्य अपने लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार पैदा नहीं कर सकता है?

पर्याप्त प्रोडक्टिव रोजगार का सृजन करना झारखंड के लिए निश्चितरूप से बड़ी आवश्यकता है. झारखंड और बिहार देश के ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे ज्यादा युवा लोग हैं. अभी भी जन्म दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. इसका अभिप्राय यह है कि डेमोग्राफिक ट्रांजिशन झारखंड में शुरू हुआ है और अन्य राज्यों की तुलना में यहां की जनसंख्या में ज्यादा युवा अभी करीब 20-25 साल तक रहेंगे. यह वर्कफोर्स विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण है तथा यह एक वरदान है. लेकिन, अगर इस वर्ग को ठीक से शिक्षा और रोजगार नहीं दिया गया, तो यह बड़ा अभिशाप होगा.

जैसा कि मैंने पहले बताया है कि अभी तक इसमें ज्यादा प्रगति नहीं हुई है. लेकिन, वर्तमान सरकार ने कई गंभीर प्रयास किये हैं. 2004-05 तथा 2011-12 के सात वर्षों के बीच झारखंड में सिर्फ 1.2 लाख रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ था, जो कि वर्कफोर्स की वृद्धि को देखते हुए नगण्य है. हालांकि, इस दौरान पूरे देश में रोजगार के कम अवसर पैदा हुए हैं, लेकिन झारखंड का हिस्सा राष्ट्रीय रोजगार में एक फीसदी से भी कम होगा. नि:संदेह यह स्थिति स्वीकार नहीं की जा सकती है.

ज्यादा रोजगार पैदा करने के लिए आखिर कौन सी तकनीक या रणनीति अपनायी जानी चाहिए?

झारखंड भारत सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त राज्य है, जहां भारी मात्रा में उद्योगों के लिए खनिज पदार्थ उपलब्ध है. दुर्भाग्य है कि औद्योगिक विकास के क्षेत्र में अपार संभावनाओं के बावजूद झारखंड देश के पिछड़े राज्यों में आता है. सिर्फ 7.5 फीसदी लोग मैन्युफैक्चरिंग में लगे हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 14 फीसदी है. राज्य के सकल आय में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा सिर्फ 14 फीसदी के लगभग है. इसे अगले दस साल में 25 फीसदी लाने की योजना होनी चाहिए. इसे पूरा करना कठिन कार्य नहीं है.

हाल में मैन्युफैक्चरिंग का विकास अत्यंत कम रहा है. हालांकि, इधर इसमें सुधार हुआ है. ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान सरकार के प्रयास से बिजनेस माहौल में सुधार हुआ है, जो कि वर्ल्ड बैंक के इज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंक से जाहिर होता है. इसके मुताबिक, झारखंड का देश में तीसरा स्थान है. इज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार होना औद्योगिकीकरण के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इसके साथ-साथ क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर बिजली एवं सड़क में और भी सुधार होना चाहिए.

झारखंड के संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण बात है, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया है. वह यह है कि झारखंड में ज्यादातर संगठित उद्योग बड़े हैं तथा 60 फीसदी रोजगार उन्हीं में हैं. इन बड़े उद्योगों की इंप्लायमेंट कैपेसिटी कम है. बड़े उद्योगों के अलावा बहुत छोटे-छोटे उद्योग असंगठित क्षेत्र में हैं, जिनमें उत्पादकता कम है. मझोले आकार के उद्योग लगभग पूरी तरह से नदारद हैं. यह डिसआॅर्डर औद्योगिक संरचना और औद्योगीकरण के लिए बाधा है.

एक्टिव नीति अपना कर ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए. ऐसे उद्योगों में प्रोडक्टिव रोजगार की संभावना बड़े उद्योगों की तुलना में ज्यादा है. मझले उद्योगों को ग्रामीण उद्योगों से भी जोड़ने की आवश्यकता है. राज्य में कृषि की विकास दर हाल के वर्षों में अच्छी रही है. फूड प्रोसेसिंग उद्योगों को ग्रामीण लोगों के साथ करीब से जोड़ने की जरूरत है.

क्या औद्योगीकरण से यहां की बेरोजगारी की पूरी समस्या दूर हो पायेगी?

औद्योगीकरण का यह मतलब नहीं हुआ कि अन्य क्षेत्रों की जरूरत नहीं है. वस्तुतः मैनुफैक्चरिंग झारखंड के लिए अग्रणी श्रोत होगा. मैनुफैक्चरिंग में अन्य श्रोतों की अपेक्षा रोजगार की इंटेंसिटी ज्यादा है. पुनः मैनुफैक्चरिंग का विकास सेवा क्षेत्र को भी गति देगा. अर्थशास्त्री मानते हैं कि जितना प्रभाव मैनुफैक्चरिंग का अन्य क्षेत्रों का होता है, उतना और किसी क्षेत्रों में नहीं होता है. जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है.

श्रम बल की वृद्धि भविष्य में ज्यादा होने की उम्मीद है. भविष्य का श्रम बल आज की तुलना में बहुत ज्यादा शिक्षित होगा, क्योंकि लगभग सभी बच्चे अभी स्कूल में हैं. ये सभी मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र में रोजगार नहीं पा सकते हैं. यहां स्वास्थ्य तथा शिक्षा के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि इन दोनों में अभी विकास बहुत कम हुआ है. एक लाख आबादी पर झारखंड में सिर्फ आठ कॉलेज हैं, जबकि भारत में औसत 27 कॉलेज हैं.

झारखंड में शिक्षकों की भारी कमी है और इसलिए आज वहां छात्र-शिक्षक अनुपात बहुत ही ज्यादा हैं. झारखंड के 259 में से 203 ब्‍लॉक शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं. कहने का मतलब है कि शिक्षा और स्वास्थ दोनों क्षेत्रों का विकास किया जाये, तो झारखंड में शिक्षित लोगों को बड़ी मात्रा में रोजगार मिल सकता है.

महिलाओं के रोजगार की क्या स्थिति है?

यह अभी बहुत ही चिंता का विषय है, झारखंड में रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 18 प्रतिशत है, जो कि राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है. यह विडंबना है कि शिक्षित महिलाओं की बेरोजगारी 50 प्रतिशत है, जो कि राष्ट्रीय औसत से तीन गुना ज्यादा है. इसके कई कारण हो सकते हैं. महिलाओं के लायक रोजगार का सृजन नहीं हो पा रहा है. वर्तमान आर्थिक और सामाजिक संरचना में उनके साथ रोजगार देने में भेदभाव होता है.

भविष्य में शिक्षित महिलाएं ज्यादा रोजगार की तलाश करेंगी. सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. नीतियां बनाते वक्त इस बात पर ध्यान देना होगा कि रोजगार के अवसर बढ़ने के अलावा महिलाओं के लिए छोटे से बड़े पहर में क्रेच की तथा आवागमन की सुविधा का विस्तार किया जाये, ताकि वे अपने काम पर जा सकें. निश्चित रूप से उनकी सुरक्षा एक महत्वपूर्ण पहल होगी. रोजगार में ज्यादा भागीदारी से न सिर्फ महिलाओं का विकास होगा, वरन समावेशी विकास को बड़ा बल मिलेगा. सरकार इस दिशा में उचित नीति सक्रिय रूप से अपना सकती है.

स्मार्ट सिटी जैसा कार्यक्रम विकास में कितनी सहायता करेगा?

भारत में आजादी के बाद नगर विकास की काफी अनदेखी की गयी. गांवों से शहरों में आने की प्रक्रिया की उपेक्षा की गयी. लेकिन, इधर कुछ वर्षों से, खासकर वर्तमान सरकार द्वारा नगर विकास को काफी जोर दिया जा रहा है, जो कि काफी उचित है. शहर आर्थिक विकास के केंद्र होते हैं और शहरीकरण ग्रामीण विकास में भी योगदान देता है, बल्कि पूंजी निवेश, शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र के विकास में योगदान देता है. लेकिन, झारखंड में नगर विकास के लिए बहुत कुछ करना होगा. झारखंड का शहरीकरण बहुत ही असमान है.

ज्यादातर शहरों की आबादी बड़े शहरों में ही रहती है. छोटे और मंझोले शहर अत्यंत ही भेदभाव के शिकार हैं. इन शहरों को गांवों के विकास के साथ जोड़ना होगा, जिसके लिए प्रभावशाली योजना बनानी होगी. छोटे एवं मंझोले उद्योगों को अब इन्हीं शहरों में स्थानांतरित करना चाहिए. इसके लिए उचित राजस्व और मौद्रिक नीति बनानी होगी. आर्थिक गतिविधियों के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्रों का विस्तार इन शहरों में होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होगा, तो उद्यमी और प्रोफेशनल यहां नहीं आयेंगे.

हाल में झारखंड सरकार को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से करीब 15-20 शहर चुनने चाहिए और इनके विकास की एक रूपरेखा बनानी चाहिए. इन शहरों के आसपास के गांवों का क्लस्टर के तौर पर विकास होना चाहिए. इसे प्राथमिकता के आधार पर बाहर के देशों के साथ विमर्श करना चाहिए. ऐसी योजना न सिर्फ स्वस्थ शहरीकरण को बढ़ावा देगी, अपितु ग्रामीण विकास को भी प्रोत्साहित करेगी.

कमजोर वर्गों के लिए झारखंड सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए?

जैसा कि विदित है, झारखंड में कमजोर वर्गों की संख्या देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक है और असमानता की दर भी यहां सबसे ज्यादा है. आर्थिक विकास के साथ-साथ एक सामाजिक विकास नीति, जो झारखंड केंद्रित हो, बनानी चाहिए. स्वास्थ्य और शिक्षा सबसे मुख्य केंद्र होंगे, लेकिन इसके साथ-साथ कमजोर वर्गों के लिए उचित नीति भी बनानी चाहिए.

यहां की सरकार के पास ऐसी नीति है, लेकिन इसे सिर्फ नौकरियों में आरक्षण तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए. झारखंड में कई तरह के आधुनिक कार्यक्रम चल रहे हैं. ऐसे सभी प्रोग्रामों की समीक्षा करके इनको मजबूत करने की जरूरत है. हाल के वर्षों में मनरेगा, पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम जैसे कार्यक्रमों से सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत काम करना बाकी है.

झारखंड जैसे राज्य के लिए आपका सबसे महत्पूर्ण विचार क्या है?

अभी दुनिया में यह एक करीब सर्वमान्य धारणा है कि सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गवर्नेंस और इंस्टीट्यूशंस हैं. गवर्नेंस और इंस्टीट्यूशंस ही अच्छी योजनाएं बनाते हैं. झारखंड में विकास की ज्यादा संभावनाएं हैं. लेकिन, जैसा कि ज्यादातर अविकसित देश और क्षेत्र कमजोर शासन और संस्थाओं की कमी की समस्या का सामना करते हैं, झारखंड भी उनमें से एक है, जहां संस्थाएं कमजोर हैं. इस दिशा में राज्य को बहुत काम करने की जरूरत है.

विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है. पंचायती राज सिस्टम में निर्वाचित प्रतिनिधि अभी नये हैं तथा इनकी क्षमता बढ़ाना एक प्राथमिकता होनी चाहिए. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी यही हाल है. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में दक्ष प्रोफेशनल की बहुत कमी है. नीति आयोग के अनुसार, एनआरएचएम में झारखंड में करीब 95 प्रतिशत कुशल विशेषज्ञों की कमी है.

स्पष्ट है कि उचित श्रम-बल के बिना प्रगति की रफ्तार बहुत तेज नहीं होगी. मेरा स्पष्ट मानना है कि स्वास्थ्य संस्थान विकास का सबसे मजबूत स्तंभ है और इस दिशा में झारखंड राज्य में बहुत काम किये जाने की जरूरत है.

मेरा पूरा विश्वास है कि अगले 10-15 वर्षों में झारखंड में न सिर्फ भूखमरी और गरीबी का उन्मूलन होगा, वरन् यह विकसित राज्यों की श्रेणी में आयेगा. इसके लिए उचित संस्थाओं और नीतियों का निर्माण करना होगा. अच्छी बात है कि वर्तमान सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है.

झारखंड भारत सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त राज्य है, जहां भारी मात्रा में उद्योगों के लिए खनिज पदार्थ उपलब्ध है. दुर्भाग्य है कि औद्योगिक विकास के क्षेत्र में अपार संभावनाओं के बावजूद झारखंड देश के पिछड़े राज्यों में आता है.

सिर्फ 7.5 फीसदी लोग मैन्युफैक्चरिंग में लगे हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 14 फीसदी है. राज्य के सकल आय में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा सिर्फ 14 फीसदी के लगभग है. इसे अगले दस साल में 25 फीसदी लाने की योजना होनी चाहिए. इसे पूरा करना कठिन कार्य नहीं है. हाल में मैन्युफैक्चरिंग का विकास अत्यंत कम रहा है. हालांकि, इधर इसमें सुधार हुआ है. ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान सरकार के प्रयास से बिजनेस माहौल में सुधार हुआ है, जो कि वर्ल्ड बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंक से जाहिर होता है. इसके मुताबिक, झारखंड का देश में तीसरा स्थान है.

झारखंड के विकास के लिए क्या कोई समय-सीमा अपनायी जानी चाहिए?

मेरा मानना है कि झारखंड जैसे पिछड़े राज्य अब विकास की दौड़ में धीरे-धीरे आगे बढ़ेंगे. पिछले 4-5 सालों में राज्य की विकास दर भारत की विकास दर से ज्यादा हुई है. अभी भारत की प्रति व्यक्ति आय झारखंड के प्रति व्यक्ति आय से डेढ़ गुना ज्यादा है. झारखंड को यही लक्ष्य रखना चाहिए कि 2030 तक यहां की प्रति व्यक्ति आय भारत के औसत के बराबर हो जाये. अभी भारत की विकास दर करीब सात प्रतिशत वार्षिक है.

अगर यही विकास दर भारत की अगले 15 साल तक रहती है, तो राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने के लिए झारखंड को साढ़े दस प्रतिशत की दर से विकास करना होगा. राज्य का विकास तथा संसाधनों को देखते हुए यह लक्ष्य निश्चित रूप से प्राप्त किया जा सकता है. वर्षों बाद भारत सरकार बहुत ही सक्रिय विकास नीति बना रही है. लेकिन, जैसा कि भारत समेत कई देशों का अनुमान है, विकास का ऊंचा होना गरीबी के उन्मूलन और रोजगार के सृजन के लिए आवश्यक है. लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है. सम्यक विकास के लिए यह आवश्यक है कि रोजगार सृजन हो, अन्यथा ऊंची विकास दर असमानता को पैदा करेगी.

झारखंड में जहां पर बहुत ज्यादा विषमता है, वह समानता विकास का सबसे बड़ा कैंडिडेट होना चाहिए. राज्यों के कई क्षेत्र दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले पीछे हैं. विकास की नीति में इन क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर तथा उचित उद्योगों के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र का सम्यक विकास होना चाहिए. यह ध्यान देने की बात है कि इस प्रकार के समावेशी विकास में राज्य सरकार की बड़ी भूमिका होगी. इसका मतलब यह नहीं है कि निजी क्षेत्र की भूमिका नहीं होगी.

ज्यादातर निवेश निजी क्षेत्र का हो, फिर भी सम्यक विकास के लिए यह आवश्यक है कि सरकार उसकी निगरानी करे तथा उचित दिशा-निर्देश दे. प्राइवेट सेक्टर इंटर्नशिप का पूरा फायदा उठाते हुए कैसे समावेशी विकास किया जाये, यही सरकार की सफलता का मापदंड है.

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