बिरसा मुंडा तो महानायक हैं ही, कई नायक बंद हैं दस्तावेजों में

अनुज कुमार सिन्हा झा रखंड की धरती बिरसा मुंडा की धरती है, सिदाे-कान्हू की धरती है, हजाराें वीर सैनिकाें की धरती है. उन वीराें की, जिन्हाेंने अंगरेजाें के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उन्हें चैन से रहने नहीं दिया. अगर अंगरेजाें काे किसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा संघर्ष का सामना करना पड़ा था, ताे वह था झारखंड […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 13, 2016 8:21 AM
अनुज कुमार सिन्हा
झा रखंड की धरती बिरसा मुंडा की धरती है, सिदाे-कान्हू की धरती है, हजाराें वीर सैनिकाें की धरती है. उन वीराें की, जिन्हाेंने अंगरेजाें के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उन्हें चैन से रहने नहीं दिया. अगर अंगरेजाें काे किसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा संघर्ष का सामना करना पड़ा था, ताे वह था झारखंड आैर इसके आसपास के क्षेत्र.
बाबा तिलका माझी ने पहला बिगुल फूंका था. इसलिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकाें-महानायकाें के नामाें की जब भी चर्चा हाेगी, झारखंड के वीराें-शहीदाें के बगैर वह अधूरी रहेगी. आजादी की 70वीं वर्षगांठ के माैके पर देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह 13 अगस्त काे बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू आ रहे हैं. एेतिहासिक क्षण हाेगा. गर्व हाेगा झारखंड के लाेगाें काे अपने बिरसा मुंडा पर, अपने अन्य वीर स्वतंत्रता सेनानियाें पर, जिनके संघर्ष के बल पर देश आजाद हुआ. बाबा तिलका माझी, सिदाे-कान्हू (1855 का संताल विद्राेह), बिरसा मुंडा (1895 से 1900 तक चला आंदाेलन) के संघर्ष काे देश-दुनिया जानती है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का यह महत्वपूर्ण हिस्सा है.
1857 की लड़ाई में शेख भिखारी, उमराव टिकैत, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, पांडेय गणपत राय ने अपनी शहादत दी. नीलांबर-पीतांबर, बुधु भगत, तेलंगा खड़िया की वीरता की कहानी जगजाहिर है. लेकिन झारखंड की इसी धरती पर ऐसे सैकड़ाें वीर पैदा हुए, जिन्हाेंने या ताे शहादत दी या जिन्हाेंने अंगरेजाें से जम कर लाेहा लिया, लेकिन वे गुमनाम हैं. दस्तावेजाें में वे कैद हैं. हम (झारखंड के लाेग, सरकार भी) अपने इन नायकाें के बारे में देश-दुनिया काे बता नहीं पाये हैं, उन्हें सम्मान दे नहीं पाये. ऐसी बात नहीं है कि कहीं रिकॉर्ड नहीं है. सारी चीजें हैं, लेकिन उन्हें सामने लाने की जरूरत है. यहां कुछ के बारे में चर्चा हाेगी. Â बाकी पेज 17 पर
कई नायक बंद …
बिरसा मुंडा के दाहिने हाथ गया मुंडा काे भी इतिहास में वह जगह अब तक नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे. उलिहातू में जन्मे बिरसा मुंडा का कार्यक्षेत्र खूंटी, तमाड़ के अलावा बंदगांव (सिंहभूम) के आगे तक था. अंतिम लड़ाई उन्हाेंने डाेंबारी पहाड़ी पर लड़ी थी.
इस लड़ाई में बिरसा मुंडा ताे बच गये थे, लेकिन उनके सैकड़ाें साथी-अनुयायी मारे गये थे. ये अभी तक गुमनाम हैं. एक नायक का नाम है हति राम मुंडा. रांची जिला (तत्कालीन) के गुटू हड़ गांव के निवासी मंगन मुंडा के पुत्र ने जम कर संघर्ष किया. सन 1900 में अंगरेजाें ने गिरफ्तार कर उन्हें जिंदा दफन कर दिया. उन्हीं के भाई (संभवत:) हरि मुंडा 9 जनवरी 1900 काे सैल रकब पहाड़ पर हुए संघर्ष में घायल हाे गये थे.
उसी दिन उनकी माैत हाे गयी थी. डेमखानेल (जिला रांची, तत्कालीन) के धेरेया मुंडा काे जेल में डाल दिया गया था. वहीं उनकी माैत हाे गयी थी. सिंहभूम के माल्का मुंडा की माैत भी जेल में हाे गयी थी. जनुमपिरी के सांडे मुंडा अंगरेजाें के खिलाफ लड़ते हुए घायल हुए. बाद में माैत हाे गयी. घायल साेंब्राय मुंडा (रांची) ने भी दम ताेड़ दिया था. चक्रधरपुर के सुखराम मुंडा काे कैद हुई थी. जेल में ही उनकी माैत हाे गयी थी. आजादी की लड़ाई में इन नायकाें का कम याेगदान नहीं था.
अंगरेजाें ने झारखंड (तब बंगाल का हिस्सा था) के कई स्वतंत्रता सेनानियाें काे काला पानी की सजा दी थी, सबसे कड़ी सजा. अंडमान भेज दिया गया था. इनमें एक थे सूरज माझी. विद्राेहियाें के नेता थे. उन पर भाषण के माध्यम से उत्तेजना फैलाने का आराेप था. 13 नवंबर 1857 काे उन्हें उम्र कैद की सजा दी गयी थी. 3 सितंबर 1858 काे उन्हें अलीपुर जेल से अंडमान जेल भेज दिया गया था. साेना माझी काे 13 अप्रैल 1858 काे सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी. 14 अक्तूबर काे वे अंडमान जेल पहुंचे थे.
हजारीबाग के चुनमुन जेल से भाग गये थे. जब पकड़े गये ताे 14 साल की सजा सुनायी गयी आैर 26 अगस्त 1858 काे उन्हें अंडमान जेल भेज दिया गया. अनेक नाम भरे पड़े हैं. इनमें कुछ हैं-कुसमडीह (संताल परगना) के गुलाबी माझी. 1942 में दुमका जेल में यातना के दाैरान उनकी माैत हाे गयी थी. सिंधाटांड (संताल परगना) में जन्मे बासु मरांडी के पुत्र मराैड़ी चंद्रा की माैत राजमहल जेल में 1944 में हाे गयी थी.
संताल परगना के गारका के कान्हू मरांडी काे बक्सर जेल में भर दिया गया था, जहां उनकी माैत हाे गयी थी. संताल के सरसाबाद के ब्रांडी मरांडी के पुत्र सुंदर मरांडी काे 1942 में बेलापुर में पुलिस ने गाेली मार दीथी. संताल के रिवजुरिया के सीताराम मरांडी के पुत्र रातू मरांडी की राजमहल जेल में माैत 14 जनवरी 1944 काे हाे गयी थी.
कई आंदाेलनकारियाें काे जेल से बाहर ही नहीं आने दिया गया था. जेल में ही उनकी माैत हाे गयी थी. इनमें से कुछ के नाम हैं-संताल के मंझीलाडीह के रघुनाथ माेदी के पुत्र विद्याचरण माेदी. ध्वज फहराने के प्रयास के बाद इन्हें पकड़ा गया था. दुमका जेल में 1943 में उनकी माैत हाे गयी थी.
डाेमचांच के दानाे माेदी के पुत्र चूड़ामन पुलिस गाेलीबारी में घायल हाे गये थे. बाद में माैत हाे गयी थी. पगपारा (संताल) के लाखी राम महुली काे दुमका जेल में बंद कर दिया गया था, जहां उनकी माैत हाे गयी थी. जिनकी माैत जेल में हाे गयी थी, उनमें झपरा मुर्मू (सिंद्दी जाेला, संताल), मंगल मुर्मू (नारायणपुर, संताल), माेहन मुर्मू (लखीपुर, संताल) नारायण मुर्मू (डुमरिया संताल, राजमहल जेल में माैत), नूना मुर्मू (माहुल संताल), पांडु मुर्मू (काशीडीह, संताल, माैत बक्सर जेल में) शामिल हैं. 1942 के आंदाेलन में संताल परगना में सैकड़ाें आदिवासी अांदाेलनकारियाें काे पुलिस ने जेल में यातना देकर मार दिया था. शहीदाें की संख्या देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि संताल के लाेगाें ने स्वतंत्रता की लड़ाई में कितनी कुर्बानी दी है. तलबरैया (संताल परगना) के चैतन्य साेरेन काे जेल में अधमरा कर छाेड़ दिया गया था. बाद में उनकी माैत हाे गयी थी. मंगलगढ़ (संताल) के दुर्गा साेरेन काे राजमहल के रक्षी गांव में 6 नवंबर 1942 काे पुलिस ने मार डाला था. सिंघाटांड (संताल) के नूना साेरेन, भगवानपुर के लखन साेरेन, वृंदावन के जगदा साेरेन, कठलडीह के साेमय साेरेन की जेल में माैत हाे गयी थी.
ये ताे चंद ऐसे नाम हैं. इन लाेगाें ने शहादत दी. देश के लिए. लेकिन इनमें से अधिकांश काे देश नहीं जानता. अगर इनमें से कुछ काे लाेग जानते हैं ताे सिर्फ अपने गांव के अासपास के लाेग. अधिकांश के बारे में ताे किसी काे पता ही नहीं है. ये गुमनाम शहीद हैं.
इन नायकाें का भी सम्मान हाेना चाहिए. यह तभी हाेगा जब यहां के स्वतंत्रता संग्राम के दस्तावेजाें काे झारखंड लाया जाये, उस पर काम हाे, संबंधित गांवाें तक पहुंचा जाये. संभव हैं इनमें से अधिकांश के वंशज मिल जायें. यह अधूरी जानकारी है. साै-डेढ़ साै साल में बहुत कुछ बदल चुका है. नये-नये जिले बन गये. इन्हें खाेजना कठिन हाे सकता है, लेकिन असंभव नहीं. यह काम तब तक नहीं हाे सकता, जब तक सरकार इसमें गंभीर रुचि नहीं दिखाती. अगर यह हाे पाता है, ताे अपने नायकाें का यह सही सम्मान हाेगा.
संदर्भ : गृह मंत्री का उलिहातू आगमन

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