स्टार्ट अप मेंसुस्ती : नहीं कामयाब होते सभी स्टार्टअप! असफलता के कारणों को समझें
स्टार्टअप के बढ़ते ट्रेंड के बीच इनकी असफलता के मामले भी अब तेजी से बढ़ रहे हैं. पिछले दो साल में शुरू हुए स्टार्टअप पर आधारित एक आकलन के मुताबिक भारत में स्टार्टअप का औसत जीवनकाल 11.5 माह ही रहा है. विशेषज्ञों ने देश में स्टार्टअप की असफलता के लिए अनेक कारणों को जिम्मेवार ठहराया […]
स्टार्टअप के बढ़ते ट्रेंड के बीच इनकी असफलता के मामले भी अब तेजी से बढ़ रहे हैं. पिछले दो साल में शुरू हुए स्टार्टअप पर आधारित एक आकलन के मुताबिक भारत में स्टार्टअप का औसत जीवनकाल 11.5 माह ही रहा है. विशेषज्ञों ने देश में स्टार्टअप की असफलता के लिए अनेक कारणों को जिम्मेवार ठहराया है, जिनमें से प्रमुख कारणों और इससे संबंधित विविध तथ्यों के बारे में बता रहा है आज का यह आलेख …
संचार की नयी तकनीकों के ईजाद और भुगतान की प्रक्रिया आसान होने व अन्य कई कारणों से दुनियाभर में कारोबारी सुगमता बढ़ी है. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और पिछले पांच वर्षों के दौरान हजारों स्टार्टअप शुरू हो गये. इनमें से बहुत ऐसे हैं, जो कामयाबी की मिसाल कायम करते हुए दिनोदिन तरक्की कर रहे हैं. लेकिन, उन स्टार्टअप की संख्या भी कम नहीं है, जो फंडिंग के अभाव या ज्यादा लागत और मुनाफा नहीं होने के कारण दम तोड़ चुके हैं.
‘टेक इन एशिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जून, 2014 के बाद भारत में कुल 2,281 स्टार्टअप लॉन्च किये गये, लेकिन दो वर्ष के भीतर इनमें से 997 मृतप्राय हो चुके हैं. रिपोर्ट में आशंका जतायी गयी है कि इनमें से बचे हुए स्टार्टअप में से अगले एक साल में कम-से-कम दो-तिहाई और दम तोड़ देंगे.
लॉजिस्टिक्स, इ-कॉमर्स व फूड टेक स्टार्टअप ज्यादा असफल
लॉजिस्टिक्स, इ-कॉमर्स व फूड टेक स्टार्टअप की असफलता दर ज्यादा है. असफल स्टार्टअप में इन तीनों की हिस्सेदारी 60 फीसदी है़ चौथे स्थान पर एनालिटिक्स से जुड़े स्टार्टअप हैं, जिसकी हिस्सेदारी 11 फीसदी है.
फंडिंग का गहराता संकट
चूंकि वेंचर कैपिटल फंडिंग करनेवाले इस वर्ष और ज्यादा सतर्क हो चुके हैं, लिहाजा यह ट्रेंड अभी जारी रहेगा और असफल होनेवाले स्टार्टअप्स की संख्या बढ़ सकती है. ज्यादातर अच्छे आइडिया इसलिए कुचले जा सकते हैं, क्योंकि वे मौजूदा वेंचर कैपिटल या मार्केट डायनामिक्स के लिहाज से फिट नहीं बैठ पा रहे हैं.
असफलता के प्रमुख कारण
स्टार्टअप के नाकामयाब होने के अनेक कारण पाये गये हैं, जिनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं :
-ज्यादातर अन्य की नकल -दूसरे से अधिक फर्क नहीं होना-बाजार की प्रवृत्ति में बदलाव
-निवेश में विफलता
असफल स्टार्टअप्स से लें कुछ सीख
आम इनसान अपनी गलतियों से सीख लेता है. उद्यमी दूसरे की गलतियों से भी सीख लेते हैं और यह बेहतर है. हालांकि, स्टार्टअप के सैद्धांतिक पक्षों को समझना आसान है, लेकिन उसे व्यवहार में लाना कठिन होता है. हम अपनी गलतियाें को आसानी से नहीं ढूंढ़ पाते और कई बार ऐसा होने के बावजूद उस पर बात नहीं करते, ताकि कोई अन्य उसका फायदा उठा सकता है. भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में अमेरिकी सिलिकॉन वैली की तरह लोगों में ज्यादा परिपक्वता नहीं है. भारत में असफल उद्यमी को नाकामयाब होने का ठप्पा जड़ दिया जाता है. इसलिए लोग चुपके से निकल लेते हैं.
असफल हुए स्टार्टअप्स की ऐसे डूबी लुटिया
पेपरटेप : यह एक ग्रोसरी डिलीवरी स्टार्टअप था, जिसकी स्थापना नवंबर, 2014 में की गयी थी. चार चरणों में इसे 51.2 मिलियन डॉलर की फंडिंग हासिल हुई. पहले ही साल यह 17 शहरों तक फैल गया और रोजाना औसतन 20 हजार ऑर्डर डिलीवरी देने लगा. इस वर्ष मार्च में इसे इन कारणों से बंद कर देना पड़ा :
– पार्टनर स्टोर्स के साथ जोड़ा गया इसका एप्प परफेक्ट नहीं था. ग्राहक किसी स्टोर की सामग्रियों की पूरी लिस्ट नहीं देख पाते थे और कई बार जरूरी चीजें नहीं होती थीं.
– ग्राहकों की संख्या बढ़ाने के लिए कई ऑफर और छूट मुहैया कराये गये, जिससे घाटा लगातार बढ़ता गया.
– दो घंटे में डिलीवरी देने का वादा निभाने के लिए इन्हें लाॅजिस्टिक्स और ऑपरेशन टीम में ज्यादा लोगों को रखना पड़ा, जिससे खर्च बढ़ गया था.
डैजो : वर्ष 2014 में बेंगलुरु में तापीसीबो के नाम से इसे शुरू किया गया था. यह खाना ऑनलाइन मुहैया कराता था. मांग बढ़ने पर इसने खुद को जोमैटो और स्वीगी रेस्टोरेंट में तब्दील किया, लेकिन बढ़ती मांग को संभाल नहीं पाया और बंद हो गया.
असफलता के कारण : विशेषज्ञों ने नाकामयाबी के लिए इन कारणों को जिम्मेवार माना है :
– भारत में ऑर्डर का औसत आकार 300 रुपये है और लॉजिस्टिक्स कंपनियां आमतौर पर ग्राहकों से इससे कम रकम लेती हैं, लिहाजा मुनाफा कम होता जाता है.
– मौजूदा कंपनियों और बाजार में दस्तक दे रहे स्टार्टअप्स के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा.
– बिजनेस प्लान में बाजार में ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सेदारी को हथियाना शामिल किया जाता है. कई बार इस पर खर्च बढ़ा दिया जाता है, जिससे मुनाफा कम हो जाता है.
– पुराने ग्राहकों को बनाये रखने और नये को जोड़ने के लिए स्टार्टअप अक्सर ऑफर और छूट देते हैं. इससे स्टार्टअप के वित्तीय संसाधनों पर दबाव बढ़ता है.
(स्राेत : टेकस्टोरी डॉट इन) प्रस्तुति – कन्हैया झा
नाकामयाबी से बचने के लिए कुछ सावधानियां जरूरी
नाकामयाबी के अनेक कारण होते हैं. वैसे अगर आप यह देखेंगे कि कितने स्टार्टअप कामयाब होते हैं, तो आप हैरान रह जायेंगे. पिछले तीन सालों में 8,000 से ज्यादा स्टार्टअप खोले गये, जिसमें से आज सिर्फ 150 सही तरीके से चल रहे हैं. स्टार्टअप एक चुनौतीभरा काम है, जिसमें आपको काफी बातों का ध्यान रखना पड़ता है.
(क) बिजनेस प्लान- आपका बिजनेस प्लान ऐसा होना चाहिए, जो काफी हद तक नया और अनूठा हो. इसमें गहराई हो और बाजार का अच्छा अध्ययन किया गया हो. ज्यादातर स्टार्टअप प्लान तो अच्छा बनाते हैं, लेकिन बाजार की सच्चाइयों से दूर होते हैं. लिहाजा सफल नहीं हो पाते.
(ख) टीम- आपको सफल या असफल बनाने में टीम का बहुत हद तक योगदान होता है. हर टीम में तजुर्बे और नयी सोच का मिश्रण होता है, लेकिन कभी-कभार नयी सोच या सिर्फ तजुर्बे पर ज्यादा ध्यान देने से टीम में अंतर्विरोध पैदा होते हैं, जो स्टार्टअप के लिए बुरा होता है!
(ग) तकनीक – कई स्टार्टअप अच्छी तकनीक नहीं ला पाते और ये उनके खर्चों को काफी हद तक बढ़ा देता है. इस कारण से पूंजी खत्म हो जाती है.
(घ) निवेश पर जरूरत से ज्यादा ध्यान- कुछ स्टार्टअप सिर्फ निवेशकों के पीछे भागते हैं, ताकि उनको ज्यादा से ज्यादा निवेश मिल सके. इसके कारण उनका ध्यान बिजनेस से हट जाता है और अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
स्टार्टअप क्लास
अपनी पूंजी से शुरुआत करना है सही रास्ता
दिव्येंदु शेखर
अपना उद्यम शुरू करने के इच्छुक युवाओं की जानकारियों को पुख्ता करते हुए इनकी आगे बढ़ने की राह आसान बनाने में सहयोग दे रहे हैं दिव्येंदु शेखर. कुछ ग्लोबल फाइनेंशियल और कंज्यूमर कंपनियों में काम करने के बाद अब ये ग्लोबल कॉरपोरेशंस और स्टार्टअप्स को इ-कॉमर्स और फाइनेंशियल प्लानिंग में सुझाव देते हैं. ‘स्टार्टअप क्लास’ में पढ़ें प्रभात खबर के पाठकों के सवालों पर इनके जवाब.
– स्टार्टअप शुरू करने पर शुरुआती पूंजी कम पड़ने की दशा में इसका इंतजाम कहां से किया जा सकता है?
हर स्टार्टअप पूंजी की मुश्किलों से गुजरता है. कभी शुरुआती पूंजी घट जाती है, तो कभी खर्चे बढ़ जाते हैं. इससे बचने के दो उपाय हैं. पहला शुरू में ही पूंजी थोड़ी ज्यादा जुटा लें.
मान लें आपका प्लान 10 लाख का है, तो आप 15 लाख की पूंजी जुटाने का उद्देश्य लेकर लोगों से बात करें. शुरुआती पूंजी परिवार और मित्रों से ही मिलती है. इसके लिए आपको उन्हें अपना प्लान दिखा कर भरोसा दिलाना होगा कि यह एक अच्छा काम है और इसमें मुनाफे की संभावना है. अगर आपको ज्यादा पूंजी की जरूरत है, तो आप किसी एंजेल इनवेस्टर से भी बात कर सकते हैं. शुरू में बाहरी निवेशक से पूंजी न लें. निवेशक हमेशा अपनी शर्तों पर काम करते हैं और कई बार उसके दबाव में आकर स्टार्टअप गलतियां कर बैठते हैं.
‘स्टार्टअप विलेज’ इनक्यूबेटर के साथ जुड़ सकते हैं
– ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप लॉन्च करने के लिए क्या सरकार की कोई खास योजना है? यदि हां, तो किस तरह की और यदि नहीं, तो फिर इसके लिए सरकार से कैसे मदद हासिल की जा सकती है?
स्टार्टअप इंडिया के तहत ग्रामीण इलाकों में काम करनेवाले स्टार्टअप को काफी सहूलियतें दी जा रही हैं. सरकार नीतिगत तौर पर काफी नयी योजनाओं पर काम कर रही है, जो कृषि व ग्रामीण इलाकों में बदलाव की शुरुआत है. बिजली, स्वच्छ जलापूर्ति, शिक्षा, कृषि व स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करनेवाले स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए ‘स्टार्टअप इंडिया’ में काफी प्रावधान हैं. ‘स्टार्टअप विलेज’ नामक इनक्यूबेटर के साथ जुड़ कर आप स्टार्टअप चला सकते हैं. स्टार्टअप विलेज स्टार्टअप इंडिया के तहत इनक्यूबेटर है, जो ग्रामीण क्षत्रों से जुड़े उद्यमों को आर्थिक व तकनीकी मदद देता है. ‘स्टार्टअप-इंडिया डॉट ओआरजी’ पर आप ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
तकनीकी उत्पादों पर जोर देते हैं एक्सेलरेटर्स
– एक्सेलरेटर्स को प्रोमोट करने के लिए सरकारी स्तर पर किस तरह के प्रयास किये जा रहे हैं?
एक्सेलरेटर्स अभी भी भारत में उतने सफल नहीं हैं, जितने अमेरिका में हैं. कारण दोनों देशों में मूलभूत ढांचे में फर्क है. एक्सेलरेटर ऐसे स्टार्टअप को मदद देते हैं, जो कम लागत व छोटी टीम के साथ बेहतर तकनीक विकसित कर सकें. अमेरिका में तकनीकी उत्पादों पर खास जोर दिया जाता है. इसी कारण वहां एक्सेलरेटर मददगार होते हैं. भारत में अब तकनीकी उत्पाद में काम शुरू हुआ है, इसलिए एक्सेलरेटर कम हैं. चूंकि सरकार पूरे स्टार्टअप इकोसिस्टम को ध्यान में रख कर योजनाएं बना रही है, इसलिए सिर्फ एक्सेलटर्स के लिए कोई अलग से योजना नहीं है. हालांकि, धीरे-धीरे भारत में भी एक्सेलरेटर बढ़ रहे हैं.
अनुभवी लोगों के साथ से मिलती है मजबूती
पिछले पांच वर्षों के दौरान देश-दुनिया में अनेक स्टार्टअप ने व्यापक कामयाबी हासिल की है. इससे युवाओं को अपना स्टार्टअप शुरू करने की प्रेरणा मिली है. हालांकि, सिर्फ स्टार्टअप शुरू कर देने से आप सफल उद्यमी नहीं बन सकते हैं. इसके लिए आपको मेहनत के अलावा अनेक नियमों का पालन करना होगा और बाजार की समझ कायम करनी होगी. अब तक जिन युवाओं ने इस दिशा में कामयाबी हासिल की है, वे सभी बाजार को समझने में आगे रहे हैं. स्टार्टअप को सफल बनाने के लिए आपको अनेक चीजों की ओर ध्यान देना होता है. इनमें से कुछ खास चीजें इस प्रकार हैं :
1. क्रिएटिव और इनोवेटिव आइडिया : प्रत्येक स्टार्टअप को उसके खास आइडिया और प्रेजेंटेशन के लिए जाना जाता है. स्टार्टअप की सफलता में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका में आइडिया ही होता है. एक मजबूत टीम, बिजनेस और फंडिंग प्लान आइडिया का हिस्सा ही हैं. इसलिए आपका आइडिया शोध आधारित और अपने आप में पूर्ण होना चाहिए.
2. मजबूत और भरोसेमंद टीम : कामयाब स्टार्टअप की एक बड़ी सच्चाई है- मजबूत टीम. ज्यादातर स्टार्टअप अधिक हिस्सेदारी और रकम देकर अनुभवी लोगों को टीम में शामिल करते हैं, लेकिन यह सही नहीं है. अनुभवी लोगों को टीम में रख आप खुद को मजबूत कर सकते हैं. आपकी टीम में भरोसेमंद और लंबे समय तक साथ देनेवाले लोग होने चाहिए.
3. उत्पाद का परीक्षण और बाजार का विश्लेषण : स्टार्टअप शुरू करने से पहले आपको यह समझना होगा कि आपके उत्पाद या सेवा का दायरा कितना होगा और किस तरह के लोग उसमें आयेंगे. इसके लिए बाजार का विश्लेषण करना होगा. कई चरणों में उत्पाद या सेवा का परीक्षण करने के बाद लोगों से मिले फीडबैक के आधार पर लगातार उसमें अनुकूलित बदलाव लाने के बाद ही उसे बाजार में उतारना चाहिए.
4. फंडिंग : आइडिया कितना भी अच्छा हो, उससे फंड जेनरेट नहीं होगा. इसे आपको खुद लगाना होगा और फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा. इसके बाद फंडिंग की रणनीति बनानी होगी, ताकि आप निवेशकों की नजर में आ सकें और वे रकम निवेश कर सकें.