कमाल है! रक्षक बनी मोटरसाइकिल एंबुलेंस

छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे गांववालों को सुलभ हुई आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा आमतौर पर दूरदराज के इलाकों में एंबुलेंस की पहुंच सुगम नहीं होती. ऊबड़-खाबड़ रास्ते, संकरी गलियोंवाले छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे गांवों का भी हाल कुछ ऐसा ही है. एक वर्ष पहले तक यहां के लोगों को आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा बमुश्किल मयस्सर थी. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 20, 2016 5:59 AM
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छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे गांववालों को सुलभ हुई आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा

आमतौर पर दूरदराज के इलाकों में एंबुलेंस की पहुंच सुगम नहीं होती. ऊबड़-खाबड़ रास्ते, संकरी गलियोंवाले छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे गांवों का भी हाल कुछ ऐसा ही है. एक वर्ष पहले तक यहां के लोगों को आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा बमुश्किल मयस्सर थी. लेकिन, यूनिसेफ और राज्य के स्वास्थ्य विभाग की पहल पर बनी खास मोटरसाइकिल एंबुलेंस जंगल

में बसे गांववालों की रक्षकबन गयी है. आइए जानेंतफसील से-

छत्तीसगढ़ स्थित बस्तर के जंगलों में रहनेवाले लोगों को एक साल पहले तक मुश्किल से ही कोई आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध थी.

जंगल के अंदर रास्ते खराब होने की वजह से दूरदराज के इन इलाकों में समय पर एंबुलेंस का पहुंच पाना आमतौर पर बहुत मुश्किल होता है. समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाने की वजह से कई मरीजों की मौत हो जाती थी. लेकिन, इस मामले में अब बस्तर के हालात बदल चुके हैं और इसका जरिया बनी है मोटरसाइकिल एंबुलेंस. मोटरसाइकिल के सहारे चलनेवाली इस एंबुलेंस पर सवार होकर मरीज किसी आपात स्थिति में समय पर अस्पताल पहुंच कर इलाज करा पाते हैं. इस मोटरसाइकिल एंबुलेंस से सबसे ज्यादा फायदा गर्भवती महिलाओं को हुआ है, जो अब प्रसव के लिए समय पर अस्पताल पहुंच पाती हैं.

इस अनूठे आविष्कार की वजह से बस्तर के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में बीते एक वर्ष में 200 गर्भवती महिलाओं की जान बचायी जा चुकी है. जिले में गर्भवती महिलाओं की मौत और शिशु मृत्यु दर में दर्ज की गयी गिरावट में मोटरसाइकिल एंबुलेंस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.

यही वजह है कि एंबुलेंस के इस छोटे रूप की चर्चा आजकल देश-विदेश में हो रही है. इस मोटरसाइकिल एंबुलेंस का कंसेप्ट अफ्रीकी देशों में भी अपनाया जा रहा है.

खास तरीके से बनाये गये इस मोटरसाइकिल एंबुलेंस में मोटरसाइकिल को साइड कैरेज के साथ जोड़ा गया है. इसके भीतर स्ट्रेचर बनाया गया है और उसे हरे कपड़े से ढंका गया है. इस एंबुलेंस पर नीली बत्ती भी लगायी गयी है. इसके चालक को प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड का भी प्रशिक्षण दिया गया है, ताकि वह रास्ते में मरीज को जरूरत के मुताबिक दवाइयां भी मुहैया करा सके.

यूनिसेफ और राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से तैयार किये गये इस एंबुलेंस को बनाने में लगभग एक लाख 70 हजार रुपये की लागत आयी है, जबकि इसके रख-रखाव और ईंधन पर महीने भर में 15 हजार रुपये का खर्च आता है.

नारायणपुर के ग्रामीण इलाकों के लिए यह मोटरसाइकिल एंबुलेंस जानदार सवारी है, जो जंगल के अंदर तराईवाले इलाकों में बसे गांवों से लेकर पहाड़ी इलाकों तक हर जगह पहुंच सकती है. इस एंबुलेंस की मदद से इमरजेंसी केस वाले कई मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचा कर उनकी जान बचायी जा चुकी है.

यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ अजय ट्राक्रू बताते हैं कि गर्भवती महिलाएं हमारी सबसे पहली प्राथमिकता हैं, क्योंकि छत्तीसगढ़ के इस इलाके में गर्भवती महिलाओं की मौत के आंकड़े अधिक हैं. इस प्रयोग के जरिये हमलोग दूरदराज के जंगलों में रहनेवाली गर्भवती महिलाओं को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं.

इस प्रयास को ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए उपयोगी बनाने के लिए मोटरसाइकिल एंबुलेंस के आकार और प्रकार को उन्नत करने की कोशिशें तेज हैं. अजय कहते हैं कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रायपुर इस मोटरसाइकिल एंबुलेंस के डिजाइन को और बेहतर बनाने पर काम कर रहा है, जिससे यह मरीजों के लिए ज्यादा सुविधाजनक साबित हो सके़

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