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बिहार और बंगाल में बाढ़ की विभीषिका के बीच फरक्का बराज पर उठते सवाल

कहानी फरक्का बराज की हिमांशु ठक्कर को-ऑर्डिनेटर, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल ‘गंगा से फरक्का बराज को हटाये बिना बिहार को बाढ़ की विभीषिका से बचाना संभव नहीं है.’ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान ने फरक्का बराज पर एक जरूरी बहस का आगाज कर दिया है. उन्होंने गाद हटाने […]

कहानी फरक्का बराज की
हिमांशु ठक्कर
को-ऑर्डिनेटर, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल
‘गंगा से फरक्का बराज को हटाये बिना बिहार को बाढ़ की विभीषिका से बचाना संभव नहीं है.’ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान ने फरक्का बराज पर एक जरूरी बहस का आगाज कर दिया है. उन्होंने गाद हटाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने की मांग भी की है. वर्ष 1975 में हुगली की तलछट को हटाने के लिए पानी की आपूर्ति करने के उद्देश्य से बने इस बराज ने गंगा नदी के प्राकृतिक बहाव और जल-जीवन को तबाह कर दिया है तथा इससे नदी में भारी मात्रा में गाद पैदा हो गया है, जिसके कारण बिहार और बंगाल में बाढ़ की स्थिति गंभीर हो रही है. इस समय भी बिहार और बंगाल में लाखों लोग प्रभावित हैं.
हालांकि केंद्र सरकार ने फौरी राहत के तौर पर बराज के सभी गेट खोलने का आदेश दिया है, लेकिन यह भी कहा है कि बराज से जुड़ी समस्याओं के प्रबंधन में राज्यों को भी भूमिका निभानी होगी. फरक्का बराज का मामला बिहार और पश्चिम बंगाल से संबंधित तो है ही, इसके बारे में कोई भी निर्णय लेने से पहले बांग्लादेश को भी भरोसे में लेना होगा. ऐसे में केंद्र की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. इस बराज पर बहस के साथ नदियों के प्रबंधन और बांधों तथा बराजों की उपयोगिता पर भी गंभीर चर्चा के आसार हैं. फरक्का बराज पर आधारित यह प्रस्तुति इसी कड़ी में एक हस्तक्षेप है.
पर्यावरणविद् हिमांशु ठक्कर से वसीम अकरम की बातचीत
– बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य में गंगा की बाढ़ से मची तबाही का मुख्य कारण फरक्का बराज है. उन्होंने इसे हटाने की मांग की है. इसे आप कैसे देखते हैं?
नीतीश जी की मांग उचित है, लेकिन फरक्का बराज को हटाने के प्रभावों को भी देखना होगा.
इस समय बिहार में आयी भारी बाढ़ के दो मुख्य कारण हैं. पहला कारण फरक्का बराज तो है ही, दूसरा कारण पिछले दिनों मध्य प्रदेश की सोन नदी पर बने बाणसागर बांध से पानी छोड़ा जाना भी है. बाणसागर से पानी छोड़ने के कारण बिहार में बाढ़ की विभीषिका एक नये रूप में सामने आयी है. बाणसागर से पानी छोड़ने की कोई जरूरत ही नहीं थी. बीते 19 अगस्त को सुबह सात बजे के करीब बाणसागर से साढ़े पांच लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा गया. जब यह पानी छोड़ा गया था, तब गंगा में नीचे की ओर (डाउनस्ट्रीम) बहुत बारिश हो रही थी.
अभी बारिश के सात-आठ सप्ताह बाकी हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि बाणसागर से पानी किस काम के लिए और क्यों छोड़ा गया‍? तथ्य यही है कि अगर बाणसागर से पानी नहीं छोड़ा गया होता, तो पटना के गांधीघाट पर पानी का वह उच्च स्तर नहीं पहुंचता. अब तक के इतिहास में पटना में गंगा नदी के पानी का उच्च स्तर 50.27 मीटर था. बीते 21 अगस्त को यह 50.48 मीटर तक पहुंच गया यानी उच्च स्तर से ऊपर चला गया. इसके अलावा भी तीन और जगहों- हाथीदह, बलिया और भागलपुर- में पानी अपने अब तक के उच्च स्तर से ऊपर चढ़ गया. जरा आप सोचिए- जब यह सब हो रहा था, तब न तो कोशी नदी में बाढ़ है, न घाघरा में, न गंडक में, जबकि कोशी सबसे ज्यादा बिहार को रुलाती है.
21 अगस्त की शाम बिहार सरकार ने कहा कि फरक्का के गेट खोल दिये जायें. उसके बाद फरक्का के कुछ गेट खोले गये, यह मालूम नहीं कि कितने गेट खोले गये थे. गेट खुलने के अगले ही दिन वहां के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पानी का स्तर कम हुआ और गांधीघाट में पानी का स्तर घट कर 50.48 मीटर से 50.18 मीटर हो गया. लोगों को राहत मिली. इस तरह देखें, तो फरक्का और बाणसागर दो प्रमुख कारण हैं, जिनसे बाढ़ की विभीषिका ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है.
– फरक्का बराज का निर्माण जिस मकसद से हुआ था, पिछले 40 वर्षों में यह कितना पूरा हुआ है?
नीतीश कुमार कई वर्षों से कह रहे हैं कि फरक्का बराज को खत्म कर दिया जाये और उनकी यह मांग एक स्तर पर उचित भी है. फरक्का बराज का निर्माण हुगली पर स्थित कलकत्ता बंदरगाह को ध्यान में रख कर हुआ था. तब बंदरगाह के पानी में सिल्ट (गाद) जमा हो रही थी, जिस कारण उसकी गहराई कम हो रही थी, जिससे जहाजों का आवागमन बाधित हो रहा था.
तब निर्माणकर्ताओं ने सोचा कि फरक्का से सीधे बांग्लादेश की ओर जानेवाले पानी को बांध बना कर उसका रास्ता कलकत्ता बंदरगाह की ओर मोड़ दिया जाये, तो वह बंदरगाह में जमी सिल्ट को बहा ले जायेगा और गहराई बढ़ जायेगी. लेकिन, उनका सोचना सही साबित नहीं हो पाया और फरक्का बांध से बिहार के कुछ क्षेत्रों में बाढ़ की विभीषिका बढ़ने लगी. कलकत्ता बंदरगाह से कुछ सिल्ट तो बह कर कम हुई, लेकिन जहाजों के लिए उचित गहराई नहीं मिल पायी. फरक्का बराज का मकसद कामयाब नहीं हुआ, इसीलिए हल्दिया बंदरगाह को विकसित करना पड़ा. यही वजह है कि नीतीश कुमार को कहना पड़ा है कि फरक्का को खत्म (डीकमीशंड) कर दिया जाये.
– फरक्का बराज के बनाये जाने के बाद से गंगा किस तरह प्रभावित हुई है?
फरक्का बराज से गंगा नदी पर कई गंभीर प्रभाव पड़े. सबसे पहले तो एक नदी का अपना मुख्य काम प्रभावित हुअा.नदी का मुख्य काम है ड्रेन करना यानी ‘जल निकास करना’. अपने इस काम के तहत नदी बारिश के पानी को एक बहाव देकर सिल्ट को बहा ले जाती है और अपनी वास्तविक प्रकृति को लगातार स्थापित करती रहती है. फरक्का ही नहीं, किसी भी बांध से नदियों की यह प्रकृति बाधित होती है और इसके दुष्परिणामों में कभी बाढ़ तो कहीं सिल्ट के ठीहे उग आने की समस्या खड़ी हो जाती है. गंगा नदी में बहुत सारा सिल्ट आता है, लेकिन फरक्का की वजह से वह सिल्ट इकट्ठा होकर नदी के बहाव को रोकने लगा और बाढ़ की स्थिति बन गयी. ऐसी बाढ़ जल्दी जाती नहीं है, बल्कि ज्यादा दिन तक ठहरी रह जाती है, क्योंकि सिल्ट के कारण पानी को बहाव नहीं मिल पाता है.
दूसरी ओर, फरक्का बराज से धीरे-धीरे नदी की मछलियां कम होने लगीं, जिससे मछली उत्पादन में लगे लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हुआ. गंगा में पायी जानेवाली हिलसा मछली, जो पहले इलाहाबाद और दिल्ली तक मिलती थी, अब नहीं मिलती, उसका उत्पादन बहुत कम हो गया. इसके अलावा भी अनेकों प्रकार की मछलियों के उत्पादन पर संकट आया और मछुआरे बेरोजगार हो गये.
– गंगा की बाढ़ से हर साल होनेवाले भारी नुकसान को कम करने के लिए प्रमुख कदम क्या उठाये जाने चाहिए?
ऐसा नहीं है कि पहले गंगा में बाढ़ नहीं आती थी, लेकिन इस वक्त जो उसका स्वरूप है, वह पहले नहीं देखा गया. पहले बाढ़ आती थी और तेजी से चली भी जाती थी, क्योंकि गंगा के पानी के रास्ते में कोई रुकावट नहीं थी. लेकिन फरक्का बराज बनने के बाद से बाढ़ की विभीषिका बढ़ती गयी. लंबे समय तक बाढ़ की स्थिति बने रहने से उपजाऊ जमीन से लेकर जन-जीवन तक, सभी बुरी तरह से प्रभावित होते हैं. ऐसी स्थिति बहुत ही नुकसानदायक होती है.
इससे बचाव के लिए वैसे तो कई ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है, लेकिन पहले बात फरक्का की ही करते हैं, जो बिहार में बाढ़ की समस्या का एक प्रमुख कारण है. नीतीश कुमार की यह बात सही है कि फरक्का बराज को खत्म कर दिया जाये, लेकिन इसके लिए कुछ जरूरी काम करने होंगे. इस निर्णय पर हम तुरंत नहीं पहुंच सकते. सबसे पहले इसकी एक स्वतंत्र-निष्पक्ष जांच व समीक्षा होनी चाहिए कि वास्तव में फरक्का बराज से कितना नुकसान है.
हालांकि, नीतीश कुमार ने इसकी ‘नमामि गंगे प्रोजेक्ट’ के थिंक टैंक से जो जांच की बात कही है, लेकिन मेरे ख्याल में ऐसा संभव नहीं है. यह थिंक टैंक सही से जांच नहीं कर पायेगा, क्योंकि नमामि गंगे प्रोजेक्ट जल संसाधन मंत्रालय के अधीन है. जल संसाधन मंत्रालय नहीं चाहता कि जांच हो, क्योंकि यह मंत्रालय आज तक किसी भी बांध को खत्म करने के पक्ष में रहा ही नहीं है. इसलिए स्वतंत्र जांच जरूरी है.
यह स्वतंत्र इकाई यह जांच करे कि फरक्का की लागत, प्रभाव और फायदे के ऐतबार से बराज बनाने का जो मकसद था, वह पूरा हुआ या नहीं. यह जांच हो कि अगर फरक्का बनाने का मकसद पूरा नहीं हुआ, तो क्या उसे खत्म कर दिया जाये.
बांध को खत्म करने के दो विकल्प हैं- ऑपरेशनल डीकमीशंड और स्ट्रक्चरल डीकमीशंड. ऑरपेशनल डीकमीशंड का अर्थ है कि बांध के सारे गेट खोल दिया जाये और उन्हें खुला ही रखा जाये.
इससे नदी बाधित नहीं होगी और बाढ़ लंबे समय तक और विभीषक नहीं होगी. स्ट्रक्चरल डीकमीशंड का अर्थ है कि बांध को तोड़ कर उसे खत्म कर दिया जाये. समस्या यह भी है कि कई बांधों पर रेल और सड़क यातायात की व्यवस्था है. इसलिए इन दोनों विकल्पों की जांच होनी चाहिए कि किस विकल्प को अमल में लाने से सबसे ज्यादा फायदा होगा.
यह भी जानें
फरक्का बराज
कब बना : फरक्का बराज का निर्माण 1961 में शुरू हुआ और 14 साल बाद 1975 में यह बनकर तैयार हो गया. 21 अप्रैल, 1975 को इस बांध को काम करने के लिए अधिकृत कर दिया गया.
कहां स्थित है : गंगा नदी पर बना फरक्का बराज पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिले में स्थित है. यह बांग्लादेश की सीमा से करीब 16 किलोमीटर दूर है.
लागत : अब से करीब 41 वर्ष पूर्व बने इस बराज के निर्माण में 156.49 करोड़ रुपये का खर्च आया था.
कितनी है लंबाई : इस बराज की कुल लंबाई 2.62 किलोमीटर है.
कुछ और खास बातें :
– फरक्का बराज में 109 गेट, 38.1 किलोमीटर लंबी एक सहायक नहर और 60 छोटी नहरें हैं. माना जाता है कि सहायक नहर के माध्यम से ही 40,000 क्यूसेक पानी गंगा नदी से निरंतर हुगली नदी में स्थानांतरित होता रहता है.
– इसके 109 गेट में से 108 गेट नदी के ऊपर और एक गेट जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर स्थित है.
बनाने का मकसद
इस बराज के निर्माण का मकसद गंगा नदी के पानी को इसकी शाखा नदी हुगली/ भागीरथी में स्थानांतरित करना था, ताकि हुगली नदी में मौजूद तलछट पानी के साथ बह जाये, साथ ही हुगली नदी के मुहाने पर स्थित कोलकाता बंदरगाह के लिए नौ-परिवहन यानी नेविगेबिलिटी भी सुचारु रूप से अपना काम करती रहे.
यूं तो हुगली नदी में 17वीं सदी से ही तलछट की उच्च मात्रा विद्यमान थी, लेकिन माना जाता है कि दामाेदर बांध के बनने के बाद से तलछट की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ गयी थी. हालांकि इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए गंगा पर बांध बना कर इसके पानी को हुगली नदी में स्थानांतरित करने का सुझाव 19वीं सदी में सर आर्थर कॉटन ने दिया था. लेकिन, जब कोलकाता बंदरगाह पर बहुत ज्यादा गाद एकत्रित हो गया तब आजादी के बाद इससे छुटकारा पाने के लिए फरक्का बराज के निर्माण की योजना बनी.
कितना प्रभावी रहा
फरक्का बराज का निर्माण जिन कारणों से हुआ था, दुर्भाग्यवश वह फलीभूत नहीं हो सका. नदी विशेषज्ञ डॉ कल्याण रुद्र के मुताबिक, हुगली नदी के मुहाने से आनेवाले ताजे पानी के बहाव आैर फरक्का बांध द्वारा छोड़ा गया 40,000 क्यूसेक पानी हुगली नदी के मुहाने की गहराई में स्थित तलछट को बहाने के लिए काफी नहीं है. यही कारण है कि फरक्का बांध बनने के बाद भी हुगली नदी के तलछट में कमी नहीं आयी है.
– यह बराज फरक्का सुपर थर्मल पावर स्टेशन को पानी देता है.
– इस बराज का निर्माण हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी ने किया था.
– फरक्का बराज परियोजना प्राधिकरण यानी फरक्का बराज प्रोजेक्ट अथॉरिटी की स्थापना 1961 में इस उद्देश्य के साथ हुई थी कि यह फरक्का बांध, जांगीपुर बांध, सहायक नहर और इससे संबंधित दूसरी संरचनाओं के संचालन और रख-रखाव की जिम्मेदारी उठायेगा.
-इस बराज के निर्माण का उद्देश्य हुगली/भागीरथी नदी के खारेपन को कम करना और कोलकाता और इसके आस-पास के इलाकों में मीठे पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना भी था.
-फरक्का बराज के बायें केंद्र का प्रवाह बंध यानी लेफ्ट एफलक्स बंद 33.79 किलोमीटर लंबा अौर दायें केंद्र का प्रवाह बंध यानी राइट एफलक्स बंद 7 किलोमीटर लंबा है.
फरक्का बराज के विकास में प्रभावी होने की भरोसेमंद समीक्षा आवश्यक
परिणीता दांडेकर साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल
‘जब फरक्का बराज बना था, तब इंजीनियरों ने इतने बड़े पैमाने पर गाद जमा होने के बारे में कोई योजना नहीं बनायी थी. लेकिन, अब यह बराज की सबसे बड़ी समस्याओं में से है.’ यह कहना है फरक्का बराज प्रोजेक्ट के पूर्व जनरल मैनेजर डॉ पीके परुआ का.
भले ही इसे बराज की संज्ञा दी जाती है, पर मानक परिभाषाओं के अनुसार यह एक बड़ा बांध है. इसलिए इसे बराज कहना भ्रामक है.
जब इसे निर्मित करने की तैयारी चल रही थी, तब 1970 के दशक में पश्चिम बंगाल के मुख्य अभियंता कपिल भट्टाचार्य ने समुचित पानी के अभाव, भयावह बाढ़ और ऊपरी धारा में तलछट जमा होने की चेतावनी दे दी थी. जब पाकिस्तान (उस समय बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान के रूप में पाकिस्तान का हिस्सा था) ने उनकी चिंताओं को सही ठहराया, तो भट्टाचार्य को देशद्रोही बताया गया और उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा. उन्होंने रेखांकित किया था कि हुगली नदी के सूखते जाने का मुख्य कारण दामोदर और रूपनारायण नदियों पर बांध बनाना है.
फरक्का बराज के अधिकारीगण भी स्वीकार करते हैं कि वार्षिक कटाव नियंत्रण उपायों के अलावा उनके पास गाद प्रबंधन को लेकर कोई योजना नहीं है. उनका कहना है कि बराज के स्तर पर गाद कम करने के लिए एक ही उपाय सभी गेटों को खोलना है, लेकिन यह बिना नये गेट लगाये संभव नहीं है, क्योंकि सभी गेट बुरी तरह से खस्ताहाल हैं. हालांकि इसमें दो साल से अधिक का समय लग सकता है और यह सुनिश्चित नहीं है कि इससे गाद निकल सकेगा. इसके लिए बड़ी बाढ़ जरूरी होगी तथा अरबों टन गाद निचली धारा में बहाना अभूतपूर्व घटना हो सकती है. फरक्का के 40 हजार क्यूसेक पानी से हुगली की गाद भी साफ नहीं हो सकती है. हुगली-भगीरथी बेसिन के बांधों के कारण हुगली को साफ पानी नहीं मिल रहा है.
आकलन है कि गंगा 736 मिलियन टन गाद हर साल ढोती है, जिसमें से करीब 328 मिलियन टन फरक्का में जमा होता जाता है. इस कारण नदी बिल्कुल उथली हो चुकी है. बराज से निकलनेवाले पानी में कम गाद होने से यह नटी तट को काटने में अधिक प्रभावी होता है. इस कारण गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा में पर्यावरणीय नुकसान बढ़ रहा है तथा बांग्लादेश और भारत में समुद्री जल-स्तर ऊपर उठ रहा है. ऊपरी धारा में भी पानी के दबाव के कारण किनारों का क्षरणहो रहा है. जानकारों का स्पष्ट मत है कि फरक्का बराज से गाद निकालना एक असंभव काम बन चुका है. बराज के कारण नदी और आसपास में जीवों और पेड़-पौधों पर भी नकारात्मक असर पड़ा है. मछलियों की कमी के कारण लाखों मछुआरा परिवारों के सामने जीवन-यापन का संकट पैदा हो गया है.
कुल मिलाकर, फरक्का बराज से संबंधित मुद्दे बहुत गंभीर हैं. हमारे नीति-नियंता भले ही दावा करें कि बहुत से परिणामों का तब अनुमान नहीं लगाया जा सका था, जो पूरी तरह से सही नहीं है, लेकिन अब इसे मुद्दे को और अधिक टाला नहीं जा सकता है.
फरक्का बराज के विकास में प्रभावी होने की भरोसेमंद और स्वतंत्र समीक्षा आवश्यक है, जिसमें खर्च, लाभ और असर का आकलन भी शामिल है. गंगा पर नये बराज बना कर हम पुरानी गलतियों को ही दोहरायेंगे.
(संगठन की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख का संपादित अंश)

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