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जीने की चाह की कहानी

साहित्य सोपान के आज के अंक में हम आपके लिए लेकर आये हैं हिंदी साहित्य के विविध विषयों को समेटती की कुछ किताबें. विभिन्न प्रकाशन संस्थानों की ओर से हमारे पास आयी इन किताबों में कोई जीवन परिचय है, कोई राजनीतिक विमर्श है तो कोई शौर्य और संघर्ष गाथा. आइए डालें इन पर एक नजर- […]

साहित्य सोपान के आज के अंक में हम आपके लिए लेकर आये हैं हिंदी साहित्य के विविध विषयों को समेटती की कुछ किताबें. विभिन्न प्रकाशन संस्थानों की ओर से हमारे पास आयी इन किताबों में कोई जीवन परिचय है, कोई राजनीतिक विमर्श है तो कोई शौर्य और संघर्ष गाथा. आइए डालें इन पर एक नजर-
एपीजे अब्दुल कलाम : एक जीवन
रचनाकार : अरुण तिवारी
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 495
मूल्य : "495
मिसाइल मैन, स्वप्नद्रष्टा, शिक्षक और प्रेरक राष्ट्रपति. अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम इन सब से भी बढ़कर थे. उनके उल्लेखनीय जीवन की राह में जो भी सीमाएं और बाधाएं आयीं, वे उन सबको शिष्टता और विनम्रता के साथ पार कर गये. अरुण तिवारी ने गहरी समझ के साथ डॉ कलाम के जीवन के शुरुआती अनुभवों और चरित्र-निर्माण के बारे में बताया है.
वे डॉ कलाम के शिखर तक पहुंचने की कहानी बता रहे हैं, जो उतनी ही नाटकीय थी जितनी कि उनकी बनायी झलक भी प्रदान करते हैं. लेखक को 33 वर्षों तक डॉ कलाम के अधीनस्थ, सह-लेखक, व्याख्यान लेखक और मित्र होने का लाभ मिला है, जिस कारण वे कलाम के संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रस्तुत कर पाते हैं.
दुनिया जिसे कहते हैं
रचनाकार : निदा फाजली
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 284
मूल्य : "250
निदा फाजली उन दिनों से हिंदी पाठकों के प्रिय हैं, जिन दिनों हिंदी के पाठक मीर, गालिब, इकबाल फिराक आदि के अलावा शायद ही किसी नये उर्दू शायर को जानते हों. आठवें दशक के आरंभ में ही उनके अनेक शेर हिंदी की लाखों की संख्या में छपने वाली पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी पाठकों के बीच लोकप्रिय हो चुके थे और अधिकांश हिंदी पाठक उन्हें हिंदी का ही कवि समझते थे़
उनकी सरल और प्रभावकारी लेखनशैली ने शीघ्र ही उन्हें सम्मान और लोकप्रियता दिलायी़ इस किताब में उनकी प्रसिद्ध और प्रतिनिधि गजलों और नज्मों को शामिल किया गया है़ बहुत-सी रचनाएं हिंदी के पाठकों को पहली बार पढ़ने को मिलेंगी़ कोशिश की गयी है कि उनकी श्रेष्ठ रचनाओं का एक प्रामाणिक संकलन देवनागरी में सामने आये़
मुंडाओं के संरक्षक फादर हॉफमैन
रचनाकार : डॉ असुंता तिग्गा
प्रकाशक : केके पब्लिकेशंस
पृष्ठ : 208
मूल्य : "300
मुंडा जनजाति ने छोटानागपुर के इतिहास को सर्वाधिक प्रभावित किया है़ फादर हॉफमैन ने मुंडा जनजाति के जीवन-दर्शन, आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति का बहुत बारीकी से अध्ययन किया और ब्रिटिश सरकार के समक्ष उनके पक्ष को रखा़ इससे ब्रिटिश सरकार का इस जनजाति के प्रति दृष्टिकोण ही बदल गया़
साथ ही छोटानागपुर की जनजातियों के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन लाने में सहायक हुए़ रचनाकार ने हॉफमैन और मुंडा जनजाति पर पीएचडी की है़ इस किताब में उन्होंने सन 1877 से 1928 तक छोटानागपुर का इतिहास प्रस्तुत करते हुए फादर हॉफमैन के कार्यकलापों की विवेचना करती है़ संप्रति इतिहास में रुचि रखनेवाले विद्यार्थी, शोधार्थी सभी के लिए अत्यंत उपयोगी है़
हिंदू अस्मिता : एक पुनर्चिंतन
रचनाकार : डीएन झा
प्रकाशक : आकार बुक्स
पृष्ठ : 141
मूल्य : "295
दिल्ली विवि में इतिहास के प्रोफेसर रह चुके द्विजेंद्र नाराण झा की यह पुस्तक हिंदू संप्रदायवाद और सांस्कृतिक अतिराष्ट्रवाद के विषाक्त वर्णन का खंडन और हिंदू धार्मिक अस्मिता के बारे में बड़े-बड़े दावों के खोखलेपन को उजागर करने की कोशिश करती है़ रचनाकार ने हिंदू धर्म के बारे में कुछ रूढ़ियों की पहचान करते हुए ऐतिहासिक साक्ष्यों की रोशनी में उन्हें आधारहीन साबित करने की कोशिश की है़
वह इस किताब के जरिये हिंदुओं की सामुदायिक पहचान के रूप में गाय की पवित्रता को भी चुनौती देते हैं. उन्होंने अपनी शैली में इस किताब के निबंधों में हिंदू धार्मिक कट्टरपंथियों के मिथक के प्रति प्रबल दुराग्रह की असलियत को सामने लाने की कोशिश की है़
गांधी और नेहरू : भारतीय सर्वधर्मसमभावी राष्ट्रवाद की साझी विरासत
रचनाकार : प्रो दीपक मलिक
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 176
मूल्य : "400
भारत का राष्ट्रीय आंदोलन वस्तुत: आम सहमतियों और व्यापक संयुक्त मोरचों एवं सम्मिलित जनांदोलन को लेकर राजनीतिशास्त्र की दुनिया में एक नयी गतिकी को निर्मित करता है़ यह विश्व इतिहास में एक नयी कड़ी है़ गांधी विमर्श तो न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में बड़े दमखम के साथ चल रहा है, लेकिन जवाहरलाल के बारे में इस दौर में कुछ ही पुस्तकें बाजार में आ रही हैं.
गांधी-नेहरू साझा विमर्श एक देर से ही सही, लेकिन निहायत ही मौजूं सिलसिला है़ वैश्वीकरण के इस आक्रामक दौर में स्वतंत्र वैकल्पिक अर्थतंत्र और राज्य सत्ता के हिमायती नेहरू को भुला देना अस्वाभाविक नहीं लगता़ यह किताब दो महान स्वप्नद्रष्टाओं की यथार्थसम्मत विचारधारा को सप्रमाण रेखांकित करती है़
यात्राओं में झारखंड
रचनाकार : संजय कृष्ण
प्रकाशक : विकल्प प्रकाशन
पृष्ठ : 168
मूल्य : "400
हिंदी में घुमक्कड़ी का साहित्य बहुत कम है़ं संकुचित हिंदी समाज दबावों में ही यात्रा पर निकलता था़ शौकिया यायावरी 20वीं सदी में शुरू हुई और इसके बाद ही यात्रा-साहित्य सामने आ पाया़ यह किताब इसी का एहसास कराती है़
प्राचीन तकनीक और सभ्यता का प्रमुख केंद्र रहे झारखंड के बारे में घुमक्कड़ी साहित्य का अभाव है़ इस किताब के रचनाकार ने काका कालेलकर, विनोबा भावे, भारतेंदु हरिश्चंद्र, कामता प्रसाद सिंह, संजीब चट्टोपाध्याय और सुकांत भट्टाचार्य के कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घुमक्कड़ी विवरणों को ढूंढ निकाला है़ ये सभी वृत्तांत ऐतिहासिक हैं और झारखंडी समाज-संस्कृति का प्रतिबिंब एक सर्वथा भिन्न दर्पण में उकेरते हैं. इन विवरणों में यहां के लोग, संस्कृति और समाज के बारे में रोचक चित्रण है़
बुलंद भारत : मोदीजी की नीतियां
रचनाकार : राकेश कुमार आर्य
प्रकाशक : डायमंड बुक्स
पृष्ठ : 270
मूल्य : "195
इस किताब के जरिये रचनाकार ने यह बताया है कि भारत को जितना खोजा जायेगा और उस खोज में अपनी दृष्टि और अपने दृष्टिकोण का आश्रय लिया जायेगा, उतना ही भारत बुलंद होगा, सारे विश्व के लिए ग्राह्य और स्वीकार्य होगा़ निस्संदेह इस स्थिति-परिस्थिति के लिए हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की नीतियों को ही श्रेय दिया जाना चाहिए़
उनके भीतर मनु प्रतिपादित राजधर्म के लक्षण दिखाई देते हैं. कल तक जिस देश में यह माना जाता था कि राष्ट्र की बात कोई नहीं कर रहा, उसी देश में आज राष्ट्र की बातें हो रही हैं और लोग राजधर्म को प्राथमिकता दे रहे हैं. भारत विश्व में सम्मान पा रहा है और उसका यश फैल रहा है. निश्चय ही सारी दिशाएं आज भारतीय धर्म-संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों का अभिनंदन कर रही हैं.
मैं जीती हूं : आदिवासी जीवन-संघर्ष की कहानियां
रचनाकार : कालेश्वर
प्रकाशक : विश्वभारती प्रकाशन
पृष्ठ : 121
मूल्य : "125
कहानियों में दुख, दर्द, उत्पीड़न, संघर्ष, चीत्कार,शोर-गुल, आनंद, गांव, शहर, जंगल, नदी, पहाड़, जीवन है. मालिकों-शासकों के बदलते चेहरे, लुभावने वादे, साजिशें, दमन, हत्या और बदहाली बनाये रखने के तमाम प्रयास. इस दबाव को तोड़ने के लिए आम आदमी का आक्रोश, असंतोष और आंदोलन का मतलब कहीं न कहीं संघर्ष का फूट पड़ना. इसी द्वंद्व में जीता हुआ आम आदमी खुशी का एक पल सहेज लेने के लिए आज के हत्यारे विश्वग्राम में खुद को रोज खर्च कर रहा है. बेहतर जीवन के संघर्ष में साहित्य हर मोड़ पर खड़ा है, रोशनी देने के लिए. इस संग्रह की कहानियां भी उसी संघर्षशील जीवन से जुड़े साहित्य का हिस्सा हैं. संस्कृति, मानवता, सामाजिकता और कला को बचाते हुए जीने की चाह की कहानी है.
परमवीर चक्र विजेताओं पर एनबीटी की वीरगाथा पुस्तकमाला
परमवीर चक्र भारत की सेना के सभी अंगों के अधिकारियों और सूचीबद्ध कार्मिकों को शत्रु के समक्ष अदम्य पराक्रम के प्रदर्शन के लिए दिया जानेवाला सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है़ 26 जनवरी 1950 को आरंभ हुआ यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जाता है. यह सम्मान शत्रु के सामने धरती, आकाश या फिर समुद्र में अत्यधिक उत्कृष्ट वीरता अथवा निर्भीकता अथवा असाधारण साहस के प्रदर्शन या आत्म बलिदान के लिए दिया जाता है़ वीरगाथा पुस्तकमाला की सभी पुस्तकें नौ से 12 आयुवर्ग के बच्चों के लिए चित्रित हैं.
पुस्तकों का उद्देश्य बच्चों को परमवीर चक्र से सम्मानित सैनिकों के महान वीरतापूर्ण कार्यों के बारे में जानकारी देना है ताकि उन्हें प्रेरणा मिले और उनमें देशप्रेम का भाव जागृत हों. ये पुस्तकें नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित की हैं. ज्यादा जानकारी के लिए www.nbtindia.gov.in पर विजिट िकया जा सकता है.
स्वतंत्रता संग्राम में गिरिडीह की भूमिका
रचनाकार : डॉ पुष्पा सिन्हा
प्रकाशक : केके पब्लिकेशंस
पृष्ठ : 160
मूल्य : "160
वर्षों की गुलामी के बाद आजाद हुए इस देश को दासता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए कब-कब, कहां-कहां और किस-किस ने कुर्बानियां दीं, उनका पूर्ण सूचीबद्ध दस्तावेज उपलब्ध नहीं है़ समय के पन्ने पलट कर इतिहास से बहुत कुछ समेटने का प्रयास किया है़
इस किताब के जरिये रचनाकार ने भी ऐसी ही एक कोशिश की है़ स्वाधीनता संग्राम में गिरिडीह की भूमिका को सूक्ष्म विश्लेषण के द्वारा सामग्रियों एवं साक्ष्यों को संग्रहित कर पेश करने की कोशिश की गयी है़ रचनाकार ने स्वतंत्रता संग्राम में गिरिडीह की भूमिका विषय पर पीएचडी की है़

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