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नीतीश ने उठायी फरक्का को विघटित करने की मांग, जानें फरक्का बराज और गंगा में बाढ़ का सच

-बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति- बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में है. बिहार के बारह जिले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं. जिसमें खासकर पटना, बेगूसराई, खगड़िया, कटिहार और वैशाली जिले हैं. एक अनुमान के अनुसार लगभग दस लाख लोग बाढ़ से पीड़ित हैं.इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक नयी बहस को जन्म दिया है. […]

-बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति-

बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में है. बिहार के बारह जिले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं. जिसमें खासकर पटना, बेगूसराई, खगड़िया, कटिहार और वैशाली जिले हैं. एक अनुमान के अनुसार लगभग दस लाख लोग बाढ़ से पीड़ित हैं.इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक नयी बहस को जन्म दिया है. उन्होंने बाढ़ के लिए फरक्का बराज को दोषी ठहराया है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्होंने फरक्का बराज को dismantle (विघटित) करने की मांग की है.

उनका कहना है कि बराज के चलते गंगा में गाद (Silt) की मात्रा बढ़ती जा रही है. जिसके कारण गंगा उथली होती जा रही है. ऐसे में बराज को dismantle (विघटित) कर देने से गंगा का पानी बिना किसी अवरोध के समुद्र में जा सकेगा. और बाढ़ की स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सकेगा.

आम जनता के लिए बहस नयी जरूर है, पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले दस सालों से विभिन्न फोरम पर फरक्का बराज का मामला उठाते रहे हैं. इस लिहाज से ये राजनीतिक मांग या बाढ़ पर राजनीति नहीं कही जा सकती. उनका कहना है कि यूपीए सरकार की बैठकों में भी वे देखते थे कि अक्सरहां अपस्ट्रीम पर ही चर्चा होती थी, वे बार बार ध्यान दिलाते थे कि डाउनस्ट्रीम पर भी चिंता व्यक्त की जानी चाहिए.

बिहार के मुख्यमंत्री का मानना है कि इस बार गंगा में बाढ़ बारिश के चलते नहीं आयी. बल्कि इस बार काफी वर्षा के चलते यूपी में रिहंद बांध से और एमपी में बेन्सागर बांध से काफी मात्रा में पानी छोड़ा गया है. क्योंकि बारिश इस बार बिहार में सामान्य से 14 प्रतिशत कम रही है. 719.9 मिमी में सामान्य बारिश मानी जाती है, जबकि बारिश हुई केवल 615 मिमी. यहां तक कि बिहार के 152 ब्लॉक् में सामान्य से 40 फीसदी बारिश कम हुई है. ऐसे में नीतीश कुमार का फोकस गंगा में तेजी से बढ़ रहे गाद और फरक्का बराज पर है.

कुछ जल विशेषज्ञ उनकी इस बात का समर्थन करते हैं जिनमें दिनेश मिश्र और आर के सिन्हा जैसे जाने माने विशेषज्ञ हैं. मिश्र का मानना है कि फरक्का बराज के बनने के बाद से पिछले चार दशक में पटना से फरक्का के बीच गंगा की गहराई पचास फीसदी कम हो गयी है. ऐसी में रिवर बेड ऊंचा हो गया है. वाटर carrying (

ढुलाई) कैपेसिटी घट गयी है. सहायक नदियां भी अपना जल गंगा में नहीं छोड़ पा रही हैं. ऐसे में थोड़ा भी पानी अधिक हो जाने पर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.

दूसरी तरह सिन्हा कहते हैं कि वे गंगा के अध्ययन के सिलसिले में 1991 से 2004 के बीच हर साल तीन चार बार फरक्का बराज जाते रहे हैं. 2004 में pondage (जल संचय) एरिया में उन्होंने 3 किमी लंबा और 300 मीटर चौड़ा आइलैंड देखा था, जो लगातार बढ़ रहा था. दोनों किनारों से embankment (तटबंध) होने के कारण इस गाद को फैलने की जगह भी नहीं मिल पा रही है.

अब अगर गंगा की बात की जाये, तो गंगा दुनिया की नदियों में बेसिन एरिया के मामले में अठारहवें स्थान पर आती है, लेकिन गाद ( silt) के मामले में दूसरे स्थान पर है. एक अनुमान के अनुसार, हर साल गंगा 512-712 मिलियन टन silt ले जाती है अपने उद्गम से लेकर बंगाल की खाड़ी में मिलने तक. जिसमें से 328 मिलियन टन फरक्का बराज के अपस्ट्रीम में जमा होता है. जिसके चलते कई जगह नेविगेशन भी लगभग असंभव हो गया है.

नीतीश कुमार का मानना है कि फरक्का बराज से फायदे कम नुकसान ज्यादा हैं. गंगा का 16 प्रतिशत कैचमेंट एरिया बिहार में पड़ता है. लेकिन लीन सीजन में गंगा में बहते हुए कुल पानी का तीन चौथाई बिहार की नदियों से आता है. उत्तर प्रदेश बिहार बॉर्डर पर 400 cusec वाटर फ्लो मिलता है, जबकि फरक्का बराज पर 1500 cusec वाटर फ्लो की जरूरत होती है. जो कि बिहार की नदियों से ही प्राप्त होता है.ऐसे में उन्होंने केंद्र से अपील की कि वह गंगा में अपस्ट्रीम से डाउनस्ट्रीम तक बिना रुकावट के पानी का बहाव सुनिश्चित करें.उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की है कि नेशनल सिल्टेशन पालिसी बनायीं जाए.

एक नजर फरक्का बराज पर

फरक्का बराज मिदनापुर जिले में भारत- बंगलादेश के बॉर्डर से लगभग 16 किमी अंदर बना. इसे 1961 में बनाना शुरू किया गया और 1972 में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ. 1975 में इसे चालू किया गया. इसकी लंबाई 2240 मीटर है. और इसके निर्माण में कुल खर्च आया था- 156.49 करोड़ रूपये. इसके निर्माण के पीछे उद्देश्य था कि हुगली नदी के तट पर स्थित कोलकाता बंदरगाह को 40,000 क्यूबिक फीट/ सेकंड पानी छोड़ा जाये ताकि कोलकाता बंदरगाह पर जमी गाद को हटाया जा सके. इसके लिए 40 किमी लंबा फीडर कैनाल बनाया गया. पर समय के साथ कुछ मामले उठने लगे-

1. ये पाया गया कि जो पानी सिल्ट हटाने के लिए छोड़ा जा रहा है वो पर्याप्त नहीं है.

2. समय -समय पर पानी छोड़ने के चलते land collapse होता था और गाद की मात्रा बढ़ा देता था.

3. बराज के निर्माण के चलते लो lying एरिया पानी में आ गए. बड़े पैमाने पर डिस्प्लेसमेंट हुआ.

4. बांग्लादेश को शिकायत होने लगी कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है. मामला UNO में भी पंहुचा. इस बारे में 1994 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है, जो फिलहाल अंतिम नहीं है.

5. इससे बंगाल में हिलसा मछली के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा. हिलसा मछली अमूमन समुद्र में रहती है, पर ब्रीडिंग के समय वो मीठे पानी में आती है. 1975 से पहले हिलसा गंगा में बहुत अन्दर तक बक्सर तक और गंगा की सहायक नदी यमुना में आगरा तक आ जाया करती थी. पर बराज के चलते अब बांग्लादेश का हिलसा उत्पादन में अधिपत्य है.

6. समय के साथ पुराने कोलकाता port ( जो कि riverine port है) को आधुनिक और बड़े हल्दिया port ने replace कर दिया है.

7. इसके अलावा ये अनुमान भी पूरा सही साबित नहीं हो पाया कि पानी की अधिक मात्रा से गाद बह कर समुद्र में निकल जाएगा.

हालांकि फिलहाल केंद्र ने इस पर चुप्पी साध रखी है. और फिलहाल उसका प्लान है कि 72 फीट गहरे pondage एरिया को dredging करके गाद हटाई जाए.

फरक्का बराज से जुड़े कुछ अन्य तथ्य

फरक्का बराज के अलावा भी कुछ अन्य तथ्य हैं, जिस पर विचार करने की जरूरत है, क्योंकि उन तथ्यों को पूरी तरह इग्नोर नहीं कर सकते.

1. गंगा के कैचमेंट एरिया में हैवी deforestation (वनों की कटाई) हुआ है, जिसने गाद की मात्रा काफी बढ़ाई है.

2. नदी के बेसिन में बसे राज्यों की सरकारों ने गंगा के किनारे पर forestation पर ध्यान नहीं दिया है.

3. नदी के स्लोप में काफी बदलाव है. उदहारण के लिए, पहाड़ों में जहां इसका ग्रेडिएंट 22 सेंटीमीटर/किमी है, वही मैदानी इलाकों में इसका ग्रेडिएंट 7.5 सेंटीमीटर/ किमी हो जाता है. ( हालांकि ये प्राकृतिक कारण है; इसका कुछ नहीं किया जा सकता;हां. सिल्ट पर ध्यान दिया जा सकता है.)

4. फरक्का से 60 छोटे छोटे कैनाल निकाल कर पश्चिम बंगाल में वाटर सप्लाई किया जा रहा है.

5. फरक्का को dismantle करने के बाद भी कैचमेंट एरिया/ अपस्ट्रीम से आती गाद पर काबू नहीं पाया जा सका, तो फिर फरक्का बराज को dismantle करने से फायदा नहीं हो पायेगा.

तो ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री की बात को बजाय राजनीतिक रंग दिए फरक्का बराज की उपयोगिता पर, नेशनल सिल्टेशन पालिसी पर, गंगा में बढ़ रहे सिल्ट पर ( कैचमेंट एरियाज में), गंगा के तटों पर heavy forestation पर गंभीरता से विचार करना होगा.

(लेखकसेंटर फॉर इंक्लूसिव सोसाइटी केरिसर्च डायरेक्टर हैं )

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