दिल्ली की ”खास” ट्रेवल एजेंसी नेत्रहीन व एसिड पीड़ित महिलाओं को देती है काम
पीड़ित महिलाओं के हुनर की कद्र दिल्ली में एक ‘खास’ ट्रैवल एजेंसी है, जहां सिर्फ नेत्रहीन और एसिड हमला पीड़ित महिलाएं ही काम करती हैं. ये महिलाएं मीटिंग अरेंज करने और क्लाइंट की जरूरत के हिसाब से टूर पैकेज तैयार करने सहित हर तरह का काम संभालने में सक्षम हैं. यह प्रयास है आकाश भारद्वाज […]
पीड़ित महिलाओं के हुनर की कद्र
दिल्ली में एक ‘खास’ ट्रैवल एजेंसी है, जहां सिर्फ नेत्रहीन और एसिड हमला पीड़ित महिलाएं ही काम करती हैं. ये महिलाएं मीटिंग अरेंज करने और क्लाइंट की जरूरत के हिसाब से टूर पैकेज तैयार करने सहित हर तरह का काम संभालने में सक्षम हैं. यह प्रयास है आकाश भारद्वाज का, जिनका मानना है कि शारीरिक कमजोरी की वजह से कोई पीछे नहीं रहे और हुनर की कद्र हो़
आकाश भारद्वाज दिल्ली के लक्ष्मी नगर में एक ट्रेवल एजेंसी चलाते हैं, जिसका नाम है ‘खास’. इसकी खासियत यह है कि इसमें सिर्फ नेत्रहीन और एसिड हमला पीड़ित महिलाएं ही काम करती हैं.
अपने काम को लेकर ये लड़कियां दूसरों से कहीं ज्यादा मेहनती हैं और आकाश के इस प्रयास की वजह से वे खुद को सशक्त महसूस करती हैं. विभिन्न कॉरपोरेट घरानों के साथ बतौर एचआर मैनेजर काम कर चुके 32 वर्षीय आकाश, शुरू से ही खुद का कोई उद्यम शुरू करना चाहते थे. सही मौका पा कर उन्होंने वर्ष 2012 में अपनी नौकरी से इस्तीफा दिया और ट्रेवल-टूरिज्म सेक्टर में अपनी जगह बनाने में जुट गये. शुरुआत में उन्होंने निजी स्तर पर कुछ कॉन्ट्रैक्ट्स हासिल किये. उन दिनों वह अपने घर से ही सारा कामकाज संभालते थे. लेकिन वर्ष 2014 में एक दिन शॉपिंग के दौरान बाजार में एसिड हमला पीड़ित एक महिला से मुलाकात ने आकाश की जिंदगी को एक नयी दिशा दे डाली.
आकाश बताते हैं, मैंने देखा कि एक महिला गुब्बारे बेच रही है. उसके चेहरे पर एसिड हमले के निशान थे. पूछने पर उसने बताया कि पड़ोस में रहनेवाले एक लड़के ने उसके चेहरे पर एसिड फेंक दिया था. इस घटना के बाद उसके पति ने उसे छोड़ दिया. आकाश आगे बताते हैं कि उस महिला के दो बच्चे हैं, जिनकी परवरिश के लिए वह यह काम कर रही थी. उक्त महिला ने आकाश को यह भी बताया कि एसिड हमले से पहले वह एक मॉल में सिक्योरिटी इनचार्ज थी, लेकिन इस घटना के बाद उसे कोई नौकरी देने को तैयार नहीं था. आकाश कहते हैं कि बातचीत से वह महिला पढ़ी-लिखी और अच्छे घर की लग रही थी, लेकिन चूंकि उसका चेहरा खराब हो चुका था, उसे कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी.
क्या चेहरा ही सब कुछ है? हुनर की कद्र कुछ भी नहीं? आकाश आगे कहते हैं कि इसके बाद मैंने ऐसे लोगों को रोजगार का एक अच्छा अवसर देकर मदद करने का फैसला किया. तब आकाश अपनी ट्रेवल एजेंसी को अपने घर से चला रहे थे, लेकिन उन्होंने एक ऐसा ऑफिस शुरू करने की योजना बनायी, जहां उन लोगों को रोजगार मिले जिनमें काम करने की क्षमता तो है पर विभिन्न शारीरिक चुनौतियों की वजह से उन्हें काम नहीं मिल पाता है.
इस बारे में आकाश ने अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से बात की, लेकिन किसी को उनका यह आइडिया पसंद नहीं आया.
उन लोगों का कहना था कि ऐसे लोगों के साथ काम करना मुश्किल होगा. लेकिन आकाश ने तो मन ही मन फैसला कर लिया था और मई 2015 में उन्होंने ‘खास’ नाम से अपनी ट्रेवल एजेंसी शुरू की. आकाश बताते हैं कि इस तरह ‘खास’ दुनिया की पहली ऐसी ट्रेवल एजेंसी बन गयी जो ऐसे लोगों को काम पर रखती है, जो एसिड हमले की पीड़ित या नेत्रहीन हैं. फिलहाल ‘खास’ के साथ पांच दृष्टिहीन और एक एसिड हमला पीड़ित छह महिलाएं काम कर रही हैं. दो महीनों के जरूरी प्रशिक्षण के बाद ये महिलाएं इतनी कार्यकुशल हो चुकी हैं कि वे साफ-सफाई से लेकर मीटिंग अरेंज करने और क्लाइंट की जरूरत के हिसाब से टूर पैकेज तैयार करने सहित हर तरह का काम संभालने में सक्षम हैं. ये महिलाएं जरूरी सॉफ्टवेयर के सहारे कंप्यूटर से लेकर स्मार्टफोन तक भी आसानी से चला लेती हैं.
आकाश बताते हैं कि हमारी एजेंसी इंडस्ट्रियल टूर, फैमिली ट्रिप, एडवेंचर कैंप के अलावा कॉरपोरेट ऑर्गनाइजेशन, स्कूल और कॉलेज के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय टूर का आयोजन करती है. सारा काम नेत्रहीन कर्मचारियों द्वारा ही किया जाता है. आकाश कहते हैं कि जिन महिलाओं के साथ मैं काम कर रहा हूं, वे सभी टैलेंटेड हैं.
ये सभी काम सीख कर बहुत अच्छा काम करती हैं. इस काम में आकाश को कुछ आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है. वह बताते हैं कि पहले वह अकेले थे और घर से काम करते थे, लेकिन जब से वह इन लड़कियों के साथ काम कर रहे हैं, तब से उन्हें अपना काम करने के लिए किराये पर ऑफिस लेना पड़ा. इस तरह ऑफिस के खर्चे और लड़कियों की तनख्वाह के लिए उन्होंने काफी पैसा उधार लिया है. इसके अलावा वो अपनी बचत का पैसा भी इस काम में लगा रहे हैं. आकाश का मानना है कि जब कोई अच्छा काम करता है तो शुरुआत में थोड़ा घाटा तो उठाना ही पड़ता है. इसके बावजूद उन्हें पूरी उम्मीद है कि जल्द ही वह लाभ की स्थिति में आ जायेंगे.
आकाश चाहते हैं कि देश में कोई भी नेत्रहीन और एसिड हमले से पीड़ित इनसान बेरोजगार ना रहे. भविष्य की योजनाओं के बारे में उनका कहना है कि आनेवाले दो से तीन वर्षों में वह देश के हर राज्य में अपने इस ‘खास’ उद्यम की ब्रांच खोलना चाहते हैं, ताकि वह कम से कम पांच सौ ऐसे लोगों को रोजगार दे सकें जो नेत्रहीन हैं या फिर एसिड हमले से पीड़ित हैं.