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धान खरीद योजना के नाम पर लूट

महालेखाकार की जांच में हुआ है भारी गड़बड़ी का खुलासा, सीबीआइ ने एफसीआइ के गोदामों में की है छापामारी राज्य में किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की योजना वित्तीय वर्ष 2011-12 में शुरू हुई थी, जो अब तक चल रही है. इस बीच वित्तीय वर्ष 2013-14 में सिर्फ दो जिले रामगढ़ व […]

महालेखाकार की जांच में हुआ है भारी गड़बड़ी का खुलासा, सीबीआइ ने एफसीआइ के गोदामों में की है छापामारी

राज्य में किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की योजना वित्तीय वर्ष 2011-12 में शुरू हुई थी, जो अब तक चल रही है. इस बीच वित्तीय वर्ष 2013-14 में सिर्फ दो जिले रामगढ़ व हजारीबाग तथा 2014-15 के सुखाड़ में भी हजारीबाग जिले में धान की खरीद हुई थी. इस दौरान इस योजना में सर्वाधिक गड़बड़ी वित्तीय वर्ष वर्ष 2011-12 तथा 2012-13 में हुई है. राज्य सरकार के धान खरीद योजना शुरू करने से पहले भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) अपने स्तर से किसानों से धान खरीदता था. गत दो वर्षों से एफसीआइ फिर से धान खरीद में शामिल किया गया है. शुरुआत से ही इस योजना को लूट की योजना बना दिया गया. ‘प्रभात खबर’ वर्ष 2009 से ही धान खरीद योजना में गड़बड़ी की खबर प्रकाशित करता रहा है.

इस बीच खाद्य आपूर्ति तथा सहकारिता विभाग के वरीय अधिकारियों ने योजना में पारदर्शिता बढ़ाने तथा लूट कम करने के संबंध में ढेरों बातें कहीं, पर हुआ कुछ नहीं. यहां तक कि धान खरीद से पहले किसानों का निबंधन (नाम, पता, लगान रसीद व खेत के रकबा के साथ) करने की पहल आज तक नहीं हो सकी है. अब महालेखाकार की जांच में धान खरीद योजना में भारी गड़बड़ी का खुलासा हुआ है. वहीं सीबीआइ ने भी एजी की रिपोर्ट के आधार पर एफसीआइ के गोदामों में छापामारी की है.

संजय

रांची : देश भर में चावल, गेहूं अौर गन्ना सहित कुछ अन्य फसलें हर वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर खरीदी जाती हैं. यह कीमत केंद्र सरकार तय करती है. इसका मकसद किसान को उसकी फसल की वाजिब कीमत दिलाना है. पर झारखंड में होने वाली धान खरीद योजना को राज्य सरकार के अधिकारियों, चावल मिला मालिकों तथा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के भी अधिकारियों ने अपनी कमाई का जरिया बना लिया. राज्य में धान खरीद का रिकॉर्ड वित्तीय वर्ष 2004-05 से उपलब्ध है. तब एफसीआइ ही धान खरीदता था. राज्य सरकार के जरिये यह खरीद वित्तीय वर्ष 2011-12 से शुरू हुई. दरअसल वर्ष 2008-09 से ही धान खरीद में गड़बड़ी शुरू हुई थी.

ये है योजना

सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदती है. सहकारिता विभाग के लार्ज एरिया मल्टीपरपस सोसाइटी (लैंपस) तथा प्राइमरी एग्रिकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी (पैक्स) के जरिये किसानों से धान खरीदे जाते हैं. यह धान मीलिंग (कुटाई) के लिए चावल मिलों में भेजा जाता है. मिल से चावल (लेवी चावल) निकलने पर इसे एफसीआइ को भेजा जाता है.

इसका बिल देने पर एफसीआइ सरकार को चावल की कीमत अदा करता है. इस तरह से किसानों से धान खरीद का एक रिवॉल्विंग फंड चलता रहता है. लैंप्स-पैक्स से मिलों को धान तथा मिलों से निकला चावल एफसीआइ तक भेजने का काम सरकार का है. इस परिवहन शुल्क के लिए लैंपस-पैक्स को एडवांस दिये जाते हैं. वहीं, गत वर्ष से धान खरीद में शामिल एफसीआइ अपने खरीद वाले जिलों में धान व चावल का परिवहन खुद किया है.

झारखंड में किसान हित की योजना का ये हाल!

खरीफ मौसम 2011-12 में धान खरीद में करीब 20 करोड़ के हेरफेर का अनुमान था. दरअसल राज्य के कुल 81 चावल मिलों की क्षमता से अधिक लेवी चावल का उठाव भारतीय खाद्य निगम ने अपने गोदामों के लिए किया था. मिल मालिकों ने जहां-तहां से बोरे जुगाड़ कर चावल बेचा था.

किसानों को लाभ पहुंचाने के नाम पर उनसे सिर्फ 30 हजार टन धान की ही खरीद हुई थी. पर इससे पांच गुना अधिक लेवी चावल (1.5 लाख टन) तथाकथित मिलों से एफसीआइ के गोदामों में पहुंचा दिये गये. कुल धान का 68 फीसदी चावल ही निकलता है. यानी डेढ़ लाख टन चावल के लिए करीब 30 लाख टन धान चाहिए.

दरअसल निगम व राज्य सरकार के कुछ वरीय अधिकारियों ने आपसी सहमति से इस घोटाले को अंजाम दिया था. पड़ोसी राज्यों से निम्न स्तरीय (टुकड़ा या खुदी सहित घटिया) चावल मंगाये व मिलों के जरिये लेवी चावल के नाम पर इसे उठा लिया था. ‘प्रभात खबर’ को सूचना मिली थी कि 900 से 1150 रुपये प्रति क्विंटल वाला चावल एफसीआइ ने मिल मालिकों से 1452 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर लिया था. इसमें अधिकारियों को प्रति क्विंटल 160 रुपये कमीशन मिलने की सूचना थी. इस तरह 1.5 लाख मिट्रिक टन (15 लाख क्विंटल) की लेवी राइस में करीब 20 करोड़ कमीशन की लेनदेन की संभावना जतायी गयी थी.

सबसे पहली गड़बड़ी 20 करोड़ की

घोटाले में शामिल रहे हैं चावल मिल

सूत्रों के अनुसार राइस मिल के नाम पर राज्य के कई मिल सिर्फ गोरखधंधा करते हैं. पाकुड़, देवघर और चाकुलिया सहित कुछ अन्य स्थानों पर किसी चहारदीवारी के अंदर कुछ उपकरण लगाकर इसे राइस मिल बताया जाता है. ऐसे मिल धान की खरीद नहीं करते. असली धंधा तो पहले राज्य के अंदर के चावल (एफसीआइ से एसएफसी भेजे जाने वाले व पीडीएस के) की ही रीसाइक्लिंग थी. वहीं, पड़ोसी राज्यों से सीधे चावल मंगाकर अपना चावल बताया जाता है. रांची जिले की भी एक मिल पर यही आरोप लगाये जाते हैं. एफसीआइ ने इस वर्ष ‘प्रभात खबर’ को बताया था कि कुल 81 मिलों को मीलिंग के लिए टैग किया गया है.

पर इन मिलों की क्षमता नहीं बतायी गयी थी. गौरतलब है कि वर्ष 2008-09 में झारखंड के राइस मिलों ने कुल 33 लाख क्विंटल धान की मिलिंग (कुटाई) की थी. अभी एजी की जांच में पाया गया कि खरीफ मौसम 2011 से 13 के बीच चावल मिलों को मिलिंग के लिए टैग करने में भारी गड़बड़ी. उद्योग विभाग में निबंधन के बगैर देवघर की मिलों को टैग किया गया. जमशेदपुर की तीन मिल निरीक्षण के क्रम में अभी बंद मिली. हजारीबाग, गिरिडीह, लोहरदगा व दुमका की कई मिलों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कंसेंट टू अॉपरेट (सीटीओ) तथा कंसेंट यू इस्टैब्लिस (सीटीइ) के बगैर या इसके पहले ही टैग किया गया.

खरीद में शर्तों का पालन नहीं

किसानों के नाम, पते व रकबा का पूरा ब्योरा लेना

किसानों को दो-तीन दिनों के अंदर एकाउंट पेयी चेक से भुगतान

तीन-चार दिनों के अंदर इन्हें सरकार द्वारा सूचीबद्ध राइस मिलों में भेजना

किसान के बोरे में धान नहीं खरीदना

लैंपस-पैक्स को उपलब्ध कराये गये बोरों पर स्टेनसिल से बोरों पर लैंपस-पैक्स का नाम अंकित करना

ऐसे बढ़ी चावल व धान की खरीद

वित्तीय वर्ष चावल

2004-05 1166

2005-06 2045

2006-07 4925

2007-08 18911

2008-09 1.5 लाख

2011-12 3.93 लाख

2012-13 3.21 लाख

2013-14 0.004 लाख

2014-15 0.07 लाख

2015-16 2.50 लाख (15 अप्रैल तक)

नोट : धान व चावल की खरीद मिट्रिक टन में. (खरीफ मौसम 2010-11 का ब्योरा उपलब्ध नहीं है)

विभिन्न खरीफ मौसम में गड़बड़ी

क्या हो रही गड़बड़ी

दरअसल, धान खरीद योजना में दो तरह से गड़बड़ी होती रही है. एक फरजी किसानों से धान खरीद. यानी जो किसान है ही नहीं या जो धान विक्रेता नहीं है, उनके धान की खरीद दिखाना. दूसरी गड़बड़ी धान की फरजी खरीद, यानी धान खरीदा ही नहीं जाना. पहले मामले में बाजार व पड़ोसी राज्यों से घटिया चावल मंगा कर भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) को दिया गया तथा अंतर मूल्य के रूप में करोड़ों रुपये पचा लिये गये. वहीं दूसरे मामले में धान खरीद के पैसे ही फंसा दिये गये. गत चार वर्षों से राज्य के चावल मिलों तथा लैंपस-पैक्स प्रबंधकों के पास सरकार के करीब 90 करोड़ रुपये बकाया हैं. फरजी खरीद के कारण ही धान ढुलाई के लिए मोटरसाइकिल, मोपेड, कार व जिप्सी जैसे वाहनों का भी इस्तेमाल दिखाया गया है.

खरीफ मौसम 2011-12

जिलों की क्षमता से अधिक खरीद : इस वर्ष किसानों से धान खरीद उन जिलों में अधिक हुई, जहां धान रोपनी का रकबा अपेक्षाकृत कम था. धान खरीद में अनियमितता वाले जिलों में गिरिडीह, हजारीबाग, धनबाद व देवघर शामिल थे. इनमें धनबाद व देवघर में धान रोपनी का लक्ष्य खरीफ वर्ष 2011-12 में क्रमश: 53 हजार व 48 हजार हेक्टेयर था. पर इन्होंने ज्यादा रकबा वाले जिलों से भी अदिक धान खरीदा था. सवाल यह था कि यहां के किसानों के पास इतनी मात्रा में धान कहां से आया?

उपलब्ध राशि से अधिक की खरीद : फरजी तरीके से व अंधाधुंध धान खरीद में मशगूल कुछ जिलों को यह अहसास ही नहीं रहा कि उनकी वजह से उपलब्ध राशि से अधिक की धान खरीद हो गयी है. राज्य खाद्य निगम ने धान खरीद के लिए कुल 379 करोड़ रुपये आवंटित किये थे. वहीं सहकारिता विभाग के लैंपस-पैक्स ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपये प्रति क्विंटल की दर से राज्य भर में 42 लाख 63 हजार 994 क्विंटल धान खरीद लिये.

इनकी कुल देय लागत 460.50 करोड़ होती है. इस तरह आवंटित रकम से 81.5 करोड़ रुपये अतिरक्ति की खरीद हो गयी. इधर कई जिलों ने फंसने के डर से अंतिम समय में यह कह दिया कि पैसा नहीं मिलने से किसान अपना धान ले गये.

जिलों में गड़बड़ी के नमूने

रामगढ़ : जिला सहकारिता पदाधिकारी, रामगढ़ ने मुख्यालय को जो अद्यतन रिपोर्ट भेजी थी, उसमें जिक्र था कि जिले भर में 70753 क्विंटल धान खरीदे गये हैं. शुरू से यही रिपोर्ट मुख्यालय को भेजी जाती रही. इसके बाद तत्कालीन उपायुक्त रामगढ़ अमिताभ कौशल ने जिले के सभी धान खरीद केंद्र (पैक्स) व चावल मिलों में स्टॉक चेक कराया, तो सिर्फ 55356 क्विंटल धान का ही पता चला. इस हिसाब से 15397 क्विंटल अतिरिक्त धान के लिए करीब 1.66 करोड़ रुपये का भुगतान किसे हुआ?

गिरिडीह : धान खरीद की अनियमितता में अग्रणी गिरिडीह जिले के तत्कालीन उपायुक्त दीप्रवा लकड़ा ने बताया था कि इस बार (खरीफ-2011-12 में) बंपर फसल हुई है. अपने जिले के किसी गांव के दो किसानों के बारे बताया कि उन किसानों ने प्रति एकड़ 90 क्विंटल धान उपजाया है. उनकी यह बात झूठ निकली थी. मार्च-2012 में तत्कालीन कृषि सचिव ने राज्य के 15 किसानों को बेहतर धान उत्पादन के लिए सम्मानित किया था. इसमें गिरिडीह जिले के गांडेय प्रखंड के गांडेय गांव के किसान महेंद्र प्रसाद वर्मा को भी पुरस्कृत किया गया था. वर्मा ने प्रति एकड़ सिर्फ 31 क्विंटल धान उपजाया था.

बोकारो : जिला सहकारिता व आपूर्ति पदाधिकारी, बोकारो ने सूचित किया था कि जिले के पांच पैक्स से 17834 क्विंटल धान किसान जबरन ले गये. ऐसा इन किसानों को धान के बदले पैसे का भुगतान न कर पाने की वजह से हुआ.

धनबाद : धनबाद जिले के उपायुक्त ने भी खाद्य आपूर्ति विभाग को बताया था कि जिले में पहले की सूचना से 156247 क्विंटल धान कम पाये गये हैं. 31 मार्च तक यहां 446170 क्विंटल धान खरीदने की सूचना दी गयी थी. उपायुक्त के अनुसार किसानों को धान के मूल्य का भुगतान समय पर न होने से किसान डेढ़ लाख क्विंटल धान वापस ले गये हैं.

खरीफ 2012-13

पलामू : पलामू में हुए चावल घोटाला मामले में जिला सहकारिता पदाधिकारी शिवनारायण राम, जिला आपूर्ति पदाधिकारी विपिन लकड़ा व जिला कृषि पदाधिकारी नरेश चौधरी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई थी. डीआइजी, पलामू जोन आरके धान ने अपनी जांच रिपोर्ट में इन तीनों अधिकारियों को चावल घोटाले में प्रथम दृष्टया शामिल माना था. यहां पलामू (हुसैनाबाद) की मां जानकी राइस मिल, देवघर के यशोदा राइस मिल व श्री यशोदा राइस मिल पर भी प्राथमिकी दर्ज हुई थी.

पाकुड़ : पाकुड़ जिले के तिलभिट्ठा लैंपस में धान-चावल खरीद में डेढ़ करोड़ से अधिक की गड़बड़ी का खुलासा हुआ था. जिले के उपायुक्त ने इसकी रिपोर्ट सरकार को भेजी थी. जांच में पता चला था कि तत्कालीन जिला सहकारिता पदाधिकारी चंदेश्वर कापर ने धान खरीद में भारी हेराफेरी की थी. उपायुक्त की रिपोर्ट के अनुसार श्री कापर ने तिलभीट्टा लैंपस के सदस्य सचिव जियाउल अंसारी के साथ मिल कर करोड़ों का चावल गायब कर दिया था.

वहीं इन्होंने जिस मां एग्रो फूड राइस मिल को उसना चावल बनाने के लिए धान दिया था, वहां का न तो कोई बॉयलर था और न ही उबला धान सुखाने की कोई जगह.

धनबाद : धनबाद जिले में उपायुक्त के समक्ष लटानी, खेसरा व पंडुवा लैंप्स प्रभारियों ने स्वीकारा था कि उन्होंने 2.06 करोड़ रुपये का धान खरीदा ही नहीं था. इसके बाद इन पर प्राथमिकी दर्ज करने की बात चली. इसके बाद प्रभारियों ने 50 फीसदी रकम वापस कर दी थी. उधर, उपायुक्त ने गोविंदपुर के प्रिया व शिव शंभु राइस मिल तथा कतरास के जय हनुमान राइस मिल का निरीक्षण किया, तो वहां न तो धान मिला था और न ही चावल.

खरीफ मौसम 2014-15

देवघर के जिला सहकारिता पदाधिकारी (डीसीओ) ने खाद्य आपूर्ति विभाग को बताया था कि जिले में करीब 49.75 करोड़ रुपये का सरकारी धान किसान ले गये तथा इसे खुले बाजार में बेच दिया. डीसीओ ने लिखा था कि विभाग ने जून तक पैसे नहीं दिये, तो अब किसान अपनी निजी जरूरतों, शादी-विवाह, कर्ज अदायगी तथा खरीफ मौसम की खेती के खर्च के लिए अपना धान ले गये तथा इसे खुले बाजार में बेच दिया है. देवघर जिले में अब धान का स्टॉक नहीं है, इसलिए किसानों को देने के लिए पैसे नहीं चाहिए. दरअसल विभाग धान खरीद मामले की जांच भी करा रहा है. यह चिट्ठी इसी के बाद लिखी गयी थी.

खरीफ मौसम 2015-16

सुखाड़ में भी हो गयी धान खरीद : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सूखाग्रस्त राज्यों के बारे हलफनामा दिया था. इसमें झारखंड सहित देश के 10 राज्यों के नाम थे. झारखंड के बारे कहा गया था कि राज्य के 22 जिले सूखाग्रस्त हैं. यहां फसलों की क्षति हुई है. एक ओर केंद्र सरकार झारखंड को सूखाग्रस्त बता रही थी. वहीं दूसरी ओर किसानों से अब तक का सर्वाधिक कुल छह लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य था. सरकारी एजेंसिया भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ), खाद्य आपूर्ति व सहकारिता विभाग तथा एफसीआइ की ओर से बहाल एक प्राइवेट पार्टी नेशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज लि. (एनसीएमएल) ने अब तक 2.50 लाख टन धान खरीद लिया. रांची, गुमला व पूर्वी सिंहभूम में एफसीआइ व एनसीएमएल दोनों धान खरीद रहे हैं.

मोटरसाइकिलों से ढ़ोये गये 25 हजार क्विंटल धान-चावल

सबसे बड़ा खुलासा

एजी की ताजा रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है कि पशुपालन घोटाले की तर्ज पर राज्य में धान घोटाला हुआ है. चारा घोटाले में जैसे स्कूटरों से चारा व सांढ़ ढ़ोये गये थे, उसी तरह सहकारिता विभाग व खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों सहित लैंपस-पैक्स प्रबंधकों ने किसानों से खरीदा धान राइस मिलों तक पहुंचाने के लिए मोटरसाइकिल, मोपेड, कार, टेंपो, जीप व बस का इस्तेमाल किया है.

आठ जिलों रांची, खूंटी, धनबाद, हजारीबाग, बोकारो, गढ़वा, देवघर व दुमका की जांच में पाया गया कि धान के अलावा मिलों से निकला लेवी चावल एफसीआइ के गोदामों तक पहुंचाने का काम भी मोटरसाइकिल, कार व मोपेड से हुआ है. इन वाहनों से करीब 25 हजार क्विंटल धान-चावल ढोये गये, जिनकी कीमत 3.29 करोड़ रुपये होती है. इस काम में कुल 68 मोटरसाइकिल, दो मोपेड, आठ टेंपो, सात कार, दो जीप, एक जप्सिी, एक वैन तथा एक बस का इस्तेमाल किया गया.

एजी की रिपोर्ट के तथ्य

2011-15 तक 729.83 करोड़ का चावल एफसीआइ को. पर बिल 694.34 करोड़ का ही. वहीं भुगतान सिर्फ 655.12 करोड़ का (कुल 74.71 करोड़ फंसे हैं).

धान की सफाई व गुणवत्ता के लिए किसी जिले में पावर क्लिनर, आद्रता मीटर व एनेलिसिस किट नहीं मिला.

फरजी किसानों से खरीदा गया धान (चार जिलों के 20 खरीद केंद्रों में ही कुल 200 में से 112 मामले संदेहास्पद).

हजारीबाग की जिन पांच मिलों पर था 42 करोड़ बकाया, उन्हें फिर से धान दे दिया.

सर्वाधिक गड़बड़ी खरीफ मौसम 2011 से 2013 तक

इन दोनों खरीफ मौसम में मोटरसाइकिल, मोपेड व कार से हुआ धान परिवहन

इस दौरान धान खरीदने के लिए मिला 281 करोड़, पर धान खरीद लिया 286 करोड़ का

अंधाधुंध कुल 1.03 करोड़ चावल बोरे (50 किलो वाले) 38.43 रुपये प्रति बोरा की दर से खरीदे गये. इनमें से 11.35 करोड़ के 29.54 लाख बोरे आज तक बेकार. वहीं मिल मालिकों के पास फंसे 2.85 करोड़ के 7.4 लाख बोरे. उधर पांच जिलों में 2.46 लाख बोरे (95 लाख कीमत के) खराब हो गये. (इस तरह कुल नुकसान करीब 15 करोड़)

इस दौरान जांच वाले जिलों में किसानों को एक से सात माह तक विलंब से हुआ भुगतान.

खरीद केंद्र (लैंपस-पैक्स) का खाता व अंकेक्षण नहीं. केंद्र से 14.48 करोड़ का दावा नहीं किया जा सका. राज्य खाद्य निगम पर पड़ा यह बोझ.

खरीफ मौसम 2012-13 में 2.8 लाख क्विंटल धान गायब (1250/क्विंटल की दर से 35.02 करोड़ का घाटा).

खरीफ मौसम 2012-13 में चावल मिल मालिकों ने एफसीआइ को नहीं दिया 152.80 करोड़ का चावल (करीब 71 करोड़ आज भी बकाया).

इसी खरीफ मौसम में लैंपस-पैक्स ने 17 करोड़ का धान मिलों को नहीं दिया (इस तरह 17 करोड़ का घाटा)

2011-12 में अकेले धनबाद में बगैर जमीन संबंधी कागजात के 52.24 करोड़ की धान खरीद.

2012-13 में धनबाद व देवघर जिले में तथा 2011 में रांची व हजारीबाग में कुल उत्पादन से अधिक खरीदे गये धान. (इस तरह 7.49 करोड़ की फर्जी खरीद).

आद्रता, धूल व गंदगी के नाम पर राइस मिलों ने 1.59 लाख क्विंटल धान कम दिखाया (जबकि क्रय केंद्रों ने इसे ठीक ठहरा कर खरीदा था).

धान खरीद घोटाले ने ली जान!

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के तकनीकी सहायक सुभाष चंद्र सामद ने इसी वर्ष मई में आत्महत्या कर ली थी. तब यह सवाल क्या धान खरीद में हो रहे घोटाले के कारण आत्महत्या करनी पड़ी? एफसीआइ कार्यकारी कर्मचारी संघ के सचिव अभय कुमार लकड़ा ने इसकी जांच की मांग की थी. संघ का आरोप है कि धान खरीद में हो रही धांधली तथा इसमें व्याप्त कमीशन खोरी के कारण ही सुभाष को अपनी जान गंवानी पड़ी. स्व सामद पर तय पार्टियों से ही धान खरीदने तथा इसके एवज में वरिष्ट अधिकारियों को कमीशन पहुंचाने का दबाव था.

श्री लकड़ा के अनुसार धान खरीद में धान बेचने वाली पार्टी व दलाल तथा धान लेने वाले मीलर (राइस मिल) पहले से तय हैं. इन्हीं के साथ काम करने को कहा जा रहा है. गत 24 अप्रैल को सुखाड़ में 2.5 लाख टन धान खरीद लेने संबंधी खबर ‘प्रभात खबर’ में प्रकाशित हुई थी. श्री लकड़ा ने उक्त खबर को सच्चाई के बिल्कुल करीब बताया था. उन्होंने कहा कि स्व सामद पर एरिया मैनेजर का भारी दबाव था. वे मुख्यालय में निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक पी मुथुमारन से अपना दर्द बताना चाहते थे, लेकिन जीएम ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया. इसी के बाद सामद टूट गये.

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