भारत-नेपाल संबंध : प्रचंड के दौरे से होगी नयी शुरुआत

रिश्ता : द्विपक्षीय संबंधों में भरोसा बहाल करना चाहती है नेपाल की नयी सरकार प्रकाश शरण महात विदेश मंत्री, नेपाल नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड 15 सितंबर से भारत दौरे पर आ रहे हैं. नयी सरकार का पूरा जोर इस बात पर है कि नेपाल-भारत संबंधों में विश्वास का माहौल कायम हो. नेपाल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 14, 2016 6:47 AM
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रिश्ता : द्विपक्षीय संबंधों में भरोसा बहाल करना चाहती है नेपाल की नयी सरकार

प्रकाश शरण महात

विदेश मंत्री, नेपाल

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड 15 सितंबर से भारत दौरे पर आ रहे हैं. नयी सरकार का पूरा जोर इस बात पर है कि नेपाल-भारत संबंधों में विश्वास का माहौल कायम हो.

नेपाल और भारत के संबंधों का एक लंबा इतिहास है. हमारे बीच परस्पर सहयोग और संबंध बहुआयामी हैं. हम अनेक क्षेत्रों में एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं. समय-समय पर कुछ अवरोध हमारे संबंधों की राह में बाधा बनते रहे हैं, हमें इन्हें दूर करते हुए आगे बढ़ना है.

नयी सरकार का पूरा जोर इस बात पर है कि नेपाल-भारत संबंधों में विश्वास का माहौल कायम हो. यह जरूरी है, क्योंकि जब आप एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं, तब काफी चीजें आसानी से कर सकते हैं, जबकि यदि भरोसे की कमी हो, तो छोटी-छोटी चीजों को लेकर सवाल उठने लगते हैं. इसलिए हमारी सरकार सबसे पहले हमारे संबंधों में भरोसे की बहाली चाहती है.

अपने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड के 15 सितंबर से भारत दौरे से पहले मैं यहां भारत की विदेश मंत्री सुषमा जी से बहुत सारे मुद्दों पर व्यापक चर्चा के लिए आया हूं, ताकि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की उच्चस्तरीय वार्ता के लिए जमीन तैयार की जा सके. हमें पूरी उम्मीद है कि दोनों प्रधानमंत्रियों की मुलाकात से काफी कुछ सकारात्मक चीजें निकलेंगी, जिसके जरिये हम हालिया अतीत की कुछ कड़वी यादों और गलतफहमियों को पीछे छोड़ने में कामयाब होंगे. हमारे बीच सहयोग के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें सही दिशा में आगे ले जाने की जरूरत है. नेपाल में भारत के सहयोग से कई सारे प्रोजेक्ट भी चल रहे हैं.

हम संबंधों को उच्चस्तरीय वार्ताओं तक ही सीमित नहीं रखना चाहते. दो राष्ट्रों के प्रमुखों के बीच उच्चस्तरीय वार्ताएं महत्वपूर्ण होती हैं, लेकिन इसके जरिये ही हर चीज का समाधान मुमकिन नहीं है.

ऐसी वार्ताएं सिर्फ एक शुरुआत का काम करती हैं, जिसे मंत्रियों, सचिवों और तकनीकी विशेषज्ञों आदि के स्तर पर लगातार बैठकों के जरिये आगे बढ़ाना होता है. यदि आप उच्चस्तरीय वार्ता कर उसे भूल जाते हैं, तो अगली वार्ता में दोनों नेताओं के बीच फिर उन्हीं मुद्दों पर बात होती है. हम चाहते हैं कि नेपाल और भारत के संबंधों में ऐसी स्थिति न रहे. इसलिए हम विभिन्न स्तर के ग्रुपों के बीच लगातार मीटिंग का सिलसिला शुरू करना चाहते हैं, जिससे सुनिश्चित हो सके कि हमें किन-किन मुद्दों पर किस तरह काम करना है.

नेपाल में हमने नये संविधान को अपनाया है. यह एक समावेशी संविधान है. हालांकि संविधान को लेकर कुछ वर्गों में असंतोष है. हम उनके असंतोष को दूर करना चाहते हैं और हमें उम्मीद है कि आगामी 18 महीनों के अंदर हम सभी पक्षों को भरोसे में लेकर उनकी चिंताओं का समाधान कर सकेंगे. हमें स्थानीय स्तर पर, राज्यों के स्तर पर निष्पक्ष चुनाव कराना है. इसके लिए जरूरी है कि हम जल्द सभी पक्षों की चिंताओं का समाधान करें.

नये संविधान में महिलाओं के लिए स्थानीय स्तर पर 40 फीसदी, जबकि राज्य विधानसभाओं और केंद्रीय संसद के चुनावों में 33 फीसदी सीटें आरक्षित की गयी हैं. इसमें मधेशियों, जनजातियों, दलितों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण के भी समावेशी प्रावधान हैं. जनता के लिए मौलिक अधिकार भी कई देशों की तुलना में अधिक हैं. हालांकि, इस समय बड़ी समस्या यह है कि संघीय ढांचे के अंदर सभी लोगों के संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा कैसे सुनिश्चित की जाये.

नेपाल जैसे छोटे राष्ट्र को संघीय ढांचे के अंतर्गत विकास के लिए अधिक संसाधनों की जरूरत है. पूरे देश में जनआकांक्षाओं के अनुरूप ढांचागत विकास करना सरकार के लिए एक कठिन कार्य है.

नयी सरकार के सामने ऐसी कई चुनौतियां हैं और जनता ने हमें मौका जरूर दिया है, पर अभी आश्वस्त नहीं है कि हमारी सरकार इन चुनौतियों से पार पा लेगी. हम सरकार की साख कायम करने के लिए काम कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि भारत जैसे मित्र राष्ट्र और चीन सहित अन्य पड़ोसी देशों के मित्रवत सहयोग से हम चुनौतियों से पार पा लेंगे. इस दिशा में भारत-नेपाल संबंधों को आगे ले जाने की असीम संभावनाएं हैं.

हमारी सरकार से जनता की उम्मीदें बहुत अधिक हैं. समावेशी विकास के बिना हम उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर सकते. हमें अधिक-से-अधिक रोजगार का सृजन करना है. नेपाल के लोग छोटे-मोटे रोजगार की तलाश में कई देशों में गये हैं. हमें उन्हें वापस लाने के लिए काम करना है.

इसलिए हम चाहते हैं कि बड़े और शक्तिशाली पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों की राह में भविष्य में कोई अवरोध न आये. हमें लगता है कि इसके लिए दो सरकारों के बीच पर्याप्त संवाद तो जरूरी है ही, लोगों व सिविल सोसाइटी समूहों के बीच संबंध, संसद सदस्यों का आवागमन और राजनीतिक पार्टियों के स्तर पर बेहतर संपर्क भी जरूरी है, ताकि दोनों देशों के लोग एक-दूसरे की चिंताओं और समस्याओं को सही तरीके से समझ सकें, और अवरोध पैदा करनेवाली गलतफहमियां उत्पन्न ही न होने पाये.

(‘भारत-नेपाल संबंध : एक दूरगामी नजरिया’ विषय पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नयी दिल्ली में आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त विचार का अनुदित अंश.)

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