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आज महालया पर विशेष : आज शारद प्रभाते मांयेर आगमनी

डॉ एनके बेरा रांची : आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या, इस वर्ष 30 सितंबर, शुक्रवार को है. इसी दिन महालया है. यह वह पावन अवसर है,जो दुर्गा पूजा के आरंभ होने के पूर्व मां के आगमन की सूचना देता है. एक वर्ष बाद मां के आने की सूचना पाकर सभी लोग आनंद, उमंग, प्रसन्नता और उत्साह […]

डॉ एनके बेरा

रांची : आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या, इस वर्ष 30 सितंबर, शुक्रवार को है. इसी दिन महालया है. यह वह पावन अवसर है,जो दुर्गा पूजा के आरंभ होने के पूर्व मां के आगमन की सूचना देता है. एक वर्ष बाद मां के आने की सूचना पाकर सभी लोग आनंद, उमंग, प्रसन्नता और उत्साह से झूमने लगते हैं. मां के आगमन से ‘सोनार आलोय पृथिवी’ जाग जाता है. चारों ओर ‘आलोर वंशी’ बजने लगती है और मां की पगध्वनि से समूचा विश्व भक्तिमय हो उठता है, आनंद से भर जाता है.

विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं

विस्वात्मिका धारयसीति विश्वम् ।

विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति

विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ।।

विश्वेश्वरि, तुम विश्व का पालन करती हो. तुम विश्वरूपा हो, इसलिए संपूर्ण विश्व को धारण करती हो. तुम भगवान विश्वनाथ की भी वंदनीया हो, जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे संपूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं. आदि शक्ति दुर्गा, यह दुर्गति का नाश करने वाली अतुल्य शक्ति का नाम है. ‘दु’ का अर्थ अहंकार है, तो कठिनाई, बुराई और कष्ट भी. ‘ग’ का अर्थ वह प्रकाश, ईश्वरीय ज्योति है, जो कष्टों, दुःखों और पापों को हरनेवाली है.

‘अ’ का अर्थ परमात्मा, अविनाशी-अजन्मा ईश्वर व उनकी शक्ति है तथा रेफ यानी ‘र्’ का अर्थ पहले से दूसरे की ओर प्रवाहित होती शक्ति, ऐश्वर्य, ज्ञान, विज्ञान की अधिष्ठात्री देवियां हैं. महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, इन्हीं तीनों महाशक्तियों का सम्मिलित रूप हैं भगवती दुर्गा. यही पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी,नारायणी,विष्णुमाया,शिवस्वरूपा है. इनके बिना तो त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी अपूर्ण है. विश्व का, सृष्टि के चैतन्य का आधार शक्ति यही हैं. इनकी स्तुति से मनुष्य सद्यः विशिष्ट शक्ति लाभ करता है. सर्वशक्ति दात्री मां का ध्यान-वंदन करने से मनुष्य का अंतर्मन दिव्य आलोक से प्रकाशित हो जाता है.

मां पग-पग पर हमारी रक्षा करती हैं. देवी की स्तुति में देवताओं ने कहा है-

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

जो देवी चेतना रूप से हमारे अंदर बसी हुई हैं, हममें जो चेतना है, वह देवी के अस्तित्व का परिचय है, उस देवी को हम बार-बार नमस्कार करते हैं. आगे कहा है-

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।

देवी सब प्राणियों में बुद्धिरूप बनकर रहती हैं. हम विचार इसलिए कर पाते हैं कि मां बुद्धिरूप होकर हमें विचार करने में सहायता देती हैं.

या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता।

दिनभर काम करते-करते जब हम थक जाते हैं, तब मां नींद बनकर हमारे पास आती हैं, रोज आती है, बिना बलाये स्वयं आती हैं. मां ने हमें शरीर दिया है. इसलिए मां चाहती हैं कि हम शरीर की रक्षा करें. अतः मां क्षुधारूप से इस शरीर की रक्षा करने में सहायता करती हैं.

मां को हम इतने प्यारे हैं कि वह एक क्षण भी हमसे अलग रहना नहीं चाहतीं. सदा हमारे साथ हमारी छाया बनी फिरती हैं. हम जो कुछ भी कार्य करते हैं, मां शक्ति बनकर हमें उसे पूरा करने में सहायता करती हैं. इस प्रकार कल्याणमयी मां दुर्गा अहर्निश हमारे हितसाधन में संलग्न रहती हैं.

मां तरह-तरह के रूप बनकर हमें सुखी संपन्न बनाने के लिए तत्पर रहती हैं. इसलिए मां के आगमन की सूचना मात्र से समस्त प्रकृति और जीव-जगत नये उत्साह, उमंग और खुशी से झूम उठते हैं-विश्व आजके ध्यान मग्ना, उदभाषित आशा। तापित तृषित धराय जागवे, प्राणेर नूतन भाषा। मृन्मयी मां आविर्भूता, असुर विनाशिनी। मायेर आगमनी ।।

आइए, मां के आगमन पर महालया के इस पावन अवसर हम सभी मिल कर उनकी स्तुति करें-

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद

प्रसीद मातर्जगतोअखिलाय ।

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं

त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।

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