शारदीय नवरात्र पहला दिन : शैलपुत्री दुर्गा का ध्यान

मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाली, वृषभ पर आरुढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं. संपूर्ण जगत् देवीमय है-1 अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्रा कहा जाता है. नवरात्र के पहले दिन महाशक्ति स्वरूपिणी दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-उपासना की जाती है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 1, 2016 6:32 AM
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मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाली, वृषभ पर आरुढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं.
संपूर्ण जगत् देवीमय है-1
अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्रा कहा जाता है. नवरात्र के पहले दिन महाशक्ति स्वरूपिणी दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-उपासना की जाती है. नैवेद्य के रूप में गाय का घी, खीर और पकौड़ी चढ़ानी चाहिए. इससे रोगनाश, अविवाहित कन्याओं को योग्य वर, मान-यश-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है.
श्रीमार्कण्डेय पुराणांर्गत श्रीदुर्गासप्तशती में भगवती को स्तुति करते हुए देवता कहते हैं-
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पुरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः सव्यपरा परोक्तिः ।।
देवि, संपूर्ण विद्याए तुहारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं. जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही रूप हैं, समस्त संसार में व्याप्त एक ही तत्व है, वह है देवीतत्व या शक्तितत्व. भगवती, इससे बढ़ कर स्तुति करने के लिए और रखा भी क्या है. सर्वरूपमयी देवी सर्व देवीमयं जगत्। अतोअहं विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम् ।। अर्थात् देवी सर्वरूपमयी है तथा संपूर्ण जगत् देवीमय है. अतः मैं उन विश्वरूपा परमेश्वरी को नमस्कार करता हूं. देव्युपनिषत् में भी इसी प्रकार का वर्णन है. सभी देवताओं ने देवी के समीप में पंहुच कर पूछा- तुम कौन हो महादेवी. उत्तर में देवी ने कहा- मैं ब्रह्मस्वरूपिणी हूं, मेरे ही कारण प्रकृति पुरूषात्मक वह जगत् है, शून्य और अशून्य भी है, मैं आनंद और अनानंदरूपा हूं.
मैं विज्ञान और अविज्ञानरूपा हूं, मुझ में ही ब्रह्म और अब्रह्म समझना चाहिए. मैं विद्या ओर अविद्या हूं. मैं अजा हू,अनजा हूं. मैं रूद्रों में, आदित्यों में, विश्वदेवों में मैं ही संचरित रहती हूं. मित्र और वरूण, इन्द्र, अश्विनी कुमार इन सबको धारण करनेवाली मैं ही हूं. मैं ही विष्णु को, ब्रह्मदेव और प्रजापति को धारण करती हूं. मैं उपासक या याजक यजमान को धन देने वाली हूं. पंचीकृत और अपंचीकृत महाभूत भी मैं ही हूं. यह सारा दृश्य-जगत् मैं ही हूं. (क्रमशः)
प्रस्तुति- डॉ एन के बेरा
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