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पाकिस्तान को चौतरफा घेरा

उड़ी में आर्मी कैंप पर पाकिस्तान की शह पर हुए आतंकी हमले से आहत लोग जहां सोशल मीडिया के जरिये तुरंत मुंहतोड़ जवाब देने की मांग कर रहे थे, वहीं मोदी सरकार ने संयम से काम लेते हुए पाकिस्तान को चौतरफा घेरने की सुनियोजित रणनीति बनायी. इसके लिए कई दिनों तक उच्चस्तरीय बैठकों का दौर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2016 3:22 AM
उड़ी में आर्मी कैंप पर पाकिस्तान की शह पर हुए आतंकी हमले से आहत लोग जहां सोशल मीडिया के जरिये तुरंत मुंहतोड़ जवाब देने की मांग कर रहे थे, वहीं मोदी सरकार ने संयम से काम लेते हुए पाकिस्तान को चौतरफा घेरने की सुनियोजित रणनीति बनायी. इसके लिए कई दिनों तक उच्चस्तरीय बैठकों का दौर चला और कई स्तरों पर ठोस कदम उठाये गये. इन कदमों से हासिल कामयाबियों का ही नतीजा है कि पाकिस्तान चौतरफा घिर रहा है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि 70 साल बाद पहली बार भारत सॉफ्ट स्टेट की अपनी पारंपरिक छवि से बाहर निकला है. साथ ही पढ़ें कि गांधीजी पाकिस्तान के बारे में क्या राय रखते थे.
आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाक पर दबाव बनाने की दिशा में भारत के प्रमुख कदम
1 पाक को आतंकी राष्ट्र घोषित कराने का प्रयास
उड़ी हमले के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था- ‘पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है. इसे पहचाना जाना चाहिए और अलग-थलग किया जाना चाहिए.’ संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलते हुए सुषमा स्वराज ने भी पाकिस्तान को आड़ हाथों लेते हुए कहा था- ‘हमारे बीच ऐसे राष्ट्र मौजूद हैं, जो आतंक की भाषा बोलते हैं, उसे पोषित करते हैं और उसी का निर्यात करते हैं. हमें ऐसे देशों की पहचान करनी चाहिए और उन पर लगाम लगाना चाहिए.’ इसके बाद से ही पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित कराने के लिए कूटनीतिक कोशिशें शुरू हो गयीं.
2 पाक के साथ सिंधु जल समझौते की समीक्षा
उड़ी के बाद के हालात में भारत, पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते की समीक्षा कर रहा है. इस संबंध में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा था- ‘किसी भी समझौते के लिए आपसी भरोसा और सहयोग जरूरी होता है. इस समझौते की प्रस्तावना में साफ लिखा है कि यह गुडविल पर काम करेगा.’ बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दो टूक कहा- ‘पानी और खून दोनों एक साथ नहीं बह सकते.’

उल्लेखनीय है कि भारत अगर इस समझौते को रद्द कर देता है या इस पर डैम बना लेता है तो पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी प्यासी रह जायेगी, उसके कई प्रोजेक्ट बंद हो जायेंगे और उसका एक इलाका बंजर बन सकता है.

भारत के इस कड़े रुख को देखते हुए पाकिस्तान ने विश्व बैंक से सिंधु समझौते में मध्यस्थता करने की गुहार लगायी है. 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल समझौते में विश्व बैंक के भी हस्ताक्षर हैं. उसने इस समझौते में मुख्य भूमिका निभायी थी.
3 अलग-थलग करने की कूटनीितक कोशिशें
भारत ने नवंबर में पाकिस्तान में प्रस्तावित सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाना था, लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि आतंकवाद फैलानेवाले देश के साथ सहयोग नहीं किया जा सकता.

भारत के इस ऐलान के बाद बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान भी साथ आ गये और सार्क समिट में शामिल होने से इनकार कर दिया. बांग्लादेश ने कहा कि एक देश द्वारा आंतरिक मामलों में बढ़ती दखलअंदाजी से ऐसा माहौल बन गया है.

उधर, भूटान ने कहा कि हाल की आतंकवादी घटनाओं की वजह से माहौल खराब हो गया है. अफगानिस्तान ने भी अपने देश में बढ़ती हिंसा और आतंकवादी घटनाओं को बैठक के बहिष्कार का कारण बताया है. श्रीलंका पहले ही इसलामाबाद में सार्क सम्मेलन को लेकर आशंकित रहा है.
4 नियंत्रण रेखा पार कर ‘सर्जिकल ऑपरेशन’
अपनी तरह की पहली कार्रवाई में भारत ने नियंत्रण रेखा पार कर पीओके में सात आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमला कर 38 आतंकियों को मार गिराया. सेना के विशेष कमांडो ने 28-29 सितंबर की रात इस हमले को अंजाम दिया. अभियान करीब पांच घंटे चला. पीओके स्थित ये आतंकी ठिकाने नियंत्रण रेखा से तीन किमी के दायरे में थे. इन ठिकानों पर एक सप्ताह से अधिक से नजर रखी जा रही थी. अभियान में पैरा कमांडोज के करीब 125 जवान शामिल थे. चार अलग-अलग इलाकों- भिम्बेर, हॉटस्प्रिंग, लीपा और केल सेक्टर में मौजूद आतंकी कैंपों पर अलग-अलग टीम ने एक साथ, एक ही समय पर हमला किया. हमले के बाद सभी जवान सुरक्षित वापस लौट आये. इस हमले के बाद पाकिस्तान कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहा है.
5 कारोबारी रिश्ते पर पुनर्विचार
विश्व व्यापार संगठन के शुल्क और व्यापार पर आम समझौता के तहत भारत ने पाकिस्तान को 1996 में एकतरफा सर्वाधिक विशिष्ट राष्ट्र यानी ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा दिया था. इसकी वजह से पाकिस्तान को ज्यादा एक्सपोर्ट कोटा और कम ट्रेड टैरिफ मिलता है. हालांकि राजनीतिक कारणों से दोनों देश एक-दूसरे में रुचि नहीं दिखाते हैं और इन दोनों के बीच महज एक प्रतिशत का ही आयात-निर्यात हो रहा है. लेकिन, पाकिस्तान पोषित आतंकियों द्वारा किये गये उड़ी हमले से नाराज भारत ने इस समझौते के समीक्षा का फैसला किया है.
सर्वदलीय बैठक में सेना की कार्रवाई का समर्थन
भारत द्वारा नियंत्रण रेखा के पार आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सरकार ने गुरुवार को सर्वदलीय बैठक बुलायी, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एकता का प्रदर्शन करते हुए सेना की कार्रवाई को पूरा समर्थन दिया. कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सेना को बधाई दी और कहा कि उनकी पार्टी सीमाओं की रक्षा करने तथा आतंकवाद मिटाने के लिए सरकार के प्रयासों के साथ है. बीते मंगलवार को भी सोनिया गांधी ने एक बयान देकर कांग्रेस के समर्थन का संकेत दिया था. अन्य विपक्षी नेताओं- बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी अलग-अलग बयान जारी कर सेना की कार्रवाई का समर्थन किया है.

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार, जनता दल (यूनाइटेड) के नेता शरद यादव, बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीश चंद्र मिश्रा और राष्ट्रीय जनता दल के प्रेमचंद गुप्त ने भी सेना को बधाई देते हुए नियंत्रण रेखा के पार की गयी कार्रवाई को अपना पूरा समर्थन दिया है. मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने उम्मीद जतायी है कि पठानकोट और उड़ी जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने सेना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाई नये भारत के उदय का संकेत है. सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान से आतंकवाद को समर्थन न देने और आतंकी समूहों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग भी की गयी.

कई उच्च स्तरीय बैठकें
कैबिनेट की सुरक्षा समिति की बैठक: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 21 सितंबर को कैबिनेट की सुरक्षा समिति की बैठक में उड़ी हमले और संभावित प्रतिक्रिया के बारे विचार-विमर्श किया गया.
गृह मंत्री ने बुलायी बैठक : कैबिनेट की सुरक्षा समिति की बैठक से पहले 20 सितंबर को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उच्च-स्तरीय बैठक की, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, विदेश सचिव एस जयशंकर तथा गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, अर्द्धसैनिक बलों और इंटेलिजेंस एजेंसियों के बड़े अधिकारी शामिल हुए.
गृह सचिव की श्रीनगर में बैठक : गृह सचिव राजीव महर्षि ने 20 सितंबर को श्रीनगर में राज्य सरकार तथा सुरक्षा बलों के उच्च अधिकारियों के साथ बैठक कर सुरक्षा के हालात का जायजा लिया. गृह सचिव ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से भी मुलाकात की.
सिंधु जल समझौते पर बैठक : प्रधानमंत्री ने 26 सितंबर को भारत-पाक के सिंधु जल समझौते की समीक्षा के लिए एक बैठक बुलायी. इस बैठक में अन्य अधिकारियों के अलावा प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल तथा विदेश सचिव एस जयशंकर भी शामिल हुए.
राष्ट्रपति से मिले प्रधानमंत्री : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्तूबर को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिल कर उड़ी हमले और सर्जिकल स्ट्राइक तथा सुरक्षा की स्थिति के बारे में जानकारी दी.
कोशिशें और भी
– दिल्ली-लाहौर बस सेवा पर असर
दिल्ली-लाहौर बस सेवा भले ही अब तक जारी है, लेकिन इसके यात्रियों की संख्या कम होती जा रही है. पिछले माह 20, 22, 24 और 27 तारीख को इस बस को एक भी यात्री नहीं मिले. पाकिस्तान की तरफ से आते समय भी यही हाल है. अब यह बस अटारी-वाघा सीमा तक ही जाती है और ‘नो मैंस लैंड’ के इस तरफ ही रहती है. इतना ही नहीं, सुरक्षा के लिहाज से अब अक्सर इसका रूट भी बदला जाता है. साथ ही इस बस के साथ चलनेवाले दो पीसीआर के बजाय इनकी संख्या बढ़ा कर अब आठ तक कर दी गयी है. हालांकि, इसे बंद करने का अब तक कोई आधिकारिक फैसला सामने नहीं आया है, लेकिन इस घटना का असर इस बस सेवा पर भी देखने में आ रहा है.
– अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में एक ग्रुप में नहीं रखने की गुजारिश
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने कहा है कि देशवासियों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल से वे आग्रह करेंगे कि क्रिकेट के किसी भी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत और पाकिस्तान को एक ग्रुप में नहीं रखा जाये, ताकि उन्हें आपस में लीग मैच नहीं खेलना होगा. वैसे सेमीफाइनल या फाइनल में पहुंचने की दशा में मुकाबला टाला नहीं जा सकता.
– फिल्म निर्माताओं ने पाक कलाकारों पर लगायी पाबंदी
इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ने भारतीय फिल्म उद्योग में कार्यरत पाकिस्तानी अभिनेताओं, गायकों और तकनीकी कामगारों पर पाबंदी लगा दी है. संगठन की वार्षिक जनरल मीटिंग में शुक्रवार को यह फैसला लिया गया. इस संगठन के सदस्य और निर्माता अशोक पंडित ने कहा कि उड़ी हमले में अनेक भारतीय सैनिकों के शहीद होने के कारण यह फैसला लिया गया. इस संगठन के प्रेसिडेंट टीपी अग्रवाल ने कहा है कि उनके संगठन का कोई भी सदस्य अब पाकिस्तानी कलाकारों को अपने यहां नहीं रखेगा.
कई फिल्मों पर असर की आशंका : खबरों के मुताबिक, आनेवाली फिल्म ‘लाली की शादी में लड्डू दीवाना’ में बतौर गायक राहत फतेह अली खान की सेवा अब नहीं ली जायेगी. अनेक अन्य फिल्मों पर इसका असर पड़ने की आशंका जतायी गयी है. इसमें पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान की एक फिल्म भी है. खबरों में कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा पाकिस्तानी कलाकारों को मुंबई छोड़ने की धमकी के बाद फवाद खान भारत से जा चुके हैं.
निवेश की सुरक्षा को लेकर भयभीत है चीन
चीन ने पाकिस्तान को अपना समर्थन जारी रखा है, लेकिन ‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ में चीन द्वारा किये जा रहे 46 अरब डॉलर के निवेश के प्रति वह भी भयभीत है, क्योंकि इसका ज्यादातर हिस्सा तालिबानों के वर्चस्व वाले क्षेत्र से होकर गुजरता है़ इसलिए चीन भी पूरे मामले पर नजर रखे हुए है़
अमेरिका भी नाराज
पाकिस्तान के प्रति अमेरिका की निराशा भी बढ़ती जा रही है. आतंकी समूहों को खत्म करने के लिए पाकिस्तान द्वारा उठाये जा रहे कदमों पर यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जॉन केरी सावधानी से निगाह बनाये हुए हैं. वहीं दूसरी ओर, यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में हाल ही में पाकिस्तान को ‘स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म’ यानी आतंक को बढ़ावा देनेवाले देश के रूप में चिह्नित करने पर जोर दिया गया.
‘भारत पाकिस्तान को अलग-थलग करे या न करे, पाकिस्तान अपने कारनामों से खुद ही अलग-थलग हो रहा है. 90 के दशक में पाकिस्तान एक आतंकवादी देश घोषित होते-होते बचा. अब एक बार फिर ऐसा माहौल बन रहा है कि दुनिया मजबूर होकर पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश घोषित कर दे.’
राजीव डोगरा, भारत के पूर्व राजनयिक
बापू की चिंता और आज का पाकिस्तान
आजादी के आसपास के दिनों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़की हिंसा के दौरान गांधीजी ने हिंदुओं से अनुरोध किया कि पाकिस्तान की नीति चाहे कुछ भी हो, हिंदुस्तान में हर कीमत पर मुसलमानों के साथ उचित व्यवहार करें. उन्होंने कहा कि यही उचित होगा कि हर बहुसंख्यक जाति नम्रता से अपना कर्तव्य निभाये और इस बात की परवाह न करे कि दूसरे राज्य की बहुसंख्यक जाति क्या करती है. आजादी के आसपास के दिनों में पाकिस्तान को लेकर गांधीजी की चिंताओं के बरक्स यदि आप आज के पाकिस्तान को देखें, तो सात दशक बाद भी हालात बहुत बेहतर नहीं दिखेंगे.
इस तरह से पाकिस्तान नहीं लिया जा सकता है
30 मई, 1947 को नयी दिल्ली में प्रार्थना सभा में.
हमें तो मुसलमानों से कह देना होगा कि इस तरह पाकिस्तान नहीं लिया जा सकता. तब तक पाकिस्तान मिलनेवाला नहीं है, जब तक कि यह जलना-मरना बंद नहीं होगा. इसी प्रकार हिंदू भी मुसलमानों को जबरदस्ती पाकिस्तान का नाम लेने से रोक नहीं सकते. मैं पूछता हूं कि खामखाह आप क्यों पाकिस्तान के नाम पर लड़ते हैं? पाकिस्तान कौन सा भूत है?

सच्चा पाकिस्तान तो वह है जहां बच्चा-बच्चा सुरक्षित हो. मैं अपने साथी जिन्ना साहब से कहता हूं और सारी दुनिया से कहता हूं कि हम तब तक पाकिस्तान की बात भी नहीं सुनना चाहते, जब तक यह तशद्दुद चलता है. जब यह बंद हो जायेगा तब हम बैठेंगे और ठहरायेंगे कि कि हमें पाकिस्तान रखना है या हिंदुस्तान. दोस्ती से ही पाकिस्तान बन सकता है और दोस्ती से ही हिंदुस्तान कायम रह सकता है.
…तो यह इसलाम के विनाश की शुरुआत होगी
5 अगस्त, 1947 को प्रार्थना सभा में.
मुसलमानों को उनका पाकिस्तान मिल गया है. अब उनका पंजाब के हिंदुओं और सिखों से कोई झगड़ा नहीं हो सकता. जिन्ना साहब ने और मुसलिम लीग के अन्य नेताओं ने यह आश्वासन दिया है कि पाकिस्तान में मुसलमानों की तरह गैर-मुसलमान लोग भी सुरक्षित हैं. मैं चाहूंगा कि आप लोग उनके द्वारा दिये गये इस आश्वासन पर विश्वास करें.

मान लीजिए कि यह आश्वासन झूठा सिद्ध होता है और शरणार्थियों का बड़े से बड़ा भय सच निकलता है, तो यह इसलाम के विनाश की शुरुआत होगी. मैं नहीं मानता कि मुसलिम नेता ऐसा कोई आत्मघातक कार्य करेंगे.
हुकूमत तो अपना काम भूल गयी है
À À 12 सितंबर, 1947 को प्रार्थना सभा में.
पाकिस्तान की हुकूमत तो अपना काम भूल गयी है. कायदे-आजम जिन्ना साहब, जो पाकिस्तान के गवर्नर जनरल हैं, उनको मैं कहूंगा कि आप ऐसा न करें. जितनी बातें अखबारों में आयी हैं, अगर वे सही हैं तो मैं उनसे कहूंगा कि वहां हिंदू-सिख आपकी सेवा के लिए ही पड़े हैं. आज वे क्यों डरते हैं? इसलिए कि उनको और उनकी बीवियों को मर जाना पड़ेगा, उनकी बीवियों को कोई उठा ले जायेगा. उन्हें खतरा है सो वे भागते हैं. वहां की हुकूमत में ऐसा क्यों?
हिंदुओं, सिखों को सुरक्षा क्यों नहीं?
16 सितंबर, 1947 को आरएसएस की रैली में.
अगर पाकिस्तान बुराई ही करता रहा तो आखिर हिंदुस्तान और पाकिस्तान में लड़ाई होनी ही है. अगर मेरी चले तो न तो मैं फौज रखूं और न ही पुलिस. मगर ये सब हवाई बातें हैं. मैं शासन नहीं चलाता. पाकिस्तान वाले हिंदुओं और सिखों को क्यों नहीं मनाते कि यहीं रहो,
अपना घर न छोड़ो? वे उन्हें हर तरह की सुरक्षा क्यों नहीं देते?
…तो हिंदुस्तान की हुकूमत लड़ेगी नहीं तो क्या करेगी?
27 सितंबर, 1947 को प्रार्थना सभा में.
यदि पाकिस्तानवाले कहें कि नहीं हम तो ‘लड़ कर लेंगे हिन्दुस्तान’ तो मैंने कल सुनाया था कि वे ऐसा गुमान रखेंगे तो यहां हिन्दुस्तान की हुकूमत लड़ेगी नहीं तो क्या करेगी?
जो पाक सरकार कहती है, उस पर अमल भी करे
1 नवंबर, 1947 को हसन शहीद सुहरावर्दी से.
सुहरावर्दी, आप जिन चीजों को तथ्य के रूप में जानते हैं, उन्हें जिन्ना के सामने रखें और उनसे पूछें कि दोनों देशों ने जो समझौता किया है उन्हें लागू करने के लिए वे क्या करनेवाले हैं. दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को अपने मूल स्थानों में रह सकना चाहिए. मुख्य चीज यह है कि जो पाकिस्तान सरकार कहती है, उस पर अमल भी करे.
पाकिस्तान को अपने पापों का बोझ उठाना है
24 नवंबर, 1947 को प्रार्थना सभा में भाषण
मेरी क्या राय है, यह जानना सबके लिए काफी होना चाहिए. अगर उस राय की कोई कीमत है, तो वह यह है कि 15 अगस्त से बहुत से पहले मुसलिम लीग ने शरारत शुरू की थी. मैं यह भी नहीं कह सकता कि 15 अगस्त को उन्होंने नयी जिंदगी शुरू कर दी और शरारत को भूल गये. मगर मेरी यह राय आपको कोई मदद नहीं कर सकती. महत्व की बात यह है कि यूनियन में हमने उनके पापों की नकल की, और उनके साथ हम भी पापी बन गये. तराजू के पलड़े करीब-करीब बराबर हो गये. क्या अब भी हमारी मूर्छा छूटेगी और हम अपने पापों का प्रायश्चित करेंगे? या फिर हमें गिरना ही है?
(सभी िवचार गांधी वांमय से संकलित.)
युद्ध की आवाजों के बीच गांधी की सीख ऐतिहासिक मोड़ पर मोदी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ‘सर्जिकल ऑपरेशन’ के बाद चैन की सांस लेते हुए कहा, ‘हम सभी को जिसका इंतजार था वह हो गया!’ मैंने खुद से पूछा, ‘क्या हो गया?’ और यह भी कि ‘हमें किस बात का इंतजार था?’ रात के अंधेरे में पाकिस्तान की या पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर की सीमा में घुस जाने का हमें इंतजार था? क्या इस उपमहाद्वीप सरीखे महान देश को इंतजार इस बात का था कि उधर के दो-चार-दस लोगों को मार आएं? जिस सर्जिकल ऑपरेशन की इतनी चर्चा चल रही है, उसमें इससे अधिक या इससे अलग हमने किया क्या है? अगर नियंत्रण रेखा के उस पार का कश्मीर हमारा है, जैसा कि कई मंत्री कह रहे हैं, तो मेरे जैसा आम हिंदुस्तानी पूछता है कि अपनी फौज को, अपनी सरकार के आदेश से, अपनी सीमा में घुसने के लिए रात के अंधेरे का सहारा लेना पड़ा और सुबह की किरण फूटने से पहले लौट भी आना पड़ा तो क्यों?
नैतिक बल हमारी सेना की असली ताकत
हम भूलें नहीं कि विभाजन के बाद अपने जिस हिस्से को हमने पाकिस्तान के नियंत्रण में मान कर छोड़ दिया, उसमें घुस कर हमने एक नहीं, तीन बड़े-बड़े युद्ध लड़े ही नहीं हैं, बल्कि हर युद्ध में उस पाकिस्तान को निर्णायक मात दी है. सारी दुनिया मानती है कि भारत के पास पाकिस्तान से कहीं ज्यादा सामरिक बल है. लेकिन, इतिहास जिस बल की परीक्षा लेता है और बार-बार लेता है, वह सिर्फ सामरिक बल नहीं है. मैं सामरिक बल के साथ खड़े उस बल को न कमतर आंकता हूं और न किसी हाल में देश को भूलने देना चाहता हूं कि हमारे सैन्य बल की असली ताकत यह है कि उसके पास नैतिक बल भी है. बंदूक के पीछे, ट्रिगर पर अंगुली दबाये जो जवान बैठा होता है, वह सौ गुना बलशाली होता है, जब उसे पता होता है कि वह न्याय की, नैतिकता की और मानवीयता की लड़ाई लड़ रहा है. झूठ और मक्कारी से भरी अनैतिक लड़ाई में झोंक दिया गया हर पाकिस्तानी सैनिक भीतर से कितना खोखला और हतवीर्य होता है, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. अपने देश की इस नैतिक टेक को, जिसकी बात करना हम भूलते जा रहे हैं, कमजोर करना या पीछे डाल देना बहुत बड़ा अपराध होगा. इसलिए मोहन भागवत को जिसका इंतजार था और सारे मुल्क को जिसका इंतजार है, वे दोनों दो अलग-अलग चीजें हैं.
अंतिम उपाय के तौर पर गांधी भी युद्ध के पक्ष में
26 सितंबर, 1947 की तारीख थी. विभाजन का जहर हर कहीं घुल रहा था और चौतरफा जख्मों से रक्त रिस रहा था. नवजात पाकिस्तान अपनी जन्मजात शैतानियों में लगा था और हवा में युद्ध की सनसनी थी. बूढ़े गांधी अपने अस्तित्व का सारा बल लगा कर देश की उस नैतिक शक्ति का क्षय रोकने में लगे थे, जिसकी अनदेखी का साफ खतरा सामने था. उस रोज की अपनी प्रार्थना सभा में अपनी कमजोर, लेकिन नि:संशय, आवाज में वे बोले- ‘मैंने उनसे कह दिया है कि अगर आप इस पक्के नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि पाकिस्तान सरकार की तरफ से न्यायप्रद बात हो ही नहीं सकती और वे किसी हाल में अपनी गलती नहीं मानेंगे, तब हमारा अपना मंत्रिमंडल है, जिसमें जवाहरलाल, सरदार पटेल और दूसरे कई अच्छे लोग हैं. अगर ये सभी इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वे पाकिस्तान सरकार को बेजा हरकतें करने से नहीं रोक सकते, तो अंतिम रास्ता यही बचता है कि वे युद्ध में उतरें!’
युद्ध से पहले सामनेवाले का विवेक जगाने के हरसंभव उपाय जरूरी
यह वह गांधी हैं, जिनकी बात न हम करते हैं, न समझते हैं! और देश में एक तबका ऐसा है, जो प्राणपन से इस कोशिश में लगा रहा है कि गांधी का यह स्वरूप न देश देख सके और न पहचान सके. गांधी न युद्ध से डरते हैं, न युद्ध से बचते हैं. वे अपनी सरकार से कहते हैं कि युद्ध से पहले सामनेवाले का विवेक जगाने के हरसंभव रास्ते की तलाश कर लेना अनिवार्य है. लेकिन, मुल्क युद्ध में उतरे- ऐसा कहते हुए गांधी कितने ‘अगर’ की लक्ष्मण-रेखा खींचते हैं, यह हम क्षणभर को भी न भूलें. वह ‘अगर’ ही है, जो देश का मेरुदंड है. हम युद्ध को अपनी चाहत की पहली और आखिरी मंजिल मानते हैं.
गांधी युद्ध को हमारे राजनीतिक नेतृत्व की विफलता से पैदा हुई अनिवार्यता की तरह कबूल करते हैं. वे यहां अहिंसा की बात ही नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वह प्रसंग यहां है ही नहीं. यहां तो वे उस सरकार से बात कर रहे हैं, जो फौज के बल पर निर्भर है और उसके सहारे पाकिस्तान (या दूसरे किसी भी मुल्क) को सबक सिखाना चाहती है. वे सरकार से पूछना चाहते हैं शायद कि अगर युद्ध ही एकमात्र रास्ता है, तो राजनीति और कूटनीति जैसे रास्तों का मतलब ही क्या रह जाता है? और फिर लोगों की चुनी हुई सरकार का भी क्या संदर्भ रह जाता है? युद्ध ही करना है, तो फौजी नेतृत्व नागरिक नेतृत्व से कहीं प्रभावी और परिणामकारी होता है. पाकिस्तान ने कबाइलियों की आड़ में जो पहला हमला हम पर किया था, उसका मुकाबला करने जाती फौज को महात्मा गांधी ने इसी भाव से आशीर्वाद दिया था.
‘नेता’ युद्ध से ज्यादा युद्धोन्माद को पसंद करता है
युद्ध से भी ज्यादा खतरनाक होता है युद्धोन्माद! युद्ध बड़ी संजीदगी से लड़ा जाता है, जिसमें दिल और दिमाग का गजब का संतुलन जरूरी होता है. युद्धोन्माद में भीड़बाजी और उन्माद का जैसा कॉकटेल बनाया जाता है, वह विवेक को कहीं दफना देता है. इसलिए हर ‘नेता’ युद्ध से ज्यादा युद्धोन्माद को पसंद करता है, क्योंकि उन्माद की जहरीली हवा बहा कर वह हर तरह की पूछ-परख, जांच-जवाब और सही-गलत के विवेक के दबाव से मुक्त हो जाता है. हम गौर से देखें तो समझ पायेंगे कि युद्ध में उतरने का फैसला कोई एक व्यक्ति या नेता या देश नहीं लेता है. आज के जमाने में और युद्ध के आज के आधारभूत तत्वों की रोशनी में राष्ट्रीय परिस्थिति, देश के भीतर राजनीतिक समर्थन का आकलन, फौज की अपनी तैयारी व मन:स्थिति का ख्याल, जिस पर हमला करना है उसके यहां की परिस्थितियों का भी और अंतरराष्ट्रीय दबावों का आकलन, यह सबकुछ युद्ध के किसी भी फैसले के पीछे छुपा होता है. पाकिस्तान हर युद्ध में पिटा है, तो इसलिए कि उसने ऐसा आकलन कभी नहीं किया और उन्माद जगा कर युद्ध छेड़ बैठा. हमारी संसद पर जब हमला हुआ, तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली प्रतिक्रिया थी कि अगली सुबह आर-पार की लड़ाई में उतरना है. लेकिन, उन्होंने फिर सारी बातों का आकलन किया और फिर तब से आज तक कितनी ही सुबहें आयीं-गयीं, लड़ाई न आर गयी, न पार!

ऐसा ही आज भी है. कभी हर रैली, चौक-चौराहे की सभा में गरज-गरज कर तब की सरकार को ललकारने और पाकिस्तान को उसकी ही भाषा में जवाब देने का उन्माद जगानेवाले आज के प्रधानमंत्री को उन सारे मौकों पर गम खाकर रह जाना पड़ा, जब यहां-वहां आतंकी हमलों से उनका आमना-सामना हुआ. फिर पठानकोट का हमला हुआ, फिर उड़ी का हमला हुआ. इस बार 18 जवान शहीद हो गये. बात आपे से बाहर हो गयी. दूसरे तो दूसरे, भाजपा के भीतर से भी सवाल उठने लगे कि अब भी जवाब नहीं दिया तो फिर कब दोगे? निरुत्तर थी सरकार और निरुत्तर थी पार्टी! इंतजार के बाद प्रधानमंत्री प्रकट हुए केरल की सभा में. वे पूरी तैयारी से आये थे. उनकी चीखती आवाज बार-बार यही बता रही थी कि वे पाकिस्तान को रगड़ने का मौका खोज रहे हैं. वे जो भावोद्रेक जगा रहे थे, भीड़ उसे पहचान रही थी. युद्ध-युद्ध-युद्ध की मांग और उस आग में घी डालती नेता की मुद्रा! ‘एक दांत के बदले पूरा जबड़ा’ यह नारा राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने राम माधव के द्वारा दिया. देशभक्ति का यह सबसे सस्ता सौदा है.
पाक को मात देने के लिए कुशलता से उठे कूटनीतिक कदम
हम यह न भूलें कि यह सब एक तरफ चल रहा था, तो दूसरी तरफ इससे भी एक बड़ा ‘युद्ध’ चल रहा था और वह था पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग करने का युद्ध! हमारे प्रधानमंत्री बड़ी कुशलता से गोटियां चल रहे थे और हर चाल के साथ पाकिस्तान किनारे होता जा रहा था. बड़े वक्त बाद ऐसा हो रहा था कि पाकिस्तान की आवाज भी बंद थी और वह निरुपाय दिख रहा था. स्थिति ऐसी बन गयी थी कि चीन ने उसे समर्थन दिया भी तो बड़ी बेजान आवाज में. पाकिस्तान के हुक्मरानों के चेहरे का रंग उड़ता जा रहा था. संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन को संबोधित करने आये नवाज अपनी शारीरिक भंगिमा और आवाज दोनों से ही किसी अपराधी सरीखे दिखाई व सुनाई दे रहे थे. फिर ‘सर्जिकल ऑपरेशन’ हुआ! फौजी जुबान में कहें तो यह फोड़े का ऑपरेशन करने जैसी कार्रवाई है. बीमारी का इलाज नहीं, बीमारी के कारण कहीं फोड़ा बना है, तो उसकी चीर-फाड़! इससे बीमारी का कोई नाता नहीं है. बीमारी का इलाज तो अलग से करना ही होगा. फौज को इस बात का श्रेय है कि उसे जो ऑपरेशन करने को कहा गया था, उसे उसने सबसे अच्छी तरह पूरा कर दिया.
अब पाकिस्तान को बातचीत के लिए लाचार करें
अब बीमारी का इलाज कौन करेगा? जैसे बीमार को ऑपरेशन टेबल पर ले जाना पड़ता है, वैसे ही दो देशों के बीच के विवाद को, युद्ध तक पहुंचे विवाद को भी, बातचीत के टेबल पर ले जाना पड़ता है. पाकिस्तान में इतना नैतिक खम नहीं है कि वह इसकी पहल भी करे. और यह भी सच है कि बातचीत तो दो रजामंदों के बीच ही संभव है. लेकिन रजामंदी भी दो तरह की होती है. एक वह जो आपकी स्वाभाविक नेकनीयति से निकलती है और दूसरी वह जो आपकी लाचारी में से पैदा होती है. पाकिस्तान ने जब शिमला समझौता किया था, तब वह लाचारी का समझौता था, नेकनीयति का नहीं. प्रधानमंत्री की कुशल कूटनीतिक चातुरी से आज पाकिस्तान फिर वैसी ही लाचार स्थिति में है. इस दबाव को और भी बढ़ाते हुए उसे बातचीत की मेज पर ला खड़ा करना है. यह काम युद्धोन्माद से नहीं होगा, बल्कि बिगड़ेगा. इसलिए संयम और अनुशासन के साथ हम अपनी सरकार के साथ खड़े रहें और पाकिस्तान को आमने-सामने की बातचीत के लिए लाचार करने के हर कदम का समर्थन करें. परिस्थितियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ऐतिहासिक मोड़ पर ला खड़ा किया है. यहां से वे किधर मुड़ते हैं, इस पर पूरी दुनिया की नजर है.
कुमार प्रशांत
वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक

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