बापू की चिंता और आज का पाकिस्तान
आजादी के आसपास के दिनों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़की हिंसा के दौरान गांधीजी ने हिंदुओं से अनुरोध किया कि पाकिस्तान की नीति चाहे कुछ भी हो, हिंदुस्तान में हर कीमत पर मुसलमानों के साथ उचित व्यवहार करें. उन्होंने कहा कि यही उचित होगा कि हर बहुसंख्यक जाति नम्रता से अपना कर्तव्य निभाये […]
आजादी के आसपास के दिनों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़की हिंसा के दौरान गांधीजी ने हिंदुओं से अनुरोध किया कि पाकिस्तान की नीति चाहे कुछ भी हो, हिंदुस्तान में हर कीमत पर मुसलमानों के साथ उचित व्यवहार करें. उन्होंने कहा कि यही उचित होगा कि हर बहुसंख्यक जाति नम्रता से अपना कर्तव्य निभाये और इस बात की परवाह न करे कि दूसरे राज्य की बहुसंख्यक जाति क्या करती है. आजादी के आसपास के दिनों में पाकिस्तान को लेकर गांधीजी की चिंताओं के बरक्स यदि आप आज के पाकिस्तान को देखें, तो सात दशक बाद भी हालात बहुत बेहतर नहीं दिखेंगे.
इस तरह से पाकिस्तान नहीं लिया जा सकता है
30 मई, 1947 को नयी दिल्ली में प्रार्थना सभा में.
हमें तो मुसलमानों से कह देना होगा कि इस तरह पाकिस्तान नहीं लिया जा सकता. तब तक पाकिस्तान मिलनेवाला नहीं है, जब तक कि यह जलना-मरना बंद नहीं होगा. इसी प्रकार हिंदू भी मुसलमानों को जबरदस्ती पाकिस्तान का नाम लेने से रोक नहीं सकते. मैं पूछता हूं कि खामखाह आप क्यों पाकिस्तान के नाम पर लड़ते हैं? पाकिस्तान कौन सा भूत है? सच्चा पाकिस्तान तो वह है जहां बच्चा-बच्चा सुरक्षित हो. मैं अपने साथी जिन्ना साहब से कहता हूं और सारी दुनिया से कहता हूं कि हम तब तक पाकिस्तान की बात भी नहीं सुनना चाहते, जब तक यह तशद्दुद चलता है. जब यह बंद हो जायेगा तब हम बैठेंगे और ठहरायेंगे कि कि हमें पाकिस्तान रखना है या हिंदुस्तान. दोस्ती से ही पाकिस्तान बन सकता है और दोस्ती से ही हिंदुस्तान कायम रह सकता है.
…तो यह इसलाम के विनाश की शुरुआत होगी
5 अगस्त, 1947 को प्रार्थना सभा में.
मुसलमानों को उनका पाकिस्तान मिल गया है. अब उनका पंजाब के हिंदुओं और सिखों से कोई झगड़ा नहीं हो सकता. जिन्ना साहब ने और मुसलिम लीग के अन्य नेताओं ने यह आश्वासन दिया है कि पाकिस्तान में मुसलमानों की तरह गैर-मुसलमान लोग भी सुरक्षित हैं. मैं चाहूंगा कि आप लोग उनके द्वारा दिये गये इस आश्वासन पर विश्वास करें.मान लीजिए कि यह आश्वासन झूठा सिद्ध होता है और शरणार्थियों का बड़े से बड़ा भय सच निकलता है, तो यह इसलाम के विनाश की शुरुआत होगी. मैं नहीं मानता कि मुसलिम नेता ऐसा कोई आत्मघातक कार्य करेंगे.
हुकूमत तो अपना काम भूल गयी है
12 सितंबर, 1947 को प्रार्थना सभा में.
पाकिस्तान की हुकूमत तो अपना काम भूल गयी है. कायदे-आजम जिन्ना साहब, जो पाकिस्तान के गवर्नर जनरल हैं, उनको मैं कहूंगा कि आप ऐसा न करें. जितनी बातें अखबारों में आयी हैं, अगर वे सही हैं तो मैं उनसे कहूंगा कि वहां हिंदू-सिख आपकी सेवा के लिए ही पड़े हैं. आज वे क्यों डरते हैं? इसलिए कि उनको और उनकी बीवियों को मर जाना पड़ेगा, उनकी बीवियों को कोई उठा ले जायेगा. उन्हें खतरा है सो वे भागते हैं. वहां की हुकूमत में ऐसा क्यों?
हिंदुओं, सिखों को सुरक्षा क्यों नहीं?
16 सितंबर, 1947 को आरएसएस की रैली में.
अगर पाकिस्तान बुराई ही करता रहा तो आखिर हिंदुस्तान और पाकिस्तान में लड़ाई होनी ही है. अगर मेरी चले तो न तो मैं फौज रखूं और न ही पुलिस. मगर ये सब हवाई बातें हैं. मैं शासन नहीं चलाता. पाकिस्तान वाले हिंदुओं और सिखों को क्यों नहीं मनाते कि यहीं रहो, अपना घर न छोड़ो? वे उन्हें हर तरह की सुरक्षा क्यों नहीं देते?
…तो हिंदुस्तान की हुकूमत लड़ेगी नहीं तो क्या करेगी?
27 सितंबर, 1947 को प्रार्थना सभा में.
यदि पाकिस्तानवाले कहें कि नहीं हम तो ‘लड़ कर लेंगे हिन्दुस्तान’ तो मैंने कल सुनाया था कि वे ऐसा गुमान रखेंगे तो यहां हिन्दुस्तान की हुकूमत लड़ेगी नहीं तो क्या करेगी?
जो पाक सरकार कहती है, उस पर अमल भी करे
1 नवंबर, 1947 को हसन शहीद सुहरावर्दी से.
सुहरावर्दी, आप जिन चीजों को तथ्य के रूप में जानते हैं, उन्हें जिन्ना के सामने रखें और उनसे पूछें कि दोनों देशों ने जो समझौता किया है उन्हें लागू करने के लिए वे क्या करनेवाले हैं. दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को अपने मूल स्थानों में रह सकना चाहिए. मुख्य चीज यह है कि जो पाकिस्तान सरकार कहती है, उस पर अमल भी करे.
पाकिस्तान को अपने पापों का बोझ उठाना है
24 नवंबर, 1947 को प्रार्थना सभा में भाषण
मेरी क्या राय है, यह जानना सबके लिए काफी होना चाहिए. अगर उस राय की कोई कीमत है, तो वह यह है कि 15 अगस्त से बहुत से पहले मुसलिम लीग ने शरारत शुरू की थी. मैं यह भी नहीं कह सकता कि 15 अगस्त को उन्होंने नयी जिंदगी शुरू कर दी और शरारत को भूल गये. मगर मेरी यह राय आपको कोई मदद नहीं कर सकती. महत्व की बात यह है कि यूनियन में हमने उनके पापों की नकल की, और उनके साथ हम भी पापी बन गये. तराजू के पलड़े करीब-करीब बराबर हो गये. क्या अब भी हमारी मूर्छा छूटेगी और हम अपने पापों का प्रायश्चित करेंगे? या फिर हमें गिरना ही है?
(सभी विचार गांधी वांमय से संकलित.)