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अब बिम्सटेक के जरिये पाक को घेरेगा भारत

सार्क समिट रद्द होने के बाद भारत के इनकार के बाद पाकिस्तान में प्रस्तावित सार्क समिट रद्द होने से उसकी किरकिरी हुई है. माना जा रहा है कि भारत अब बिम्सटेक (द बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) के जरिये पाकिस्तान को कड़ा संदेश देगा. खबर है कि भारत इसी […]

सार्क समिट रद्द होने के बाद
भारत के इनकार के बाद पाकिस्तान में प्रस्तावित सार्क समिट रद्द होने से उसकी किरकिरी हुई है. माना जा रहा है कि भारत अब बिम्सटेक (द बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) के जरिये पाकिस्तान को कड़ा संदेश देगा. खबर है कि भारत इसी माह गोवा में हो रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान बिम्सटेक के देशों के अलावा अफगानिस्तान व मालदीव को भी आमंत्रित करने जा रहा है. विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने संकेत दिया है कि बिम्सटेक की बैठक में आतंकवाद का मसला भी उठाया जायेगा.
जानकारों का मानना है कि भारत की इस रणनीति से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरों में पाकिस्तान एक बार फिर अलग-थलग पड़ जायेगा. माना जा रहा है कि भारत इस अवसर पर एक नये संगठन की शुरुआत भी कर सकता है, जिसमें पाकिस्तान को शामिल नहीं किया जायेगा. सार्क की कामयाबियों की राह में पाकिस्तान बाधक बनता रहा है, ऐसे में बिम्सटेक पाकिस्तान को अलग-थलग करने का एक बेहतरीन जरिया बन सकता है. बिम्सटेक के अब तक के सफर और इसकी आगे की संभावनाओं के बारे में विस्तार से बता रहा है आज का ‘इन डेप्थ’.
प्रो संजय भारद्वाज
साउथ एशियन स्टडीज, जेएनयू
पा किस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देना जारी रखने के चलते भारत ने पाकिस्तान में होनेवाले सार्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है. अब माना जा रहा है कि भारत की ओर से ‘बिम्सटेक’ को बढ़ावा दिया जायेगा, जिससे बिम्सटेक में शामिल सार्क देशों के बीच भी क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि बिम्सटेक में पाकिस्तान नहीं है.
पहले सार्क की असफलता के कारणों को समझिए
बिम्सटेक की सफलता की संभावनाओं को तभी समझा जा सकता है, जब सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) की असफलता को समझ लिया जाये. अपने गठन (1985) के बाद से अब तक सार्क से कोई बड़ा फायदा नहीं मिला है. सार्क में दो महत्वपूर्ण देश हैं- भारत और पाकिस्तान. बाकी सदस्य देशों से ये दोनों बड़े और प्रभावी देश हैं. लेकिन, इन दोनों देशों में आपसी सामंजस्य और सहयोग कभी स्थापित ही नहीं हो पाया. भारत और पाकिस्तान अपनी अंदरूनी खींचतान के चलते कभी एकजुट नहीं हो पाये. ये दोनों अपनी राष्ट्रीय पहचान से ऊपर उठ कर दक्षिण एशियाई देश के रूप में एक बड़ी सामूहिक पहचान नहीं बना पाये. यही सार्क की असफलता की सबसे बड़ी वजह रही.
सार्क का प्रावधान था कि इसकी बैठकों में कभी भी दो देशों के द्विपक्षीय मुद्दे शामिल नहीं होंगे, ताकि बाकी देशों के क्षेत्रीय सहयोग पर कोई असर न पड़ने पाये. लेकिन, भारत और पाकिस्तान के आपसी मुद्दे बाकी देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में बाधक बनते रहे और सार्क असफल साबित होता गया. सार्क का एक और प्रावधान था कि कोई भी निर्णय सभी सदस्य देशों की सहमति से ली जायेगी. लेकिन, इस प्रावधान का भी अनुपालन नहीं हुआ, जिसके चलते साफ्टा (साउथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया) का कोई लाभ नहीं मिल सका. क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में पाकिस्तान ने भारत का साथ नहीं दिया और पाक में पल रही कट्टरता के कारण दक्षिण एशियाई देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग पर आतंकवाद की छाया मंडराती रही.
पृष्ठभूमि में था पाकिस्तान का असहयोगात्मक रवैया
अब हम बिम्सटेक को बढ़ावा देकर भले ही पाकिस्तान को अलग-थलग करने की बात करें, लेकिन पाकिस्तान के साथ ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इसकी शुरुआत गुजराल डॉक्ट्रिन के वक्त से ही मानी जा सकती है, जिसमें पाकिस्तान को शामिल न करने की बात कही गयी थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने साफ संकेत दिया था कि अगर पाकिस्तान अपना असहयोगात्मक रवैया नहीं छोड़ेगा, तो भारत क्षेत्रीय सहयोग में उसे शामिल नहीं करेगा. इसी पृष्ठभूमि में 6 जून, 1997 को बिम्सटेक नामक संगठन की नींव पड़ी, जिसमें पाकिस्तान को शामिल नहीं किया गया. पाकिस्तान को तब भी अलग-थलग रखा गया था.
िबम्सटेक के सफर की कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानें
बिम्सटेक के सफर से जुड़े दो महत्वपूर्ण तथ्य हैं. एक, दक्षिण एशियाई देशों के बीच उप-क्षेत्रीय सहयोग का विकास हुआ और दूसरा, इसमें आसियान संगठन के दो (दक्षिण-पूर्वी एशियाई) देशों- म्यांमार और थाइलैंड- के शामिल होने से सदस्य देशों के बीच अंतरक्षेत्रीय सहयोग का विकास हुआ. म्यांमार और थाइलैंड का बिम्सटेक में शामिल होना भारत की ‘लुक इस्ट पॉलिसी’ का परिणाम था, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब ‘एक्ट इस्ट पॉलिसी’ का रूप दिया है.
जाहिर है, सार्क तक तो भारत सिर्फ दक्षिण एशिया में ही क्षेत्रीय सहयोग, व्यापार, आयात-निर्यात आदि कर रहा था, लेकिन बिम्सटेक को बढ़ावा मिलने से हमारी पहुंच दक्षिण-पूर्वी एशिया तक हो गयी. भारत पहले सिर्फ दक्षिण एशिया पर ही फोकस कर रहा था, लेकिन अब उसने अपना विस्तार शुरू कर दिया है. अब भारत ने विकल्प के रूप में बहुपक्षीय संगठनों को प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया है, जिसमें सबसे ऊपर है बिम्सटेक.
भारत ने छेड़ी ‘चौतरफा सहयोग’ बढ़ावा की मुहिम
बिम्सटेक के विकास के लिए इस संगठन का डेवलपमेंटल पार्टनर एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) बना. बिम्सटेक देशों के बीच में भौतिक संपर्क, आर्थिक संपर्क और सांस्कृतिक संपर्क इन तीनों को बढ़ाने के लिए एडीबी प्रोत्साहन करता है और फंड देता है. इसके लिए त्रिपक्षीय संपर्क मार्ग की व्यवस्था बनायी है, जो भारत, थाइलैंड और म्यांमार के बीच है. यानी भारत ने ‘चौतरफा सहयोग’ को बढ़ावा देने की मुहिम छेड़ दी है, जिसमें पाकिस्तान नहीं है.
बिम्सटेक के सदस्य देश संसाधनसंपन्न हैं और तकनीकी रूप से आगे बढ़ रहे हैं. बिम्सटेक को बढ़ावा मिलने से इसके सदस्य देशों के बीच बाजार तेजी से बढ़ेगा, जिसका आर्थिक लाभ सभी को होगा, लेकिन पाकिस्तान इससे वंचित रह जायेगा. भारत सोच रहा था कि तापी प्रोजेक्ट के तहत ईरान, तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान से गैस पाइप लाइन लेकर आये, लेकिन अब यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला जायेगा. भारत सड़क मार्ग के जरिये गैस पाइप लाइन को लाने के बारे में सोच रहा था, अब भारत ने समुद्र मार्ग का रास्ता अपनाया है और ईरान के चाबहार बंदरगाह के बीच संपर्क प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर किया है. इससे पाकिस्तान को बहुत नुकसान हो रहा है, क्योंकि अगर तापी प्रोजेक्ट सफल होता, तो पाकिस्तान को काफी आर्थिक लाभ होता. गैस पाइप लाइन की फीस पाकिस्तान को मिलती और सड़क संपर्क के होने से उसे भारत और बांग्लादेश का बड़ा बाजार मिलता. लेकिन, अब पाकिस्तान इन फायदों से अछूता रह जायेगा और बिम्सटेक के देश आपसी सहयोग के जरिये इन फायदों को भुना कर अपना विकास करेंगे.
पाकिस्तान वैश्विक आलोचना का शिकार बन रहा
एक तरफ बांग्लादेश, अफगानिस्तान और कुछ हद तक श्रीलंका (समुद्र मार्ग से मछुआरों के जरिये लिट्टे को हथियार देकर आइएसआइ ने श्रीलंका में आतंक को बढ़ावा दिया था) जिस तरह पाकिस्तान के आतंवाद से पीड़ित रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कई यूरोपीय देश और अमेरिका भी आतंकवाद (आइएसआइएस) से परेशान हैं. ऐसे में यह बहुत ही मुमकिन है कि जिस तरह से क्षेत्रीय स्तर पर बिम्सटेक जैसे संगठन खड़े होकर पाकिस्तान को अलग-थलग कर रहे हैं, उसी तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आनेवाले दिनों में ऐसे सहयोग संगठन स्थापित हों, जिनसे पाकिस्तान को कोई जगह न मिले. आतंकवाद को लेकर देर-सबेर और भी देश पाकिस्तान के खिलाफ खड़े होंगे. यहां तक कि चीन भी अपने मुसलिम बहुल क्षेत्र सिंकिंयांग में कट्टरता के बढ़ने से परेशान है और सशंकित है कि कहीं वहां भी आतंकवाद अपना पैर न पसार ले. ऐसे में चीन भी पाकिस्तान का साथ नहीं देगा और इसका संकेत उसने उड़ी हमले के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक पर अपने बयान में दे दिया था कि भारत-पाकिस्तान अपने मसले बातचीत से सुलझाएं.
कुल मिला कर देखें, तो आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान दक्षिण एशिया में ही नहीं, दुनियाभर में आलोचना का शिकार बन रहा है.
ऐसे में अगर बिम्सटेक को बढ़ावा मिलता है, तो आर्थिक विकास के स्तर पर भी पाकिस्तान को बड़ा नुकसान हो सकता है. यानी अगर पाकिस्तान अपने को सुधार नहीं पाया, तो वह सिर्फ आतंकवाद को लेकर ही अलग-थलग नहीं पड़ेगा, बल्कि वैश्विक बाजार और आर्थिक स्तर पर भी अलग-थलग पड़ सकता है. (वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे बिम्सटेक के देश भी
भारत ने 15 और 16 तारीख को गोवा में हो रहे आठवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में बिम्सटेक के अन्य छह सदस्य देशों के नेताओं को भी आमंत्रित किया है. भारत का मानना है कि बिम्सटेक अपनी स्थापना के समय से लेकर अब तक कई क्षेत्रों में सफल रहा है, पर उसकी पूर्ण संभावनाओं को वास्तविकता में बदलना अभी बाकी है.
ब्रिक्स सम्मेलन उन संभावनाओं को पूरा करने की दिशा में मददगार हो सकता है. इस सम्मेलन में दोनों समूह के देश अन्य जरूरी मुद्दों के अलावा आतंकवाद जैसी बड़ी चुनौती से निपटने के उपायों और प्रयासों पर भी चर्चा करेंगे.
दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में एक नये युग के सूत्रपात के केंद्र के रूप में उभर रहा है िबम्सटेक पाकिस्तान के नकारात्मक रवैये और छोटे देशों की बड़े देशों से आशंकाओं के कारण सार्क की संभावनाएं वास्तविकता में नहीं बदल सकी हैं. हालांकि 2013 में सार्क देशों का व्यापार 45 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच गया था, लेकिन यह द्विपक्षीय व्यापार के प्रयासों के कारण हुआ, न कि सार्क की व्यवस्था के अंतर्गत. ऐसे वक्त में बिम्सटेक से बहुत उम्मीदें जुड़ी हैं. बिम्सटेक के क्षेत्र में 1.6 अरब लोगों का बाजार मौजूद है, जो कि वैश्विक जनसंख्या का पांचवां हिस्सा है.
वर्ष 2013 में इस समूह का आंतरिक व्यापार 74.63 अरब डॉलर था, जो 2005 में महज 25.16 अरब डॉलर ही था. जानकारों की मानें, तो सार्क की सीमित सफलता के कारण ही भारत ने 1997 में थाइलैंड के प्रस्ताव को उत्साह के साथ स्वीकार किया था, जिससे बिम्सटेक की भूमिका बनी थी. बिम्सटेक के महासचिव सुमित नकांडला का कहना है कि बिम्सटे क भारत की ‘लुक इस्ट’ और थाइलैंड की ‘लुक वेस्ट’ नीतियों का सम्मिलित परिणाम है. बिम्सटेक महासचिव का अनुमान है कि मुक्त व्यापार समझौते के लागू होने के बाद इस समूह के अंदर व्यापार में 43 से 59 अरब डॉलर तक की बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन इसके लिए हर सदस्य देश को अपने यहां यातायात और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं में बहुत अधिक बेहतरी करनी होगी.
वर्ष 2014 में पाकिस्तान ने सार्क देशों में साझा वाहन समझौते को रोक दिया था और अब वह भारत समेत कुछ अन्य सार्क देशों को अस्थिर करने की अपनी नीति को उत्तरोत्तर खतरनाक तेवर दे रहा है. दूसरी ओर बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल के बीच वाहन समझौते के तहत गाड़ियों के आने-जाने की शुरुआत हो रही है. अगले पांच सालों में एशियन डेवलपमेंट बैंक के तकनीकी सहयोग से आठ अरब डॉलर की लागत से 30 सड़क परियोजनाएं तैयार होनी हैं. इस परियोजना को अन्य तीन बिम्सटेक देशों- श्रीलंका, म्यांमार और थाइलैंड- तक विस्तृत करने का एक प्रस्ताव विचाराधीन है.
ईरान और अफगानिस्तान के साथ मिल कर भारत अफगानिस्तान के लिए मध्य एशिया के बाजारों तक पहुंच बनाने तथा वैकल्पिक रास्तों की तलाश के लिए कोशिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसके अलावा सार्क के लिए भारत द्वारा सैटेलाइट मुहैया करने के प्रस्ताव से पाकिस्तान के इनकार के बावजूद अन्य देशों ने गहरी रुचि दिखायी है. इस साल यह सैटेलाइट प्रक्षेपित होने की आशा है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि बिम्सटेक दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में एक नये युग के सूत्रपात के केंद्र के रूप में उभर रहा है.
‘बिम्सटेक’ है क्या?
सात देशों- बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाइलैंड- के साझा क्षेत्रीय सहयोग संगठन ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन’ का संक्षिप्त नाम है बिम्सटेक. इस पहल की शुरुआत बिस्ट-एक के रूप में जून, 1997 में हुई थी, जिसमें बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाइलैंड के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. उसी वर्ष दिसंबर में इसमें म्यांमार को शामिल किया गया और समूह का नाम बिम्स्ट-एक कर दिया गया. फरवरी, 2004 में नेपाल और भूटान के शामिल होने के बाद बैंकॉक में जुलाई, 2004 में हुए पहले शिखर सम्मेलन में इस समूह का नया नाम ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन’ (बिम्सटेक) रखा गया.
बिम्सटेक की कार्यप्रणाली : शिखर सम्मेलनों, मंत्री-स्तरीय बैठकों, उच्चाधिकारियों की बैठकों तथा विशेषज्ञों के बीच वार्ताओं तथा बैंकॉक स्थित बिम्सटेक वर्किंग ग्रुप के जरिये बिम्सटेक विभिन्न सरकारों के बीच में संपर्क स्थापित करने का मंच मुहैया कराता है. बिम्सटेक की अब तक तीन शिखर बैठकें और अनेक मंत्री और अधिकारी स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं.
अध्यक्षता : देशों के नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार क्रम से इस समूह की अध्यक्षता का निर्णय होता है. फिलहाल नेपाल इसका अध्यक्ष है. इससे पहले बांग्लादेश (1997-99), भारत (2000), म्यांमार (2001-02), श्रीलंका (2002-03), थाइलैंड (2003-05) और बांग्लादेश (2005-06) बिम्सटेक की अध्यक्षता कर चुके हैं. भूटान के मना करने पर भारत ने 2006-09 तक अध्यक्षता की थी.
सहयोग के क्षेत्र : बिम्सटेक ने आपसी सहयोग के लिए 14 प्राथमिक क्षेत्रों को चिह्नित किया है और हर क्षेत्र में एक देश को नेतृत्व की जिम्मेवारी दी गयी है. ये क्षेत्र और नेतृत्वकारी देश इस प्रकार हैं-
1. यातायात एवं संचार (भारत)
2. पर्यटन (भारत)
3. आतंकवाद-निरोध एवं पारदेशीय अपराध (भारत)- इस विषय के अंतर्गत चार उप-समूह हैं- इंटेलिजेंस साझेदारी (श्रीलंका), आतंक के वित्तीय आधार का मुकाबला करना (थाइलैंड), वैधानिक और कानूनी मुद्दे (भारत) तथा नशीले पदार्थों के अवैध कारोबार की रोकथाम (म्यांमार).
4. पर्यावरण एवं आपदा प्रबंधन (भारत) 5. व्यापार एवं निवेश (बांग्लादेश) 6. सांस्कृतिक सहयोग (भूटान) 7. ऊर्जा (म्यांमार) 8. कृषि (म्यांमार) 9. गरीबी निवारण (नेपाल) 10. तकनीक (श्रीलंका)
11. मत्स्य पालन (थाइलैंड)
12. सार्वजनिक स्वास्थ्य (थाइलैंड) 13. लोगों के बीच में संपर्क (थाइलैंड)
14. जलवायु परिवर्तन (बांग्लादेश)
बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौता
समूह के सदस्य देशों के बीच तथा अन्य देशों को बिम्सटेक के साथ व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए फरवरी, 2004 में मुक्त व्यापार समझौता किया गया था. बांग्लादेश इस व्यवस्था में जून, 2004 में शामिल हुआ. समझौते को दिशा देने के लिए ट्रेड निगोशिएटिंग कमिटी की स्थापना की गयी है, जिसकी पहली बैठक बैंकॉक में सितंबर, 2004 में हुई थी. इस कमिटी का स्थायी अध्यक्ष थाईलैंड है, लेकिन इसकी बैठकों की जगह बदलती रहती है. बैठक का मेजबान देश और अध्यक्षीय देश कमिटी के प्रवक्ता होते हैं.
बिम्सटेक देशों के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार (2014-15)
देश निर्यात निर्यात में आयात आयात में
मिलियन हिस्सा मिलियन हिस्सा
डॉलर प्रतिशत में डॉलर प्रतिशत में
बांग्लादेश 6,451.47 2.08 621.37 0.14
भूटान 333.94 0.11 149.87 0.03
म्यांमार 773.24 0.25 1,231.54 0.27
नेपाल 4,558.77 1.47 6,39.91 0.14
श्रीलंका 6,703.72 2.16 756.17 0.17
थाईलैंड 3,464.83 1.12 5,865.88 1.31
(स्रोत : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार)

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